इसमें आत्मा का कभी भी नाश नहीं होता है और ना ही आत्मा के ऊपर प्रकृति का कोई प्रभाव पड़ता है अर्थात् न अग्नि उसे जला सकती है , न पानी उसको गीला कर सकता है, न हवा उसको सुखा सकती है , न तलवार उसको काट सकती है, आत्मा न कभी मरती है और न ही जन्म लेती है, यह अजन्मा, अविनाशी, शाश्वत और आदि युगीन है !
एक मछुआरा कांटा डाले तालाब के किनारे बैठा था। काफी समय बाद भी कोई मछली कांटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई तो वह सोचने लगा... कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने कांटा गलत जगह डाल दिया है, यहाँ कोई मछली ही न हो !