E.20 स्वधर्म सुख का आधार और परधर्म दुःख का कारण है

मान लो सब कुछ हो लेकिन शान्ति ही न हो तो वो जीवन कैसे होगा ? टेंशन से भरा होगा ! इसमें से एक गुण भी कम हो जाए, जैसे शरीर के पाँच तत्वों में से एक भी कम हो जाए तो कैसी बेचैनी होती है !

619

गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (तीसरा और चौथा अध्याय)

“स्वधर्म, सुख का आधार” 

The Great Geeta Episode No• 020

जहाँ स्वार्थ-युक्त्त प्रेम होता है , वहाँ शान्ति कभी हो ही नहीं सकती है !

आज मनुष्य को जीवन में सच्चे सुख का अनुभव नहीं होता है क्योंकि उसके चारो आधार है ही नहीं !

जहाँ ये चारो आधार हैैैं वहाँ जीवन की सर्वोच्च प्राप्ति है, आनन्द है, खुशी है, उत्साह है, तब जीवन में उंमग आता है और जीवन जीने का आनन्द आने लगता है !

यही तो जीवन जीने की कला है और जहाँ ये छः बातें हैं- वहाँ ‘ आत्मशक्त्ति’ अनुभव होती है !

आज आत्मशक्त्ति को तो छोड़ों मनुष्य-जीवन में ‘ विशवास ‘ ही खत्म होता जा रहा है !

इसका कारण क्या है ? इन छः गुणों की कमी ! वास्तव में ये आत्मा के गुण नहीं बल्कि छः शक्त्तियाँ हैं !

ज्ञान की शक्त्ति, पवित्रता की शक्त्ति, प्रेम की शक्त्ति, शान्ति की शक्त्ति ये सब शक्त्तियां हैं !

जब ये शक्त्तियाँ हों तो आत्मशक्त्ति विकसित होती है ! यही सात गुण आत्मा का स्वधर्म है, यही उसका गुणधर्म है !

जिसमें स्थित होकर हर आत्मा कम्फर्टेबल ( Comfortable) अनुभव करती है !

मान लो सब कुछ हो लेकिन शान्ति ही न हो तो वो जीवन कैसे होगा ? टेंशन से भरा होगा ! इसमें से एक गुण भी कम हो जाए, जैसे शरीर के पाँच तत्वों में से एक भी कम हो जाए तो कैसी बेचैनी होती है !


ऐसे आत्मा में भी सात गुणों में से एक गुण भी कम हो गया तो जीवन जीने का आनन्द नहीं रहेगा !

जीवन, जीवन नहीं लगेगा ! ये स्वधर्म हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो यही आत्मा की बैट्री है !

लेकिन आज के युग में ये बैट्री डिस्चार्ज हो गयी है ! अब उसको चार्ज कैसे करें ?

इसलिए भगवान ने अर्जुन को कहा कि हे अर्जुन ! तुम्हारे पास आत्मा में इतनी क्षमता और ऊर्जा होने के बाद भी अगर तुम युद्ध नहीं करोगे , इस संधर्ष में अपने मन को विजयी नहीं बनाओगे तो पाप लगेगा और तुम अपनी कीर्ति को खोकर अपयश के भागी बनोगे !

लेकिन इस स्वधर्म से आज इंसान बुहत दूर चला गया है ! यही उसके अनादि संस्कार हैं जिससे हम दूर होकर परधर्म के लक्षणों को अपने जीवन में ले आए हैं !

तभी कहा जाता है ‘ स्वधर्म सुख का आधार है और परधर्म दुःख का कारण है !

‘ ये परधर्म कौन सा है ? ये स्वधर्म से ‘पर’ कौन सी बात है ? वह है अज्ञान यानि अहंकार, अपवित्रता स्वार्थ की भावनायें, नफरत, शान्ति के बजाय तनाव, क्रोध, सुख के बजाय दुःख की फीलिगं आनन्द के बजाय उदासी की भावनायें या ईर्ष्या की भावनायें !

जहाँ आत्मशक्त्ति का अनुभव नहीं होता वहाँ ' परधर्म ' है ! स्वधर्म सुख का आधार है और परधर्म दुःख का कारण है !

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here