E.40 परमात्मा की शरण कौन ग्रहण करता है ?

गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (सातवाँ और आठवाँ अध्याय)

“आत्म-स्वरूप स्थिति”

The Great Geeta Episode No• 040

परमात्मा की शरण कौन ग्रहण करता है ?

अर्जुन फिर प्रशन पूछता है कि परमात्मा की शरण कौन ग्रहण करता है ? भगवान कहते हैं –

चार प्रकार के लोग हैं , जो भगवान की शरण में आते हैं ! कौन लोग भगवान को याद करते हैं इस दुनिया में ?

( 1 ) एक तो जो पीड़ित हैं , पीड़ा ग्रस्त हैं- वो भगवान को याद करते हैं – वो भगवान को याद करते हैं क्योंकि पीड़ा की अवस्था में वो समझ सकते हैं कि हमारी पीड़ा हरने वाला , दुःख हरने वाला एक परमात्मा ही है ! तो क्या कहते हे प्रभु ! मेरा दुःख हरो !

( 2 ) दूसरा कौन याद करता है- वो बिज़नेस मैन ? जो अर्थार्थी है ! अर्थात् जिसको अर्थ से मतलब है , पैसा कमाना है , लोभ की ईच्छा है , लाभ प्राप्त करने की भावना है , वो लक्ष्मी पूजन ज़रूर करेगा ! तो अर्थार्थी ( धन कमाने की कामना करने वाले ) भी भगवान को याद करते रहते हैं !

( 3 ) तीसरे प्रकार के व्यक्त्ति हैं ! जिसमें ज्ञान की जिज्ञासा होती है , वो भगवान को याद करता है !

( 4 ) चौथे प्रकार के व्यक्त्ति ज्ञानी , अध्यात्म को यथार्थ रूप से जानने वाले हैं ! वो गुप्त रहस्य को समझना चाहते हैं ! इसलिए जिज्ञासु ही श्रेष्ठ ज्ञानी है , जो अध्यात्म के आधार पर अपने जीवन में यथार्थ को समझने का प्रयत्न करते हैं ! दुनिया में जिज्ञासु बहुत हैं ! कथाओं में जाओ आपको लाखों की सभा मिलेगी ! जिज्ञासु हैं , वे ज्ञान जानना चाहते हैं ! 
जो ज्ञानी हैं वो गूढ़ रहस्यों को समझने का प्रयत्न करते हैं ! इसलिए वो अधिक मात्रा में नहीं होते ! वो कम मात्रा में होते हैं ! लेकिन यथार्थ को समझ लेते हैं !

ये चार प्रकार के लोग भगवान की शरण को प्राप्त करते हैं और भगवान को याद करते हैं ! फिर भगवान कहते हैं-निःसंदेह ये सब श्रेष्ठ भाव वाले ही हैं ! परन्तु जो परमज्ञानी और परमात्म प्यार में समाया हुआ है वह सर्वश्रेष्ठ है ! क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय है !

भगवान में मन नहीं लगता है , तो उसका कारण क्या है ?

उसका कारण है कि शायद हमें भगवान को प्यार करना नहीं आता है ! भगवान के प्रति हमारा प्यार नहीं है ! इंसानों के प्रति है इसलिए इंसान की याद सहज आती है ! लेकिन जहाँ भगवान के प्रति प्यार ही न हो तो भगवान की याद कैसे आएगी ?

तो इसलिए भगवान कहते हैं – सर्वश्रेष्ठ परमज्ञानी वह है जो मुझे अत्यंत प्रिय है और जिसे मैं अत्यंत प्रिय हूँ ! उसे मैं अपने समान मानता हूँ ! क्योंकि वह निश्चय बुद्धि होकर मेरी मत पर चलते हैं !

वो बहुत जन्म के अन्त में मेरी शरण में आते हैं ! ऐसा महात्मा मिलना अत्यंत दुर्लभ है जो परमात्मा की शरण में और परमात्मा की मत पर अपना जीवन चलाने लगते है ! पर ऐसे व्यक्त्ति परमात्मा को अतिप्रिय हैं !

भगवान कहते हैं, जिनकी बुद्धि इच्छाओं के द्वारा मारी गई है वे अपनी इच्छा-पूर्ति के लिए देवाताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वमान के अनुसार पूजा के विधि विधान बनाते हैं , और पालन करते हैं !

किन्तु वास्तविकता यह है कि सारी प्राप्ति मेरे द्वारा ही प्रगट होती है ! अगर किसी ने धन की इच्छा प्राप्त करने से पूजा की , किसी और ने किसी अन्य मनोकामना को लेकर के किसी न किसी देवी देवताओं की पूजा की तो भगवान कहते हैं – वो फल को प्रदान करना मेरी शक्त्ति है !

मैं ही उसको प्रदान करता हूँ लेकिन अल्पज्ञ बुद्धि वाले व्यक्त्ति देवाताओं की पूजा करते हैं तो प्राप्त होने वाले फल भी सीमित और क्षणिक होते हैं ! तो सदाकाल के नहीं होते हैं ! इस का एक बहुत सुन्दर उदाहरण कहानी के रूप में हैं !

एक कहानी

एक बार एक व्यक्त्ति जो ब्राह्यण था उसका बेटा बीमार हुआ ! डॉक्टर के पास गया और डॉक्टर ने उसको कहा कि अब तो इसे भगवान ही बचा सकते हैं हमारे हाथ में अब ये केस नहीं है ! वह कृष्ण भक्त्त था ! नित्य कृष्ण की पूजा करने लगा ! दिन-रात लगातार कृष्ण की पूजा करता रहा ! 

उतने में एक पड़ोसी आया ! और पड़ोसी कहने लगा कि अरे कब से तुम कृष्ण को याद कर रहे हो ! ऐसे समय में श्रीकृष्ण को थोड़े ही याद करना चाहिए ! ऐसे समय में " माँ " को पुकारो , देख तेरी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी !

उसको भी लगा कि बात तो सही है ऐसे समय में श्रीकृष्ण को थोड़े ही पुकारना चाहिए ! ' माँ का ह्रदय करूणा वाला होता है ! तू ' अम्बे माँ ' को पुकार , देख तेरी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी ! उसको भी लगा कि बात तो सही है ऐसे समय में श्रीकृष्ण को थोड़े ही पुकारना चाहिए ! इसलिए उसने ' अम्बे माँ ' की पूजा आरम्भ कर दी ! 

दिन रात अम्बे माँ का भजन गाता रहा , पूजा करता रहा ! इतने में एक और पड़ोसी उसको आकर कहता है , अरे भाई , तू कब से अम्बे माँ की पूजा कर रह है लेकिन ऐसे समय में अम्बे माँ की पूजा थोड़े ही करनी चाहिए ! उसने कहा फिर किसकी पूजा करनी चाहिए ?

विध्नहर्ता तो गणेश जी हैं ना तू विध्नहर्ता गणेश जी की पूजा कर ! देख तेरा विध्न टल जायेगा ! उसको भी लगा कि बात तो सही है और इसलिए उसने ' गणेश जी ' की पूजा आरम्भ कर दी ! लगातार दिन-रात ' गणेश जी ' की पूजा करने लगा ! तभी एक और मित्र सम्बन्धी आ करके कहने लगा ! अरे सुना आजकल ' गायत्री मंत्र ' का चमत्कार बहुत होता है ! 

तू ' गायत्री मंत्र ' का जाप कर , उसको भी लगा सुना तो है ' गायत्री मंत्र ' का चमत्कार होता है ! उसने ' गायत्री मंत्र ' आरम्भ कर दिया ! वहाँ एक मित्र-सम्बन्धी आकर कहने लगा अरे संकट मोचन तो ' हनुमानजी ' है ! तू हनुमान को याद कर ' हनुमान चालीसा ' बोल देख तेरे संकट टल जायेगा ! उसने भी 'हनुमान चालीसा ' बोलना आरम्भ कर दिया !

आखिर उसका बेटा मर गया ! कारण क्या हुआ….? पता ही नहीं ! याथार्थ क्या है ?

किसको याद करने से मुझे क्या मिलेगा ? इसलिए कहा कि जिसकी बुद्धि इच्छाओं के द्वारा मारी गई है वो अपनी इच्छा-पूर्ति के लिए देवी-देवताओं की शरण में जाते हैं और अपने-स्वभाव के अनुसार पूजा के विधि-विधान का पालन करते हैं तथा अपनी इच्छा-पूर्ति भी करते हैं !

किन्तु वास्तविकता यह है कि भगवान कहते हैं कि ये सारी प्राप्ति मेरे द्वारा प्रदत्त ( Provided ) है !
अल्पज्ञ बुद्धि वाले व्यक्त्ति देवाताओं की पूजा करते हैं तो प्राप्त होने वाले फल भी सीमित और क्षणिक होते हैं !
B K Swarna
B K Swarnahttps://hapur.bk.ooo/
Sister B K Swarna is a Rajyoga Meditation Teacher, an orator. At the age of 15 she began her life's as a path of spirituality. In 1997 She fully dedicated her life in Brahmakumaris for spiritual service for humanity. Especially services for women empowering, stress & self management, development of Inner Values.

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Shakuntla Verma
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