E.56 कर्मो की गुह्य गति: भगवद गीता

गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (सोलहवाँ और सत्रहवाँ अध्याय )

“दैवी और आसुरी प्रकृति”

The Great Geeta Episode No• 056

पहली कहानी

एक बार एक व्यक्त्ति हर रोज़ मछली पकड़ने जाता था ! जब वो मछली पकड़कर ले आता था तो एक नौजवान व्यक्त्ति हमेशा भीख मांगने के लिए खड़ा हो जाता था ! ये व्यक्त्ति सोचता था कि चलो इतनी मछली पकड़ी है , तो इसको थोड़ा दे देता हूँ ! वह भी अपना पेट भर लेगा ! एक दिन आया कि किसी ने उसको कहा कि तू रोज़ उसको दे रहा है और उसको आलसी बनाता जा रहा है ! क्यों नहीं उसको भी मछली कैसी पकड़ी जाती है ये सिखाया जाए !

तो वह अपने आप , कम-से-कम इतनी मेहनत करके , अपना पेट तो भरेगा ! आज की दुनिया में भी ऐसा हो गया है ! हमने कई बार किसी को देकर के सोचा , चलो मेरा काम हुआ , मेरे को थोड़ा दान का पुण्य मिल गया ! इस तरह से हम देते जाते हैं ! लेकिन हम यह नहीं सोचते हैं कि सामने वाले पात्र को आलसी तो नहीं बना रहे हैं ?

इस तरह से अगर आलसी बनाते जायेंगे , तो आगे चलकर उनके मन में कई प्रकार की विकृतियां उत्पन्न होगी ! आलसी दिमाग शैतान का घर बनता है ! इसलिए क्यों नहीं उसको ऐसे कर्म में व्यस्त किया जाए ! व्यस्त करने से उसका मन कम-से-कम शैतान का घर तो नहीं बनेगा ! इस प्रकार उनको जीवन में अच्छे मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे दी जाए ! इससे बड़ा कोई पुण्य नहीं हो सकता है ! तो ये पुण्य करो !

अगर ये करने का टाइम भी नहीं है तो दान का नहीं करना ही ठीक है ! नहीं तो आज हम कितनों के साथ हमारी भागीदारी हो जाती है ! उस भागीदारी में कर्म का फल की भोगना का समय आता है तो भोगना भी भागीदारी में ही चुक्त्तू करना पड़ता है !

जब चुक्त्तू करने का समय आता है तो भी ऐसे ही आता है ! मान लो कि हम कहीं ट्रेन में जा रहे हैं ! वहाँ किसी के बाजु में सीट खाली है और हम जाकर बैठ गए ! अचानक उसकी बहस किसी तीसरे व्यक्त्ति से छिड़ जाती है ! झगड़ा करने जैसी स्थिति हो जाती है ! हाथा- पाई होने लगती है ! हम बड़ी अच्छी भावना के साथ जाते हैं कि भाई , झगड़ा क्यों कर रहे हो ? शान्ति रखो न , शान्ति से बैठो न !

वो जो गुस्से का स्वरूप होता है उसमें तो वो ल़डते ही हैं लेकिन उसके साथ-साथ हमें भी पीट देते हैं ! फिर हम सोचते हैं कि हम तो भलाई करने गये थे , लोगों ने हमें मार दिया ! अब ये मार क्यों खानी पड़ी ?

क्योंकि भागीदारी में जो एकाऊंट बना और चुक्त्तू करने का समय आया , तो ये भी तो भागीदारी ही है ! उसको जानते भी नहीं , पहचानते भी नहीं ! जब भिखारी को दिया तो उसको जानते-पहचानते थोड़े ही थे ! लेकिन भागीदारी में जो भी एकाऊंट बना तो चुक्त्तू करने के समय भी भागीदारी में ही चुक्त्तू करना पड़ता है !

उस वक्त्त कई बार कई लोग सोचते हैं कि हम तो निर्दोष हैं , हम इसमें कैसे आ गए ? हमें क्यों मारा गया ? निर्दोष कोई नहीं है ! कहीं न कहीं वो एकाऊंट बना हुआ है ! इसलिए जब चुक्त्तू करने का समय आया तो वो चुकाना तो पड़ेगा ही ! तो हम अपने आप को निर्दोष कैसे कहेगे ?
Vinash Sakshatkar-truegyan

दूसरी कहानी

एक बहन ने अपने एक अनुभव के बारे में बताया कि एक बार अचानक किसी के घर में किसी ज्ञान की प्रवचन में जाना हुआ तो बच्चे टी• वी में कोई सीरियल देख रहें थे ! उनमें सबसे छोटा वाला बेटा जो कि लगभग बारह साल के बीच में होगा , वह आकर कहने लगा कि दीदी प्लीज़ , डोंट माइंड लेकिन आप थोड़ा साइलेंस रहेंगे ना तो बहुत अच्छा रहेगा !

ऐसा उसने बड़ी सभ्यता से बोला ! लेकिन फिर वो अपना जस्टीफिकेशन देने लगा कि ऐसा है कि ये सीरियल बहुत अच्छा है ! हम उसको मिस करना नहीं चाहते ! क्योंकि आज उसका लास्ट एपीसोड है ! आज के एपीसोड में कई ससपेंन्स खुलने वाले हैं !

उस बहन ने सोचा अच्छी बात है , देखें तो सही क्या ससपेंस होता है ! जैसे उसने देखा , उसे लगा कि एक दृश्य का दूसरे दृश्य से कोई सम्बन्ध नहीं था ! लेकिन पता नहीं ऐसा क्या ससपेंस खुलता , उसी में वो बहुत खुश हो जाते थे ! खुश होकर के कहते थे वाह ! बहुत अच्छा ! क्या अच्छा दिखाई देता , हमें समझ नहीं आया !

आखिर जब अन्त हुई तो उसमें कोई खास बात नहीं थी, लेकिन फिर भी वो बहुत खुश हो गए कि अन्त बहुत अच्छा दिखाया ! जब बहन से रहा नहीं गया तो उसने उस बच्चे को बुलाकर पूछा, इसमें क्या अच्छा था ? एक दृश्य का दूसरे से कोई कनेक्शन नहीं था ! स्टोरी क्या थी वो भी पता नहीं चल रही थी ! तो अच्छा क्या लगा ?

वो बच्चा आकर कहने लगा कि ऐसा है आपने सारे एपीसोड देखे नहीं ना ! इसलिए आपको कुछ समझ नहीं आया ! लेकिन हमने तो सारे एपीसोड देखे हैं ना इसलिए हमें कनेक्शन समझ आ रहा था कि इस घटना का कनेक्शन कौन- से एपीसोड के साथ है और हमको अच्छा लग रहा था ! वो इतना बोलकर चला गया !

लेकिन इतनी बड़ी बात उस बहन को समझा कर गया कि इस संसार चक्र में हमारे कितने जन्म हैं ! और एक-एक जन्म एक-एक एपीसोड की तरह है ! अब कलियुग का अन्तिम समय आया अर्थात् ये लास्ट एपीसोड है ! अब लास्ट एपीसोड में स्टोरी जैसा तो कुछ होगा ही नहीं ! एक दृश्य का , दूसरे दृश्य से कोई कनेक्शन नहीं है !

उसमें क्या खुलेगा , वह भी पता नहीं चलता ! लेकिन जब कोई ससपेंन्स खुलता है तो हम इतने दुःखी हो जाते हैं कि ऐसा क्यों हुआ ? हमने किसी का बुरा नहीं किया फिर ऐसा क्यों हुआ ? लेकिन इस दृश्य का कनेक्शन कोई-न- कोई एपीसोड के साथ जरूर होगा ? अगर हम भी टोटल सारे एपीसोड याद हो , तो हम भी क्या कहते ? वाह बहुत अच्छा हुआ ! ये जो हुआ बहुत अच्छा हुआ !

तीन घड़ी

गीता के सार में यही बात कही हुई है कि हे अर्जुन ! जो हुआ वह भी अच्छा , जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होने वाला और अच्छा होगा ! तीनों घड़ियाँ अच्छी हैं अर्थात् पास्ट , प्रजैन्ट और फियुचर !

इस ड्रामा के सिर्फ हम वर्तमान को देखते हैं , तो हम दुःखी हो जाते हैं ! क्योंकि हमें सारे एपीसोड याद नहीं हैं ! यदि हम सारे एपीसोड के हिसाब से सम्पूर्ण ड्रामा को देखें , तो शायद हरेक दृश्य कितना सुन्दर है , कितना महत्त्वपूर्ण है और उसके अन्दर कितना कुछ समाया हुआ है उसका अंदाज़ा भी हमें लगता है !

इसलिए कहा कि इस संसार में जो कुछ हो रहा है कहीं न कहीं उसका कनेक्शन अवश्य है ! इस तरह से जब हमारा कनेक्शन कई आत्माओं के साथ होने लगता है तो उसका हिसाब चुकाना भी उसी तरीके से पड़ता है ! अनजानेपन में भी हम कई पापकर्मों के भागीदार बन गयें हैं ! पुण्यकर्म में भी भागीदारी होती है तो पापकर्म में भी भागीदारी होती है ! कर्मो की गति अति गुह्य है !

बस के हादसे का उदहारण

पापकर्म के भागीदारी को उदाहरण के रूप में जैसे एक कसाई है और उसने कई पशुओं को मारा ! उसने तो पापकर्म किया लेकिन उस पशुओं के मांस को जिसको बेचा वो दुकानदार भी भागीदार हो गया ! उसके साथ जिसने खरीदा वो भी भागीदार हो गया ! उसके बाद वो घर में लाया और जिसने पकाया वो भी भागीदार हो गया और पकाकर जिसने खाया वो भी भागीदार हो गया ! उस समय अगर कोई मेहमान आ गये और उनको परोसा तो वो भी उस भागीदारी में जुड़ गए !

अब ये सारे लोग जो भागीदारी में जुड़े, जब सेटल ( Settle ) करने का समय आयेगा तो सबको इकट्ठा सेटल करना पड़ेगा या नहीं करना पड़ेगा ? क्योंकि कोई भी जानवर को जब मारा तो उसकी सूक्ष्म बददुआयें ( Curses ) निकलती हैं ! जिससे विकर्मो का खाता बन जाता हैं !

Indian Rail Accident Burning

अब माना कि एक बस में कई लोग कहीं पर जा रहे हैं, वो सभी बस में एक-दूसरे को पहचानते भी नहीं हैं ! जब बस फुल स्पीड पर होती है और वही सभी जानवरों का झून्ड़ पुर्नजन्म लेकर के रास्ता क्रॉस करते हैं ! उस जानवरों को बचाने के समय बस का बैलेन्स असंतुलित हो जाता है ! वो बस कहीं जाकर के ज़ोर से टकराई और बस कहीं नदी में या खाई में गिर जाती है ! बस में सवार सभी लोग मारे जाते हैैं और कुछ बचे हुए लोग बुरी तरह घायल हो जाते हैं ! तो कैसे इकट्ठे उन सभी को हिसाब चुकाना पड़ता है ?

वो संयोग बन जाता है कि कैसे वो सारी आत्माएँ अर्थात् लोग कहाँ से इकठ्ठी हो जाती हैं ! अब उस समय कोई कहे कि अरे वे सभी निर्दोष थे ! निर्दोष उनमें कोई नहीं था ! कहीं न कहीं दोष में उनका हिस्सा था !

इसलिए वो संयोग को कर्म के सिन्दात ने रचा ! इस ड्रामा के अन्दर जहाँ वो हिसाब चुक्त्तू करने का समय आया तो वह सब हिसाब-किताब चुक्त्तू समयनुसार आटोमेटीकली हो जाता है इस सारी धटना में कहीं भी भगवान का कोई दोष नहीं होता है ! क्योंकि लोग अकसर कह देते हैं कि जन्म-मरण सभी भगवान के हाथ है नहीं ये सभी हमारे ही कर्मो का हिसाब हैं ! 

इसलिए कहते हैं जो भी कर्म करो तो सोच समझ कर अर्थात् अपने विवेक से करो क्योंकि गलत लोगों को दिया दान अर्थात् अगर कुपात्र को चला गया तो वहाँ पापकर्म के भागी इस प्रकार हो जायेंगे कि पता भी नहीं चलेगा ! इस तरह से कई लोगों को अपने हिसाब-किताब चुक्त्तू करने पड़ते हैं !

भावार्थ यही है कि सात्विक दान जो बताया गया है , उसके हिसाब से अगर हम चलें अगर सुपात्र नहीं मिलता है तो दान नहीं करना अच्छा है !

👆 ये गीता में कहा गया है ! और अपने भोजन को भी तामसिक अर्थात् मांसाहारी से बचे और आहार को सात्विक रखें !
B K Swarna
B K Swarnahttps://hapur.bk.ooo/
Sister B K Swarna is a Rajyoga Meditation Teacher, an orator. At the age of 15 she began her life's as a path of spirituality. In 1997 She fully dedicated her life in Brahmakumaris for spiritual service for humanity. Especially services for women empowering, stress & self management, development of Inner Values.

Related Articles

Latest Articles

Ashish
27 POSTS0 COMMENTS