गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (तीसरा और चौथा अध्याय)
“स्वधर्म, सुख का आधार”
The Great Geeta Episode No• 027
अर्जुन एक महत्त्वपूर्ण प्रशन जिसका उत्तर भगवान इस प्रकार देते हैं ! अर्जुन ने प्रशन पूछा कि
सबसे पहले आपने ये ज्ञान किसको दिया था ?
तब भगवान कहते हैं कि
उत्तर :- अविनाशी योग को कल्प के आदि में मैने सूर्य से कहा था ! सूर्य से मनु को यही गीता प्राप्त हुई, मनु ने उसे स्मृति में संजोया, मनु से इच्छावाक को मिली, जिसे राजत्र्षियों ने जाना ! किन्तु इस महत्त्वपूर्ण काल में ये ज्ञान लुप्त हो गया !
भावार्थ यह है, सूर्य को कहना माना कि आरम्भ में वर्तमान मनुष्य जो संस्कार रहित है ! सुरा ने सूर्य से मनु को दिया , इसका अर्थ है आत्मा में ही मन है ! तो मन को प्राप्त होता है ! मन से इच्छा में अर्थात् इच्छावाक को ! इच्छा जब तीव्र होकर संस्कारों में ढलकर , यह योग तब आचरण तक पहुँचता है !
उस अवस्था में रीद्धि-सिद्धियों का संचार होता है ! इस संसार में , आज लोगों को मेहनत नहीं करना है तुरन्त भागते हैं ! कुछ किया नहीं और प्राप्ति हो गयी या किया किसी और ने और प्राप्ति हो गयी !
ऐसी अवस्था जब आती है जिसके प्रभाव के कारण , यह ज्ञान लुप्त हो जाता है ! मेहनत करना कोई नहीं चाहता ! ये है रहस्य कि सबसे पहले कैसे संस्कार रहित मनुष्य आत्माओं को दिया गया !
अर्जुन फिर प्रशन पूछता है कि
क्या ये उत्तम रहस्हपूर्ण योग का वर्णन करने आप, सब की तरह पैदा होते हैं, वा जन्म लेते हैं ?
उत्तर :- तब भगवान ने कहा, नहीं ! स्वरूप की प्राप्ति शरीर प्राप्ति से भिन्न है ! मेरा जन्म इन आँखों से देखा नहीं जा सकता है ! में अजन्मा अव्यक्त्त और शाश्वत् हूँ !
अव्यक्त्त ( जिसको व्यक्त्त शरीर नहीं है ) इसलिए तो रथी बनकर के अर्जुन के रथ में आया ! में विनाश रहित , पुर्नजन्म रहित , प्रकृति को अधीन कर , योगमाया से प्रगट होता हूँ !
स्वरूप का जन्म पिण्ड रूप में नहीं होता है ! मैने किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लिया ! योग साधना द्वारा अपनी त्रिगुणमयी प्रकृति को ' स्व वश ' करके प्रगट होता हूँ ! इस प्रकार परमात्मा अपने वास्तविक स्वरूप को बताते हैं !
इससे स्पष्ट हो जाता है कि अर्जुन के रथ में विराजमान
” श्रीकृष्ण जो व्यक्त्त स्वरूप अर्थात् साकार स्वरूप था ” उस व्यक्त्त स्वरूप में , मैं अव्यक्त्त रूप में प्रवेश होता हूँ ! इसलिए गीता में कहीं भी श्रीकृष्णवाच् नहीं आता है , ” भगवानुवाच ” आता है !
क्योंकि श्रीकृष्ण के माध्यम से भी बोलने वाला कौन था ? श्रीकृष्ण के माध्यम से बोलने वाला परमात्मा था , जो अजन्मा है !
इसलिए भगवान ने अपना वास्तविक परिचय देते हुए यही स्पष्ट किया कि
मैं अजन्मा, अव्यक्त्त मैं इन आँखों से नहीं देखा जा सकता हूँ ! तुम जिसको देख रहे हो वो श्रीकृष्ण है ! लेकिन तुम मुझे इन आँखों से नहीं देख सकते हो ! कितना स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण के माध्यम से बोलने वाला कोई और है !
मैं अव्यक्त्त , शाश्वत् विनाश रहित , पुनर्जन्म रहित , प्रकृति को अधीन करके योगमाया से प्रगट होता हूँ अर्थात् श्रीकृष्ण के तन में मैं प्रगट हो कर बोलने वाला परमात्मा था !
भगवानुवाच का अर्थ
ज्योतिर्लिंगम
आज भी पूरे भारत भर में बारह ज्योतिर्लिंगम का विशेष महत्व है ! जो महान तीर्थ स्थान बन गए हैं !
जिसको कहते हैं देवों का भी देव ” महादेव ” अर्थात् जिसकी पूजा स्वयं देवाताओं ने भी की है इसलिए कुरूक्षेत्र के मैदान में आज भी स्थाणेश्वर का मन्दिर है !
जहाँ दिखाते हैं कि महाभारत युद्ध के पहले श्रीकृष्ण ने भी स्वयं शिव की पूजा की और पाण्डवों से भी कराई ! उसके बाद हर-हर महादेव अर्थात् युद्ध आरम्भ हो गया !
तो श्रीकृष्ण ने स्वयं शिव की पूजा क्यों की ? अगर श्रीकृष्ण भगवान थे तो उन्हें शिव की पूजा नहीं करना था !
इसी तरह रामेश्वरम् में चले जाओ जहाँ दिखाते हैं कि रावण से युद्ध करने से पहले स्वयं श्रीराम ने भी शिव की पूजा की !
श्रीराम का भी जो ईश्वर है और उसकी पूजा करके उसके बाद हर-हर महादेव अर्थात् बुराइयों के ऊपर सम्पूर्ण विजय प्राप्त करना ! हर-हर महादेव अर्थात् हरना समाप्त करना वा मिटाना ! महादेव की शक्त्ति अर्थात् जो देवों का भी देव महादेव !
जिन देवियों की आज हम पूजा करते हैं , अम्बा , दुर्गा , ये सब देवियां कौन हैं ?
कहा जाता है कि संसार में जब असुर बढ़ गए थे तो शिव ने अपनी शक्त्तियों को उत्पन्न किया था !
असुर संहारिणी शिव शक्त्तियों के रूप में आज भी उनका गायन करते हैं !
जो देवों का भी देव , देवियों का भी देव वो है महादेव ! जिसकी मान्यता संसार के सभी आत्माओं ने स्वीकार की है !
मुसलमान धर्म में जाओ तो वे लोग मूर्ति पूजा
मुसलमान धर्म में जाओ तो वे लोग मूर्ति पूजा नहीं मानते हैं ! परन्तु जब वे मक्का हज पर जाते हैं ! तो वहाँ काबा का पवित्र पत्थर रखा है जो निराकार है !
इसके पीछे एक कहानी है ! जब मुसलमान धर्म में परमात्मा के विषय को लेकर मतभेद हो गया तो कहा जाता है कि मक्का में पहले एक लाख छियासी हज़ार देवी-देवाताओं की मूर्तियां थीं !
लेकिन किसकी मूर्ति को मक्का में स्थापित किया जाए , इसको लेकर के लोगों में विवाद हो गया ! लोग आपस में झगड़ा करने लगे और खून-खराबा होने लगा !
उस वक्त्त एक आकाशवाणी हुई कि आप लड़ाई-झगड़ा मत करो और मुझे इस स्वरूप में याद करो !
ऊपर से वह पवित्र पत्थर गिरा था जिसकी स्थापना मक्का में की गयी और उसी वक्त्त सारी मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया ! तब से लेकर आज तक इस पवित्र पत्थर की इतनी मान्यता है !
इस पत्थर का नाम है ‘संग-ए-असवद’ !
मुसलमान लोग मानते हैं कि जीवन में एक बार हज यात्रा पर जाकर , इस पवित्र पत्थर का दर्शन अवश्य करना चाहिए ! जिस लाईन के बिना उनका हज पूरा नहीं होता है !
वह लाईन है- ” हे परवर दिगार नूरे इलाही मेरा हज कबूल हो ” तब उनका हज कबूल होता है !
जिसका अर्थ है- परवर दिगार अर्थात् परमेशवर नूरे इलाही अर्थात् जो नूर का रूप है जिसको हमने ज्योतिर्लिंगम कहा , उन्होंने उसे नूर कहा , बात तो एक ही है ! ज्योति माना तेज और नूर माना भी तेज , तो बात तो एक ही हो गयी !
इसके आगे के भाग को एपिसोड नंबर 28 में पढ़े: E.27 गीता किसने सुनाई श्रीकृष्ण या शिव ?