E.28 शिव (चिंकोनसेकी अर्थात् शान्ति का दाता) कौन है ?

Geeta E•28 एक ओंमकार , निराकार , सतनाम् , निवैर अकालमूर्त , अजोनि " जो निराकार है , जो निर्वेर है वही सतनाम् है जिसको काल कभी नहीं खा सकता है ! जो कभी किसी योनियों में नहीं आते हैं अर्थात् अजोनी है

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गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (तीसरा और चौथा अध्याय)

“स्वधर्म, सुख का आधार” 

The Great Geeta Episode No• 028

क्रिशचन धर्म

क्रिशचन धर्म में तो कहा जाता है ,

जब मोसेस माउण्टेन के ऊपर गया उसको वहाँ पत्थरों पर दो कमाण्डमेन्ट ( आदेश ) मिले ! वहाँ उसको अखण्ड ज्योति का साक्षात्कार हुआ जिसको देखकर मोसेस ने कहा ” जेहोवा ” जिसका अर्थ है सुप्रीम लाईट !

इसलिए क्राइस्ट ने कभी भी अपने आप को भगवान नहीं कहा ! क्राइस्ट ने हमेशा यही कहा " गॉड इज लाईट, आई एम द सन ऑफ गॉड" अर्थात् " God is light , I am the son of GOD " 

जब उनको क्रॉस पर चढ़ा रहे थे तब भी अपनी अन्तिम प्रार्थना में उसने भगवान से यही विनती की कि- हे प्रभु ! आप इन्हें क्षमा कर देना क्योंकि इन्हें पता नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं !

जिसको क्रिशचनों ने लाईट कहा, मुसलमानों ने नूर कहा, हिन्दओं ने ज्योति कहा वह परमात्मा एक ही है या अलग-अलग है !

यह विचार करने की बात है ! आज भी विटिकन सिटी में चले जाओ , वहाँ जो सबसे बड़ा चर्च है , उस चर्च में परमज्योति परमेश्वर का दिव्य स्वरूप देखने को मिलता है !

जो परम प्रकाश , प्रकाशमान स्वरूप , नूर स्वरूप देखने को मिलता है !

Geeta E•28 एक ओंमकार , निराकार , सतनाम् , निवैर अकालमूर्त , अजोनि " जो निराकार है , जो निर्वेर है वही सतनाम् है जिसको काल कभी नहीं खा सकता है ! जो कभी किसी योनियों में नहीं आते हैं अर्थात् अजोनी है

गुरूनानक

गुरूनानक ने तो बहुत स्पष्ट शब्दों में परमात्मा की व्याख्या की है ! इतना स्पष्ट किसी और ने नहीं किया

” एक ओंमकार , निराकार , सतनाम् , निवैर अकालमूर्त , अजोनि ” जो निराकार है , जो निर्वेर है वही सतनाम् है जिसको काल कभी नहीं खा सकता है ! जो कभी किसी योनियों में नहीं आते हैं अर्थात् अजोनी है !

महावीर स्वामी

महावीर स्वामी ने किसका ध्यान किया ? आज भी दिवाली के दिन , जब जैन लोग महावीर स्वामी का निवार्ण दिन मानते हैं तब अपनी प्रार्थना में यही कहते हैं –

” आप ने जिस शिवधाम को प्राप्त किया वो गति हमें भी प्राप्त हो ”

तो वो शिवधाम कौन-सा है ? वो शिव कौन है ? जिसको उन्होंने कहा शिव, शिलापति सर्व श्रेष्ठ है ! उस गति को प्राप्त करने के लिए जीवन के रहस्य में तीन बिन्दु बताए- ज्ञान , दर्शन और चरित्र !

यही सच्चा तपस्या है , जिसके आधार पर उस श्रेष्ठ गति को प्राप्त कर सकते हैं ! 

महात्मा बुद्ध

इसी तरह महात्मा बुद्ध ने कभी मूर्ति पूजा की ओर प्रेरित नहीं किया लेकिन आज भी जापान में चले जाओ वहाँ तीन फुट दूर बैठ करके एक थाली में लाल पत्थर रखा जाता है , जिसको कहते हैं ,

करनि का पवित्र पत्थर ! उसका नाम है ” चिंकोनसेकी ” अर्थात् शान्ति का दाता !

पारसी धर्म

पारसी धर्म में तो अग्यारी में अखण्ड ज्योति जलती रहती है ! इसलिए कहा जाता है कि पारसी लोग जब ईरान से भारत में आये थे तो जलती हुई ज्योति को लेकर आये थे ! आज भी उनके यहाँ जब यज्ञ वेदी की स्थापना होती है , जिसको कहते हैं ” फायर टेम्पल ” ! अखण्ड ज्योति जलती रहती है !

 किसी ने अखण्ड ज्योत कहा किसी ने नूर कहा , किसी ने लाईट कहा , किसी ने ज्योति कहा , किसी ने सिद्ध शिलापति कहा किसी ने चिंकोनसेकी कहा तो सर्वधर्म मान्य एक ही यह परमात्मा का परिचय है ! 

वह निराकार है ! स्वयं हज़ारों सूर्य से तजोमय स्वरूप है , जिसका वर्णन भगवान ने अर्जुन को कहकर सुनाया !

हे अर्जुन ! स्वरूप की प्राप्ति और शरीर की प्राप्ति में अन्तर है ! में कोई शरीरधारी नहीं हूँ , इसलिए मेरा जन्म इन आँखों से देखा नहीं जाता ! मैं अजन्मा अव्यक्त्त , सदा शाश्वत् , विनाश रहित प्रकृति को अधीन करके योग माया से प्रगट होता हूँ अर्थात् मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है !
तो फिर वही प्रशन उठता है गीता का भगवान परमात्मा शिव वा श्रीकृष्ण ??
God is One

इसके आगे अर्जुन का एक और प्रशन आता है कि

भगवान किन परिस्थितयाों में और कब प्रगट होते हैं ? यह सवाल हम में से भी कई का हो सकता है !

भगवान ने कहा

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

यदा-यदा ही धर्मस्थ ” जब-जब परमधर्म और परमात्मा के प्रति ह्रदय ग्लानि से भर जाता है , जब अधर्म की वृद्धि हो जाती है , तब-तब में अपने स्वरूप को रचता हूँ और स्वयं अवतरित होता हूँ !

यहाँ अवतरण का अभिप्राय पुनर्जन्म लेने से नहीं है, अपितु पुनः अवतरित होना है ! भगवान कैसे अवतरित होते हैं , इसका वर्णन करते हुए कहते हैं कि

परित्राणाय साधुनाम ” अर्थात् परमसाध्य परमात्मा के समीप ले जाने वाले विवेक , वैराग्य और दैवी संस्कारों को निर्विध्न , इस संसार में प्रवाहित करने तथा दृष्कृत के कारण काम , क्रोध , राग , द्वेष इत्यादि विकारों का पूर्ण विनाश करने के लिए और परमधर्म सनातन धर्म की पुनः स्थापना करने के लिए मैं ” युगे-युगे प्रगट होता हूँ ” !

  • यहाँ युग का तात्पर्य ये नहीं है कि सतयुग , त्रेतायुग , द्वापर युग , कलियुग सब में आते हैं , नहीं !
  • जब संसार में दुष्कृत के कारण काम , क्रोध , राग , द्वेष इत्यादि विकार सम्पूर्ण रूप में फैल जाते हैं तब उसका विनाश करने के लिए और परम सतधर्म सनातन धर्म की स्थापना करने के लिए , ऐसे युगे-युगे प्रगट होता हूँ !
  • ऐसा युग कब होता है ? ऐसा युग कलियुग जब अपने सम्पूर्ण रूप में आ जाता है , तब परमात्मा भी अवतरित होते हैं !
  • ऐसे युग में आकर अधर्म का नाश और परमसत्य धर्म की स्थापना करते हैं ! अर्थात् सतयुग की स्थापना करते हैं !
  • द्वापर युग में अगर भगवान आये तो द्वापर के बाद तो कलियुग आता है ! तो क्या गीता का ज्ञान से घोर कलियुग की स्थापना होती है ? नहीं !
  • लेकिन कलियुग के अन्त में जब ऐसे युगे युगे आते हैं , तब अधर्म का नाश करते हैं ! क्योंकि कलियुग में ही अधर्म अपनी चरम सीमा को प्राप्त कर लेता है !
  • तो ऐसे युगे-युगे आकर अधर्म का सम्पूर्ण विनाश और सतधर्म की स्थापना करने अर्थ परमात्मा का दिव्य अवतरण इस संसार में होता है और अपना कार्य वे करते हैं !
  • यहाँ पर एक और महत्त्वपूर्ण सवाल इस अध्याय के अन्त में अर्जुन पूछता है कि भगवान जब कहते हैं कि हमारा जन्म और कर्म दिव्य अलौकिक है , इन चर्म चक्षुओं से देखा नहीं जा सकता है !

तो अर्जुन पूछता है- हे प्रभु ! कौन उसे देख सकता है कौन उसे समझ सकते है ?

भगवान ने कहा कि केवल तत्वदर्शी अर्थात् जो ज्ञान और तपस्या के बल द्वारा पवित्र बनते हैं और वे विकराल भय और क्रोध से मुक्त्त है , वह मेरे इस दिव्य जन्म और कर्म को देखता है ! अर्थात् मेरा साक्षात्कार कर सकता है !

आत्म साक्षात्कार करने वाला ही इस परिवेश को समझ पाता है कि परमात्मा किस अनुरागी ( Devoted ) में अवतरित होते हैैं ! बहुत स्पष्ट कहा भगवान ने कि

यह सबके समझने के वश की बात नहीं है !

फिर कौन समझ सकता है ? ये भी बता दिया और कौन उसको देख सकता है !

इन स्थूल नेत्रों से तो देखने की बात नहीं है ! लेकिन अंर्तचक्षु से उसका साक्षात्कार कर सकते हैं !
इस आर्टिकल के पहले भाग को आर्टिकल नंबर 27 में पढ़े: E.28 शिव (चिंकोनसेकी अर्थात् शान्ति का दाता) कौन है ?

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