गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (तीसरा और चौथा अध्याय)
“स्वधर्म, सुख का आधार”
The Great Geeta Episode No• 022
भगवान ने अर्जुन को भी ” स्वधर्म की शक्त्ति को विकसित ” करने के लिए कहा , ना कि हिंसक युद्ध की करने की प्रेरणा दी !
यदि भगवान भी हिंसक युद्ध की प्रेरणा देते तो आज की दुनिया के मनुष्य जो हिंसा कर रहे हैं तो उसमें और भगवान में क्या अन्तर रह जायेगा !
‘ परमात्मा या भगवान ‘ उसी को कहेंगे जो मनुष्य के अन्दर की छिपी हुई बुराईयों को भी खत्म कर दे या उसको खत्म करने की प्रेरणा दे !
उसकी विशोषतायें क्या होती है ? इसको स्पष्ट किया ! भगवान ने अर्जुन को कहीं भी ये नहीं कहा कि तुम अपना गृहस्थ छोड़ दो , अपनी ज़िम्मेवारियों को छोड़ दो , तुम अपने कर्तव्य को छोड दो , नहीं !
अर्थात् घर-गृहस्थ में रहते हुए कर्मयोगी बन सकते हो , अपनी ज़िम्मेवारियों को निभाते हुए , अपने कर्तव्य को निभाते हुए कर्मयोगी बन सकते हो , कर्मयोगी जीवन जी सकते हो !
उसकी विशेषता को बताते हुए यही कहा कि स्वधर्म के आधार पर किया गया कर्म ऐसा श्रेष्ठ कर्म है , जिससे तुम कर्मों के बन्धनों से छूट जाओगे !
यदि कोई व्यक्त्ति शान्ति , प्रेम आनन्द के आधार से कर्म करता है तो वो बन्धन नहीं बनता है , वो बन्धनों से छुड़ाने वाला होता है !
यदि कोई व्यक्त्ति शान्ति , प्रेम , आनन्द के आधार से कर्म करता है तो वह बन्धन नहीं बनता है , वो बन्धनों से छुडाने वाला है !
स्वधर्म के आधार पर किये गए कर्म का बीज इतना पावरफुल होता है कि उसका नाश नहीं होता है !
प्रकृति के पास भी कोई साधन नहीं है उस कर्म को नष्ट करने के लिए , उस बीज को नष्ट करने के लिए ! स्वधर्म के आधार पर किये गए कर्म , जन्म मरण रूपी मृत्यु के भय से भी उद्धार करने वाला है !
मनुष्य जीवन कभी भय में नहीं आएगा क्योंकि उसका कर्म इतना सुन्दर होगा ! मनुष्य जीवन में भय किस लिए होता है ?
क्योंकि मनुष्य को पता है कि हमने कहीं न कहीं ऐसे कुकर्म किए हैं , जो मेरा पीछा छोड़ेंगे नहीं , इसलिए भय उत्पन्न होता है !
स्वधर्म के आधार पर किया गया कर्म जीवन मरण रूपी मृत्यु के भय से मुक्त्त कर देता है और जीवन में आगे बढ़ने की विधि बताता है !
आगे बताया है कि स्वधर्म के आधार पर किए गय कर्म पर तेरा अधिकार है और फल तो पीछे-पीछे आना ही है !
आज जैसे दुनिया में कोई व्यक्त्ति परछाई को पकड़ने का प्रयत्न करता चला जाये …. चलता जाये …चलता जाये ….परछाई हाथ में आयेगी ?
कभी हाथ में नहीं आयेगी और न ही वह सूर्य की रोशनी प्राप्त कर सकता है !
बस कला इतनी है कि , जो अपने को परिवर्तन कर दे, अपनी दिशा को परिवर्तन कर दे , सूर्य की तरफ मुख कर दे और चलने लगे तो परछाई कहाँ जायेगी ? परछाई पीछे-पीछे आयेगी और सूर्य की रोशनी भी प्राप्त होगी !
ऐसे ही स्वधर्म के आधार पर किया गया कर्म इतना श्रेष्ठ और पावरफुल होता है कि फल उसकी परछाई बनकर उसके पीछे-पीछे आता है !
हमें सुख , शान्ति को प्राप्त करने के लिए भागने का प्रयत्न नहीं करना पड़ता है !