गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (अठारहवाँ अध्याय )
“जीवन जीने की सम्पूर्ण विधि “
The Great Geeta Episode No• 062
आध्यात्मिक चिंतन
मन का भोजन है चिंतन ! तो कौन-सा चिंतन चाहिए ? आध्यात्मिक चिंतन ! क्योंकि आज दुनिया के अन्दर परचिंतन बहुत है ! किसी के पास भी चले जाओ तो बात करने का क्या विषय होता है ? फलाने ने ऐसे प्रॉब्लम क्रियेट कर दिया, उसने ऐसा कह दिया, उसने ऐसे कर दिया, यही परचिंतन, व्यर्थ चिंतन का तो विषय होता है ! जिससे कोई प्राप्ति नहीं लेकिन मनुष्य के अन्दर इतनी कमज़ोरी बढ़ गयी है कि व्यर्थ चिंतन का शिकार बनता जा रहा है !
उसको छोड़ना चाहते हुए भी, छोड़ नहीं पाता है ! जहाँ भी लोग जाते है, वर्णन करते हैं, सोचते हैं, मन को हल्का कर रहे हैं, हल्का नहीं हो रहा है ! उसे बार-बार वर्णन करने से वो संस्कार बन रहा है ! वह बढ़ता जा रहा है ! इसलिए मन के लिए स्वस्थ भोजन है आध्यात्मिक चिंतन ! इस आध्यात्मिक चिंतन का स्रोत कहाँ है ? जैसे पानी का स्रोत समुन्द्र होता है और ऊर्जा का स्रोत सूर्य होता है ! इसी तरफ आध्यात्मिकता का स्रोत परमात्मा है ! हमारे यहाँ ऐसे सेवा केंद्र हैं, जहाँ आध्यात्मिक चिंतन आपको मिलता है ! इसलिए आध्यात्मिक चिंतन के लिए नित्य अध्ययन करो , श्रद्धा के साथ, यही भगवान ने कहा है, जिससे सर्व पापों से मुक्त्त हो जायेंगे !
सारे दिन में अपने लिए अच्छा विचार करने के लिए आधा-पौना घण्टा निकल सकता है कि नहीं निकल सकता है ? क्या कहेंगे ? निकल सकता है, या नहीं निकल सकता है ? या फिर वही शिकायत, कि टाइम नहीं है क्या कहेंगे ? टाइम निकल सकता है ? बाकी भले चौबीस घण्टा आप दूसरों की सेवा में लगे रहो , आधा-पौना घण्टा अपने लिए निकाल सकते हैं कि नहीं निकाल सकते हैं ? आज व्यक्त्ति सुबह उठता है और उसकी दिनचर्या कैसी होती है ? सुबह सबसे पहले उठकर कहेगा कि आज का पेपर आया कि नहीं आया ? सुबह-सुबह अपने मन को कौनसा चिंतन देते हैं ? वही फास्ट फूड वाला, जो शरीर को भी खराब करता है ! ठीक इसी तरह का फास्ट फूड हम अपने मन को भी देने लगे हैं !
न्यूज़पेपर के अन्दर के पेज में अच्छी कॉलम आती है ! लेकिन लोग क्या पढ़ना चाहते हैं ? कौन-सा चिंतन पढ़ने के इच्छुक हैं ? व्यर्थ चिंतन ! निगेटिव चिंतन से अपने मन को सुबह-सुबह भर लेते हैं ! फिर कारोबार पर जाओ तो जिसके पास भी बैठो, बात करो, हरेक के पास बात करने का क्या विषय होता है ? वही व्यर्थ की बातें, व्यर्थ चिंतन, निगेटिव चिंतन, टी• वी• चालू करो शाम को तो कौन- सा चिंतन मिलेगा ? वही घर-घर की कहानियाँ जो हैं उसमें समायी हुई मिलती हैं ! उसी को ही देखकर के अपने मन को और भी चकमई बना देते हैं !
उसके साथ ऐसा हुआ तो मेरे साथ तो ऐसा नहीं होगा ! अपने आप से उसको जोड़ने लगते हैं ! Science ने बहुत सुन्दर साधन आजकल WhatApp और Facebook के रूप में दिये आपस में सभी को जोड़ने में और अच्छा ज्ञान को Excange करने के लिए, लेकिन उसका भी मिस यूज़ किया जाता है, समय को बरबाद करने में, और निगेटिव नॉलेज के लिए !
अब उससे प्राप्ति क्या हो रही है ? ये सब कुछ करने के लिए हमारे पास पूर्ण समय है ! लेकिन आध्यात्मिक चिंतन के लिए समय नहीं है ! इसलिए कम से कम अब अपने अन्दर ये जागृति ले आओ और अपने लिए समय निकालो ! बाद में डिप्रेशन का शिकार होने के बाद समय मिलने वाला नहीं है ! उस समय आध्यात्मिक चिंतन में मन लगेगा ही नहीं ! क्योंकि आने वाला समय बहुत ही नाज़ुक होगा……
👉 अब नहीं, तो कभी नहीं
रिलेक्सेशन ऑफ माइंड
दूसरा है मन को भी आराम चाहिए ! ‘ रिलेक्सेशन ऑफ माइंड ‘ ! रिलेक्सेशन कैसे मिलेगा ? रात को सो जाते हैं लेकिन मन नहीं सोता है ! मन तो स्वप्न के अन्दर भटकता रहता है ! सारी रात कार्य करता रहता है ! सुबह उठो तो इतनी थकावट लगेगी कि सुबह उठने के बाद फ्रेशनस नहीं है ! क्योंकि सारी रात मन ने तो काम किया है ! कोई न कोई स्वप्न के रूप में भटकता रहा है ! भटकने वाला इंसान थकेगा या नहीं थकेगा ?
मन जो सारी रात भटकता रहा है, वह सुबह उठकर फ्रेशनेस कैसे अनुभव करेगा ? इसलिए मन को रिलैक्स करने के लिए कॉनशियस के साथ मेडिटेशन करना चाहिए ! मेडिटेशन माना ध्यान ! यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे मन को शान्त करते हैं ! जब मन शान्त होता है, तो मन को आराम मिलता है ! कितना मिनट ध्यान करना चाहिए और कब ध्यान करना चाहिए ? सुबह जब उठते हैैं तो बीस मिनट ध्यान करो !
सुबह को बीस मिनट और शाम को बीस मिनट ! मेडिकल साइंस के रिसर्च द्वारा यह पता किया गया है कि एक व्यक्त्ति पाँच मिनट बॉयलिंग टेम्पर पर गुस्सा करता है पाँच मिनट गुस्सा कर ले और बहुत ज़ोर शोर से क्रोध में आ जाए, तो दो घंटे की कार्य क्षमता जल जाती है ! दो घंटे तक वह अपने मन को एकाग्र नहीं कर सकता है, किसी भी कार्य में ! कोई भी निर्णय लेना हो या क्रोध वाली स्थिति में कोई निर्णय भी लेना पड़े, तो वह गलत निर्णय ले लेगा ! वो दो घण्टा क्या करेगा ?
वो दस लोगों को ढूंढेगा, जिसके सामने अपने आपको जस्टीफाए करेगा कि मैने जो इसके ऊपर गुस्सा किया वह ठीक किया ना ! वह रोज़ ऐसा ही करता है ! जब उसको दस व्यक्त्ति मिल जाते हैं, ये कहने वाले कि हाँ, तुमने ठीक किया, अच्छा किया जो उसको पाठ पढ़ाया आज ! तब जाकर के उसका मन रिलैक्स होता है ! दस में से एक ने भी अगर यह कह दिया कि ये तुमने ठीक नहीं किया ! तुम्हें गुस्सा नहीं करना चाहिए था ! तो क्या होगा ?
फिर से आग भड़क उठती है ! उसमें में फिर दो घण्टे खत्म हो जाते हैं ! इस तरह कई बार व्यक्त्ति आठ घण्टा कुछ नहीं कर पाता है ! कहने में भी कहता है कि आज का दिन बेकार चला गया ! सारा दिन कोई काम नहीं हुआ ! लोग भी इतना परेशान करते हैं ना ! फिर दोष डाल दिया दूसरे पर ! कई बार लोग बच्चों के ऊपर दोष डाल देते हैं ! कई बार परिस्थितयों पर दोष डाल देते हैं ! परिस्थिति ही ऐसी थी क्या करें ?
पाँच मिनट गुस्से से , दो घण्टे की अगर क्षमता जलती हो तो पाँच मिनट का मेंटल रिलेक्सेशन, दो घण्टे की कार्यक्षमता को बढ़ा देता है ! इसलिए सुबह उठकर बीस मिनट अपने मन को शान्त कर फिर दिनचर्या को आरम्भ करो ! आठ घण्टे तक आपकी मानसिक स्थिति स्वस्थ रहेगी और सुव्यवस्थित होकर आप अपने मन को कार्य में एकाग्र कर सकेंगे ! परिस्थितयाँ आयेंगी, लोग आयेंगे, उलट-पुलट बोलने वाले भी आयेंगे !
जब आपके अन्दर की मानसिक प्रतिरोधक शक्त्ति बढ़ जाती है, तो उस चीज़ को इग्नोर करना सहज हो जायेगा ! उसके प्रभाव में नहीं आयेंगे लेकिन सहज रीति से इग्नोर कर सकेंगे ! इसलिए सुबह बीस मिनट और आठ घण्टे के बाद अगर शाम को पुनः बीस मिनट मेडिटेशन कर लें तो सारी रात में भी शान्ति से नींद तो आयेगी ही ! आप इसका प्रयोग करके देखो , क्योंकि ये एक्सपेरिमेंट किया हुआ है ! योग का दूसरा नाम ही है प्रयोग ! हम अपने जीवन की प्रयोगशाला में उसके प्रयोग करेंगे !
एक्सरसाईज़
तीसरा है एक्सरसाईज़ ! मन के लिए कौन-सी है ? पॉजिटव थिकिंग की एक्सरसाईज़ मन को देना होगा ! सकारात्मक विचार अपने आप नहीं चलेंगे , इतना सहज नहीं है ! लेकिन मन को आदती बनाना होगा ! क्योंकि मन को भी आदत पड़ गई है निगेटिव सोचने की !
आज अगर बच्चा घर में थोड़ी देरी से आया तो कितनें निगेटिव विचार आ जाते हैं ! कहाँ गया होगा ? पता नहीं कहीं एक्सीडेंट तो नहीं हो गया ? कहीं हॉस्पिटल में भर्ती तो नहीं है ? तो कहाँ-कहाँ विचार पहुँच जाते हैं ? कितने निगेटिव विचार आते हैै ! इसलिए जहाँ निगेटिव विचार अधिक हो जाते हैं तो मन परेशान हो उठता है ! इसलिए मन की प्रतिरोधक शक्त्ति कम होने लगती है !
हमें पॉजिटव विचारों की एक्सरसाईज़ मन को करानी होगी ! अपने आप नहीं चलेगा ! लेकिन वो सहज तभी होगा कि जब उसको आध्यात्मिक चिंतन का भोजन दिया होगा ! क्योंकि जैसा इनपुट , जैसा प्रोसेस, वैसा आऊटपुट व्यवहार ! अगर इनपुट ही निगेटिव है तो विचार की प्रोसेस निगेटिव चलेगी और आऊटपुट अपने व्यवहार में गुस्सा, चिड़चिड़ापन यही निकलेगा इसलिए जब आध्यात्मिक चिंतन व अध्ययन करते हैं श्रद्धापूर्वक , ये इनपुट जब मिला तो वही प्रोसेस चलेगा अर्थात् सकारात्मक विचार अपने आप चलने लगेंगे इससे आऊटपुट होगा कि अपने व्यवहार में भी अंडरस्टैडिंग डेवलप हो जायेगी ! गलतफहमियां दूर होने लगेंगी ! आपसी सम्बन्धों में अच्छी अंडरस्टैडिंग डेवलप कर पायेंगे और गृहस्थ जीवन सुखी हो जायेगा !
इसलिए भगवान ने अर्जुन को ये कहा कि कि अध्ययन करो ! इस पवित्र ज्ञान का प्रतिदिन अध्ययन कर श्रद्धा से सुनेगा और सुनाएगा तो तू सर्व पापों से मुक्त्त हो जायेगा ! तो ज्ञान का अध्ययन ऐसा है जो मन को फ्रेश कर देता है ! सारे दिन की थकावट को मिटा देता है ! मन को जहाँ अच्छा लगा वहाँ मन जाने के लिए इच्छुक हो जाता है ! तो समझो कि अपने मन को क्या अच्छा लगता है ? मन को हमेशा ज्ञान की बातें , आध्यात्मिक बातें अच्छी लगती हैं !
मन को कभी भी फालतू बातें परोसते जाते हैं ! इसलिए मन चिड़िचड़ा हो जाता है ! क्योंकि जो उसको पसन्द नहीं वो उसको क्यों दे रहें हैं ? उसको जिसमें रूचि है वो चीज़ उसको दें ! तो मन प्रसन्न रहने लगेगा ! ज़्यादा प्रभाव नहीं भी रहा हो, लेकिन कुछ समय तक उसका प्रभाव चलता ही है ! ज्ञान की एवं अच्छे सतसंग की बातें मन में अध्ययन करे तब मनुष्य के अन्दर परिवर्तन आता है !
प्रतिदिन जब अपने मन को ज्ञान की बातों से स्वच्छ करते जायेंगे तो मन सुन्दर, निर्मल और पवित्र होने लगेगा ! मन के अन्दर का किचड़ा साफ होने लगेगा ! कई बार कई लोग कहते हैं कि हमारे मन के अन्दर कभी-कभी बहुत बुरे विचार चलते हैं, चाहते नहीं है फिर भी चल जाते हैं ! क्या करें !
एक मटका है जिसके अन्दर गंदा पानी भरा है ! मटका फिक्स है उसको उठा नहीं सकते हैं ! तो क्या करेंगे ? साफ पानी का नल खोल दो, वो पानी गिरते-गिरते फिर अन्दर का पानी ओवरफ्लो होता जायेगा और ओवरफ्लो होते..होते…होते , एक समय ऐसा आयेगा कि मटके के अन्दर से सारा गंदा पानी निकल गया होगा और वह साफ पानी से भर गया होगा !
ठीक इस तरह बुद्धि के अन्दर नकारात्मक सोचने की आदत पड़ी हुई है, उसको निकालने की विधि क्या है ? उसको निकालने की विधि यही है कि रोज़ उसको ज्ञान की बातों से, सींचते जाओ तो वो किचड़ा निकलता जायेगा…… निकलता जायेगा और एक समय आयेगा जब मन और बुद्धि स्वच्छ और निर्मल बन जायेंगे ! तो क्या हम अपने और बुद्धि को इतना स्वच्छ और निर्मल बनाना नहीं चाहते हैं ? उसके लिए अध्ययन करने की आवश्यकता है ! तब हमारा मन, स्वच्छ और निर्मल हो जायेगा !
अन्त में संजय यही कहता है कि इस प्रकार हमने व्यास जी की कृपा से ये अदूभूत सन्देश सुना, जो मेरे शरीर को भी रोमांचित कर रहा है ! जब मैं इस पवित्र वार्ता का बारंबार स्मरण करता हूँ, तब प्रतिक्षण गदगद् हो उठता हूँ, जहाँ योगेश्वर हैं , वहाँ ऐश्वर्य, विजय, अलौकिक शक्त्ति तथा नीति भी निशिचत रूप में रहती है, ऐसा मैं मानता हूँ !
यहाँ योगेश्वर अर्थात् परमपिता परमात्मा ! संजय ने जो अनुभव किया वही धृतराष्ट को सुनाया ! इतना सुन्दर सन्देश कि उसकी स्मृति करने से भी मैं गदगद् हो उठता हूँ ! रोज़ उसका अध्ययन करेंगे तो जीवन कितना सुन्दर बन जायेगा ! अन्त में भगवान अर्जुन ( ज्ञान अर्जित करने वाला ) अर्थात् हम मनुष्यों से पूछता है कि क्या तुमने इस गुह्य ज्ञान को एकाग्रचित होकर सुना है ? क्या तुम्हारा अज्ञान और मोह दूर हो गया है ?
तो अर्जुन कहता है, हे प्रभु ! अब मेरा मोह दूर हो गया है ! वह प्रभु की शरण में आ गया और कहा कि अब मेरा मोह दूर हो गया ! आपके अनुग्रह से मुझे स्मृति आ गई है, अब मेरे मन में कोई संशय नहीं, कोई सवाल नहीं है ! अब मैं संशय रहित तथा दृढ़ हो गया हूँ कि मुझे क्या करना है ! अपने जीवन में उसके लिए मैं दृढ़ हूँ और आपके वचन का पालन करूँगा !
आज इस अठाहरवें अध्याय के अन्तिम क्षण में जब हम पहुँचे हैं, क्या आपकी तरफ से, परमात्मा यह निश्चय करें कि आप अठारह अध्याय को पढ़कर अनुग्रहित हुए हैं ?? तो क्या आप अपने मन के अन्दर भी कोई दृढ़ संक्लप करना चाहेंगे ? अर्जुन की तरह जैसे अर्जुन ने संक्लप किया कि मैं दृढ़ हूँ, मैं आपके वचनों का पालन करूंगा, संशय रहित अब मेरा मन स्वच्छ हो गया है ! अब मेरे मन में कोई संशय नहीं है !
कम से कम अपने से इतना संक्लप हम सभी अवश्य करें कि आज के बाद नित्य प्रतिदिन कभी भी सारे दिन में, कभी भी ज्ञान की बातों से अपने मन को निरन्तर सुविचारों से भरते हुए, हम अपने जीवन को सुन्दर, सुगंधित, खुशबूदार बनाते हुए, अपने गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाना चाहेंगे ! ओम् शान्ति.. शान्ति… शान्ति !
🌹THE END.......
🙏आप सभी को सहयोग के लिए बहुत-बहुत धन्यावाद ! यदि आपको दिए हुए, 62 भाग में से किसी भी में अगर कोई सन्देह है तो आप निसन्देह आप प्रशन पूछ सकते हैं आपको उस का उचित हल दिया जायेगा !