Home Kahani Suno Bhakti Story 1. वरदान (कहानी)

1. वरदान (कहानी)

पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा कि, प्रभु इनकी हालत सुधार दो ! तो भगवान शिव बोले की वह अपने कर्मो के कारण ऐसे है ;उन्होने बहुत बार देने की कोशिश की है !

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Shankara Parvati Moral Story
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एक बार भगवान शिव और माता पार्वती की नज़र एक पति-पत्नी और उनके बच्चे पर पड़ी  ! उनकी हालत दयनीय थी !

पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा कि, प्रभु इनकी हालत सुधार दो ! तो भगवान शिव बोले की वह अपने कर्मो के कारण ऐसे है ;उन्होने बहुत बार देने की कोशिश की है !

माता बोली कि एक बार उनके कहने पर एक और मौका दे दो !

तो भगवान शिव उनके पास गए और बोले कि तुम तीनों के पास एक एक वरदान है मांगो !

सबसे पहले औरत बोली, “मुझे 16 साल की सुंदर युवती बना दो ताकि मै अपने पति को छोड़कर किसी अमीर व्यक्ति से शादी कर लूंगी”

Shankara Parvati Moral Story
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भगवान शिव बोले “तथास्तु”

फिर आदमी की बारी आई तो वह सोचने लगा कि पत्नी जवान हो गई है, मुझे छोड़ देगी ! जलन में उसने भगवान शिव से कहा, “इसे 80 साल की बुढ़िया बना दो !

भगवान बोले,”तथास्तु, “

बेचारा बच्चा करे तो क्या करे ! मां बुढिया हो गई ! वह बोला, “भगवान मेरी मां पहले जैसी थी वैसी कर दो !

” भगवान शिव बोले, “तथास्तु”

माता पार्वती बोली, “भगवान आप ठीक ही कहते थे ! यह लोग अपने कर्म, अपनी नियत के कारण ही ऐसे है ! तीनों मौके इन्होंने व्यर्थ कर दिए !

इसके दूसरी तरफ, एक अंधी औरत प्रभू भक्ति करती थी ! उसकी बहू-बेटा सेवा करते थे ! उनकी कोई संतान नहीं थी, वह गरीब थे पर फिर भी परिवार में संतोख था !

एक दिन भगवान ने अंधी औरत को दर्शन दिए और कहा, ” तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं मैं तुमे एक वरदान देता हूं, मांगो जो मांगना है”

औरत समझदार थी ! वह बोली, “प्रभू मुझे अपने पोते को सोने के चम्मच से खाते हुए देखना है !”

और इस तरह उस औरत ने एक ही वरदान में आंखे भी मांग ली, पैसा भी मांग लिया और पोता भी।

2. एक ससुर ऐसे भी (कहानी)

“बेटा तू बच्चों का नाश्ता बना इतने में मैं इन्हे तैयार कर देता हूं फिर तू वत्सल का लंच लगा देना मैं इन्हे बस तक छोड़ आऊंगा!” नरेश जी अपनी बहू दिव्या से बोले।

” नहीं नहीं पापा जी मैं कर लूंगी आप बैठिए मैं बस अभी आपकी चाय बनाती हूं!” दिव्या बोली।

” अरे बेटा बन जाएगी चाय मुझे कौन सा कहीं जाना है तू पहले इन सब कामों से फ़्री हो जा तब तक मैं इन बालकों को तैयार कर देता हूं!” नरेश जी हंसते हुए बोले।

दिव्या हैरान थी जो पापा जी मां के रहने पर एक ग्लास पानी खुद नहीं लेते थे आज उनके जाने के पंद्रह दिन बाद ही उसकी हर काम में मदद कर रहे हैं।

असल में दिव्या के परिवार में दिव्या के पति , सास – ससुर और दो बच्चे छः साल का काव्य और तीन साल की आव्या थे। जबसे दिव्या शादी होकर आई उसकी सास ने उसे बेटी की तरह रखा घर के कामों में सहयोग दिया यूं तो दिव्या के ससुर नरेश जी भी बहुत प्यार करते थे उसे पर उसने कभी अपने ससुर को खुद से कोई काम करते नहीं देखा।अभी पंद्रह दिन पहले दिव्या की सास का अचानक हृदय गति रुकने से देहांत हो गया था तब बच्चो की छुट्टियां थी और दिव्या के पति वत्सल ने अवकाश लिया था आज सभी वापिस जा रहे थे। क्योंकि वत्सल का ऑफिस दूर था तो उसे जल्दी निकलना पड़ता था। और नरेश जी रिटायर हो चुके थे तो घर में ही रहते थे।

” लाओ बेटा बच्चो का दूध दे दो !” नरेश जी बच्चों को तैयार करके बोले।

बच्चों का दूध और टिफिन दे कर दिव्या वत्सल का खाना पैक करने लगी साथ साथ उसका नाश्ता भी तैयार कर रही थी और एक गैस पर चाय चढ़ा दी उसने।

” लो वत्सल तुम्हारा नाश्ता पापाजी आपकी चाय… आप नाश्ता तो आप अभी देरी से करोगे!” दिव्या बोली।

” दे ही दो बेटा तुम्हारा भी काम निबटे वरना दुबारा रसोई बनानी पड़ेगी!” नरेश जी बोले।

नरेश जी रोज दिव्या की ऐसे ही मदद करने लगे दिव्या को कभी कभी बुरा भी लगता और वो मना करती पर वो प्यार से उसे कहते कोई बात नहीं बेटा।

“सुनो आप पापाजी से बात करो ना कोई बात है जो उन्हें परेशान कर रही!” एक रात दिव्या वत्सल से बोली।

” क्यों कुछ हुआ क्या? पापा ने कुछ कहा तुम्हे!” वत्सल बोला।

” नहीं पर जो इंसान एक ग्लास पानी भी नहीं लेता था खुद से वो मेरे साथ इतने काम कराए कुछ तो गड़बड़ है!” दिव्या बोली।

“अरे तुम्हे कोई परेशानी हो तो तुम खुद पूछ लो ना !” वत्सल बात टालता हुआ बोला।

वत्सल तो सो गया पर दिव्या को नींद नहीं आ रही थी वो उठ कर बाहर आई तो देखा पापा के कमरे की लाईट जल रही है।

” पापाजी आप सोए नहीं अब तक तबियत तो ठीक है आपकी!” दिव्या कमरे का दरवाजा खटखटा कर बोली।

” अरे दिव्या बेटा अंदर आ जाओ … क्या बात है तुम इस वक़्त जाग रही हो आओ बैठो!” नरेश जी बोले।

” मुझे नींद सी नहीं आ रही थी तो सोचा थोड़ा टहल लूं पर आप क्यों जगे हैं!” दिव्या बोली।

” बस ऐसे ही बेटा मुझे भी नींद नहीं आ रही थी!” नरेश जी बोले।

” पापा आपसे एक बात पूछनी थी!” दिव्या हिचकते हुए बोली।

” हां बेटा बोलो संकोच क्यों कर रही हो!” नरेश जी बोले।

“पापाजी मुझसे कोई गलती हुई है क्या आप मुझसे नाराज़ हैं या मेरी कोई बात बुरी लगी आपको ?” दिव्या बोली

” नहीं तो बेटा पर तुम क्यों पूछ रही हो ऐसा!” नरेश जी हैरानी से बोले।

” पापा जी इतने दिन से देख रही हूं आप मेरी हर काम में मदद करते हैं जबकि मम्मीजी के सामने आप एक ग्लास पानी भी नहीं लेकर पीते थे!” दिव्या सिर नीचा कर बोली।

” हाहाहा तो तुम्हे लगा मैं तुमसे नाराज़ हूं… देखो बेटा जब तक तुम्हारी सास थी वो तुम्हारी मदद को थी अब वो नहीं है तो मुझे दोहरी जिम्मेदारी निभानी है मेरे लिए जैसे वत्सल वैसे तुम जैसे मैं उसकी सुख सुविधाओं का ध्यान रखता हूं तुम्हारा रखना भी मेरा फर्ज है!” नरेश जी प्यार से बोले।

,” पापा जी!” दिव्या आंखों में आंसू भर केवल इतना बोली।

” हां बेटा अब मां और बाप दोनों की जिम्मेदारी मुझे उठानी है तुम्हे सुबह इतने काम होते वत्सल भी मदद नहीं कर पाता है तो मेरा फर्ज है कि मैं अपनी बेटी की थोड़ी मदद कर उसकी कुछ परेशानी को हल कर सकूं, समझी बुद्धू मैं नाराज़ नहीं हूं तुमसे!” नरेश जी प्यार से दिव्या का सिर पर हाथ फेरते बोले।

दिव्या अपने ससुर के गले लग गई आज उसमे अपने ससुर में अपने मृत पिता नजर आ रहे थे। सच में पिता पिता ही होता फिर चाहे ससुर के रूप में क्यों ना हो।

3. कागज का एक टुकड़ा (कहानी)

राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था।

दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे।

चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए।
राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे।

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा।

राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे।  दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी।

इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर।

सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन, राधिका और राधिका की माता जी।

नवीन घर मे अकेला ही रहता था।  मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं।

राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है।
घर मे परिवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से  धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने।

सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था।
नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला “ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा”
राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई।

वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर  समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे।

प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है।

बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी।

फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया।

न राधिका लोटी और न नवीन लाने गया।

राधिका की माँ बोली” कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ?”

“चुप रहो माँ”
राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा।

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया।
बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया।

राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही।  फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया।

नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया ” रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में ।”

गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी।
“क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था”

“कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है।”
सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई।

“नही चाहिए।
वो दस लाख भी नही चाहिए”

“क्यूँ?” कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया।

“बस यूँ ही” राधिका ने मुँह फेर लिया।

“इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएगें।”

इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था।

राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी।

राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई।

वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर।  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।

मग़र ज्यादा भावुक नही हुई।

सधे अंदाज में बोली “इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक?”

“मैंने नही तलाक तुमने दिया”

“दस्तखत तो तुमने भी किए”

“माफी नही माँग सकते थे?”

“मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।”

“घर भी आ सकते थे”?

“हिम्मत नही थी?”

राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। “अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया”

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी।
राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।”

फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई।

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है।

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं।

कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?

फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी।
कितने सुनहरे दिन थे वो।

इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई।

बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया।
अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया।

बोला–” मत जाओ,,, माफ कर दो”
शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया ।

और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे।
दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही।
काश उनको पहले मिलने दिया होता, तो इतना झमेला न करना पड़ता।

माफी मांगना – मतलब झुकना , अब कंकाल तो हम है नही जो अकड़ में जिए ये अहंकार की अकड़ है जो कुछ करने न दे। रावण के पांच विकारों में से एक। विकार मतलब बुराई, बुरा संस्कार।

तो अब लड्डू खाया है तो निभाना भी आना चाहिए।

Ashish
Hello, I'm Ashish Bansal, , an innovative individual with a unique blend of interests and talents. As a spiritual soul with a deep connection to inner peace and wisdom, I find joy in exploring the profound questions of life. My inquisitive nature drives me to constantly seek knowledge, whether through philosophy, meditation, or the teachings of spirituality. In the professional realm, I wear many hats. I'm a content writer, philosopher, YouTuber, and creator, dedicated to crafting meaningful and engaging content that resonates with audiences. My work spans across website development, social media management, and video production, where I help brands and individuals boost their digital presence. But my journey doesn't end there. I'm also a passionate bike rider, finding freedom and inspiration on the open road. As a meditator and teacher, I guide others on their spiritual paths, sharing the insights I've gained through my own experiences. Above all, I'm a Godly student, continually learning and growing in my faith and understanding of the divine. Whether I'm building a brand's online portfolio or exploring the depths of human consciousness, my goal is always the same: to create, inspire, and make a positive impact on the world.