E.37 शिवजी के मन्दिर में कौन-2 से फूल चढ़ाये ?

गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (सातवाँ और आठवाँ अध्याय)

“आत्म-स्वरूप स्थिति”

The Great Geeta Episode No• 037

मन की चंचलता

फिर बताया कि मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण , जहाँ कहीं भी विचरण करता हो तो उसे वहाँ से खीचें और अपने वश में करें ! क्योंकि मन के भटकने का द्वार कौन-सा है ?

मन के भटकने का द्वार हमेशा कोई न कोई कर्मेन्द्रिय ही होती है और जब कर्मेन्द्रियाँ चंचल होने लगती हैं तो मन भी भटकने का अनुभव कराता है ! मन अनेक दिशाओं में भागना आरम्भ करता है !

तो इसलिए भगवान ने अर्जुन को कहा कि अगर मन कहीं चंचलता वश भाग भी गया तो उसको वापस खींच सकते हैं ! उसको खींच ले और फिर उसको जोड़ने का प्रयत्न करें ! क्योंकि ये तो उसकी आदत है !

मन की आदत है कि उसको विचरण करना अच्छा लगता है ! बैठे-बैठे भी कई बार कई लोगों का मन घर में चला जायेगा किसी अन्य स्थान पर चला जायेगा ! क्योंकि मन की नेचर है कि वो एक स्थान पर स्थिर होकर बैठ नहीं पाता है !

हाँ , जहाँ उसकी रूचि होती है वहाँ स्थिर हो जाता है ! लेकिन जहाँ उसकी रूचि नहीं वहाँ से भागता रहता है और शुरूआती स्टेज में तो बहुत भागेगा ! लेकिन उसमें डरने की बात नहीं ! उसको वापस खींच सकते हैं !

Well-Known-Avatars-Of-Lord-Shiva
शास्त्रों में ये बात बतायी गाई है कि सागर मंथन हुआ था ! जब देवताओं और असुरों के बीच में सागर मंथन हुआ तो उस समय जो सबसे पहले विष निकलता है , उसकी बदबू ही ऐसी थी कि देवतायें बेहोश होने लगे ! 

उनमें से जो थोड़े बहुत देवातायें बच गए वे चिंतित होने लगे कि इस तरह से देवतायें बेहोश होते रहे फिर तो सागर मंथन में जो अमृत-कलश निकलेगा , वो असुर लोग ले जायेंगे ! तो फिर देवतायें भागे-भागे शिवजी के पास गये और उनसे विनती करने लगे कि ये सागर मंथन में जो विष निकल रहा है उसका अब क्या किया जाए ? 

देवतायें तो बेहोश होने लगे हैं ! उस समय कहा जाता है कि शिवजी आते हैं और आकर सारा विष पी लेते हैं ! सारा विष ग्रहण करने के बाद पुनः सागर मंथन आरम्भ होता है ! धीरे-धीरे एक-एक चीज़ निकलती जाती है ! 

जो देवतायें बेहोश हो गये थे उन्हें भी सुरजीत कर दिया गया और फिर अन्त में अमृत-कलश निकलता है ! जो अमृत-कलश मोहनी स्वरूप लेकर विष्णु ने धारण किया और फिर देवातायें को पिलाया गया जिससे वे अमर हो गए ! 

ये कथा हम सभी ने शास्त्रों मे सुनी है !

लेकिन वास्तव में अगर देखा जाए तो यह ध्यान की प्रथम अवस्था है, कैसे ?

तो हमें सागर मंथन कौन-सा-करना है ? ये मन जो सागर की तरह है !

उसे सागर के साथ भेंट क्यों किया जाता है ?

क्योंकि सागर में कभी भी आप सम्पूर्ण इमेज नहीं देख सकते हैं ! नदी का पानी कभी इतना स्थिर हो जाता है जो सम्पूर्ण इमेज उसमें दिखाई देती है ! तालाब का पानी भी इतना स्थिर हो जाता है जो सम्पूर्ण प्रतिबिंब उसमें दिखाई दे ! लेकिन सागर में वो स्थिति कभी नहीं आती है जो उसमें सम्पूर्ण प्रतिबिंब दिखाई दे !

नित्य लहरें चलती रहती हैं ! कभी छोटी-छोटी लहरें चलती हैं , कभी बड़ी लहरें चलती है , कभी तो तूफान खड़ा हो जाता है ! हमारा मन भी एक सागर की तरह है क्योंकि कोई भी क्षण ऐसा नहीं जब मन के विचारों की लहरें न चलती हैं ! कभी भी मन स्थिर नहीं हो सकता है !

नित्य कुछ न कुछ विचार चलते रहते हैं साधारण से साधारण विचारों की लहरें भी चलती रहती हैं और कभी टेंशन हो जाता है ! बड़ी-बड़ी लहरें चलने लगती हैं ! कभी कोई बात लेकर परेशान हो जाते हैं तो तूफान खड़ा हो जाता है ! तो मन एक सागर की तरह है ! अब ये सागर मंथन करना है !

अमृत-कलश अन्दर ही है बाहर नहीं है उस अमृत-कलश को निकालना है ! अब ये सागर मंथन जो करते हैं वह देवतायें और असुर कौन हैं ? जिनके अच्छे विचार हैं वो देवो के समान हैं और जिनके बुरे विचार हैं वो असुरों के समान हैं ! ऐसा भी नहीं है कि मेडिटेशन में बैठे तो मन में विचार एकदम खत्म हो जाते हैं , नहीं ! इतना जल्दी सहज खत्म नहीं होते , बीच-बीच में विचार उभरतें रहते हैं !

जितने अच्छे विचार करने का प्रयत्न करते हैं उतने ही बीच-बीच में बुरे विचार भी आते रहते हैं ! उन दोनों के बीच में सागर मंथन हो रहा है ! अब ये सागर मंथन होता है तो सबसे पहले क्या निकलता है ? विष निकलता है ! इसका अर्थ है कि अन्दर में जो इतने सालों से वा जन्मों से निगेटिविटी का विष भरा हुआ है , वह निकलेगा ! एकदम ध्यान किसी का नहीं लग जाता ! सबसे पहले वो विष निकलेगा !

लेकिन जब ये विष विचारों के रूप में निकलता है तब कई लोग इतना घबरा जाते हैं कि पता नहीं मेरा मेडिटेशन , मेरा ध्यान तो कभी लगने वाला ही नहीं है ! ऐसा लगता है ! क्योंकि जैसे ही ध्यान में बैठते हैं इतने निगेटिव विचार आते हैं क्या करें ? ये विष तो निकलेगा ही ! उस में घबराने की ज़रूरत नहीं है ! लेकिन उस समय शिव परमात्मा को याद करो !

भक्त्ति में भी इसलिए देवताऔं के मन्दिर में हमने गुलाब के फूल चढ़ाये , कमल के फूल चढ़ाये !

लेकिन शिवजी के मन्दिर में कौन- से फूल चढ़ाये ?

अक के फूल , धतूरे के फूल चढ़ाये जो सबसे ज़्यादा ज़हरीले होते हैं ! क्योंकि शिवजी ने आकर हमारे अन्दर का विष खींचा है , ये कर्तव्य किया है !

इसलिए उसके मन्दिर में धतूरे के फूल और अक के फूल चढ़ाये जाते हैं ! इसलिए ऐसे समय पर अपने मन में शिवजी का आहवान करते हैं वे भी आकर ज़हर को खींच लेते हैं ! उसके बाद पुनः सागर मंथन करो !

धीरे-धीरे आप अपने विचारों में परिवर्तन महसूस करेंगे और जैसे-जैसे परिवर्तन होता जाता है , अच्छी दिशा की ओर हम बढ़ते जाते हैं ! तब अन्त में अमृत कलश भी निकलेगा और जैसे ही वह अमृत कलश निकलेगा , हरेक उसे प्राप्त करना चाहेगा ! बुरे विचार भी उसको प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं !

बुरे विचार से पीछा छुड़ाना इतना सहज नहीं है ! कुछ समय तो ये संघर्ष करना ही पड़ता है ! लेकिन उस समय जो अमृत-कलश निकलता है उसको लक्ष्मीजी ने धारण किया !

Satyug Deities 181

लक्ष्मी जी कौन है ?

हमारे जीवन के लक्षण ! लक्षण धारण करने हैं ! आज जैसे किसी की शादी होती है और किसी के घर में बहु अच्छे लक्षण वाली आ जाती है तो क्या कहते हैं – लक्ष्मी आई है और किसी के घर में बुरे लक्षणों वाली बुह आती है तो क्या कहते हैं कुलक्षणी है ! तो हमारे लक्षण ही लक्ष्मी हैं !

जब अमृत-कलश हमारे लक्षण में आता है , तब तो वे दैवी विचार , वे दैवी संस्कार अमरत्व को प्राप्त करते हैं ! तो ये सागर मंथन की जो कथा है , वास्तव में से हमारी अपनी कथा है !

इसलिए बुरे विचारों से कोई एकदम पीछा छुड़ा दे , ये कोई ओवरनाइट का प्रोसेस नहीं है ! आज हमने ध्यान की विधि सीखी , माना कल से लेकर बिल्कुल निगेटिव विचार खत्म ही हो जायेंगे , ऐसा नहीं है !

आज किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर या होम्योपैथिक डॉक्टर के पास जाओ ! जैसे किसी को स्किन की बीमारी होती है , कई प्रॉब्लम्स होते हैं , डॉक्टर के पास जाते हैं तो क्या कहता है ? वो दवाई भी देगा , परहेज भी बतायेगा और साथ में सावधान भी करेगा कि जैसे ही आप ये पुड़िया लेगें पहले ये बीमारी बढ़ेगी क्योंकि जड़ से निकलेगी !

अन्दर का सारा जो विष है उसको निकालने के लिए पहले ये पुड़िया देते हैं और जैसे ही ये जड़ से निकल जायेगी उसके बाद सम्पूर्ण बीमारी साफ हो जायेगी ! लेकिन जब ये बीमारी बढ़ेगी तब घबराना नही क्योंकि ये पहला लक्षण है उसका ! ठीक इसी तरह ध्यान का भी पहला लक्षण यही है !

ध्यान हमारा सही है या नहीं है उसका पहला लक्षण यही है कि बुरे विचार बढ़ेंगे ! कई बार कई लोग सोचते हैं पहले तो मुझे कभी ऐसे बुरे विचार नहीं आते थे , आज क्यों बुरे विचार आये हैं ? नहीं ! ये नहीं कि पहले कभी नहीं आए थे , पहले भी आए थे लेकिन पहले उसके विषय में जागृति नहीं थी !

अब हम जागृत हुए हैं अपने विचारों के बारे में कि ये अच्छे विचार हैं या बुरे विचार हैं ! जो विष अन्दर से निकला है वो बुरे विचार पहले तो चले हैं ना ! तभी तो अन्दर समाए हुए हैं ! आज ही एकदम प्रगट हो गया ऐसा थोड़े ही है ! तो इसलिए वो विचार अपना रंग दिखाएंगे !

कोई एकदम सहज विदाई नहीं ले लेता है !

B K Swarna
B K Swarnahttps://hapur.bk.ooo/
Sister B K Swarna is a Rajyoga Meditation Teacher, an orator. At the age of 15 she began her life's as a path of spirituality. In 1997 She fully dedicated her life in Brahmakumaris for spiritual service for humanity. Especially services for women empowering, stress & self management, development of Inner Values.

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Ashish
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