गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पाँचवां और छठाा अध्याय )
“परमात्म-अवतरण एवं कर्मयोग”
The Great Geeta Episode No• 035
योग की सही विधि
छठवें अध्याय में ध्यान-योग की विशेषता को बतलाते हुए (Part 1)
भगवान योग , उसके अभ्यास और उसकी सही विधि का स्पष्टीकरण करते हैं ! मन को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है , ध्यान से परमात्मा में मन को एकाग्र कैसे करना है आदि…आदि !
हे अर्जुन !
कर्म करते समय किसी भी प्रकार की फल की कामना न रखते हुए जो कर्म करता है तथा इन्द्रिय जीत और सम्पूर्ण सुख के भौतिक पदार्थो की इच्छायुक्त्त संक्लपों का त्याग करने वाला ही सच्चा योगी या सन्यासी है !
जिसका मन वश में है और प्रसन्नचत्ति होकर स्वयं को किसी अपयोगी अर्थात् अच्छे कार्य में लगाता है , वही योगरूढ़ ( कर्मयोगी ) की अवस्था वाला है ! इसलिए ऐसा कर्मयोगी पुरूष हमें बनना है ! मनुष्य को आत्मोन्नति करनी चाहिए , हमेशा यह ख्याल रहना चाहिए कि मैं अपनी आत्मोन्नति कैसे करूं ! आत्मा की अधोगति ( Degradation ) न होने दें क्योंकि जीवात्मा स्वयं ही स्वयं का मित्र व शत्रु होता है !
अर्जुन प्रशन पूछता है कि कब जीवात्मा स्वयं का मित्र वा शत्रु होता है !
भगवान ने बहुत अच्छी रीति से उसका जवाब दिया कि
जब मन सहित इन्द्रियाँ जीती हुई हैं तो वही मन मित्र है ! जब मन सहित इन्द्रियाँ परवश हैं , अधीन हैं , कहीं किसी बुराईयों के अधीन हैं , कहीं कोई ईर्ष्या , द्वेष के अधीन हैं तो वह परवश है , तब मन उसका शत्रु है !
जिसने मन को जीत लिया हो , ऐसा पुरूष मान , अपमान , सुख-दुःख , सर्दी-गर्मी में मन को शान्त रख परमात्मा की स्मृति में समा जाता है ! जो योगी अपने आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-अनुभूति से पूर्णताः सन्तुष्ट रहता है !
ऐसे जितेन्द्रिय की दृष्टि में मिट्टी , पत्थर व कंचन एक समान है ! वह भिन्न-भिन्न स्वभाव वाले व्यक्त्ति के प्रति भी समान भाव से व्यवहार करता है ! संयम युक्त्त अपरिग्रही योगी सदा एकांत में रह अपने मन को वश में कर निरन्तर परमात्मा की याद में बुद्धि को एकाग्र करते हैं !
💫 फिर ध्यान में याथार्थ रूप से बैठने की विधि बतायी !
शान्त अन्तःकरण भयरहित , ब्रह्यचार्य व्रत में स्थित योगी को , पवित्र एकांत स्थान में आसन बिछाए , दृढ़तापूर्वक सीधा बैठकर मन इन्द्रिय तथा कर्म को संयम रखकर निराकार परमात्मा पर मन , बुद्धि और दृष्टि को एकाग् कर ह्रदय के अन्दर शुभ-भावनायें भरकर योगाभ्यास करना चाहिए !
वह योग उचित आहार-विहार कर्मों में उपयुक्त्त चेष्टा और सन्तुलित शयन जागरण करने वाले का ही पूर्ण होता है !
ये है योग के ध्यान की सही विधि !
अब प्रशन उठता है कि भगवान ने इस योग की विधि को क्यों बतायी ! उसके पीछे भी क्या गुहाृ रहस्य है ? क्योंकि जब ध्यान में बैठना होता है तो आजकल की दुनिया में हरेक को घुटनों की समस्या है किसी को पीठ का प्रॉब्लम है इसलिए यह जरूरी नहीं है कि आप नीचे बैठकर आसन लगाओ , क्योंकि कोई तकलीफ को बढ़ाना नहीं है ! ऐसा ना हो ध्यान लगाना चाहो परमात्मा में पर और ध्यान बार-बार घुटनों में या पीठ में ! तो भगवान का ध्यान कहाँ लगेगा !
1. पहला द्वार है पैर
जिस तरह से भी आप आराम से बैठ सके , लेकिन भगवान ने ये बात भी क्यों कही इसके पीछे भी एक साइंस है ! ध्यान में बैठने के लिए जो कहा कि एकांत स्थान में आसन बिछाए , दृढ़तापूर्वक सीधा बैठें ! सीधा बैठने के लिए क्यों कहा आसन बिछाकर के क्योंकि मनुष्य के शरीर में तीन द्वार है जहाँ से हमारी एनर्जी निकलती है !
यहाँ से बहुत एनर्जी बाहर निकलती है ! इसलिए लोग महात्माओं के सनिध्य में जब जाते हैं तो चरण-स्पर्श करते हैं ! इस तरह करते हैं कि वहाँ से जो एनर्जी निकल रही है वह हमारे तरफ आये ! लेकिन वह आती नहीं है , ये खाली एक भावना है , कि वहाँ से जो एनर्जी निकल रही है वह हमें प्राप्त होती है !
कई लोग गुरू के चरणों को थाली में रखकर धोते हैं और उस पानी को चरणामृत के रूप में बांटते हैं ! उस एनर्जी को पानी में लिया और सभी को बांटा अर्थात् उस पानी को पीयेंगे तो हमारी आत्मा भी चार्ज हो जायेगी !
ऐसे कोई आत्मा चार्ज नहीं होती है ! ये एक अंधश्रद्धा का रूप ले चुका है ! लेकिन वास्तव में आसन बिछाकर के इस आसन में बैठने का भाव यही है कि जब पैरो को मोड़ देते हैं , एनर्जी वहाँ से निकलना बन्द हो जाती है ! इसलिए पैरों को मोड़ा जाता है !
वो ऊर्जा फिर ऊपर की ओर आती है मस्तिष्क में जो एकाग्र करने के लिए आवश्यक है वो ऊर्जा उसके काम में आती है ! वो ऊर्जा बहुत जरूरी है ! इसलिए पहले के ज़माने में घरों में सोफासेट नहीं होता था बैठकें होती थीं !
भोजन के लिए भी कोई डायनिंग टेबल नहीं होते थे और न ही कुर्सी होती थी ! नीचे बैठकर भोजन करते थे ! आज भी कई परिवारों में नीचे बैठकर ही भोजन किया जाता है !
विचार कीजिए,
जब आप भोजन करो तो आपकी ऊर्जा इस तरह से आपके पेट में जाये ताकि खाना जो आप खा रहे हो उसको हजम कर सको ! इसलिए पैरों को मोड़ने की सिस्टम थी !
गुरूकुल में जब बच्चे पढ़ने जाते थे तो वहाँ भी बच्चों को नीचे बिठाया जाता था ! कुर्सी-टेबल नहीं होती थी ! लेकिन आजकल हर जगह कुर्सी-टेबल आ गयी है !
इसलिए बच्चे भी एक तरफ पढ़ते जाते हैं तो दूसरी तरफ अर्थिंग हो जाता है ! कुछ भी याद नहीं रहता है ! इसलिए पैर मोड़ने का सिस्टम हर धर्म में है, ये साइंस है !
हिंदु धर्म में सुखासन, पदमआसन, अर्धपदमासन के रूप में मोड़ा जाता है ! मुसलमान धर्म में वज्रासन में बैठते हैं ! वो ऊर्जा परमात्मा के ध्यान के लिए ज़रूरी है ! उसको मोड़ दो व रोक लो !
क्रिशचन धर्म में नील डाऊन करते हैं , वहाँ भी पैरों को मोड़ लेते हैं ! पैर मोड़ने का सिस्टम हर धर्म में है ! ये द्वार, सबसे पहले बन्द करो, ताकि ऊर्जा बाहर निकलना बन्द हो जाये !
2. दूसरा द्वार है हाथ
यहाँ से भी बहुत ऊर्जा निकलती है ! इसलिए लोग जब महात्माओं के पास जाते हैं तो आशीर्वाद चाहते हैं ! हाथ रखें हमारे सिर पर ! सोचते हैं कि हाथ से जो ऊर्जा निकलती है उससे आत्मा जल्दी चार्ज हो जायेगी ! ऐसे कोई आत्मा चार्ज नहीं होती है !
दूसरे की शक्त्ति पर कितना निर्भर रहेंगे ?
क्यों नहीं हम वो विधि सीख लें जिससे हम अपने आप को चार्ज करें ! पड़ोसी के घर से लाईट का कनेक्शन कितना दिन मिलेगा ?
दो दिन , चार दिन , उसके बाद तो वो पड़ोसी भी कहेगा कि भाई तुम अपना मीटर क्यों नहीं लगा लेते हो ! दूसरे की एनर्जी पर कितना दिन चलोगे ! ऐसे लोगों से आशीर्वाद प्राप्त कर-करके कहाँ तक जीवन को चलाते रहेंगे ?
क्यों नहीं हम वो विधि सीखें जो अपने अन्दर उस शक्ति को , उस ऊर्जा को जेनरेट कर सकें ! इसलिए भारतीय संस्कृति में हाथ जोड़ने की प्रथा है ! ‘ क्लोज़ द सर्किट ‘ ध्यान के लिए , इसलिए भगवान के सामने जाते हैं तो हाथ जोड़ते हैं !
पूजा में बैठते हैं तो पैरों को मोड़ दिया और हाथों को जोड़ लिया यानि दो द्वार को बन्द कर दिया ! तो वो ऊर्जा फिर मस्तिष्क की ओर जाती है जो भगवान में ध्यान को एकाग्र करने में हमारी मदद करती है !
महान आत्मायें जब तपस्या में बैठते थे , हाथ को जोड़ लेते थे ! ताकि वो ऊर्जा लगातार मिलती रहे ! महान आत्माओं को देखो जब महावीर स्वामी ध्यान में बैठे तो कैसे बैठे हैं ? महात्मा बुद्ध जब ध्यान में बैठे तो कैसे बैठे हैै ?
ये सही आसन है ! जितने भी महान पुरूष हुये जितने भी महान आत्मायें संसार में हुई , उनकी ध्यान की विधि को आप ध्यान से देखो ! उसके पीछे भी साइंस है , कई बार कई लोग उसको स्पष्ट नहीं कर पाये ! क्योंकि मनुष्य की बुद्धि शायद इतनी विकसित नहीं थी !
लेकिन आज के युग में हरेक की बुद्धि इतनी विकसित है तो हम क्यों ये करें ! क्योंकि हरेक व्यक्त्ति ये सवाल पहले पूछेगा कि क्यों करना चाहिए ?
तो उसको तर्क संगत उत्तर चाहिए ! आज के बच्चों को आप कहो बैठो भगवान के सामने हाथ जोड़ो तो कहेगा क्यों जोडूं ! आप अगर स्पष्ट नहीं करेंगे तो वो जोड़ेगा ही नहीं ! फिर हम कहेंगे तुफानी हो गया है पहले छोटा था तो जोड़ता था मान लेता था !
लेकिन अभी हाथ ही नहीं जोड़ता है ! उसको उसमें भी शर्म आती है ! लेकिन वह तर्कसंगत उत्तर चाहता है ! उसको उसकी स्पष्ट व्याख्या चाहिए कि इसको करने से हमें क्या मिलेगा !
3. 👏 दूसरा द्वार है ये आँखें Click here for Third
भगवान – एक अनुभव
इतने भगवान क्यों हैं ?
एक बहन ने अपना अनुभव बताया कि उसका बेटा पंद्रह साल का है ! लेकिन जब भी में उसको कहती हूँ कि बेटा मन्दिर चल , तो उस का पहला सवाल यही होता है कि हिन्दओं में इतने भगवान क्यों हैैं ?
क्रिशचन में एक गॉड क्यों है ?
वो माँ उसको कहती है बेटा ये स ब भगवान हैं ! तो कहता है सब भगवान नहीं हो सकते , भगवान एक होना चाहिए ! इसलिए जब माँ उसको कहती है बेटा चल मन्दिर तो वो कहता है , मैं मन्दिर जाने से कनफ्यूज़ हो जाता हूँ ! कहाँ अपने मन को एकाग्र करूं ?
मुझे लगता है वहाँ हमारा समय नष्ट हो जाता है ! मैं अपना टाइम वेस्ट करने के लिए मन्दिर में क्यों जाऊं, वो बच्चा अपनी माँ से कहता है कि इससे अच्छा तो मैं चर्च में जाऊं , तो कम से कम वहाँ एक गॉड है , जहाँ मैं अपने मन को एकाग्र करूं ! वो बहन ने बतलाया कि मेरा बेटा चर्च जाता है मन्दिर में नहीं जाता है ! मुझे ये हर्जा नहीं कि वो चर्च में क्यों जाता है ?
लेकिन ये दुःख ज़रूर कि वो मन्दिर क्यों नहीं जाता ? कल को आपके बच्चे ने ये सवाल आप से पूछ लिया , तो क्या आपके पास उसका कोई उत्तर है कि हिन्दओं में इतने भगवान क्यों हैं ? क्रिशचन में एक गॉड क्यों है ? मुसलमानों में एक अल्लाह क्यों है ? आपके पास जवाब है ?
इसलिए बच्चे ने कहा कि मैं मन्दिर में जाकर टाइम वेस्ट करता हूँ ! इससे तो अच्छा मैं चर्च में जाऊं या मस्जिद में जाऊं तो आपको कैसे लगेगा ?
भावार्थ ये है कि कहीं हमारे अन्दर ही अज्ञानता है , जिस अज्ञानता के कारण हम आज की पीढ़ी को यथार्थ वैज्ञानिक तर्क नहीं दे पाते हैं ! क्योंकि हमारे श्रषि-मुनियों के पास इतना सुन्दर साइंस था , मेडिटेशन का भी बहुत सुन्दर साइंस था ! जो कुछ भी उन्होंने किया उसके पीछे वैज्ञानिक कारण था !
लेकिन क्योंकि उस वक्त्त आत्माओं में वो पात्रता नहीं थी ! इसलिए उन्होंने कुछ भी समझाया नहीं ! लेकिन आज की पीढ़ी इतनी समझदार है कि उसको हर बात में लॉजिकल उत्तर चाहिए ! अगर हमें पता होगा तो हम अपने बच्चों को एक भगवान का परिचय दे सकेंगे और गाईड कर सकेंगे , इसलिए ज़रूरी है कि भगवान कौन है, पैरों को क्यों मोड़ना चाहिए, हाथों को क्यों जोड़ना चाहिए क्योंकि इस सर्किट को बन्द करना है !
जब सर्किट बन्द हो जाता है तो फ्लो ऑफ एनर्जी नैचरल रूप से मिलती है ! आगे आँखों से एनर्जी फ्लो कैसे होता है उसके बारे में वर्णन करेंगे !
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