गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (तीसरा और चौथा अध्याय)
“स्वधर्म, सुख का आधार”
The Great Geeta Episode No• 021
राजयोग के माध्यम से गीता ज्ञान के वास्तविक स्वरूप से हम अपनी वास्तविकता की ओर वापिस आते हैं !
स्वधर्म के आधार पर जीवन जीयेंगे तो हर संधर्ष में विजयी निशिचत है !
कई बार लोग सवाल पूछते हैं कि क्या आज की वास्तविक दुनिया में स्वधर्म के आधार पर जीवन जीकर हम सफल हो सकते हैं ? क्या ये प्रैक्टिकल है ?
अगर हम शान्ति की बातें करेंगे , प्रेम की बातें करेंगे , आनन्द की बातें करेंगे तो क्या आज के युग में जीवन जीना संभव है , लाभप्रद है ? बुहत बड़ा फायदा है !
आज दुनिया में जितनी भी महान हस्तियां समय प्रति समय होकर गई हैं ! उनके जीवन की विलक्षणता ( uniqeness) में ऐसी कौन सी बात थी , जिससे वे महानता के शिखर पर पहुँचे !
अगर उनकी महानता को देखें तो उन्होंने संसार में कितना बड़ा परिवर्तन करके दिखाया , कितने लोगों के लिए वे प्रेरणास्रोत बन गए , कौन-सी बात उनके अन्दर थी ?
उन्होंने इन्हीं सात गुणों की आभा को अपने जीवन में विकसित किया था , इन्हीं सात गुणों ज्ञान , प्रेम पवित्रता सुख , आनन्द और शान्ति का प्रभाव उनके जीवन में था !
महान हस्तियां , जो हुई उनके अन्दर आध्यात्मिक ज्ञान था, पवित्रता की शक्त्ति थी, प्रेम था , शान्ति थी , सुख था और आनन्द था !
इससे जीवन के अन्दर तीन बड़े फायदे होते हैं कि एक तो हम परिस्थिति को बदल सकते हैं , परिवर्तन कर सकते हैं और परिस्थिति को अपने अनुकूल बना सकते हैं !
दूसरा फायदा यह होता है कि हम वातावरण को परिवर्तन कर अपने अनुकूल बना सकते हैं !
स्वामी विवेकानन्द के जीवन की बात है जब वे एक धार्मिक सम्मेलन में अमेरिका गये थे तो वहाँ गीता शास्त्र को अपमानित करने के उद्देश्य से उसे सभी शास्त्रों के नीचे रखा गया और सबसे ऊपर बाईबल को रखा और भरी सभा में हसीं उड़ायी गयी कि आपकी गीता तो आऊट डेटेज हो गई !
हमारी बाईबल अभी टॉप पर है ! आज की दुनिया का कोई डिस्चार्ज बैट्री वाला इंसान वहाँ होता तो क्या करता ? वह हंगामा करता , लड़ाई झगड़ा आरम्भ कर देता , खून-खराबा आरम्भ हो जाता !
स्वामी विवेकानन्द आगे बढ़े और नीचे से गीता को खींचा और जैसे ही गीता को उन्होंने खींचा तो सारे शास्त्र गिर गए !
उन्होंने ने कहा कि आपने तो गीता को आधार बना दिया ! आज अगर संसार में गीता न हो तो दुनिया का कोई धर्म , कोई शास्त्र टिक नहीं सकता !
फिर सारी परिस्थितयाँ बदल गयीं , लोग उनके पीछे पीछे चल पड़े ! चार्ज बैट्री और डिस्चार्ज बैट्री का यही सबसे बड़ा अन्तर है !
डिस्चार्ज बैट्री वाला व्यक्ति हंगामा करता है और चार्ज बैट्री वाला अपने विवेक से कार्य करता है और परिस्थिति को अपने अनुकूल बना लेता है ! वे परिस्थिति के अधीन नहीं होते हैं बल्कि परिस्थिति के ऊपर अपना अधिकार बना लेते हैं !
आज संसार में इस बात आवश्यकता है कि हम संसार की परिस्थितयों के अधीन न हो जायें लेकिन अपनी बैट्री को इतना चार्ज कर लें कि उस परिस्थिति को अपने वश में कर लें , यही आध्यात्मिक शक्त्ति है !
वहाँ बैठे हुए सभी लोगों की मनोवृत्ति बदल गयी ! शिकागो वर्ल्ड ऑफ पार्लियामेंट में भारत को एक ऐसा स्थान दे दिया गया , जो आज भी स्थापित है , नहीं तो ये स्थान मिलना मुशिकल हो जाता !
उस समय भारत के प्रति भावनायें व वातावरण बदल गया ! ठीक इसी प्रकार महात्मा बुद्ध ने अपनी चार्ज बैट्री के आधार से अंगुलीमार ड़ाकू की मनोवृत्ति को परिवर्तन कर दिया था !
महावीर स्वामी जहाँ जंगलों में तपस्या करने के लिए बैठते थे , उनकी आभा चारो ओर इतनी फैलती थी कि उस आभा के अन्दर कोई हिंसक प्राणी भी आ जाता तो वो भी अपनी हिंसक वृत्ति को छोड़कर अहिंसक हो जाता था !
भावार्थ यह है कि इन महान आत्माओं के जीवन में जिसको आज हम चमत्कार कहते हैं ये चमत्कार नहीं होते हैं लेकिन ये उनकी चार्ज बैट्री का प्रभाव होता है !
वो भी थे तो इस दुनिया के इंसान और आज हम भी इसी दुनिया के इंसान हैं !
अगर वे अपनी आत्मा की बैट्री को चार्ज कर ऐसे चमत्कारी प्रभाव दिखा सकते हैं , अर्थात् परिस्थिति के ऊपर अपना अधिकार प्राप्त कर सकते हैं तो क्या हम नहीं कर सकते ?
Om Shanti