गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)
“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध”
The Great Geeta Episode No• 002
- एक प्रशन यह भी उठता है कि श्रीमदभगवदगीता हम सभी के पास आई कैसे ?
- कहते हैं कि भगवान ने गीता का उपदेश कुरूक्षेत्र के मैदान में दिया था लेकिन यह ज्ञान हम तक कैसे पहुंचा ?
- यदि इसका पूर्व अवलोकन किया जाये तो हम पायेंगे कि , वेद व्यास जी ध्यान मग्न स्थिति में बैठे थे तब उन्हें कुछ दिव्य साक्षात्कार हुए , जिसमें परमात्मा ने उन्हें बुहत सुन्दर रहस्हपूर्ण ज्ञान स्पष्ट किया !
- जब वे ध्यानमग्न स्थिति से वापस आए तो इस ज्ञान को उन्होंने लिपिबद्ध करना चाहा तब कुछ बातें भूलना स्वाभाविक ही है क्योंकि साक्षात्कार एक ऐसी चीज़ है जो सम्पूर्ण रीति से मनुष्य को याद नहीं रहती !
- इसलिए कहा जाता है कि पहले दिन का ज्ञान जो उन्हें दिव्य अनुभव द्वारा प्राप्त हुआ था वो आज दिन तक कहीं भी लिखा हुआ नहीं है ! जो धीरे धीरे विलुप्त हो गया !
- दूसरे दिन वेद व्यास जी को यह तो मालूम ही था कि साक्षात्कार के द्वारा प्राप्त ज्ञान अधूरा है ! इसलिए वे पुनः ध्यानमग्न स्थिति में बैठे ! जैसे ही वे साक्षात्कार में गए जहाँ से पहले दिन समाप्त हुआ था वहाँ से आगे ज्ञान मिलना प्रारम्भ हुआ ! इस बार वो कलम कागज लेकर बैठे थे कि आज मैं इसे लिख लूँगा !
- यह अमूल्य ज्ञान जो हमें प्राप्त हो रहा है इसे मानव तक पहुंचाऊंगा ! परन्तु दूसरे दिन के ज्ञान में भी वही बातें हुई , जब वह लिखने जाते थे तो देखना रह जाता था , कभी-कभी देखने में इतना मग्न हो जाते थे कि लिखना रह जाता था ! इसलिये दूसरे दिन का ज्ञान भी हम तक नहीं पहुंच पाया और वो भी लुप्त हो गया !
- तब कहा जाता है कि तीसरे दिन वेद व्यास जी ने भगवान से प्रार्थना की हे प्रभु ! आप मुझे जो इतना अमूल्य ज्ञान दे रहो हो , इस ज्ञान को मैं मनुष्य तक पहुंचा नहीं सका तो इसका फायदा क्या ?
- मुझे कोई इसे लिखने वाला दो जिससे मैं इसको अन्य तक पहुंचा सकूं ! तब कहा जाता है कि तीसरे दिन उन्हें श्रीगणेश जी प्राप्त हुए ! गणेश लिखने के लिए तैयार हुए लेकिन गणेश जी ने एक शर्त रखी कि मैं बुहत तीव्रगति से लिखूंगा और जहाँ पर भी तुम रूके , वहाँ से मैं उठकर चला जाऊँगा !
- जैसे ही वे ध्यानमग्न होकर बैठे और साक्षात्कार में गए तो उन दृश्यों को देख उन्होंने हुबहू वर्णन करना प्रारम्भ किया ! कहा जाता है कि तीसरे दिन की गीता रहस्यमयी थी ! उसमें कुछ दृश्य ऐसे भी थे , जहाँ उन्हें रूकना पड़ता था !
- अब स्थिति ऐसी थी कि उसको समझना भी पड़ता था ! लेकिन स्मृति में यह बात स्पष्ट थी कि अगर में रूका तो गणेश जी उठकर चले जायेंगे ! इसलिए जो चीज़ जैसी है , वैसी ही उसके स्वरूप में लिख दिया जाए !
- इस तरह से उन्होंने जो दृश्य जैसे देखे वैसे ही लिखना प्रारम्भ कर दिया ! लेकिन कई स्थान पर कई अर्थ , गुह्य रहस्य के रूप में रह गए ! इस तरह से श्रीमदभगवदगीता का जिन्होंने भी अनुवाद किया है उन सभी ने अपनी बुद्धि से उसको समझने का प्रयत्न किया ! इस तरह से कई प्रकार के अनुवाद हमारे सामने आते हैं !