त्रिमूर्ति शिव जयंती का आध्यात्मिक रहस्य
ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के भी रचयिता, निराकार स्वयं भू, सर्वशक्तिमान, ज्ञानसागर, पतित-पावन, परमप्रिय, परमपूज्य परमपिता परमात्मा शिव का दिव्य जन्म मानव मात्र के कल्याणार्थ होता है.
✳अतः
‘शिव‘ शब्द ही कल्याण का वाचक हो गया है। सर्व आत्माओं का सदा कल्याण करने के कारण वे ‘सदाशिव‘ कहे जाते हैं। उनका दिव्य-जन्मोत्सव ही हीरे-तुल्य है।
✳अतः
यह आवश्यक है कि इस महापर्व महाशिवरात्रि के आध्यात्मिक रहस्यों पर प्रकाश डाला जाए।
शिवरात्रि ‘रात्रि’ में क्यों❓
अन्य सभी जयंतियाँ दिन में मनाते हैं (नवरात्रि को छोड़कर) लेकिन निराकार परमात्मा शिव की जयंती रात्रि में मनाते हैं। वह भी फाल्गुन में कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में, जबकि घटाटोप अंधकार छाया होता है।
वस्तुतः
ज्ञानसूर्य, पतित-पावन परमात्मा शिव का अवतरण धर्मगलानि के समय होता है जब चतुर्दिक घोर अज्ञान-अंधकार छाया रहता है तथा विकारों के वशीभूत होकर मनुष्य दुखी एवं अशांत हो उठते हैं तब ज्ञानसागर परमात्मा शिव आकर ईश्वरीय ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं जिससे रचयिता तथा रचना के आदि-मध्य-अंत का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य इस जीवन में अतींद्रिय आनंद की तथा भविष्य में नर से श्री नारायण और नारी से श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति करते हैं।
शिव पर अक और धतूरा:
अन्य देवताओं पर तो कमल, गुलाब या अन्य सुगंधित पुष्प चढ़ाते हैं लेकिन पतित-पावन परमात्मा शिव पर अक, धतूरे का रंग व गंधहीन पुष्प चढ़ाते हैं।
💭क्या आपने कभी विचार किया है कि ऐसा क्यों❓
वास्तव में जब पतित-पावन परमात्मा शिव पतित, तमोप्रधान, कलियुगी आसुरी सृष्टि पर पावन, सतोप्रधान, सतयुगी दैवी स्वराज्य की पुनर्स्थापना के लिए अवतरित होते हैं तो सभी जीवात्माओं से काम-क्रोधादि पाँच विकारों का दान मांगते हैं।
जो नर-नारी, जीवन में दुख-अशांति पैदा करने वाले पाँच विकारों को परमात्मा पर शिव पर चढ़ा देते हैं, वे निर्विकारी बन पावन, सतयुगी दैवी स्वराज्य के अधिकारी बनते हैं।
इसी की स्मृति में भक्ति मार्ग में परमात्मा शिव पर अक-धतूरे का फूल चढ़ाते हैं। पौराणिक कथा भी है कि भगवान शिव ने मानवता के रक्षार्थ विष पान किया था।
‘काम विकार’ ही तो वह विष है जिसने मानवमात्र को काला, तमोप्रधान बना दिया है। सारे कुकर्मों की यही जड़ है। अति कामुकता ने आज जनसंख्या-विस्फोट की समस्या उत्पन्न कर दी है।
वस्तुतः
काम की विषैली ज्वाला में जलकर ही यह सृष्टि स्वर्ग से नर्क में, अमरलोक से मृत्युलोक में बदल जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता की शब्दावली में ‘काम-क्रोध नर्क के द्वार‘ हैं।
कहते भी हैं कि ब्रह्मचर्य के बल से देवताओं ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। कामारि तो परमात्मा शिव ही हैं जिन्होने तीसरा नेत्र खोलकर काम को भस्म किया था।
कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगम युग पर जब ज्ञान सागर, पतित पावन, निराकार परमात्मा शिव अवतरित होते हैं तो प्रायः लोप गीता-ज्ञान की शिक्षा देकर मनुष्यात्माओं का तृतीय नेत्र खोलते हैं जिसकी प्रखर ज्वाला में कामादि विकार जलकर भस्म हो जाते हैं।
फिर आधा कल्प अर्थात सतयुग-त्रेता में इन विकारों का नाम-निशान भी नहीं रहता। शास्त्र भी कहते हैं कि द्वापर में कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था।
शिव की सवारी:
परमपिता परमात्मा शिव के साथ एक नंदी गन भी दिखाते हैं। कहते हैं कि उनकी सवारी बैल है। इसका भी लाक्षणिक अर्थ है।
परमात्मा अजन्मे हैं।
उनका जन्म माँ के गर्भ से नहीं होता। विश्व-पिता का कोई पिता नहीं हो सकता। उनका जन्म दिव्य और अलौकिक होता है। वे स्वयंभू हैं। कलियुग के अंत में धर्म स्थापनार्थ स्वयंभू निराकार परमात्मा शिव का अवतरण होता है अर्थात वे एक साकार, साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करते हैं।
परमात्मा के दिव्य प्रवेश के पश्चात उनका नाम पड़ता है ‘प्रजापिता ब्रह्मा’। निराकार परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के साकार माध्यम द्वारा प्रायःलोप गीता-ज्ञान तथा सहज राजयोग की शिक्षा देकर मनुष्यात्माओं को तमोप्रधान से सतोप्रधान बना, सतोप्रधान सतयुगी सृष्टि की पुनर्स्थापना करते हैं।
इसलिए परमात्मा के साथ ब्रह्मा को भी स्थापना के निमित्त माना जाता है तथा शिव के साथ ब्रह्मा के प्रतीक नंदीगण की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है।
शिवलिंग पर अंकित तीन पत्तों वाले बेलपत्र का रहस्य:
शिवलिंग पर सदा तीन रेखाएँ अंकित करते हैं और तीन पत्तो वाला बेलपत्र भी चढ़ाते हैं।
वस्तुतः
परमात्मा शिव त्रिमूर्ति हैं अर्थात ब्रह्मा-विष्णु-शंकर के भी रचयिता हैं। वे करन -करावनहार हैं। ब्रह्मा द्वारा सतयुगी दैवी सृष्टि की स्थापना कराते हैं, शंकर द्वारा कलियुगी आसुरी सृष्टि का विनाश कराते हैं तथा विष्णु द्वारा सतयुगी दैवी सृष्टि की पालना कराते हैं। जब परमात्मा का अवतरण होता है तब ही तीन देवताओं का कार्य भी सूक्ष्मलोक में आरंभ हो जाता है।
✳अतः
शिव जयंती ब्रह्मा विष्णु शंकर जयंती है तथा गीता-जयंती भी है क्योंकि अवतरण के साथ ही परमात्मा शिव गीता ज्ञान सुनाने लगते हैं।
शिव-विवाह के बारे में वास्तविकता:
बहुत से लोग शिवरात्रि को शिव-विवाह की रात्रि मानते हैं। इसका भी आध्यात्मिक रहस्य है।
🏮निराकार परमात्मा शिव का विवाह कैसे❓:
यहाँ यह स्पष्ट समझ लेना आवश्यक है कि शिव और शंकर दो हैं।
ज्योति-बिंदु ज्ञान-सिंधु निराकार परमपिता परमात्मा शिव ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के भी रचयिता हैं। शंकर सूक्ष्मलोक के निवासी एक आकारी देवता हैं जो कि कलियुगी सृष्टि के महाविनाश के निमित्त बनते हैं। शंकर को सदा तपस्वी रूप में दिखाते हैं। अवश्य इनके ऊपर कोई हैं जिनकी ये तपस्या करते हैं। निराकार परमात्मा शिव की शक्ति से ही ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर स्थापना, पालना और विनाश का कर्तव्य करते हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा शिव के विवाह का तो प्रश्न ही नहीं उठता। वे एक हैं और निराकार हैं।
हाँ, आध्यात्मिक भाषा में जब भी आत्मा रूपी सजनियाँ जन्म-मरण के चक्र में आते-आते शिव साजन से विमुख होकर घोर दुखी और अशांत हो जाती हैं तब स्वयंभू, अजन्मे परमात्मा शिव, प्रजापिता ब्रह्मा के साकार साधारण वृद्ध तन में दिव्य प्रवेश करते हैं और आत्मा रूपी पार्वतियों को अमर् कथा सुनाकर सतयुगी अमरलोक के वासी बनाते हैं जहाँ मृत्यु का भय नहीं होता, कलह-क्लेश का नाम-निशान नहीं रहता तथा संपूर्ण पवित्रता-सुख-शांति का अटल, अखंड साम्राज्य होता है। पुरुषोत्तम संगम युग पर भूली-भटकी आत्माओं का परम प्रियतम परमात्मा शिव से मंगल-मिलन ही शिव-विवाह है।
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भगवान शिव का दिव्य-जन्मोत्सव ही उनका आध्यात्मिक विवाहोत्सव भी है।
वर्तमान काल में परमात्मा शिव का अवतरण:
🏮अब पुनः धर्म की अति ग्लानि हो चुकी है तथा तमोप्रधानता चरम सीमा पर पहुँच चुकी है। सर्वत्र घोर अज्ञान-अंधकार फैला हुआ है। घोर कलिकाल की काली रात्रि में सतयुगी दिन का प्रकाश फैलाने के लिए ज्ञानसूर्य पतित- पावन परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के साकार, साधारण, वृद्ध तन में पुनः अवतरित हो चुके हैं।
आप सभी जन्म-जन्मांतर से पुकारते आए हैं कि हे पतित पावन परमात्मा, आकर हमें पावन बनाओ। आपकी पुकार पर विश्वपिता परमात्मा इस पृथ्वी पर मेहमान बनकर आए हैं और कहते हैं,
मीठे बच्चों, मुझे काम, क्रोधादि पाँच विकारों का दान दे दो तो तुम पावन, सतोप्रधान बन नर से श्री नारायण तथा नारी से श्री लक्ष्मी पद कि प्राप्ति कर लोगे। शिवरात्रि पर भक्तजन व्रत करते हैं तथा रात्रि का जागरण भी करते हैं।
वस्तुतः
पाँच विकारों के वशीभूत न होने का व्रत ही सच्चा व्रत है और माया की मादक किन्तु दुखद नींद से जागरण ही सच्चा जागरण है। ज्ञान सागर परमात्मा हमें प्रायःलोप गीता-ज्ञान सुनाकर ‘पर’ धर्म अर्थात शरीर के धर्म से ऊपर उठा, स्वधर्म अर्थात आत्मा के धर्म में टिका रहे हैं।
✳अतः
आइये अब हम ईश्वरीय ज्ञान तथा सहज राजयोग की शिक्षा द्वारा पाँच विकारों पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ‘स्वधर्म‘ में टिकने अर्थात आत्माभिमानी बनने का सच्चा व्रत लें और आनंद सागर निराकार परमात्मा शिव की आनंददायिनी स्मृति में रह उस अनुपम, अलौकिक, अतींद्रिय आनंद की प्राप्ति करें जिसके लिए गोप-गोपियों का इतना गायन है।
निराकार आत्मा का निराकार परमात्मा से आनंददायक मंगल-मिलन ही सच्चा शिव-विवाह है। इस मंगल-मिलन से हम जीवनमुक्त बन जाते हैं और
गृहस्थ जीवन आश्रम बन जाता है जहां हम 🌷कमल पुष्प सदृश्य अनासक्त हो अपना कर्तव्य करते हुए निवास करते हैं।
इस कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग पर जिसने यह मंगल- मिलन नहीं मनाया वह पश्चाताप करेगा कि हे पतित पावन परमात्मा, आप आये और हमें पावन बनने का आदेश दिया लेकिन हम अभागे आपके आदेश दिया लेकिन हम अभागे आपके आदेश पर चल अपने जीवन को कृतार्थ न कर सके।
Source: Brahma Kumaris, Mt. Abu