व्रत या उपवास का महत्व

एक बार एक राजा था जिसकी रानी बहुत सुंदर और बुद्धिमान थी। राजा ने अपनी रानी को सोने का एक खूबसूरत हार दिया था, जो उसकी गर्दन पर बहुत सुंदर लगता था। लेकिन एक दिन, रानी को लगा कि वह हार खो गई है और उसने पूरी दुनिया में उसकी तलाश शुरू कर दी।

वह हर जगह ढूंढती रही, हर एक पत्थर के नीचे, हर एक कोने में, लेकिन वह हार कहीं नहीं मिला। वह बहुत उदास हो गई और सोचने लगी कि वह हार कभी नहीं मिलेगा।

लेकिन एक दिन, जब वह अपने आप को शीशे में देख रही थी, तो उसने देखा कि वह हार उसके हाथ में पहना हुआ है! वह बहुत आश्चर्यचकित हुई और सोची, “अरे, यह तो मेरे हाथ में ही था!”

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इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि कभी-कभी हम अपनी चीजों को अपने ही पास रखकर भी उन्हें खो जाने का भ्रम पाल लेते हैं। और जब हमें उनकी जरूरत होती है, तो हमें याद आती है कि वह चीज तो हमारे पास ही थी।

यह कहानी हमें अपने जीवन में भी लागू होती है। कभी-कभी हम अपने जीवन में खुशी, संतुष्टि, या समाधान की तलाश में बहुत दूर तक जाते हैं, लेकिन वह चीज तो हमारे अपने ही पास होती है। बस हमें अपने आप को समझने और अपने अंदर झांकने की जरूरत होती है।

मैं बहुत धार्मिक हूँ बचपन से ही कड़ी भक्ति की है। व्रत उपवास बस इसी में ही जीवन के आधे से ज्यादा दिन गुज़र जाते है.. पर फिर भी जीवन में बहुत परीक्षाएं आती है..दुख ,तकलीफ, मुसीबत, कष्ट परेशानियां तो जैसे जाने का नाम ही नहीं लेती। एक खत्म होती है तो दूसरी पहले ही आने के लिए तैयार खड़ी रहती है।

इन सबको देखते हुए मेरे सभी मित्र संबंधी कहते है ..कुछ नहीं होता है ये भक्ति व्रत,उपवास करने से..जो होना होता है वही होगा..क्या मिलता है तुम्हे भूखे रह कर इतने व्रत ,उपवास करके ?क्या मिल रहा है?बस दुख , कष्ट मुसीबत परेशानियां ही न?

मैने मुस्कुराते हुए जवाब दिया…क्या मिलता है मुझे व्रत करने से।

मुझे मिलता है व्रत करने से..दुख , तकलीफ, परेशानियां कष्ट……….,से लड़ने का साहस

Harshi
Harshihttps://truegyantree.com/
मै धर्म व अध्यात्म की कड़ी, ईश्वरीय मत व प्रेरणा के अधीन हूँ। निरक्षर को शिक्षा देना व अध्यात्म के प्रति जागरूक करना है इसलिए 15 वर्षों से शिक्षिका हूँ। जीवन का उद्देश समाज सेवा एवं अध्यात्म सेवा है इसी को मै अपना परमसौभाग्य मानती हूँ।

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