गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (सातवाँ और आठवाँ अध्याय)
“आत्म-स्वरूप स्थिति”
The Great Geeta Episode No• 041
परमात्मा को मनुष्य क्यों नहीं जान पाते ?
अर्जुन फिर प्रशन पूछता है कि परमात्मा को मनुष्य क्यों नहीं जान पाते ?
भगवान उत्तर देते हुए कहते हैं कि संसार के सम्पूर्ण प्राणि इच्छा अर्थात् राग, द्वेष, द्वंद्व आदि से उत्पन्न, मोह से ग्रस्त हैं, इसलिए वे मुझे नहीं जान पाते ?
बुद्धिहीन मनुष्य मुझ अव्यक्त्त पुरूष परमात्मा का असली रूप नहीं जानते ! अब परमात्मा अर्जुन के सामने अपना स्वरूप स्पष्ट करते हैं , क्योंकि अभी तक भी उसने उसके वास्तविक स्वरूप को पहचाना नहीं है ! वो साधारण स्वरूप श्रीकृष्ण को दोस्त के रूप में ही देख रहा है !
इसलिए परमात्मा कहते हैं कि बुद्धिहीन मनुष्य मुझ अव्यक्त्त पुरूष को , व्यक्त्त भाव प्राप्त हुआ मानते हैं ! वह मुझ अजन्मा, अविनाशी, सर्वोच्च को नहीं जानते क्योंकि मैं सबके सामने प्रत्यक्ष नहीं होता हूँ !
मैं इनके तीनों कालों को जानता हूँ अर्थात् श्रीकृष्ण के तीनों कालों को जानता हूँ ! यह सब बोलने वाला कौन है ? इसलिए चौथे अध्याय में भी जब परमात्मा ने अपना स्वरूप स्पष्ट किया, उस समय यही कहा कि मैं अजन्मा हूँ, अव्यक्त्त हूँ अर्थात् मेरा कोई शरीर नहीं है, मैं पुनर्जन्म के चक्र में नहीं आता हूँ और पुनः सातवें अध्याय में भगवान कहते हैं ! मुझ अव्यक्त्त पुरूष को व्यक्त्त समझ लेना, ये मनुष्य का काम है ! वो मुझ अजन्मा, अविनाशी , सर्वोच्च को नहीं जानते हैं ! क्योंकि मैं सबके सामने प्रत्यक्ष नहीं होता हूँ ! मैं इनके तीनों कालों को जानता हूँ कि ये किस-किस स्वरूप में संसार में आते हैं !
तब अर्जुन के मन में जागृति आयी ! यहाँ पर अर्जुन अर्थात् ज्ञान को अर्जित करने वाला जिज्ञासु को दर्शया गया है !
परमात्मा को कौन जान पाते हैं ?
🌷 अर्जुन फिर प्रशन पूछता है कि परमात्मा को कौन जान पाते हैं ? (अर्जुन अर्थात् जिज्ञासु)
तब भगवान कहते हैं जो पुण्यकर्म करने वाले हैं , जिनके पाप नष्ट हो गए हैं ! जो राग-द्वेष द्वंद्व आदि के मोह से मुक्त्त होकर अपने व्रत में दृढ़ रहकर मुझमें अपने मन को एकाग्र करते हैं ! वो अन्त में सम्पूर्ण अध्यात्म , दिव्य कर्म , भौतिक जगत , देवता और यज्ञ की विधियों का नियंत्रक ( Controller ) मुझे जान जाते हैं अर्थात् मेरे सम्पूर्ण स्वरूप को समझ पाते हैं !
✨ गीता का भगवान कौन परमपिता शिव या श्रीकृष्ण ? ? ?
👤 अर्जुन फिर एक बहुत सुन्दर प्रशन भगवान से पूछता है कि मृत्यु के समय “ आत्म संयम ” द्वारा अपने आपको कैसे जान सकते हैं ?
💥 निराकार भगवान हम आत्माओं अर्थात् अर्जुनों को कहते हैं कि जिसने जीवन भर जो अभ्यास किया हो उसे अन्तकाल में वही स्मृति आती है , वही बातें याद आती हैं और जो अन्तकाल में मेरी स्मृति में रहकर देह त्याग करता है , वह मेरे सानिध्य में आ जाता है अर्थात् मुझे प्राप्त होता है !
इसलिए विशेष करके जब लोग अन्तिम घड़ियों में होते हैं अर्थात् शरीर छोड़ने पर होते हैं तो लोग उन्हें गीता को सुनाते हैं ताकि दो वचन भी उनके कानों में जायें और वो परमात्मा की स्मृति अर्थात् याद में देह त्यागें ताकि वो परमात्मा के सानिध्य में जायें ! लेकिन….?
जिस व्यक्त्ति ने जीवन भर परमात्मा का नाम नहीं लिया हो उसके कानों के पास कोई बैठकर गीता पढ़े भी या भगवान की स्मृति दिलाये भी , तो भी क्या वो स्मृति उसको आयेगी…..?? क्योंकि किसी भी चीज़ की स्मृति तभी आती है जब निरन्तर अभ्यास किया हुआ होता है ! इसलिए तो बचपन से लेकर बच्चों में कई संस्कार डाले जाते हैं !
भगवान के सामने ले जायेंगे और कहेंगे हाथ जोड़ो , जय-जय करो , नमस्ते करो तो ये संस्कार डालने की बात है ! अगर बचपन से ही ये संस्कार उसके अन्दर आ गये तो फिर बड़े होकर भी ये संस्कार बने रहेंगे ! क्योंकि स्वयं भगवान ने ये गीता में कहा है कि जो अन्तिम समय शरीर छोड़ते वक्त्त मेरी स्मृति में रहकर देहत्याग करता है , वह मेरे सानिध्य में आ जाते है !
इसलिए हे अर्जुन ! तुम हर समय मेरी स्मृति में रहकर युद्ध करो यानि संघर्ष करो ! जीवन एक संघर्ष है , कहते भी हैं ना ” Life is Struggle ” हर वक्त्त इंसान को युद्ध करते रहना पड़ता है ! कभी कौन-सी चीजों से युद्ध करना है , कभी कौन- सी- परिस्थितयों से युद्ध करना है , कभी समस्याओं से युद्ध करना पड़ता है लेकिन हर वक्त्त संघर्ष करते भी अगर परमात्मा की स्मृति को कायम बना ले तो अन्त मति सो गति हो जाएगी लेकिन काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार ये दुर्जेय शत्रु हैं !
ये दिर्जय शत्रु परमात्म स्मृति में रहने नहीं देंगे ! उसी समय माया की भी बाधा के रूप में प्रत्यक्ष उदभव ( Origin ) होती है ! लेकिन फिर भी जो निरन्तर इस अभ्यास में रहते हुए स्मृति स्वरूप बनते हुए हर कर्म करता है , वो परमात्मा के सानिध्य में जा सकता है !
फिर भगवान अर्जुन को बतलाते हैं कि हे अर्जुन ! मैं सर्वज्ञ हूँ अर्थात् मैं सब कुछ जानता हूँ , ज्ञाता हूँ , अनादि नियंता हूँ , सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म , सबका अधारमूर्त , दिव्य प्रकाश स्वरूप , अशरीरी हूँ ! जो श्रीकृष्ण के रूप में अर्जुन देख रहा था , वह परमात्मा नहीं था ! इसलिए परमात्मा पुनः अपना स्वरूप स्पष्ट करते हैं कि हे अर्जुन ! मैं सर्वज्ञ हूँ , सब कुछ जानने वाला हूँ , तभी तो कहा कि महाभारत के युद्ध के पहले स्वयं श्रीकृष्ण ने भी थानेश्वर की पूजा की !
आज भी कुरूक्षेत्र के मैंदान में चले जाओ वहाँ थानेश्वर का मन्दिर है , शिव का मन्दिर है जहाँ दिखाते हैं कि स्वयं श्रीकृष्ण ने भी पूजा की और पांडवों से भी करायी !
वृंदावन चले जाओ वहाँ गोपेश्वर का मन्दिर है ! जहाँ दिखाते हैं कि बचपन से ही श्रीकृष्ण ने गोपों के साथ मिल करके शिव की पूजा की ! वो परमात्मा शिव है जिस की पूजा देवताओं ने भी की ! रामेश्वरम् में श्रीराम ने भी शिव की पूजा की क्योंकि रावण से युद्ध करना था !
रावण जिसको अपनी शक्त्ति पर इतना घमंड था वह ऐसे ही घमंड नहीं कर रहा था कि मुझे कोई हरा नहीं सकता ! इसलिए स्वयं श्रीराम ने भी सबसे पहले शिव की पूजा की , उसके बाद रावण के साथ युद्ध करके उसके विजय हुए ! अगर वो महादेव * की शक्त्ति को प्राप्त नहीं करते तो रावण के ऊपर विजय प्राप्त करना असंभव हो जाता !
इसलिए उनको कहा जाता है- ” देवों के देव महादेव ” और महादेव अपना रूप स्पष्ट करते हैं कि हे अर्जुन ! मैं सर्वज्ञ आनिद सत्या नियंता , सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म , सबका आधारमूर्त , नित्य दिव्य प्रकाश स्वरूप अशरीरी हूँ , मुझे अपना कोई शरीर नहीं है ! मैं अशरीरी हूँ ! तब अर्जुन के सामने यह बात पुनः आती है , ध्यान अर्थात् परमात्मा के उस निराकार , अशरीरी रूप में मन को स्थिर करना है !
*👉 यहाँ महादेव अर्थात् निराकार शिव परमात्मा ना कि शंकर , शंकर तो अकारी देवता है ! शास्त्रों में भी और जब कहीं पूजा भी होती हैं तो कहा जाता है कि विष्णु देवता नमः , ब्रह्या देवता नमः , शंकर देवता नमः और ” शिव परमात्मा नमः ” ! इससे सिद्ध होता है कि शिव अलग है और शंकर अलग है ! शिव परमात्मा है कल्याणकारी और शंकर अकारी देवता है विनाशकारी ! और
☝ ऊपर जो वर्णन किया गया वो भी यही सिद्ध करता है कि गीता का भगवान शिव है ना कि श्रीकृष्ण .....