गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (तीसरा और चौथा अध्याय)
“स्वधर्म, सुख का आधार”
The Great Geeta Episode No• 025
आज जब भी कोई व्यक्त्ति यज्ञ करता है तो किस लिए करता है ?
यज्ञ किया जाता है , शुद्धुिकरण के लिए !
यदि नया घर लिया है , तो नया घर लेते ही हम वहाँ पर रहने जाने से पहले यज्ञ करते अर्थात् हवन करते हैं , ताकि वहाँ वातावरण का शुद्धिकरण हो जाये , इसी भाव से यज्ञ किया जाता है !
तो यज्ञ की प्रकिया ही कर्म है ! उसमें हमेशा तीन चीज़ों की आहूति डाली जाती है ! जौ , तिल और घी !
लेकिन आज न जाने संसार में कितने यज्ञ हो गये ? कितने जौ , तिल और घी को हमने स्वाहा कर दिया होगा ?
फिर भी संसार में शुद्धिकरण नहीं हुआ क्योंकि स्थूल प्रक्रिया को हम अपनाते गए हैं , उसके सूक्ष्म भावार्थ को हमने कभी समझा नहीं !
“जौ” लम्बा होता है, ये तन का प्रतीक है !
” तिल ” सूक्ष्म होता है , जो कि मन का प्रतीक है !
“घी “तरल होता है ,जो कि घन का प्रतीक है !
मनुष्य-जीवन का अगर अशुद्धिकरण हुआ है , तो उसके ये तीन कारण हैं !
उदाहरण के लिये आज जैसे किसी के जीवन में टेंशन आया उसकी शान्ति नष्ट हो गयी , संगदोष में वो आ गया संग ने कहा अरे ! शराब पी लो , सब ठीक हो जायेगा ! तेरा टेंशन दूर हो जायेगा ! वह व्यक्त्ति शराब पीता है ! शराब पीने के बाद , ये पहली प्रक्रिया शुरू हुई अशुद्धिकरण की ! और अब दूसरे दिन जैसे ही कोई मन की परेशानी बढ़ती है वो सोचता है कि थोड़ी सी शराब पी लेता तो मूड अच्छा हो जायेगा ! अर्थात् मन गया कहाँ ? अशुद्धि के मार्ग पर !
जैसे ही मन गया तो वहाँ से उठकर या चलकर वह शराब की दुकान तक जाता है ! तो उसका तन गया अशुद्धि के मार्ग पर !
जैसे ही तन गया उसके बाद , पैसा देकर शराब खरीदता है , तो धन भी गया और जीवन में अशुद्धियाँ आने लगी !
उसके 3 कारण हैं, पहले मन जाता है फिर तन जाता है और फिर धन जाता है ! इसी के आधार पर जीवन में अशुद्धि आई !
इसलिए इस अशुद्धि को खत्म करने के लिए व शुद्धिकरण की प्रक्रिया के लिए वास्तव में मन के विचारों को शुद्ध बनाओ !
अपने तन को हमेशा सही रास्ते पर ले जाओ और अपने धन को हमेशा सतकार्य में सफल करो , तब शुद्धिकरण की प्रक्रिया होगी ! इस भाव को किसी ने समझा नहीं और इस तरीके से शुद्धिकरण करना नहीं आया !
तो तन के प्रतीक के रूप में जौ ( छिलके वाला होता है ) को स्वाहा कर दिया !
ये छिलका है इतना बड़ा आत्मा के ऊपर चढ़ा हुआ उसको स्वाहा कर दिया , तिल और धी को स्वाहा कर दिया और सोचते हैं कि शुद्धिकरण हो गया !
भावार्थ को हमने कभी समझा ही नहीं ! यह यज्ञ ही हमारा जीवन है , इसलिए तीनों को शुद्ध करने की आवश्यकता होती है !
इसलिए भगवान ने सबसे पहले, कर्मयोग के विषय मे यही कहा कि संगदोष से बचो रहो क्योंकि आज की दुनिया में अशुद्धि के मार्ग पर ले जाने वाला संग ही होता है !
तब कहा कि यज्ञ की प्रक्रिया ही कर्म है, उससे यज्ञ पूर्ण होता है ! इससे जीवन सम्पूर्ण होता है ! इसके अतिरिक्त्त कुछ भी करते हैं वह बन्धन है, वो आत्मा को बांधने वाले कर्म हैं !
यज्ञ पूर्ति के लिए, फिर से कहा कि संग-दोष से अलग रहकर कर्म को आचरण करो !