गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)
The Great Geeta Episode No• 016
कई बार हम देखते हैं कि किसी दो व्यक्त्ति की आपस में बुहत अच्छी दोस्ती होती है !
कुछ समय बाद देखो तो वह दोस्ती टूट जाती है और वे एक दुसरे से दूर हो जाते हैं !
अगर उनसे पूछा जाए कि आप दोनों में तो बुहत दोस्ती थी क्या हुआ ?
कहेंगे कि हमें बाद में पता चला कि ये व्यक्ति अन्दर से कुछ और बाहर से कुछ और था !
बाहर से बड़ी सफाई वाली बातें कर रहा था लेकिन अन्दर से उसका मन मैला था !
उसकी भावनाओं में शुद्धि नहीं थी, उसके विचारों में शुद्धि नहीं थी , उसके व्यवहार में शुद्धि नहीं थी इसलिए हमें अच्छा नहीं लगा और हम उससे दूर हो गये !
इंसान को अच्छा कहाँ लगता है ? जहाँ विचारों की शुद्धि हो , व्यवहार की शुद्धि हो ! आज यही पवित्रता जीवन में क्यों चाहिए ?
एक बच्चा जब जन्म लेता है तो कितना पवित्र और मासूम होता है यही उसकी वास्तविकता है !
जितना हम जीवन में पवित्र भावनाओं को प्रवाहित करते हैं , उतना ही आत्मा को तेज ( Aura) बढ़ता है !
लेकिन जहाँ अहंकार हो ,अशुद्ध भावनायें हों उस सम्बन्ध में कभी भी निःस्वार्थ प्रेम पनप नहीं सकता है !
आज हरेक को जीवन में क्या चाहिए ? प्रेम चाहिए ! एक बच्चे को भी प्यार चाहिए !
बड़े बुज़ुर्ग के साथ यदि कोई प्यार से व्यवहार करता है तो उन्हें भी अच्छा लगता है !
ये नहीं कि बड़े बुज़ुर्ग ने सारा जीवन बुहत प्यार पाया है ! बुढ़ापे में अगर प्यार नहीं भी मिला तो चलेगा, नहीं !
हर इंसान को प्यार चाहिए और वो भी निःस्वार्थ प्यार चाहिए ! निःस्वार्थ प्यार कैसे सम्बन्धों में पनप सकता है ?
जब आपसी समझ हो , पवित्र भावनायें हों , तब निःस्वार्थ प्रेम प्रवाहित होता है !
आज कैसी विडम्बना है कि हर मनुष्य प्यार चाहता है ! लेकिन कोई प्यार से बात करता है तो उसे टेंशन होने लगती है कि ये व्यक्त्ति इतने प्यार से क्यों बोल रहा है ?
क्या चाहिए इसे ? अर्थात् वह स्वयं को रिलैक्स ( Relax ) महसूस नहीं करता है , चाहिए उसको भी प्रेम ! जहाँ ये 7 गुण हैं वही ‘ आत्मशक्त्ति’ का अनुभव होता है !
क्योंकि ये 7 गुण नहीं बल्कि 7 शक्त्तियां हैं ! ज्ञान की शक्त्ति , पवित्रता की शक्त्ति , प्रेम की शक्त्ति , शान्ति की शक्त्ति ये सब शक्त्तियां हैं !
दूसरे शब्दों में कहें तो यही आत्मा का स्वधर्म है
Thanks for sharing true knowledge about soul.