

बहुत अलौकिक है दिवाली का पर्व, इस दिन का आध्यात्मिक महत्व समझे बिना नहीं कर पायेंगे अपने आत्मा की शुद्धि
दीपावली भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। रोशनी और खुशियों का प्रतीक ये पर्व हमारे जीवन में सत्य, धर्म और आत्मज्ञान के प्रकाश को प्रकट करता है। इसके अलावा इस पर्व के कई और आध्यात्मिक पहलू भी हैं, जिन्हें जानकर आप इस पर्व को और बेहतर तरीके से समझ और मना पाएंगे। तो चलिए समझते हैं ये आध्यात्मिक रहस्य… दीवाली को दीपों का पर्व माना जाता है, जो अज्ञानता और नकारात्मकता के अंधकार को दूर करने का प्रतीक है

दीपावली पर घर की सफाई बाहरी के साथ-साथ आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है, जो आत्मा की पवित्रता को दर्शाता है।
माता लक्ष्मी की पूजा केवल भौतिक धन के लिए नहीं, बल्कि आत्मिक समृद्धि और आंतरिक शांति के लिए भी की जाती है।
इस साल दीवाली को आध्यात्मिक पहलू से जोड़कर, दीयों के साथ-साथ अपने भीतर की रोशनी को भी जगाने की प्रेरणा मिलती है।
दिवाली यानि दीयों की रोशनी से भरपूर माहौल, लक्ष्मी पूजा और ढेर सारी खुशियाँ। दीवाली पर्व भले ही ऊपर से देखने में साधारण लगता हो लेकिन यह खुद में कई आध्यात्मिक महत्ताओं को समेटे हुए है। यह वही दिन है जब राम लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे और यह वही दिन है जब नचिकेता यमराज से ज्ञान लेकर पृथ्वी पर वापस आया था। इस तरह से देखें, तो यह दिन कई सारी महत्वपूर्ण घटनाओं को समेटे हुए है, जो किसी न किसी बात का प्रतीक है। तो, चलिए समझते हैं दीवाली को आध्यात्मिक नजरिये से और इन प्रतीकों के माध्यम से…

आत्मा की शुद्धि
दीपावली पर घर की सफाई विशेष महत्व है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यह बाहरी सफाई हमारी आंतरिक शुद्धि का प्रतीक है यानि हमारे मन और आत्मा की शुद्धि। बुराईया ईर्षा द्वेष की शुद्धि ।इस शुद्धि के बिना हम उच्चतम आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त नहीं कर सकते हैं। यह पर्व हमें आत्मा की शुद्धि और पवित्रता का संदेश देता है।

लक्ष्मी पूजन
दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो धन, समृद्धि और सुख-शांति की देवी हैं। कई लोग सोचते हैं कि लक्ष्मी पूजन केवल भौतिक धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। यह पूजन माता लक्ष्मी से आत्मिक समृद्धि और आंतरिक शांति के लिए भी किया जाता है, जो असली धन है। लक्ष्मी पूजन हमें यह सिखाता है कि सच्ची समृद्धि और शांति केवल भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और संतोष में समाहित है।
अंहकार और बुराई का नाश
दीवाली में दीये जलाने की प्रथा की शुरुआत तब हुई थी जब भगवान् राम लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापस लौटे थे। यह कथा दीवाली का मूल है, जो हमें यह सिखाती है कि अहंकार, अधर्म और बुराई का अंत सुनिश्चित है और सत्य, धर्म और अच्छाई की हमेशा जीत होती है।
मिट्टी का दिया माना मिट्टी का शरीर और उसमें आत्मारूपी बाती को जलाने के लिए घी या तेल के रूप में परमात्मा का ज्ञान चाहिए, जिससे वो आत्मा हमेशा जागृत रहेगी और अपने प्यार, शांति और खुशी के ओरिजिनल संस्कारो से अपने आस पास की आत्माओं को भी जागृत कर देगी। इसलिए जब भी जीवन में कोई भी तूफान आए और हमारे दिए की लौ थोड़ा टिमटिमाने लगे तो, हमें तुरंत कुछ क्षण रुक कर परमात्मा की याद में, उनके ज्ञान का घी डालकर अपनी लौ को वापस तेज कर देना है।
दीपावली ज्ञान रूपी प्रकाश द्वारा अज्ञान रूपी अंधकार को समाप्त करने का उत्सव है। आईये! दीपावली में सुदर्शन क्रिया का ज्ञान रूपी दीपक जलायें और स्वास्थ्य, आनंद एवं समृद्धि पायें।
तेल के दीपक को प्रज्ज्वलित करने के लिए बत्ती को तेल में डुबाना पड़ता है, परन्तु यदि बत्ती पूरी तरह से तेल में डूबी रहे तो यह जल कर प्रकाश नहीं दे पाएगी, इसलिए उसे थोड़ा सा बाहर निकाल के रखते हैं। हमारा जीवन भी दीपक के इसी बत्ती के सामान है, हमें भी इस संसार में रहना है फिर भी इससे अछूता रहना पड़ेगा। यदि हम संसार की भौतिकता में ही डूबे रहेंगे तो हम अपने जीवन में सच्चा आनंद और ज्ञान नहीं ला पाएंगे। संसार में रहते हुए भी, इसके सांसारिक पक्षों में न डूबने से हम, आनंद एवं ज्ञान के द्योतक बन सकते हैं।
जीवन में ज्ञान के प्रकाश का स्मरण कराने के लिए ही “दिवाली” मनाई जाती है। “दिवाली” केवल घरों को सजाने के लिए नहीं, बल्कि जीवन के इस गूढ़ रहस्य को उजागर/संप्रेषित करने के लिए भी मनाई जाती है। हर दिल में ज्ञान और प्रेम का दीपक जलाएं और हर एक के चेहरे पर मुस्कान की आभा लायें..

स्वास्तिक क्यों बनाते हैं?
दीपावली पर्व से जुड़ी विशेष रीतियों के बारे में जानने की श्रृंखला में हमने जाना कि, कैसे “दिया” माना देने वाली आत्मा, जिसकी ज्योत जगी हुई है, वह भरपूर है, उसे किसी से कुछ नहीं चाहिए यानि जीवन में सब शुभ ही शुभ है।
आइए, अब दीपावली पर्व वा अन्य पूजन की शुभ शुरुआत करते हुए बनाए जाने वाले “स्वास्तिक चिन्ह“ के आध्यात्मिक महत्व को समझते हैं। हम सभी दीपावली के दिन स्वास्तिक बनाते हैं और श्री लक्ष्मी जी का आह्वान और गणेश-लक्ष्मी का पूजन करते हैं।
स्वास्तिक चिन्ह का रियल अर्थ
स्वास्तिक का सही आध्यात्मिक अर्थ है अस्तित्व, जो कि शुभ आत्मा की यात्रा को दर्शाता है। स्वास्तिक की चार भुजाएं चार युगों के बारे में बताती हैं कि, पहले आत्मा कहां थी, अभी कहां है और आगे कहां जाना है। तो अगर हम देखें तो स्वास्तिक का पहला भाग एक होराइजंटल लाइन है जो देने का भाव दर्शाती है जैसे हाथ देने की मुद्रा में होते हैं। यह सतयुग को रिप्रेजेंट करता है जिसे हम स्वर्ग, पैराडाइज, जन्नत, बहिश्त आदि नामों से भी जानते हैं। इस युग में सभी आत्माएं भरपूर थी, उनकी ज्योत जगी हुई थी, वह सबको दुआएं देने वाली थी।
सतयुग के बाद आता है त्रेता युग; जिसमें स्वास्तिक की रेखा नीचे की ओर जाती है जिसका अर्थ है, आत्मा की शक्ति थोड़ी थोड़ी कम होना शुरू हो गई है।
उसके बाद द्वापर युग में, स्वास्तिक की रेखा वा हाथ का आकार मांगने की मुद्रा में आ गया, जिसमें आत्मा भूल गई कि वह भरपूर है। वह जो सब को देने वाली आत्मा थी, अब उसने दूसरों से मांगना शुरू कर दिया है।
और आखिर में कलयुग माना; जब मांगने के बाद भी नहीं मिला तो, स्वास्तिक का हाथ ऊपर की ओर चला जाता है यानि मारने की मुद्रा में आ जाता है तब शुरू होता है कलह क्लेश का युग।
इस तरह से हमने स्वास्तिक के सही अर्थ को समझा और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि, आज घोर कलयुग व अंधकार का समय चल रहा है।
आइए, दीपावली की इन शुभ घड़ियों में मिठाईयां बनाने, खाने और खिलाने के रियल अर्थ को समझते हैं
मिठाई अर्थात मीठे बोल दीपावली के स्नेह मिलन के समय परिवार के हर सदस्य का मुख मिठाई से मीठा किया जाता है। दीपावली में मिठाई खिलाना इतना जरूरी क्यों होता है? यह किस बात को दर्शाता है? मिठाई का यथार्थ अर्थ है मीठे बोल।
वह बोल जिनमे सुख, सम्मान और स्नेह की मिठास हो। जिससे हमारा और सामने वाले का मन मीठा हो जाए। तो इस दीपावली क्यों नहीं किसी की भी गलती पर भी उन्हें प्यार से समझाएं? लेकिन चेक करें कभी कभी मीठे शब्दों के पीछे कमेंट या टॉन्ट करने की नेगेटिव एनर्जी होती है जो सामने वाले को दुखी कर देती है। इसलिए मिठाई खिलाने के साथ साथ सबके लिए दिल से, मन से मीठे बोल बोलें। ओर दीपावली की मिठाई है।
दीपावली में गिफ्ट देने का महत्व दीपावली के इस प्यारे से त्यौहार पर हम घर की सफाई के साथ साथ मन की सफाई करते हैं, नए समान लाने के साथ साथ, नए संस्कार भी खुद में धारण करते हैं और इसके साथ ही दीपावली में बड़े प्यार और भावना से एक दूसरे को गिफ्ट भी देते हैं।

दीपावली पर गिफ्ट देने की रस्म क्यों है?
दीपावली पर गिफ्ट देना प्यार से भरपूर सात्विक भाव को दर्शाता है जिसके द्वारा हम अपनी शुभ भावनाएं और शुभ कामनाएं दुआओं के रूप में देते हैं। भावनाओं को दर्शाने के लिए हमने बड़े प्यार से, चाव से स्थूल गिफ्ट का भी लेन देन करते हैं जिसमें प्यार और स्नेह की मिठास और अपनेपन की भावना होती है। और यह हम सब का अनुभव है के यह दिल की भावना ही हर गिफ्ट को सुन्दर और विशेष बनती है।
परन्तु कई बार ना चाहते हुए भी हमारा ध्यान गिफ्ट के रूप में स्नेह भरे प्रेम की भावना के बदले गिफ्ट के प्राइज और उसके साइज की तरफ चला जाता है जिसके कारण वह गिफ्ट प्रेम का नहीं परन्तु मजबूरी का भाव उत्पन करता है।
इस दीपावली करें एक नई पहल —
आइए इस दीपावली किसी स्थूल चीजों का लेन देन न करके केवल दिल की शुभभावनाओ का आदान प्रदान कर एक प्यारी और मीठी सी शुरुआत करें और ये केवल किसी विशेष दिन नहीं बल्कि सदा के लिए हो। भले ही किसी का व्यवहार कैसा भी हो, पर हमारे दिल में उनके लिए दुआएं और शुभ कामनाएं हों। क्योंकि सबसे पहले यह भाव हमारे दिल को छूकर सामने वाले के दिल तक पहुंचते हैं और साथ ही पूरे वायुमंडल में भी प्यार के प्रकंपन फैलाते हैं। आएं इस सुंदर अहसास के साथ सही मायने में सच्ची सच्ची दीपावली मनाएं।
हम सभी अपने रिश्तों से बहुत सारी चाहनाएँ और एक्सपेक्टेशन रखते हैं जैसेकि; प्यार चाहिए, सम्मान चाहिए, शांति चाहिए, विश्वास चाहिए, आशाएँ पूरी होनी चाहिए, हर रिश्ते में हर किसी को कुछ ना कुछ चाहिए, लेकिन हम कभी भी देने की बात नहीं सोचते, तो अगर हर किसी को हर किसी से कुछ न कुछ चाहिए तो हम सभी लेने वालों की लाइन में खड़े हैं जिसमे कभी मिलेगा और कभी नहीं मिलेगा, इसलिए सबसे जरूरी बात है कि, हमें दूसरों पर डिपेंडेंट नहीं रहना है। और इसके लिए हर एक घर में एक दिया अर्थात दीपक चाहिए जो सबको देने वाला हो।
दीपावली का पर्व पूरा परिवार मिल जुलकर मनाता है। यह पर्व हमें सामूहिकता, समर्पण और सहयोग का महत्व सिखाता है। आध्यात्मिक रूप से यह पर्व हमें आत्मज्ञान, शुद्धि, समृद्धि और धर्म का संदेश देता है। यह पर्व हमें अपने जीवन में सत्य, ज्ञान और प्रकाश को जलाए रखने की प्रेरणा देता है। तो, इस साल दिवाली को अपने आध्यात्मिक पहलू से अवश्य जोड़ें और दीयों के साथ-साथ खुद को भी रोशन करें।
🪔शुभ दीपावली🪔