देवताये परफेक्ट थे मनुष्य डिफेक्टेड है। देवताये रामराज्य मे थे । मनुष्य रावणराज्य मे है। देवताये स्वर्गवासी थे । मनुष्य नर्कवासी है। देवताओ के लिए यह जहान जन्नत था।
मनुष्य के लिए जहनम बन गया है। देवताये परिस्तान मे थे । मनुष्य कब्रस्तान मे है। देवताये हेविन के रहवासी थे। मनुष्य हेल मे पडे है। देवताये फूलो के बगीचे मे रहनेवाले थे। मनुष्य कांटो के जंगल मे रहते है।
देवताये पूरी आयु भोगते, मनुष्य अकाले मृत्यु को पाते। देवताओ मे आत्मभाव था। मनुष्य मे देह भाव बढ गया है। देवताये मीठे और शांत थे।
मनुष्य कडुवे और अशांत क्रोधी बन जाते। देवताओ के मधुर बोल जैसे मोती फूल कि तरह होते थे। मनुष्य के कडुवे बोल जैसे कंकड कांटे कि तरह होते है। देवताये सदैव सुखदायी थे। मनुष्य बिलकुल दुःखदायी बन गये।
देवताये क्षीर सागर मे रहते। मनुष्य विषय सागर मे गोते लगाते। देवताये पवित्र कमल पुष्प समान रहते। मनुष्य अपवित्र कादवकीचड मे फँसे रहते। देवताये सतयुगी थे। मनुष्य कलियुगी है। देवताये सर्वगुणसंपन्न थे ।
मनुष्य गाते कि मुज र्निगुण हारे मे कोई गुण नाही । देवताये हंस समान मोती चुगनेवाले थे। मनुष्य बगुले समान गंद खानेवाले बन गये।
देवताओ मे आपस मे रुहानी प्यार था। मनुष्यो का आपस मे जिस्मानी प्यार है। देवताओ के सुख के संबंध थे । मनुष्यो के दुःख के बंधन हो गये।
सतयुग मे देवताये सूर्यवंशी घराने के थे, कलियुग मे मनुष्य शुद्रवंशी घराने के बने है। सतयुग मे देवताये दैवी फेमिली मे थे। कलियुग मे मनुष्य आसुरी फेमिली मे है। देवताये सुखधाम मे हुआ करते थे। मनुष्य दुःखधाम मे आ गये है।
देवताये न ई दुनिया मे रहते थे, मनुष्य पुरानी दुनिया रहते है। देवताये हर्षितमुख खिले हुए फूल समान देखने मे आते। मनुष्य उदास मुरजाये हुए फूल कि तरह दिखाई पडते।
देवताये स्वच्छ थे । मनुष्य मलेच्छ बन गये है। देवताये सदा खुशी मे रहते थे। मनुष्य कभी खुशी कभी गम मे आते। देवताये ज्ञान कि प्रालब्ध सुख भोगते मनुष्य भक्ति प्रालब्ध अल्पकाल सुख भोगते।देवताये सुखकर्ता दुःखहर्ता का पार्ट बजाते। मनुष्य दुःखकर्ता सुखहर्ता का पार्ट बजाते।
देवताये नारायण आदि पुरुष के ओष्ठ मे स्थान पाये। मनुष्य जो शुद्र बने वो पाँव मे स्थान पाये। देवताये ट्रस्टी थे मनुष्य गृहस्थी बन गये। देवताये र्निबंधन स्वतंत्र थे।
मनुष्य पाँचविकारो के बंधन मे परतंत्र बने। देवताये पवित्रता के कारण पूजनीय बने।मनुष्य अपवित्रता के कारण पूजनेवाले बने। देवताये पूर्ण देवता पद के लायक बने।
मनुष्य विकारो के संग से न लायक बन पडे। देवताये निष्कामी निस्वार्थ निरंकारी निर्विकारी थे। मनुष्य कामनायुक्त स्वार्थी देह अहंकारी विकारी बन गये।
देवताये प्रकृतिजीत मायाजीत थे। मनुष्य प्रकृति और माया के वश है। देवताये आदिसनातन देवीदेवता धर्मवाले थे। पवित्र न होने के कारण मनुष्य अपने को हिँदु धर्म के कह देते।
आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना स्वयं निराकार शिव परमात्मा ने की। मनुष्य को हिँदु धर्म के स्थापक का पता नही।