शिवलिंग पर बैर, धतूर, आंक का फूल इत्यादि क्यू चढ़ाए जाते है ?

शिवलिंग पर बैर, धतूर, आंक का फूल इत्यादि क्यू चढ़ाए जाते है ?

जानिए आध्यात्मिक रहस्य

परमात्मा शिव पर यथार्थ रूप से क्या चढ़ाना चाहिए और किस प्रकार के व्रत का पालन करना चाहिए इस बात के आध्यात्मिक रहस्य को समझने की आवश्यकता है। तभी स्वयं का और विश्व का जनकल्याण सम्भव है।

जनमानस की यह मान्यता है कि शिव में सृजन ओर संहार की क्षमता है उनकी मान्यता है शिव आशुतोष है अर्थात् जल्दी ही ओर सहज प्रसन्न हो जाने वाले।इसलिए उनका नाम हम मनुष्यों ने रख दिया है भोले बाबा। अर्थात् जिसे आसानी से मनाया जा सके। और उनका ये नाम दे के मनुष्यों ने उनके भोलेपन की छाँव में अपनी मनमानी करनी शुरू कर दी।

मनुष्य के लिए कहा जाता है की वर्तमान समय मनुष्य बहुत की आलसी प्रवृति का हो गया है। परंतु भगवान भी भोले बन कर हम मनुष्यों की चालकियो को निहारते है और मन ही मन मुस्कुराते है की मैंने क्या माँगा और मेरे आलसी बच्चों ने मुझे क्या दिया…
तो ….यह जानने से पहले की शिव जी पर आंक ,धतूरा, बेर इत्यादि क्यू चढ़ाते है। आपको एक अनुभव बताना चाहती हूँ..

की..हर मनुष्य का कोई न कोई इष्ट देवी या देवता होते ही है जिनका वह अनुसरण करते है। मनुष्य का जब जन्म होता है एवं वह समझने योग्य हो जाता है तब एक बालअवस्था से ही या बाल रूप में ही उसकी आस्था किसी ना किसी देवी या देवता में ज़रूर होती है।

एक परिवार के ही सदस्य अलग-अलग देवी देवताओं में भावना रखते है। कोई गणेश जी कोई देवी जी कोई श्री श्याम तो कोई साईं राम..में आस्था रखता है। मेरी आस्था छोटी उम्र से ही शिव जी में बहुत थी.. मुझे भगवान से बातें करना बहुत अच्छा लगता था। जब भी कोई बात होती उन्ही के आगे जाकर साझा करती.. ।

और एक अनोखी बात ये थी की जब भी मंदिर जाती तो.. जनमानस शिव जी पर धतूरा ,बेर ,सिंगारा ,बैल पत्र ,आंक के फूल और ना जाने क्या-क्या चढ़ाते पूरी शिव पिंडी भरी होती थी इन सभी चीजों से। मै जाते ही सब ये चीजें शिव से हटा देती उनके चरणो की ओर……..

एवं जल से स्नान करवा कर वही बैठी रहती की यदि कोई फिर से आए ओर फिर धतूरे जेसी काँटों वाली समग्री चड़ाए तो मै उसे हटा दूँ ऐसे लगता की कितना चुभता होगा ना मेरे शिव जी को… ना जाने क्यू ये सभी समग्री चढ़ाने के बजाए मै उन पर से हटा देती थी.. और माफ़ कीजिएगा। मै आज भी यही करती हूँ……

एक कहानी है ” एक बार एक आध्यात्मिक कार्यक्रम के बाद प्रसाद बंटने लगा तो एक बच्चे ने पचास रुपये का नकली नोट प्रसाद की थाली में डाल दिया और कहा- कुछ देकर ही तो प्रसाद लेना चाहिए। उपस्थित लोग उसके इस भोलेपन पर हँस पड़े । प्रसाद बांटने वाले ने कहा- कोई बात नहीं, आज नकली नोट चढ़ाएगा, तो कल असली चढ़ाने की आदत भी पड़ जाएगी।”

हमारी कहानी भी इस बच्चे की तरह ही है । हम भी भगवान पर नकली चीज़ें अर्पण करके शिवरात्रि मना लेने का दावा करते आ रहे हैं। भगवान शिव हमारी इस नादानी को देख-देख मुस्कराते हैं कि कोई बात नहीं, मेरा बच्चा अज्ञानतावश आज ऐसा कर रहा है, पर जब ज्ञान मिल जाएगा तो अवश्य यही असली चीजें भी मुझ पर अर्पण करेगा।

दरसल धतूरा – विकार का, बेर- नफरत घृणा का और बेलपत्र – बुराइयों का प्रतीक है। अतः हमें शिवपिंडी पर विकारों, विषय- वासना एवं बुरी आदतों को चढ़ाना चाहिए अर्थात् त्याग करना चाहिए।

जानिए भगवान ने हमसे क्या माँगा और हम मनुष्यों ने उनको भोला नाम दे के उनके भोले पन का  किस तरह लाभ लिया..

जल

जैसे- एक बार एक बूढ़ी सास ने अपनी बहू को कहा- बेटा, मेरे पाँव में बहुत दर्द होता है, कभी-कभी दबा दिया कर । बहू ने एक दिन पाँव को हाथ में लिया और एक फोटोग्राफर से फोटो खींचवा लिया। उसके बाद उस फोटो को सास के शयनकक्ष में लगा दिया और कहा कि जब- जब आपके पाँव में दर्द हो, आप समझ लेना कि मैं पाँव दबा रही हूँ। कुछ इसी प्रकार की भूल हमसे भी भगवान की भक्ति के संबंध में हो गई । चढ़ावा तो बनावटी हो ही गया, साथ-साथ हमारी स्मृति भी बनावटी हो गई।

भगवान ने कहा था – निरंतर अपना मन मुझमें लगाकर रखना । इससे मन शांत, स्थिर और शक्तिशाली हो जाएगा । हमने इस श्रीमत का भी रूपांतरण कर दिया। शिवपिंडी पर जल से भरा घड़ा लटका दिया। बूंद-बूंद जल शिवलिंग पर चढ़ता रहा और हम खुश हो गए कि मन भगवान पर अर्पित हो रहा है लेकिन वास्तव में मन तो सांसारिक झमेलों में उलझकर अशांत व अस्थिर ही रहा । इस प्रक्रिया से मन शक्तिशाली नहीं बन सका ।

अर्थात् भगवान ने कहा की अपने मन के मैल अर्थात् ईर्ष्या जलसपन, घृणा आदि को मुझ पर अर्पण कर दो। और अपने मन को जल के समान निर्मल कर दो।तो हम मनुष्य ने अपने मन का छल -कपट तो दे न सके बदले में जा कर जल अर्पण कर दिया ।

क्षीर, दधि एवं घृत

हम सभी जानते है की क्षीर अर्थात् गोरस बहुत ही पवित्र माना गया है जिसका ही एक पर्यायवाची शब्द है पीयूष अर्थात् अमृत। तो भगवान ने हमे क्षीर के समान पवित्र बनने को कहा अमृत के समान बनने को तो हम मनुष्य विकारों को त्याग कर अमृत समान तो बन ना सके बल्कि अमृत के समान गोरस एवं उसी से बनी चीजों जो की बहुत पवित्र मानी जाती है ज़ेसे दधि एवं घृत को शिव जी पर चढ़ा आए।

शहद

भगवान ने हमेशा हमको सदगुण धारण कर हमे देवतुल्य बनाए रहने की शिक्षा प्रदान की है इसलिए मनुष्य को सत्संग में जाने की उसे सुनने की प्रेरणा दी जाती है ताकि उसमें सत्गुण आ सके ।भगवान ने हमे कहा कि अपने जीवन को मधु के समान बना लोऔर मुझे अर्पण कर दो सांसारिक उलझनो में ना उलझ कर जीवन को मधुसमान बना कर मुझ पर अर्पण कर दो। अपने जीवन को मीठा बना लो अपने व्यवहार को मधु के समान बना लो ।किंतु हम मनुष्य मधु के समान तो बन ना सके ।और बदले में मधु अर्थात् शहद एवं शकर जैसे मीठे पदार्थ को शिव पर अर्पण कर दिया।

धतूरा

हम सभी जानते है की धतूरा एक फल माना जाता है जो की कड़वा और काँटेदार होता है जिसको हम साधारण मनुष्य थोड़ी देर के लिए भी हाथ में नही रख सकते है। भगवान ने हमे कहा था की ये जो कड़वी और एक दूसरे को तीर चुभाने जैसी बातें है ना।यही सारे विवादों का कारण है उन्होंने कहा की ये कड़वी और काँटों जैसी बोली मुझे अर्पण कर दो बदले में मीठी बोली बोलो सबसे अच्छा बोलो ।कई बार हम कहते है ना की तुमने ऐसे वचन बोले जो मेरे मन में चुभ गए तो अर्थात् ऐसे शब्द जो काँटों के तरह चुभने वाले हो ।इन वचनो को ही शिव जी ने हमसे माँगा था ।

पर हमने सोचा कि अब ये कड़वी काँटों जैसी बातें कैसे दें..हम वो तो दे ना सके मनुष्य ने सोचा क्या किया जाए।तो धतूरे का ख़्याल आया सोचा वो कड़वा भी होता है और काँटेदार भी.. जा कर शिव जी से बोले ये लीजिए अपने कड़वी और कांटेदार भाव अर्पण करने को कहा ये कड़वा भी है और काँटेदारभी..और धतूरा अर्पण कर दिया..
भगवान भी सोच रहे और मुस्कुराकर हमारी नादानियों को निहार रहे। अब आगे ..क्या माँगा भोलेनाथ ने..

बेर

भगवान ने हमसे कहा कि बच्चों ये जो तुम एक दूसरे से वैर भाव रखते हो अर्थात् ईर्ष्या ,द्वेष नफ़रत ,कटुता ये वैर मुझे अर्पण कर दो ।ये विकार और अवगुण की निशानी है बदले में तुम सबका अच्छा सोचो सभी के लिए सदभाव रखो सबका हित के बारे में सोचो कहते है ना करोगे भला तो होगा भी भला..तो बच्चों ये वैरभाव मुझे दे दो।

अब हम मनुष्यों के मन में हलचल होने लगी की इतनी बड़ी चीज हम कैसे दे दें। क्यू की वर्तमान समय। ये भाव सबसे ज़्यादा पाया जाता दिख रहा है मनुष्यों में।बहन -बहन या भाई भाई या दोस्त हो या कोई भी वह व्यक्ति जो हमसे आगे हो या घर में धन संपत्ति या मूल्यवान चीजो को लेकर आज के मनुष्य में वैर भाव ईर्ष्या द्वेष सबसे ज़्यादा दिखाई दे रहा है।

मनुष्य ने सोचा ये तो हम डे नही सकते ।अगर दे दिया तो फिर फिर तो हम भौतिक वस्तुयो को लेके ये भाव तो कभी रख ही नही सकते। अब स्वयं भगवान ने माँगा है तो मना भी नही कर सकते। मनुष्य ने सोचा क्या —किया जाए । तो मानव ने वैर की जगह बेर जा कर चढ़ा दिया ।मानव बोले भगवान जी अपने बोला था न कटुता, वैर ये लीजिए ये अंदर से कटु अर्थात् कठोर भी होता है इसका नाम भी है बेर.. ये हम आपको अर्पण कर रहे है।

भगवान ने हमसे वैर माँगा था हम मनुष्य वैर अर्थात् ईर्ष्या ,द्वेष तो दे ना सके और जा कर खाने वाल बेर फल चढ़ा दिया……

आंक

सभी विकार मनुष्य के तन, मन, संबंध और संसार को कड़वेपन से भर देते हैं। ये विकार ज़हर समान हैं। भगवान ने इस ज़हर को अपने ऊपर अर्पित करवाया था लेकिन भोले भक्तों ने भीतर के ज़हर को तो अर्पित किया नहीं और प्रकृति के एक ज़हर जैसे कड़वे पौधे आक को शिवलिंग पर अर्पित करने लगे। भगवान ने हमसे ये। विकारों रूपी ज़हर माँगा था। ज़हरीली बातों को अपने ऊपर अर्पण करने को कहा था लेकिन हम मनुष्य ज़हर रूपी विकारों ओर ज़हरीली बातें तो दे ना सके सोचा क्या दे ऐसा तो प्रकृति के एक ज़हर जैसे पौधा आंक को शिव पर अर्पित कर दिया…..

बेलपत्र

ईश्वर ने हमसे इन्ही विकारों में से हमारे अंदर की गलत आदत अर्थात् बुराइयों को माँगा की अपने जीवन की हर बुरी आदत को मुझ त्रिलोकीनाथ पर अर्पण कर दो ।बदले में मनुष्य अपने बुराइयों को तो अर्पण कर ना सका ।बल्कि तीन पत्ती वाली बेलपत्र को अर्पण कर दिया…

जंगली पुष्प

घर में यदि कोई साधारण सा मेहमान आ जाए या हम किसी के यहाँ जाएं या कोई विशेष उत्सव या पारिवारिक स्नेह मिलन हो तो हम एक-दो का गुलाब, गेंदा या अन्य खुशबूदार फूलों से स्वागत करते हैं, घर की सजावट में भी इन्हीं फूलों को रखते हैं परंतु शिवलिंग पर झाड़-झंखाड़ में उगने वाले रंग-गंध और मूल्यहीन आक-धतूरे के फूल ही चढ़ाये जाते हैं, ऐसा क्यों? यदि मनुष्य का स्वागत आक और धतूरे के फूलों से किया जाये तो शायद वह जीवन-भर के लिए बोलना ही बंद कर दे लेकिन भगवान को यही फूल पसंद क्यों हैं?

दरसल परमात्मा शिव के सभी प्रकार के भक्त होते है कोई नशा करने वाला कोई धूम्रपान करने वाला अर्थात् जिसकी तुलना गंधहीन व मूल्यहीन पुष्पों से की गई है यही कोई सदगुन एवं धार्मिक एवं सदाचारी जिनकी तुलना गुलाब गेंद आदि फूल से की गई है सभी प्रकार के बच्चों को भोलेनाथ अपने भोले स्वरूप में स्वीकार करते है । उनको सदमार्ग की और अग्रसर होने की प्रेरणा देते है।।इसलिए सभी तरह के पुष्प शिव जी पर चढ़ाए जाते है।

भांग / गंजा नशीली चीजें

इसी प्रकार भगवान ने कहा था कि जाति, कुल, धर्म, भाषा, पद, प्रतिष्ठा, रूप, धन, जवानी, विद्या आदि के सभी नशे अथवा अहंकार मेरे पर चढा देना, यहाँ भी हम मनुष्य मात खा गये। भीतर के नशों को अर्पित करने की बजाय हमने प्रकृति की नशीली चीज़ें जैसे- भांग, गंजा आदि को अर्पित करना शुरू कर दिया।

और सोचने वालीं बात ये है की शिव पर अर्पण करके मनुष्य स्वयं उसका सेवन करने लगा ये कह कर की ये तो भोलेनाथ का प्रसाद है..जब हमारा चढ़ावा ही बनावटी है तो हमारी प्राप्तियाँ भी असत्य हो गई अर्थात् भंडारे भरपूर होने की बजाय खाली हो गए।
क्यूँकि भगवान। भोले नाथ सोच रहे थे की मैंने तो ज़हर भी पिया था तुम वो भी मुझे पर अर्पण करके पी लो…

सुगंधित धूपवर्ति

परमात्मा ने हमसे कहा की बच्चों अपने जीवन की कलह क्लेश एवं दुर्गंध रूपी वासनाओ को मुझ पर अर्पित कर तो बदले में अपने जीवन को सुगंधित बनाओ अपना व्यक्तित्व एवं आँचरण ऐसे बनाओ की आपके अच्छे व्यक्तित्व की सुगंध दूर -दूर तक फैल जाए ..तो हम मनुष्य अपने जीवन को तो सुगंधित ना बना पाए ।जीवन तो दुर्मार्ग की और ले गए और उसे दुगंधित किया—बदले में सुगंधित अगरबत्ती भगवान के आगे लगा आए। जबकि भगवान ने तो हमसे सुगंधित जीवन करने को कहा था।

घंटा, नाद

वर्तमान समय में मनुष्य के पास स्वयं के लिए समय नहीं है,वह सुविधा संपन्न बनता जा रहा है। उसे जीवन में हर प्रकार की सुख-सुविधाएँ चाहिए। वह बड़े होटलों में खाना-पीना चाहता है। देश-विदेश में घूमना चाहता है। उसे जीवन बेहतर बनाना है। प्रकृति के मध्य रहकर यह संभव नहीं है। प्रकृति आत्म सुख देती है मगर मनुष्य की कभी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाती है। अतः मनुष्य न चाहते हुए भी उससे दूर जा रहा है । आज का मनुष्य सोशलमीडिया की दुनिया में इतना व्यस्त हो गया है की उनके पास अपने ही परिवार,मित्र किसी के लिए भी टाइम नही है आज के मानव मोबाइल की दुनिया में ही व्यस्त है।

समय बहुत कीमती है और हमें समय को किसी भी तरह बर्बाद नहीं करना चाहिए। समय को पैसे से अधिक मूल्यवान माना जाता है, क्योंकि हम पैसे खर्च करते हैं और कमाते हैं, लेकिन हम अपने खोए हुए समय को वापस नहीं पा सकते। हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। इंसान की कोई भी अवस्था हो, उसे अपने समय को ही कीमती समझना चाहिये।
और इस व्यस्तता में हम भगवान के लिए तो समय ही नही निकाल सकते।हम मंदिर जाते है हाथ जोड़ कर और आँखे बंद करके दर्शन करते है। और बस हो गया..

तो भगवान ने कहा की बच्चों कम से कम एक या आधा घंटा तो मेरे आगे बैठो मेरा स्मरण करो ।ताकि तुम्हें आंतरिक शांति मिल सके।तुम्हारे पूर्व पाप कट सके।

तो…हम मानव भगवान के आगे एक घंटा बैठे तो नही उनका स्मरण तो नही किया बल्कि जा कर उनके मंदिर में घंटा लगा कर आ गये..कितना आसानी से मनुष्य ने यहाँ से भी समय बचा लिया..

भगवान ने तो घड़ी वाला एक घंटा माँगा था की मेरे आगे बैठो बल्कि हम तो घंटा ही टाँग कर आए।

मै-मै अर्थात् मैपन का अहंकार—

आज का मनुष्य अपने धन-दौलत ,संपत्ति, विधा, ज्ञान, रूप-रंग के मद में इतना खो गया है की उसे अपने सिवा कुछ और दिखाई ही नही देता। सारा दिन मनुष्य बस ये मेरा-वो मेरा मेरा घर, मेरी सम्पत्ति, मै ज्ञानवान, मै धनवान। बससारा जीवन मै, मै, मै में ही लगा देता है जिसकी वह अपनी आंतरिक शांति को भी खो चुका है ..जबकि हम सब जानते है की ये काया जिससे आप मै -मै कर रहे है वो ही हमारी नही है, जिस शरीर को हम 24 घंटे साथ लिए फिरते है वो ही हमारा नही तो ये भौतिक चीजें कैसे हो सकती है।मनुष्य मंदिर में प्रवेश करता है और गाता है की तन-मन -धन सब तेरा क्या लागे मेरा—और मंदिर के बाहर सब मेरा -मेरा—-
तो भगवान ने हमेशा यही माँगा की बच्चों ये जो तुम सारा जीवन मेरा -मेरा एवं मै -मै करते हो ना..उसकी मुझे बलि चढ़ा दो..

तो हम लालची मनुष्य मै-मै रूपी अहंकार की बलि तो चढ़ा ना सके बदले में मै-मै करने वाले बकरे की बलि चढ़ा दी…..
जबकि हम सब जानते है की भगवान कभी भी जीव हत्या कर उस जीव की बलि नही माँगते । जीव हत्या पाप है।वह तो जीवन दाता है – आपको लगता है की भगवान ये बकरा -बकरी और ये जीव -जंतुयो को मार कर भोग लगाएँगे? वह तो अपने भोजन में तामसिक भोजन अर्थात् प्याज़ – लहसूंन भी वर्जित करते है। मनुष्य अपने लोभ -लालच के कारण स्वयं ईश्वर को भी बनावटी चीजें सौंप देते है..

इसी पर किसी ने एक कविता लिखी हैकि…

बूंद सा जीवन है मानव का पर अंहकार सागर सा,
धीरे-धीरे जीवन रिक्त हो जाएगा खाली गागर सा।

करता है अभिमान कि जैसे वह अमर होकर आया,
मालूम नहीं है एक दिन मिट्टी में मिल जाएगी काया।

पत्नी, बच्चों व खुद पर करता बहुत है अहंकार,
भूल जाता है वह यही रह जाएंगे सब घर द्वार।

धन संपत्ति रूप काया का क्या अभिमान करना,
मिला है जिसकी कृपा से बस उसका ध्यान करना।

पर ये मानव इतनी जल्दी नहीं समझना चाहता है,
जब अंत समय आता है तो ये बहुत पछताता है।

जीवन का यही फसाना है जो आता है वो जाता है,
पर ना जाने फिर भी क्यों इंसान इतना इतराता है।

सबसे अच्छा व्यवहार करो छोड़ घमंड और अहंकार,
मिलेगी दुआएं सबकी सुखी रहेगा तुम्हारा घर संसार।

Shivlinga

अब जानते है की.. शिव जी को त्रिकुंड क्यू लगाया जाता है..

हम सभी जानते है की शिव त्रिलोकीनाथ है अर्थात् तीनो लोकों के ज्ञाता है वह हमे तीन लोकों का ज्ञान देते है इसलिए उन्हें त्रिकुंड लगाया जाता है।साथ हो बीच में एक बिंदी लगाई जाती है अर्थात् वह ज्योति बिंदी स्वरूप है। वह बिंदी के रूप में ही विराजमान है।

साथ ही हम ये देखते है की शिव जी पर हर समग्री ताजी चढ़ाई जाती है।सभी समग्री हम ताजी लेकर आते है कभी ऐसे हुआ है की हम ने दो-तीन दिन रखी हुई समग्री अर्पण की हो —नही ना

फिर जीवन कैसा चढ़ाते है ।जब हमारी उम्र ढलने लग जाती है हम बुजुर्ग अवस्था की और अग्रसर होने लगते है ।तब हम भगवान के भाव-भक्ति में मन लागतें है ।युवा अवस्था में यदि कोई कहे की भगवान मे मन लगाओ तो कहते है की अभी हमारी ये उम्र थोड़ी ही है ये तो बुजुर्ग लोगों का काम है 60 की उम्र के बाद का काम है ये…लेकिन हम ये नही समझ पाते की हम यहाँ कुछ समय के मेहमान है 60 साल तो क्या यहाँ तो 60 सेकंड का भी भरोसा नहीहै हमारे जीवन का ।पता नही आज है कल हो ना हो??

फिर क्या लेकर जाएँगे यही यही अच्छे कर्म ही साथ लेके जाएँगे यही कर्मों के हिसाब से ही हमे अपना अगला अच्छा या बुरा जन्म मिलेगा ।कर्मों के हिसाब से ही अच्छी या बुरी काया मिलेगी ।इसलिए भगवान को स्मरण करने की कोई उम्र नही होती… सत्कर्म करो ईश्वर में ध्यान लगाओ ।बस यही साथ जाएगा। तो इस लेख के माध्यम से यही कहना चाहूँगी की अब हम ये जान गए है की हमे शिव जी पर कौन सा बैर धतूरा आदि समग्री चढ़ानी चाहिए।तो सबसे पहले अपने विकार, बुरी आदतें जैसे आसुरी संस्कारो को शिव पर अर्पण करे।

तभी ये प्रकृत चीजें भगवान पर स्वीकृत मानी जाएगी….

Harshi
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मै धर्म व अध्यात्म की कड़ी, ईश्वरीय मत व प्रेरणा के अधीन हूँ। निरक्षर को शिक्षा देना व अध्यात्म के प्रति जागरूक करना है इसलिए 15 वर्षों से शिक्षिका हूँ। जीवन का उद्देश समाज सेवा एवं अध्यात्म सेवा है इसी को मै अपना परमसौभाग्य मानती हूँ।

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