गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (अठारहवाँ अध्याय )
“जीवन जीने की सम्पूर्ण विधि “
The Great Geeta Episode No• 059
देहभान, अभिमान, अहंकार
1. अहंकार
इसलिए परमात्मा ने अर्जुन को यही बताया कि जब असंस्कारी व्यक्त्ति होते हैं, वो अपने को ही कर्ता समझते हुए, अहंकार भाव में आ जाते हैं ! इसमें में भी तीन अवस्थाएं हैं जिसका वर्णन आगे के भाग में होगा... एक है देहभान , दूसरा है अभिमान और तीसरा है अहंकार ! ये तीन स्टेजिज़ ( Stages ) हैं !
एक है देहभान , दूसरा है अभिमान और तीसरा है अहंकार ! ये तीन स्टेजिज़ ( Stages ) हैं ! अहंकार सबसे बुरा है ! क्योंकि वो अनेक आत्माओं को बहुत दुःख पहुंचाने वाला है ! अभिमान उससे थोड़ा कम है !
2. अभिमान माना क्या ?
अभिमान दो शब्द से बना है ! अभि- मान अर्थात् कोई भी इंसान जब भी छोटा-मोटा कर्म करता है तो उसके मन के अन्दर तरन्तु ये भाव आ जाता है कि अभी-अभी मुझे मान मिलना चाहिए !
जहाँ ये मान प्राप्त करने की इच्छा आ गयी ये है अभिमान ! उसमें भले वो दूसरे को दुःख न भी देता हो , लेकिन अपने अभिमान की पुष्टि जरूर करता है !
अभिमान माना अभि-अभि मान चाहिए ! जहाँ उसको मान मिल जाता है वहाँ वो खुश हो जाता है ! आत्म- तृप्ति का अनुभव करता है ! उस मान में आकर के वो कोई भी कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है !
एक छोटा बच्चा भी आज दुनिया के अन्दर अभिमान की वृत्ति रखता है ! आज एक छोटा बच्चा घर में है और मान लो कि उसका पिता शाम को घर में आता है ! तो उस वक्त्त उसकी माँ उसको कहती है बेटा , जा एक गिलास पानी लेकर आओ पिताजी के लिए !
वो दोड़कर जाता है और एक गिलास पानी भरकर ले आता है ! और जब वो अपने पिता को पानी देता है और मान लो कि उसी वक्त्त पिता ने उसको कह दिया शाबश बेेटे ! थैंक्यू ! बस इतना कहा तो उस बच्चे का अभिमान भी सन्तुष्ट हो जाता है !
दूसरे दिन शाम को उसका पिता आता है तो माँ को कहना नहीं पड़ता है , वो तरन्तु भागता है और उस मान की इच्छा को लेकर कि आज भी मुझे थैंक्यू मिलेगा , पानी का गिलास लेकर पुहंच जाता है ! लेकिन मान लो कि पिता अपनी टेंशन में है और उसने बेटे को थैंक्यू नहीं कहा, शाबश बेटा नहीं कहा ! दूसरे दिन जब वो पिता शाम को आता है और माँ उस बच्चे को कहती है बेटा पानी लेकर आओ तो क्या कहेगा ?
मैं बिज़ी हूँ , आप ही लेकर आओ ! दूसरे दिन वो पानी का गिलास लेने के लिए दौड़ेगा नहीं , क्योंकि उसके मान की पूर्ति नहीं हुई ! बच्चा समझने लगता है कि जैसे कोई हमें चाकलेट देता है और हमसे तो बार-बार बुलवाते हैं, थैंक्यू करो बेटा और तब वो थैंक्यू बोल देता है !
लेकिन जब वो बेटा थैंक्यू सुनने की भावना से पानी का गिलास लेकर गया और उसको किसी ने थैंक्यू बेटा नहीं कहा तो दूसरे दिन उसको चॉकलेट देकर के दस बार कहो कि थैंक्यू कहो बेटा, थैंक्यू कहो बेटा, तो बिल्कुल नहीं बोलेगा ! क्योंकि उसने जब कोई कर्म किया, आपकी सेवा में, तो आपने तो उसो थैंक्यू कहा ही नहीं ! तो उसे यह महसूस होता है !
कितनी उसकी कैचिंग पावर है कि जब मैने पानी दिया तो थैंक्यू नहीं मिला और जब मुझे चॉकलेट इत्यादि दे रहे हैं तो मुझे हर बार थैंक्यू बोलने के लिए क्यों कहते हैं ? दस बार माँ के बोलने पर भी वो बच्चा नहीं बोलता है ! तो क्या कहती है माँ ? आजकल ये जिद्दी हो गया है ! नहीं तो इतना अच्छा थैंक्यू बोलता है , लेकिन अब क्यों नहीं बोलता ?
इस तरह से जब कोई व्यक्त्ति या कोई भी बच्चा कोई भी कार्य करता है तो उसको थैंक्यू कह दो, तो देखो वो दूसरे दिन फटा-फट उसको , चाहे आये या न आये करेगा और वह आपको मदद करने के लिए जरूर पुहंच जायेगा !
भावार्थ ये है कि अहंकार बहुत बुरा है , उससे कम अभिमान है ! अभी-अभी मान मिल गया तो खुश ! नहीं मिला, तो बड़ा दुःखी हो जाता है इंसान कि मैने इतना किया फिर भी मुझे मान नहीं मिला ! कई बार देखा जाता है कि घर के अन्दर ही एक व्यक्त्ति ये चाहना रखता है कि अभी-अभी मेरी बात माने, उसका ये अभिमान है !
जबकि सामने वाला व्यक्त्ति समझता है कि अभी-अभी मान मिले तो मैं बात मानूं ! दूसरा सोचता है कि अभी-अभी मेरी बात मानें ! वो सोचता है कि अभी-अभी मान मिले , तो उसकी बात मानूं ! अगर मान नहीं मिलता है तो मानेंगा कैसे ?
इस तरह आज की दुनिया के अन्दर जो घरों में कलह- कलेश होते हैं उनका कारण क्या है ? बड़ा सोचता है कि मेरी बात मानें और छोटा सोचता है कि इतना किया है , पहले तो उसको मान देवें ! फिर मैं उसकी बात मानूं ! इस प्रकार के झगड़े, कलह-क्लेश, अभिमान के कारण कई घरों में देखने को मिलते हैं ! तो अभिमान भी कलह-क्लेश निर्मित ज़रूर करता है ! अभिमान धीरे-धीरे व्यक्त्ति को असंस्कारी बनाने लगता है ! तीसरी जो अवस्था है वो है देहभान की, जिस का वर्णन अगले भाग में करेंगे !
3. देहभान
तीसरी जो अवस्था है वो है देहभान ( Body conscious ) की ! जहाँ व्यक्त्ति हर वक्त्त अपने देह से सम्बंधित बातों में ही उलझा हुआ रहता है ! आज मेरे देह में, हाथ में, मेरे पैर में, मेरे सिर में दर्द हो रहा है !
माना भान ( कॉनशियस) ! इतने देह अभिमान में है कि उसको दूसरे के दर्द की महसूसता नहीं है ! अपने ही दर्द का वर्णन करता रहता है ! उतना वो दर्द का स्वरूप बनता जाता है और उतना जीवन में वो दर्द भी बढ़ता जाता है !
तो देहभान, देह अभिमान और देह अहंकार तीनों ही गलत हैं !
लेकिन तीनों में परसेन्टेज है ! अहंकार तो छोड़ना आसान हो जाता है क्योंकि उसकी दुःख की भोगना, हरेक इंसान अनुभव कर चुका है ! लेकिन अभिमान और भान ( देहभान ) को छोड़ना कभी-कभी तकलीफ दायक हो जाता है ! बहुत तकलीफ होती है !
तीन प्रकार के ज्ञान
संसार के अन्दर तीन प्रकार के ज्ञान का वर्णन है ! वो तीन प्रकार का ज्ञान कौन सा है ?
- सबसे पहले सतोगुणी ज्ञान कौन सा माना गया है ? जिस ज्ञान से अनंत रूपों में, विभक्त्त सारे जीवों में, आध्यात्मिक प्रकृति को देखते हैं तो वो सतोगुणी ज्ञान है ! हर एक व्यक्त्ति के अन्दर आत्मा को देखो ! जितना ये ज्ञान हमारी बुद्धि में स्पष्ट है कि सब आत्मायें हैं और सभी परमात्मा की सन्तान हैं, तो सारे जीवों में जो आध्यात्मिक प्रकृति को देखता है, आत्म-भाव को जो विकसित करता है, ये है सतोप्रधान ज्ञान !
- रजो प्रधान ज्ञान कौन सा है ? जो ज्ञान सम्पूर्ण भूतों में भिन्न प्रकार के अनेक भावों को लेकर जानता है ! अर्थात् ये उँचा है, ये नीचा है, ये इस जाति का है, वह इस जाति का है ! तो ये सम्पूर्ण भूतों में भिन्न प्रकार के अनेक भावों को लेकर के जानता है कि ये अच्छा है और ये बुरा है, ये रजोगुणी ज्ञान है ! भेद को लेकर के व्यवहार में आना ये ज्ञान जब बुद्धि में है, तो ये रजोगुणी ज्ञान है !
- जो ज्ञान शरीर की आवश्यकताओं को पूर्ण करने तक सीमित है और उसे सब कुछ मानकर, सत्य को जाने बिगर उसमें लिप्त रहते हैं वह तमोगुणी ज्ञान है ! तो इस प्रकार से जहाँ व्यक्त्ति देह को देखता है, देह की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए सब कुछ करता है ! ये सीमित ज्ञान हो जाता है और उसी को सत्य मानने लगता है ! आत्मा रूप में वह नहीं देखता है ! इसे तमोगुणी ज्ञान कहा जाता है !
तीन प्रकार के कर्म
इसी के साथ-साथ तीन प्रकार के कर्म ( Karma ) बताए हैं !
- जिसमें सतोप्रधान कर्म कौन-से हैं ? जो यज्ञ ( Worship ) कर्म है , आत्म शुद्धिकरण अर्थ कर्म और आसाक्त्ति , राग ( Attachment ) , द्वेष से रहित कर्मफल की चाह के बिना किया जाता है, वह सात्विक अर्थात् पवित्र कर्म है !
- राजसिक कर्म कौन-से हैं ? जो कर्म अपनी इच्छा पूर्ति के लिए परिश्रम युक्त्त है ! जहाँ मेहनत भी करता है इंसान और अहंकार युक्त्त भी है, उस अहंकार में आकर किसी को दुःख भी देता है ! वह रजोगुणी कर्म है !
- जिस कर्म का परिणाम हानि हो और अपने समर्थ अर्थात् शक्त्ति को देखे बिना , विचारे बिना , मोह और अज्ञान वश किया गया कर्म वह तामसिक अर्थात् अपवित्र कर्म है ! कई बार कई लोग परिणाम को सोचते भी नहीं हैं और कर लेते हैं ! बिना विचारे, उसके परिणाम को सोचते भी नहीं और फिर दुःखी होते हैं ! तो ये कर्म तामसिक कर्म माना गया है ! इस प्रकार से इन तीन कर्मो का भेद बताया है !
तीन प्रकार के भेद
फिर कर्त्ता ( Cause ) के तीन प्रकार के भेद ( distinction) का वर्णन किया गया है !
- जो व्यक्त्ति संगदोष से मुक्त्त, अहंकार रहित, दृढ़ संकल्पधारी और उत्साह पूर्वक अपना कर्म करता है और सफलता असफललता में अविचलित रहता है , वह सात्विक कर्त्ता है ! कर्त्तापन का जो भाव है उसमें व्यक्त्ति अहंकार से मुक्त्त, संगदोष से मुक्त्त और जो करता है दृढ़ संक्लप के आधार से करता है ! क्योंकि दृढ़ता में सफलता है ! उसे करने में भी उसको उत्साह आता है ! वह सात्विक कर्त्ता है !
- दूसरा जो व्यक्त्ति कर्म और कर्मफल के प्रति आसक्त्त होकर कर्म के फलों का भोग करना चाहता है ! सदैव ईर्ष्या वा लोभी है, अपवित्रता और सुख-दुख से विचलित होता है रहता है वह राजसिक कर्त्ता है !
- तीसरा जो कर्त्ता ज्ञान के विरूद्ध कार्य करता है अर्थात् समझ के विरूद्ध कार्य करता है ! चंचल चित्त वाला है, असभ्य, घमण्डी, रूद्र, दूसरे के कार्य में बाधा पहुंचाने वाला, सदैव खिन्न, आलसी, दीर्घ सूत्री है, फिर कर लेंगे, बाद में कर लेंगे, देखा जायेगा ये कर्ता तामस कर्ता अर्थात् तामसिक करता है !
बुद्धि भी तीन प्रकार
इस प्रकार से कर्त्ता की बुद्धि भी तीन प्रकार की है ! तीन प्रकार की बुद्धि कौन सी है ?
- जो बुद्धि प्रवृत्ति और निवृत्ति, कर्तव्य और अकर्तव्य, भय और अभय तथा बन्धन और मुक्त्ति को याथार्थ समझती है , वह सात्विक बुद्धि है !
- उसी के साथ जो बुद्धि धर्म और अधर्म, कर्तव्य अकर्तव्य के भेदों को यथावत नहीं जानती है, वह राजसी बुद्धि है ! दुविधा की हालत में फंसे रहते हैं ये करें, ये करें, ऐसा करें, वैसे करें, ऐसा नहीं करें वो राजसी बुद्धि है !
- तामसी बुद्धि अज्ञान अंधकार के वशीभूत होकर, अधर्म को धर्म मान लेती है ! धर्म को अधर्म मानता है और सदैव विपरीत दिशा में प्रयत्नशील रहता है, वह है तामसी बुद्धि वाला मनुष्य ! तो इस प्रकार तीन प्रकार की बुद्धि मनुष्य के अन्दर स्पष्ट की गई है !
कैसी प्रकृति से, कैसी बुद्धि उसकी बनती है ! आगे भाग में तीन प्रकार की धारणाओं और सुख की शक्त्ति बतलायी है !