E.52 संसार एक वृक्ष है

गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (तेरहवाँ, चौधवाँ एवं पंद्रहवाँ अध्याय )

“धर्मक्षेत्र और कुरूक्षेत्र का भाव”

The Great Geeta Episode No• 052

प्रकृति के तीन गुण

चौदहवें अध्याय में बताया गया है कि प्रकृति के तीन गुणों के आधार से किस तरह मनुष्य के जीवन होते हैं ! परमात्मा सतो , रजो और तमो के रहस्य को उजागर करते हैं ! किस प्रकार प्रकृति से प्रत्येक व्यक्त्ति प्रभावित होता है !

गुणतीत व्यक्त्ति के लक्षण तथा आचरण क्या होते हैं ? उसको स्पष्ट किया है !

प्रकृति के तीन गुण

  1. सतो गुण
  2. रजो गुण
  3. तमो गुण

सतो गुण

सतोगुण की अभिव्यक्त्ति अर्थात् वृद्धि कैसी होती है ? सतोगुण की अभिव्यक्त्ति को तभी अनुभव किया जाता है जब आत्मा तथा सर्व कर्मेन्द्रियों में ज्ञान का प्रकाश प्रकाशित होने के कारण उसमें ईश्वरीय अनुभूति का प्रवाह होता है !

सतोगुणी कर्म से अर्जित फल सात्त्विक , निर्मल और ज्ञान-युक्त्त होता है ! सत्वगुण की वृद्धि काल में मृत्यु को प्राप्त करने वाला भी श्रेष्ठ गति को प्राप्त होता है !

रजोगुण

जब रजोगुण में वृद्धुि होती है तो आध्यात्मिक आसाक्त्ति, स्वार्थ युक्त्त कर्म का प्रारम्भ होता है ! अशान्ति एवं इच्छाओं का उदय होता है ! रजो गुण वाले व्यक्त्ति को कामना और असक्त्ति से उत्पन्न जानो ! वह आत्मा को कर्म के बन्धन में बांधता है

रजोगुणी कर्म के फल से दुःख की अनुभूति होती है एवं रजोगुण की वृद्धि काल में मृत्यु को प्राप्त करने वाला , कर्म बन्धन होने के कारण पुनः जन्म में भी, जीवन बन्ध का अनुभव करता है !

तमो गुण वाला पशु समान जीवन , नर्क समान जीवन और रजोगुण वाला, जीवन बन्धन में महसूस करता है ! जैसे हर क्षण कोई न कोई प्रकार के बन्धन उसको बन्धे हुए है ऐसा अनुभव करता है !

तमो गुण

तमो गुण अज्ञान से उत्पन्न होता है जो आत्मा को आलस्य, निंद्रा और प्रमाद (Carelessness ) में बांधता है ! इस प्रकार से जैसी प्रकृति वैसे ही आत्मा के अन्दर लक्षण भी आते हैं !

इसलिए आज दुनिया के अन्दर भी और आगे के गीता के अध्यायों में हम देखेंगे कि सात्त्विक भोजन एवं राजसिक भोजन किसको कहा जाता है और तामसिक भोजन किसको ! इसलिए तो कहा जाता है कि जैसा अन्न वैसा मन ! जिस प्रकार के भोजन को हम स्वीकार करते हैं ,वैसे हमारे शरीर की प्रकृति तैयार होती है !

तमोगुण की बुद्धि से अज्ञानता आलस्य , अलबेलापन , प्रमाद और मोह की अभिव्यक्त्ति अर्थात् वृद्धि होती है ! जिस कारण तमोगुणी मनुष्य अधोगति ( Degraded ) को प्राप्त होते हैं और पुनः जन्म भी पशु समान होता है !

पशु योनि में नहीं जाता है ! मनुष्य योनि में रहकर के ही पशु समान उसका जीवन बन जाता है अर्थात् नर्क समान उसका जीवन बन जाता है !

किस प्रकार की विचारधारा , किस प्रकार का भोजन आवश्यक है ?


इसलिए हमें किस प्रकार की प्रकृति को निमित्त करना है और कैसे करना है यह हमारे ऊपर निर्भर है !

HD Geeta Bodh Aatma Sakshatkaar Hindi 22

गुणतीत ज्ञानी पुरूष

अर्जुन ने प्रशन पूछा , हे प्रभु ! गुणतीत ( गुणों को धारण करने वाला ) व्यक्त्ति के आचरण एवं लक्षण कैसे होते हैं ?

भगवान ने कहा कि गुणतीत ज्ञानी पुरूष सतो , रजो , तमो गुणों के प्रभाव में नहीं आते और साक्षी दृष्टा बन जाते हैं ! वे समस्त प्रतिक्रियाओं से निशचल और अविचलित रहते हैं ! वे निरन्तर आत्म-स्थिति में स्थित रह निंदा , स्तुति , मान , अपमान , सुख-दुख में संतुलित मनः स्थिति वाला , समान दृष्टि और भाव वाला धैर्यवान रहकर सर्व के साथ समान व्यवहार करते हैं !

ये है गुणतीत माना तोनों गुणों से अतीत ( Detach ) , उपराम अवस्था वाले व्यक्त्ति की विशेषता कि वे कैसे तीनों गुणों के प्रभाव में नहीं आते हैं !

ये गुणतीत स्थिति भी ज्ञान और पुरूषार्थ से प्राप्त की जाती है ! साक्षी भाव , प्रतिक्रियाओं में निशचल ( जिसके अन्दर कोई प्रकार का छल नहीं ) और अविचलित होता है ! निरन्तर आत्म-स्थिति का पुरूषार्थ करते हुए उसको विकसित करता है ! 

वो किस विधि से गुणतीत बनता है

गुणतीत बनने की विधि भगवान स्पष्ट करते हैं कि जो समस्त परिस्थितयों में अविचलित भाव रख अव्यभिचारी भक्त्ति योग के द्वारा प्रकृति के गुणों के प्रभाव से परे हो जाते हैं ,वह मेरे सानिध्य में आ जाते हैं ! मैं ही अविनाशी अमृत , शाश्वत् धर्म , परम सुख और परम आनन्द का आश्रय ( Hope ) हूँ ! जो इस प्रकार परमात्म सानिध्य को अपनाते हैं उसी विधि के आधार से वो गुणतीत स्थिति में जा सकते हैं !

संसार एक वृक्ष है

Kalpa Tree Truegyan

संसार एक वृक्ष है जिसका मूल ( Root ) ऊपर है और नीचे प्रकृति तथा इनकी शाखाएं हैं ! जो इस वृक्ष को मूल सहित विदित अर्थात् जान लेता है , वह ज्ञानी है !

अब ये सृष्टि कैसे उल्टा वृक्ष है ?

दुनिया की कोई भी आत्मायें इस गुहाृ रहस्य को स्पष्ट नहीं कर सकती हैं ! संसार की उत्पत्ति का रहस्य भगवान ने पहले भी बताया कि परमधाम ( हम आत्माओं का और परमात्मा का घर ) में मैं भी संक्लप की रचना करता हूँ , तो कहा गया कि ये संक्लप ब्रह्या जी को दिया ! ब्रह्या जी ने संक्लप से सृष्टि का निर्माण किया ! और ये घर फिर प्रकृति के अन्दर देता हूँ जो शरीरों का निर्माण करती है !

Soul World - Paramdham

🌏 ये संसार एक वृक्ष है जिसका मूल ( बीज ) , परमात्मा ऊपर है ! ये कल्प-वृक्ष अविनाशी परन्तु नित्य परिवर्तनशील है ! स्थूल में हम देखते हैं कि वृक्ष में नित्य परिवर्तन आता है ! जैसे-जैसे मौसम बदलते जाते हैं वैसे-वैसे परिवर्तन उसके अन्दर आता जाता है ! ठीक इस तरह संसार के कल्प-वृक्ष में भी नित्य परिवर्तन होता रहता है ! कोई भी इसके आदि-मध्य अन्त को समझ नहीं पाता है ! इंसान की क्षमता में ही नहीं है कि इसके आदि-मध्य-अन्त को समझ सके , परमात्मा आकर इस रहस्य को जब तक उजागर नहीं करते हैं , तब तक इसके आदि मध्य-अन्त का ज्ञान किसी के पास नहीं है ! इस जगत में इसके वास्तविक स्वरूप को देखा नहीं जा सकता ! उल्टा वृक्ष कोई दिखाई थोड़े ही देता है ! जो इस वृक्ष को मूल सहित जान लेता है , वो वेदों का भी ज्ञाता बन जाता है ! मूल सहित जानना अर्थात् परमात्मा सहित जानना !

👥 दुनिया को जानने के लिए तो कई लोगों ने कई प्रकार की खोजें की हैं ,कई प्रकार की रिसर्च की हैं और उसको समझने का प्रयत्न किया है ! लेकिन उसको पूर्णताः समझ नहीं पाते हैं , क्योंकि जब तक मूल को ही नहीं समझा है , बीज को ही नहीं समझा है तो वृक्ष को क्या समझेंगे ? दुनिया के अन्दर भी किसी भी वृक्ष को अच्छी तरह समझने के लिए उसके बीज को समझना पड़ता है कि ये बीज कैसा है और इसके अन्दर की क्षमता कितनी है, जह तक उस वृक्ष के ऊपर रिसर्च नहीं होता है , तब तक उस वृक्ष को समझ नहीं पाते हैं ! ठीक इसी प्रकार भगवान ने कहा कि वास्तविक रूप को तो देखा नहीं जा सकता है ! इसलिए जब तक मूल सहित उसको नहीं जाना तब तक कुछ समझ नहीं सकते ! तब तक उनकी सारी रिसर्च अधूरी रह जाती है ! इसलिए इस संसार को समझना कठिन हो गया है ! मनुष्य ने तो इसे और जटिल कर दिया है !

भगवान ने कहा कि इस वृक्ष की शाखायें प्रकृति के तीन गुणों द्वारा पोषित ( Cherished ) होती हैं ! ये शाखायें भी कैसी हैं ? शाखाओं में भी तीन कलर देखेंगे ! 
Shristi Vraksh Tree

सातिवक अर्थात् सतोप्रधान , गोल्डन और सिल्वर कलर में दिखाया है ! राजसिक अर्थात् कांस्य के कलर में दिखाया है ! तामसिक अर्थात् तमोप्रधानता जो इस शाखा के अन्दर भी आती है , उसे काले कलर में दिखाया है ! इस संसार को कहा गया है कि ये वृक्ष नित्य परिवर्तनशील है ! परिवर्तनशील अर्थात् जैसे सतयुग था , तब सतोप्रधानता थी अर्थात् सतयुग और त्रेतायुग में सतोप्रधानता थी !

फिर जब द्वापर आया तो रजोप्रधानता और जब कलियुग आया तो तमोप्रधानता , इस संसार के अन्दर आने लगी, यह प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा पोषित होते हैं ! इनकी टहनियाँ इन्द्रियां और विषय- विकार हैं जो मनुष्य को कर्म के अनुसार बन्धन में बांधते हैं ! जब समय सतोप्रधान था तब सतयुग और त्रेतायुग में मनुष्य आत्मा के अन्दर दैवी संस्कारों का उदय था ! इसलिए वहाँ सातिवक प्रकृति थी ! बाद में फिर इन्द्रियों के विषय में आ गए तो कर्म को बाँधने वाले रजोगुण और तमोगुण के अनुसार प्रकृति निमित्त हुई !

Kalpa Tree

मैं उस आदि पुरूष की शरण में हूँ जहाँ से पुरातन प्रकृति की रचना हुई है ! वह उसे वैराग्य रूपी शस्त्र द्वारा काट कर परमपद को प्राप्त कर लेता है ! जैसे कि कोई भी वृक्ष को देखो , जब जड़जड़ीभूत हो जाता है , तो उसको आग लग जाती है या वो गिर जाता है !

जब गिर जाता है तो उसी वृक्ष में एक बीज धरती के अन्दर समा जाता है जहाँ से फिर नया वृक्ष प्रस्फुटित अर्थात् निकल पड़ता है ! धरती ही उसको सहारा देती है ! जंगलों में वृक्ष कैसे निकलते हैं ? सालों साल जब हो जाते हैं , जड़जड़ीभूत अवस्था जब हो जाती है तो उसी में से ही एक बीज नीचे गिरकर के फिर से एक नये वृक्ष की शुराआत करता है !

ठीक इसी प्रकार जब मनुष्य

रूपी वृक्ष भी जड़जड़ीभूत कलियुग में हो जाता है अर्थात् ये संसार जब पुराना हो जाता है तब भगवान ने कहा कि वही आकर आदि पुरूष की शरण लेता है ! संसार का आदि पुरूष कौन है ? वो तो वही जानता है ! उसकी शरण लेकर के वैराग्य के द्वारा , इसे काटकर फिर एक नये वृक्ष को प्रारम्भ करते हैं ! इन गुणों से सम्पन्न साधक उस परम पद को प्राप्त कर सकता है !

B K Swarna
B K Swarnahttps://hapur.bk.ooo/
Sister B K Swarna is a Rajyoga Meditation Teacher, an orator. At the age of 15 she began her life's as a path of spirituality. In 1997 She fully dedicated her life in Brahmakumaris for spiritual service for humanity. Especially services for women empowering, stress & self management, development of Inner Values.

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