E.48 परमात्मा का कर्तव्य

गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (नवाँ, दसवाँ, गयारहवाँ एंव बारहवाँ अध्याय)

“समर्पण भाव”

The Great Geeta Episode No• 048

परमात्मा का कर्तव्य

फिर अर्जुन कहता है कि इस उग्र रूप को धारण करने वाले आप कौन हो ?

मैं जानना चाहता हूँ कि आप आदि पुरूष कौन हैं !

अर्थात् जो विराट रूप दिखाया वो इतना दिव्य और उग्र स्वरूप था कि एक मुँह से सारी आत्मायें जा रही हैं , तो दूसरे मुख से कुछ आत्मायें देव स्वरूप में नीचे उतर रही हैं ! ये उग्र रूप धारण करने वाले आप कौन हो ?

मैं जानना चाहता हूँ कि आप आदि पुरूष कौन हो ? मैं आपको और आपकी प्रवृत्ति को जानना चाहता हूँ ?

भगवानुवाच:-

मैं तीनों लोकों का नाश करने वाला महाकाल हूँ , इसलिए उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो !

ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं ! तुम केवल निमित्त बन जाओ !

Arjun &Amp; Shiva Truegyantree
Arjun & shiva

कर्तव्य

परमात्मा को ये संसार परिवर्तन करने में देर नहीं लगती है ! फिर भी वो कोई जादू की छड़ी धुमा करके काम करना नहीं चाहते हैं ! इसलिए इंसान को निमित्त बनाते हैं ! निमित्त भाव को जागृत करते हुए हमें अपना कर्तव्य करना है !

इसलिए उसको आदेश देते हैं ! उठो खड़े हो जाओ अपना कर्तव्य करो और यश को प्राप्त करो ! इस उग्र रूप को धारण करने का उद्देश्य बतलाया कि परमात्मा कालों का भी काल अर्थात् महाकाल है और उन समस्त नकारात्मक शक्त्तियों का नाश करना है !

दुनिया में इस वक्त्त नकारात्मक शक्तियाँ बढ़ती जा रही हैं ! एक-एक व्यक्ति में जो नकारात्मक भावनायें हैं , विकृतियां हैं ये असुरों के समान ही हैं ! भगवान इस संसार में नकारात्मक शक्त्तियों का नाश करने के लिए अवतरित होते हैं !

अधर्मियों की शक्त्ति और सामर्थ्य कितना भी क्यों न हो , लोक हितकारी , महाकाल की शक्त्ति ने पहले ही मार दिया है !

भगवान का लोक संहारकारी भाव , उनका लोक कल्याणकारी भाव ही है ! इसलिए वे ब्रह्या , विष्णु और महेश की रचना करते हैं !

परमात्मा ब्रह्या द्वारा नये विश्व की स्थापना का कर्तव्य, विष्णु द्वारा नयी सतयुगी सृष्टि की पालना का कर्तव्य, और कलियुगी विकृत सृष्टि के महाविनाश का कार्य शंकर के द्वारा कराते हैं !

दुनिया में भी देखते हैं कि अभी होलसेल में मौत का होना आरम्भ हो गया है ! सभी आत्माओं को ऊपर जाना है और समय अब बदल रहा है ! अब सतयुग के आने का समय आ चुका है ! इसलिए संसार के परिवर्तन की गति तीव्र हो गई है ! लोक संहारकारी का मतलब है, भगवान का लोक कल्याणकारी भाव !

इसलिए भगवान इस बात को भी स्पष्ट कर देते हैं कि पुनः निर्माण के इस कार्य को करने के लिए अकेला काल ही समर्थ है अर्थात् समय में इतनी शक्त्ति है परिवर्तन करने की !

इसलिए सर्वकालीन मनुष्य के प्रतिनिधि अर्जुन को ये उपदेश दिया जाता है कि वो निर्भय होकर अपने जीवन में कर्तव्य का पालन करे !

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भगवान हम सब अर्जुनों को ये उपदेश देते हैं कि निर्भय हो कर अपने जीवन में कर्तव्य का पालन करें ! पुनः उत्थान के साथ सहयोग करके अर्जुन केवल सफलता का साथ ही दे रहा है तो हमें भी सफलता का साथ देना है !

इस तरह का अर्जुन बनने की प्रेरणा भगवान ने हमें दी है ! फिर अर्जुन पूछता है कि वे सिद्ध संग आपको नमस्कार कैसे नहीं करेंगे क्योंकि आप तो सृष्टिकर्त्ता ब्रह्या के भी आदि कर्त्ता हैं ?

इसलिय कहा कि ब्रह्या , विष्णु , महेश के भी आदि कर्त्ता परमात्मा हैं !

अनंत स्वरूप परमात्मा देवों का भी ईश्वर है ! परमात्मा एक ही है ! जो सभी देवी-देवताओं का भी ईश्वर है ! सर्वशक्त्तिमान परमात्मा से समस्त देवताओं को तथा प्रकृतिक शक्त्तियों को सामर्थ्य प्राप्त होता है !

आप इस चराचर जगत के पिता पूज्यनीय और सर्वश्रेष्ठ गुरू हैं ! जिसकी कोई प्रतिमा नहीं , ऐसे अप्रतिम प्रभाव वाले तीनों लोकों में आपके समान कोई नहीं है !

इसलिए हे भगवन ! जैसे पिता पुत्र को , मित्र अपने मित्र को , प्रिय अपने प्रिया के अपराधों को क्षमा करता है , वैसे ही आप भी मेरे अपराधों को क्षमा कीजिए !

यहाँ पर अर्जुन को सम्पूर्ण रियालाईज़ेशन हो गया कि परमात्मा का असीम ऐश्वर्य क्या है और श्रीकृष्ण का ऐश्वर्य ( Super Human Power ) क्या है ! देवी- देवताओं के अस्तित्व का भी ज्ञान हो गया है !

तब वो कहता है कि अब मैने जो अज्ञानता के वश आपसे सवाल किए, जो भी आपके सामने अज्ञानता के कारण बातें कहीं तो आप मुझे क्षमा कर दें !

भावार्थ ये है कि सर्व सम्बन्ध हमारे परमात्मा के साथ हों, चाहे वो प्रियतम है, चाहे वो दोस्त है, चाहे वो पिता है ! तब भगवान कहते हैं कि मेरा ये रूप देखने को मिलना अति दुर्लभ है !

देवतागण भी सदा इस रूप के दर्शन के इच्छुक रहते हैं ! वो भी चाहते हैं कि हम परमात्मा के इस दिव्य स्वरूप को देखें !

गीता में भगवान ने एक महत्त्वपूर्ण बात कही कि

न वेदों से, न तप से, न दान से, न यज्ञ से मैं देखा जा सकता हूँ !

भगवान के दिव्य स्वरूप को जानने के लिए ह्रदय को पवित्र करना होता है ! जितनी पवित्र भावनाओं को, अनन्य भावों को हम जागृत करते हैं, ईश्वर से हमारा हमारा प्रेम होता है ! अर्जुन का प्रेम था , इसलिए भगवान ने उसको अपना दिव्य स्वरूप दिखाया !

बाकी रोज़ कोई वेद पढ़ता रहे , तप करता रहे , दान करता रहे , यज्ञ करता रहे उससे भगवान के दिव्य स्वरूप को देख नहीं सकता है ! बहुत ही स्पष्ट शब्दों में भगवान ने ग्यारहवें अध्याय में ये बात कही है !

इस अध्याय के अन्त में भगवान ईश्वर रत्न को प्राप्त करने की विधि बताते हैं !

उत्तर: जो ईश्वर अपर्ण बुद्धि से निर्धिरत यज्ञ कर्म करता है ! दूसरी बात जिसका परम लक्ष्य ईश्वर अनुभव करना ही है ! परमात्मा को अनुभव करने के लिए जो ईश्वर अर्पण बुद्धि हो , जो अनन्य भक्त्ति भाव रखता हो , जो संग और असक्त्ति से रहित हो , जो सम्पूर्ण प्राणी मात्र के प्रति वैर भाव से रहित हो , वो ईश्वर के दिव्य स्वरूप को देख सकता है !

यदि रोज़ वेद पढ़ते रहे , रोज़ उपनिषद पढ़ते रहे , यज्ञ तप करते रहे , सब कुछ करने के बाद अगर भगवान के प्रति प्रेम नहीं , समर्पण भाव नहीं , आसाक्त्ति दिल के अन्दर भरी हुई हो , संगदोष में लिपटे हुए हो और हरेक के प्रति प्रेम भाव न हो , वैर रहित भावना न हो , अन्दर में वैर , द्वेष भरा हुआ हो और वो चाहे कि मैं ईश्वर का दर्शन करूं ! तो कर सकता है क्या ?

आज की दुनिया में साधारण व्यक्त्ति भी समझ सकते हैं और कई बार वो कहते भी हैं कि ये बगुला भगत है ! बाहर से तो बहुत पूजा-पाठ आदि करता है ! लेकिन अन्दर में जब देखो , तो ऐसी उसकी वाणी होती है , जैसे छुरी चलती है !

इसलिए कई बार ईश्वर के प्रति , ऐसे लोगों को जब देखते हैं , श्रद्धा कम हो जाती है ! इसलिए भगवान यहाँ अपनी प्राप्ति का तथा अनुभूति का रहस्य स्पष्ट करते हैं !


हे अर्जुन !

संग-दोष से अलग रहकर जब आप अनन्य चिंतन में लगते हैं , निर्धिरित यज्ञ की क्रिया में प्रवृत होते हैं ! उसी समय परिपंथी राग , द्वेष , काम , क्रोध इत्यादि दुर्जय शत्रु के रूप में प्रत्यक्ष ही आपको विचलित करते हैं ! उनसे पार पाना ही युद्ध करना है !

अर्थात् इसी से युद्ध करने की प्रेरणा भगवान ने दी है

B K Swarna
B K Swarnahttps://hapur.bk.ooo/
Sister B K Swarna is a Rajyoga Meditation Teacher, an orator. At the age of 15 she began her life's as a path of spirituality. In 1997 She fully dedicated her life in Brahmakumaris for spiritual service for humanity. Especially services for women empowering, stress & self management, development of Inner Values.

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