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E.32 सेल्फ डिफेंस और कर्म का फल

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गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पाँचवां और छठाा अध्याय )

“परमात्म-अवतरण एवं कर्मयोग”

The Great Geeta Episode No• 032

भगवान एक बहुत सुन्दर रहस्य बताते हैं कि परमात्मा मनुष्य में कर्त्तापन को नहीं रचता , न ही कर्मों को रचता है और न ही कर्मफल के संयोग को रचता है ! परन्तु स्वभाव में स्थित प्रकृति के दवाब के अनुसार ही सब कार्य होते हैैं !

मान्यता

आज दिन तक हमारी यह मान्यता थी कि जो कुछ भी मनुष्य करता है , भगवान की मर्जी के बिना नहीं करता है ! एक हाथ भी उठता है , तो भगवान की मर्जी के बिना नहीं उठता है ! एक पत्ता भी हिलता है वह भी भगवान की मर्जी के बिना नहीं हिलता है !

अब सोचने की बात है कि ये हाथ जो उठा और उसने जाकर के किसी को थप्पड़ मारी तो क्या कहेंगे कि भगवान की मर्जी हुई ! क्या भगवान की ऐसी भी मर्जी होती है ?

श्रीमदभगवदगीता में भगवान ने कहा है कि मनुष्य में कर्त्तापन को में नहीं रचता हूँ ! उसने हाथ उठकर थप्पड मारा तो वो उसका अपना कर्म है ! उसके लिए मैं ज़िम्मेवार नहीं हूँ ! मनुष्य अज्ञानता के वश कोई भी ज़िम्मेवारी अपने ऊपर लेना नहीं चाहता है ! उसे हमेशा दूसरों को दोषी बनाने की आदत है ! इसलिए जीवन में कभी कुछ भी होता है तो कहते हैं कि भगवान ज़िम्मेवार है !

भगवान ने स्पष्ट कहा है कि

  • देहधारी आत्मा अपनी स्वाभाविक स्वतंत्र इच्छा से कर्म करती है ! इसलिए उसका उत्तरदायित्व भी उसी के ऊपर है !
  • वह अपने किए हुए कर्मों का फल भोगती है !
  • परमात्मा किसी के पुण्य कर्म या पाप कर्म के लिए ज़िम्मेवार नहीं है ! अपने कर्मों के लिए हम खुद ज़िम्मेवार हैं !
  • हमारे कर्म के लिए परमात्मा ज़िम्मेवार नहीं है !
  • क्योंकि ये ज़िम्मेवारी हम खुद उठाने की शक्त्ति रखेंगे तो हम हर कर्म सोच समझकर करेंगे !
लेकिन शायद बचपन से ही ये संस्कार पड़े हैं कि दोष दूसरों के ऊपर डाल दो ! इसलिए दूसरे के ऊपर दोष डालते रहते हैं !
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एक छोटा बच्चा जब चलने की कोशिश करता है तो किसी चीज़ को पकड़कर के खड़ा होता है ! लेकिन जैसे ही किसी चीज़ को पकड़कर वह बच्चा खड़ा हुआ तो उसके पैरों में वो बैलेंस नहीं होता है , तो वह तुरन्त वह गिर जाता है ! जैसे ही वह गिर जाता है तो पहली प्रतिक्रिया क्या होती है उसकी ? वह पहले चारो तरफ देखता है कि किसी ने देखा तो नहीं ! कितना होशियार होता है वो बच्चा ! पहले तारो तरफ देखता है !

अगर उसकी माँ ने देख लिया तब वह रोना चालू करता है ! वह बच्चा रोना क्यों चालू करता है , सेल्फ डिफेंस अर्थात् प्रोटेक्शन के लिए ! अभी यदि मेरी माँ आकर के मुझे डांट लगायेगी कि तू अपने आप क्यों खड़ा हुआ कहीं लग जाती तो , तब एक भी आँसू नहीं गिरेगा ! रोता है , तो माँ आकर क्या करती है , वह बच्चे को उठा लेती है ! कहती है नहीं बेटा ….ये तेरा दोष नहीं है ! ये टेबल ही ऐसी है और फिर टेबल को थप्पड़ मार देती है ! या ये ज़मीन ही ऐसी है , ये चीज़ ऐसी है और उसको थप्पड़ मारती है !

तो वो बच्चा शान्त हो जाता है और अन्दर से मुस्कुराता है कि दोष टल गया ! माना मैं ज़िम्मेवार नहीं हूँ ! वहाँ से इस संस्कार को पक्का कर लेता है कि जीवन में कभी भी कुछ हो जाये ना , तो दोष दूसरों के ऊपर डाल देना है !


इसलिए आज भी किसी व्यक्त्ति से गलती हो जाती है तो वो क्या करता है ….? रोता नहीं है , लेकिन चिल्लाना शुरू कर देता है ! बहुत ज़ोर-ज़ोर से गुस्सा करना शुरू करेगा !

ये सेल्फ डिफेंस है ! गुस्सा करने वाला व्यक्त्ति वास्तव में अपना दोष छिपाना चाहता है कि मेरा दोष नहीं है !

हाँ , दस लोगों ने गुस्सा करने वाले व्यक्त्ति को आकर कह दिया कि अच्छा हुआ आपने उसको पाठ पढ़ाया ! तो वह शान्त हो जाता है कि दोष टल गया ! ज़िन्दगी भर हम इस मनोवृत्ति के साथ जीते हैं !

जब कोई नहीं मिलता है दोष डालने के लिए , तो क्या कहते हैं कि भगवान दोषी है ! दोष भगवान के ऊपर डाल दिया अर्थात् कभी भी हम वो उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेना नहीं चाहते हैं !

कितना भय है मनुष्य में , लेकिन क्या उससे वह छूट जायेगा ? दोष भगवान के ऊपर डाल देने से क्या वह छूट जायेगा ?

कभी नहीं ! इसलिए कर्म का फल तो भोगना ही पड़ेगा ! चाहे उसने भगवान पर दोष डाला अपने मन को सांत्वना देने के लिए कि में निर्दोष हूँ ! ये समझने के लिए है , लेकिन इससे वो निर्दोष नहीं हो जाता है ! इसलिए गीता में भगवान ने अर्जुन से ये बात कही कि हर व्यक्त्ति जो कर्म करता है , उसके लिए वह खुद ज़िम्मेवार है !