Home Gita Gyan गीता अध्याय 1 & 2 E.18 स्वराज्य का सच्चा अर्थ क्या है ?

E.18 स्वराज्य का सच्चा अर्थ क्या है ?

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Spiritual-story
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गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)

“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध” 

The Great Geeta Episode No• 018

आज मनुष्य धीरे-धीरे अपने स्वधर्म से दूर हो गया है और परधर्म के अधीन हो गया है !

स्वधर्म से परधर्म की अधीनता में आ गया है अर्थात् ज्ञान से विपरीत अहंकार के वश हो गया है ! यह अहंकार परधर्म है !

शुद्धि के बजाय मन में अपवित्रता या गयी है ! ये अपवित्रता परधर्म है ! प्रेम के बदले नफरत आ गई है ! ये नफरत ही परधर्म है !

शान्ति के बदले जीवन में क्रोध आ गया है ! ये क्रोध परधर्म है ! जब इस परधर्म के अधीन हो गये तब व्यक्त्ति कभी भी रिलैक्स अनुभव नहीं करता है !

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सात गुणों के बजाय मनुष्य के जीवन में सात अवगुण आ गए हैं , वे हैं काम , क्रोध , लोभ मोह , अहंकार , ईर्ष्या और द्वेष ! इन सात गुणों के परवश हो गया है !

तभी कहा गया है कि हे अर्जुन स्वधर्म सुख का आधार है और परधर्म दुःख का कारण है !

तुम ये परधर्म को ‘तजो’ इसको समाप्त करो और वास्तविक जीवन को भी इस स्वधर्म के आधार पर जीना सीखो !

दुनिया में जितनी भी महान हस्तियां होकर गई हैं , उन महान हस्तियां के जीवन का रहस्य क्या था ?

इनके जीवन में , इन सातो गुणों के आधार से बैट्री फुल चार्ज थी ! हरेक जीवन में यही देखंगे की आध्यात्मिक ज्ञान था आध्यात्मिक विवेक था , पवित्रता थी, ब्रह्यचर्य व्रत था, निःस्वार्थ प्यार उन्होंने संसार की आत्माओं को दिया !

शान्ति से भरपूर उनका जीवन था ! सच्चा सुख अर्थात् आत्म-सुख का अनुभव वे करते थे और दूसरों को भी यही प्रेरणा देते थे !


जीवन में निरन्तर प्रसन्नता, आनन्द समाया हुआ था और आत्मशक्त्ति से वे भरपूर थे ! ये सातों गुणों से उनकी बैट्री फुल चार्ज थी !

इसलिए दुनिया में वे कई आत्माओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गए ! वे तो हमारे जैसे इंसान ही थे और हम भी इंसान ही हैं !

इन्हीं सतोगुण की शक्त्ति को हम जीवन में जागृत करें ! अपनी बैट्री को फुल चार्ज करें तो वास्तविक जीवन स्वधर्म के आधार पर जीना आसान हो जायेगा !

हर संधर्ष में विजयी बनना निशिचत हो जायेगा ! दूसरों के लिए भी प्रेरणा के आधार हम बन जायेंगे !

यही विधि भगवान ने अर्जुन को बतायी और कहा यदि तुम इस युद्ध में मरोगे तो स्वर्ग में राज्य प्राप्त करोगे ! और यदि युद्ध में जीतोगे तो पृथ्वी पर स्वराज्य अधिकार को प्राप्त करोगे !

स्वराज्य अर्थात् आत्मा स्वयं की इंद्रियों के ऊपर राज्य अधिकार को प्राप्त करेगी !

यह युद्ध आसुरी और दैवी संस्कारों के बीच चलता है ! जो व्यक्त्ति अपने आसुरी संस्कारों को जीत लेता है वह स्वर्ग में भी देव पद प्राप्त करने के योग्य बन जाता है !

जहाँ भगवान ने स्वधर्म के आधार पर युद्ध करने की प्रेरणा दी, कैसे हर परिस्थिति में विजयी बनेंगे इसका विशवास भी दिलाया !

ये युद्ध अंतर जगत का युद्ध है जो हर एक के अन्दर समाया हुआ है ! जो कुरूक्षेत्र है वह वह दैवी और आसुरी संस्कार के बीच में है !

हमें अपने जीवन को आसुरी संस्कारों से मुक्त करना है और दैवी संस्कारों से भरपूर करना है ! जिससे हम अपने जीवन के हर संधर्ष में विजयी हो सकें !

यह था पहले और दूसरे अध्याय का सार !

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