गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)

“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध” 

The Great Geeta Episode No• 017

हर चीज़ का अपना गुणधर्म होता है ! पानी का गुणधर्म है-शीतलता , अग्नि का गुणधर्म है-गर्मी !

पानी को कितना भी उबालो फिर उसे छोड़ दो तो वह अपने शीतल स्वरूप को धारण कर लेता है !

भावार्थ यह है कि जैसे हर चीज़ का अपना गुणधर्म है वैसे ही आत्मा का भी अपना गुणधर्म है- ज्ञान , पवित्रता , प्रेम , शान्ति सुख, आनन्द और शक्त्ति !

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E.16 “गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध”

यही सात गुण निरन्तर हम ईश्वर से मांगते रहते हैं ! अपनी प्रार्थनाओं के माध्यम से कि हे प्रभु ! हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर ले चलो , हे प्रभु ! मुझ आत्मा का शुद्धिकरण करो , हे प्रभु ! तू प्यार का सागर है , तेरी एक बूँद के प्यासे हैं हम , हे प्रभु ! शान्ति दो , हे प्रभु ! सुख दो , हे प्रभु ! खुशी दो मेरे जीवन में , हे प्रभु ! शक्त्ति दो , निर्बल को बल दो शक्त्ति दो !

यही सात गुण ईश्वर से हर इंसान माँगता है ! चाहे वह किसी भी धर्म का हो , किसी भी जाति का हो किसी भी देश का हो , यही सात गुण तो माँगते रहते हैं !

सभी धर्म से ऊपर अध्यात्म है ! अध्यात्म अर्थात् जो आत्मा से संम्बधित हो !

अध्यात्म हमें यही सात गुणों को प्राप्त करने की विधि बताता है कि कैसे इन सात गुणों से अपने जीवन को भरें और आत्म-उन्नति को प्राप्त करें !


दूसरे शब्दों में कहें तो यही आत्मा की बैट्री है ! लेकिन आज के युग में ये बैट्री डिस्चार्ज हो गयी है !

इन सात गुणों में से एक भी गुण सम्पूर्ण में रूप नहीं रहा ! बैट्री की शक्त्ति बुहत कम रह गई है !

ऐसी जब हालत हो जाती है तब गीता ज्ञान की आवश्यकता होती है ! जहाँ व्यक्ति को भगवान यही प्रेरणा देते हैं कि ‘ स्वधर्म ‘ को जागृत करो , भीतर जाओ , शान्ति , सुख , प्रेम और आनन्द की अनुभूति करो !

ये बाहर नहीं मिलेंगी, भीतर जाओ ! भीतर जाकर कैसे उजागर करें ? कैसे उस शक्त्ति को बाहर लायें ?

कैसे जीवन के हर संघर्ष में विजयी हों ? जिस आत्मा के पास ये सातों गुणों की शक्त्ति हो , वह जीवन के संघर्ष में कभी भी हार प्राप्त नहीं कर सकता है !

लेकिन जब ये सातों गुण सुषुष्त (Merge) हो जाते हैं , उसको ऊजागर करने की विधि हम नहीं जानते हैं तब जीवन के हर संघर्ष में हार का अनुभव करने लगते हैं !

इसलिए भगवान ने अर्जुन को कहा इनको तुम जागृत करो और उसी के आधार पर युद्ध करो अर्थात् स्वधर्म के संस्कार को जागृत करो !