गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)

“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध” 

The Great Geeta Episode No• 015

जहाँ जब स्वधर्म की बात आती है तो स्वधर्म माना क्या ?

मनुष्य-जीवन को अगर देखा जाए तो ” शरीर और आत्मा ” का जब सम्बन्ध हुआ तब से जीवन प्रैक्टिकल में हुआ !

इस जीवन में अगर देखा जाए तो शरीर की वास्तविकता को हम अच्छी तरह जानते हैं कि ये शरीर माना ही पाँच तत्व !

इसलिए जीवन जीने के लिए शरीर वही पाँच तत्वों की माँग करता है !

SOul and Body truegyantree
SOul and Body truegyantree

आज श्वांस लेने के लिए ऑक्सीजन चाहिए क्योंकि शरीर ऑक्सीजन से बना है , इसी तरह जीवन जीने के लिए पानी चाहिय क्योंकि शरीर में 60 से 70 प्रतिशत पानी का हिस्सा है !

व्यक्त्ति जब पानी पीता है तो यह सोचकर नहीं पीता है कि कितना पीना है , लेकिन जैसे ही शरीर के अन्दर का जल स्तर संतुलित हो जाता है , तो वह पानी पीना छोड़ देता है !

वह अधिक पानी नहीं पीता है कि कल के लिए चलेगा ! ये पाँच तत्व उतनी ही मात्रा में ग्रहण करता है जितनी की शरीर की आवश्यकता होती है !

ये इस शरीर की वास्तविकता है, क्योंकि शरीर उसी पाँच तत्वों से बना हुआ है ! इसी तरह इस शरीर में जो चैतन्य शक्त्ति आत्मा है, आत्मा को भी जीवन जीने के लिए कुछ चाहिए ?

कई बार कई लोग समझते हैं कि आत्मा निर्लेप है ! उसे कुछ नहीं चाहिए , परन्तु नहीं ! आत्मा को कहा जाता है कि ” आत्मा सतोगुणी ” है !

सतोगुणी अर्थात् उसको भी जीवन जीने के लिए सात गुणों की आवश्यकता है ! वे सात गुण कौन से हैं जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं ?

ज्ञान, प्रेम, पवित्रता आनन्द , सुख, शान्ति और शक्त्ति ! सर्वप्रथम उसे ‘ आध्यात्मिक ज्ञान ‘ चाहिए ! आध्यात्मिक ज्ञान क्यों ?

क्योंकि इसी आध्यात्मिक ज्ञान से मनुष्य जीवन में रहा हुआ अज्ञानता का अंधकार समाप्त होता है ! मनुष्य जीवन में सबसे बड़ा अज्ञान अगर है तो वो है ‘ अहंकार’ !

आज अहंकार के कारण मनुष्य के कर्म कैसे होने लगे हैं ? मनुष्य के सम्बन्धों में कितने कलह कलेश उत्पन हो रहे हैं कितने परिवार टूट रहे हैैं !

आज मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता क्यों है ? कियोंकि आध्यात्मिक ज्ञान ही इस अज्ञान को खत्म कर सकता है !

जब अहंकार समाप्त हो जाता है तब आपसी सम्बन्धों में मधुरता आती है जिससे हम आपस में एक अच्छी समझ डेवलप कर सकते हैं !

इसलिए आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता होती है ! उसी के साथ-साथ जीवन में शुद्धि और पवित्रता भी चाहिए !

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