E.12 अर्जुन कौन है ?

अर्जुन अर्थात् आज के युग में इच्छाओं और सम्बन्धों के जाल में फंसा हुआ व्यक्ति , उसकी चेतना का प्रतीक है !

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गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)

“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध” 

The Great Geeta Episode No• 012

अर्जुन ने इतने युद्ध किये तब तो अकेले हाथ किये ! उसके साथ और कोई नहीं था , जो और किसी के मरने का सवाल आये !

Arjun & Krishna
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लेकिन महाभारत के समय जब वो दोनों सेनाओं को देखता है ! अपनी सेना में भी पुत्र-पौत्रों सबको देखता है !

  • उनकी शक्त्ति पर उसको भरोसा नहीं था और वो जानता था कि अगर हमने कौरवों की सेना में से कुछ लोगों को मारा तो कौरव भी हमारे पुत्र-पौत्रों को ज़रूर मारेंगे !
  • इस युद्ध में हमारे यदि सारे पुत्र मारे गए , खत्म हो गए और उसके बाद मैं राज्य प्राप्त करूँ तो क्या फायदा ?
  • इसलिए उस समय उसका मोह विशोषकर अपने पुत्र-पौत्रों को देखकर जागृत हो गया ! इस भय के कारण कि वह युद्ध में अपने मित्र-सम्बंधियों को खो देगा जिसके साथ उसका अति प्यार है !
  • इसलिए आज उसको युद्ध एक घृणित कार्य जैसा लग रहा है ! उसे लगा कि जैसे इसमें मुझे पाप के सिवाय कुछ नहीं प्राप्त होगा !
  • इसलिए वो बार-बार भगवान के सामने अर्जी करने लगा और अपना विषाद प्रकट करने लगा कि मुझे ये युद्ध नहीं करना है ! ये उसका मोह बोल रहा था ! 
    यहाँ अर्जुन अर्थात् आज के युग में इच्छाओं और सम्बन्धों के जाल में फंसा हुआ व्यक्ति , उसकी चेतना का प्रतीक है !
  • हमारे मन में भी गुण और अवगुण के बीच निरंतर युद्ध चलता रहता है ! जब मन थका हुआ होता है और आसुरी शक्त्तियों के साथ युद्ध करने के लिए तैयार नहीं होता है तो बुद्धि भी आसुरी वृत्तियों के आगे हारने लगती है !
  • जैसे किसी के घर में कोई लम्बी बीमारी से पीड़ित हो तो वो सोचता है कि इससे को अच्छा था कि जीवन नष्ट हो जाता !
  • कई जगह ये देखा गया है कि पारिवारिक कलह , क्लेष के कारण किस प्रकार व्यक्त्ति थक जाता है और कई बार कई लोगों को जीवन में बार-बार असफलता मिलती रहती है इस कारण भी वे थक जाते हैं और सोचते हैं कि जीवन में संधर्ष कब तक करते रहेंगे ?
  • अर्जुन माना आज के युग में इच्छाओं और सम्बन्धों के जाल में फंसा हुआ व्यक्ति है ! जो आसुरी शक्त्तियों के आगे युद्ध करते-करते थक गया है !
  • इसलिए वो आगे युद्ध करना नहीं चाहता है !
  • उस समय भगवान दूसरे अध्याय में ‘सांख्ययोग ‘अर्थात् ‘ ज्ञान-योग की बातें सुनाते हैं !

उसमें मुख्य बात यही बताते हैं कि आत्मा शाश्वत है आत्मा एक अविनाशी सत्ता है !