गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)
“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध”
The Great Geeta Episode No• 010
श्रीमदभगवदगीता का प्रथम श्लोक, जब धृतराष्ट संजय से पूछता है कि हे संजय !
धर्मक्षेत्र और कुरूक्षेत्र में क्या हो रहा है? इसका हाल मुझे सुनाओ! ये नहीं कहा कि कुरूक्षेत्र और धर्मक्षेत्र में क्या हो रहा है ? नहीं !
धर्मक्षेत्र और कुरूक्षेत्र अर्थात् जहाँ वे सभी इकट्ठे हुए हैं , जो धर्म का आचरण करना नहीं जानते हैं , ऐसा धर्मक्षेत्र ! ‘ ये जीवन ही एक धर्मक्षेत्र है ‘ जहाँ इंसान को नित्य धर्म को आचरण में लाना चाहिए !
जब वह नहीं ला सकता है , तब यही कुरूक्षेत्र बन जाता है अर्थात् युद्ध करने का स्थान बन जाता है !
जहाँ एक तरफ दैवी संस्कार हैं तो दूसरी तरफ आसुरी संस्कार हैं , एक तरफ सदगुण है तो दूसरी तरफ दुर्गुण है !
ये सदगुण और दुर्गुण के बीच , दैवी और आसुरी संस्कार के बीच का युद्ध है ! उसका हाल मुझे सुनाओ की वहाँ पर क्या हो रहा है ?
कुरूक्षेत्र केवल हरियाणा प्रदेश का मैदान नहीं है ! कुरूक्षेत्र का मैदान तो आज भी वहाँ पर है , लेकिन उस मैदान को देखते हुए अन्दर में ये विचार आता है कि आक्षोणी सेना यहाँ खड़ी कैसे हुई होगी !
एक कुरूक्षेत्र हम सब के भीतर है , हमारी अंतर्चेतना में ! शरीर को ही श्रेत्र कहा , जहाँ धर्मक्षेत्र और कुरूक्षेत्र दोनों ही हैं ! कैसे ?
जब शरीर रूपी श्रेत्र में दैवी संस्कारों का प्रभाव विशेष होता है तब वह धर्मक्षेत्र बन जाता है !
जब आसुरी संस्कारों का प्रभाव कर्मेन्द्रियों पर पड़ता है , तब यही संधर्ष का एक श्रेत्र , कुरूक्षेत्र बन जाता है !
पंच महाभूत , अहंकार युक्त्त मन और बुद्धि , दसों इंन्द्रयां विशेष- शब्द , स्पर्श , रूप , रस और गंध और इच्छा , द्वेष , सुख दुख , संघात तथा जीवन के लक्षण इन सबको कर्म का क्षेत्र कहा जाता है !
अर्थात् ये कुरूक्षेत्र है !
Very important knowledge