गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)
“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध”
The Great Geeta Episode No• 007
- कहा जाता है कि महाभारत में जो हुआ , वो कुरू परिवार में हुआ ! कुरू शब्द का अर्थ है ‘ करो अथवा करना ‘ पाण्डव और कौरव कुरू परिवार के सदस्य थे !
- यहां पर प्रशन उठता है कि पांडव किसको कहेंगे और कौरव किसको कहेंगे !
- शास्त्रों में दिखाते हैं कि , जब दोनों में कई प्रकार के मतभेद की बातें हो गयीं तो उनका इकट्ठा रहना मुशिकल हो गया !
- तब दोनों ही भगवान के पास मदद मंगाने के लिए जाते हैं ! पाण्डव की ओर से अर्जुन जाता है और कौरव की ओर से दुर्योधन जाता है !
- उस समय कहा जाता है कि अर्जुन विनम्र भाव से हाथ जोड़कर भगवान के पैरों के पास खड़ा होता है और दुर्योधन जो अहंकार का प्रतीक है , वह सर के पास जाकर बैठता है !
- जब दोनों भगवान से मदद माँगते हैं तब दुर्योधन पहले अपना हक जताते हुए कहता है कि यहाँ पहले मैं आया हूँ इसलिए पहले माँगने के लिए मुझे कहा जाए तो भगवान मुस्कराते हुए कहते हैं ठीक है, पहले तुम माँगो !
- उस वक्त्त भगवान ने उनसे पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए ? एक तरफ मैं हूँ तो दुसरी तरफ अक्षौणी सेना है तुम्हें क्या चाहिए ? जिस तरफ मैं रहूँगा, मैं युद्ध नहीं करूँगा ! उस समय दुर्योधन भगवान की शक्त्ति को पहचान नहीं पाया !
- इसलिए उसने सोचा कि अगर भगवान युद्ध करने वाले ही नहीं है तो उनको माँगने से क्या फायदा ! इसलिए उसने कह दिया कि मुझे आक्षौणी सेना चाहिए !
- भावार्थ यह है कि जैसे कहा गया है कि ‘ विनाश काले विपरीत बुद्धि विनश्यन्ति ‘ जब उसके विनाश का समय आ गया तो ऐसे समय में उसकी भगवान के साथ प्रीत ही नहीं थी अर्थात् विपरीत बुद्धि थी !
- अर्जुन जिसकी ईश्वर के साथ प्रीत थी , वो भगवान की शक्त्ति को बुहत अच्छी तरह से जानता था !
- भगवान अगर युद्ध नहीं भी करेंगे तो भी उनमें विजय दिलाने की क्षमता है !
- इसलिए उसने विनम्र भाव से कह दिया कि भगवन आप मेरे लिए सब कुछ हैं !
- भावार्थ यह है कि भगवान की शक्त्ति को पहचानने के लिए जीवन में विनम्रता चाहिए !
- अहंकार से भरा हुआ व्यक्ति भगवान से कभी प्रीत नहीं कर पाता और भगवान की शक्त्ति को भी पहचान नहीं पाता है !
- दुनिया में आज महाभारत जैसी स्थिति हो गयी है ! ऐसे समय में हम जितना विनम्र रहना सीख लेते हैं तो हर क्षण भगवान को अपने साथ महसूस करते हैं !
- यदि हम अपने अहंकार में रहेंगे कि हम सब कुछ कर सकते हैं तो हम भगवान से विपरीत हो जाते हैं !
- जो विपरीत हो गया वह विनाश को अवश्य ही प्राप्त करता है !
- ऐसी परिस्थिति में हमें किस प्रकार की मनोस्थिति का होना चाहिए ये श्रीमदभगवदगीता स्पष्ट करती है !