E.4 बुद्धिवानों की बुद्धि- भगवद गीता

जब जीवन जीना मनुष्य को कठिन लगने लगता है ! उसके पास कुछ भी नहीं बचता उसका विशवास , उसके मूल्य , उसका धर्य , दया सबकी हदें टूटने लगती हैं , तब कुछ लोग ऐसे भी हैं , जो उस में ही अपना जीवन नष्ट कर देते है क्योंकि सही विधि उनके पास नहीं होती है !

869

गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)

“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध” 

The Great Geeta Episode No• 004

  • जैसे दिखाते हैं कि कौरव और पांडव एक परिवार के सदस्य थे !
  • पारिवारिक स्थिति के अन्दर जिस प्रकार की समस्या उनके सामने आई तो इस प्रकार की पारिवारिक स्थिति की समस्या का समाधान भी इसमें प्राप्त होता है !
  • इतना ही नहीं लेकिन उस समय जो समाज की स्थिति थी वैसी ही स्थिति आज के समाज में भी देखने को मिलती है !

श्रीमदभगवदगीता में सामाजिक स्थिति का समाधान भी प्राप्त होता है तो एक राष्टीय स्थिति का समाधान भी इस पवित्र पुस्तक में दिया गया है !

  • सारी वैशिवक स्थिति का समाधान भी इस पवित्र पुस्तक में दिया गया है !
  • इसका भावार्थ यह है कि इसमें एक मनुष्य की मनोदशा से लेकर के वैशिवक स्थिति तक की समस्याओं का समाधान इस पवित्र पुस्तक में भगवान द्वारा दिया गया है , इसलिए यह पुस्तक विशेष है !
  • आज की दुनिया में कहा जाता है कि प्रत्येक व्यक्त्ति को जीवन में एक ऐसे चुनौती-पूर्ण दौर से गुज़रना पड़ता है !
  • जब जीवन जीना मनुष्य को कठिन लगने लगता है ! उसके पास कुछ भी नहीं बचता उसका विशवास , उसके मूल्य , उसका धर्य , दया सबकी हदें टूटने लगती हैं , तब कुछ लोग ऐसे भी हैं , जो उस में ही अपना जीवन नष्ट कर देते है क्योंकि सही विधि उनके पास नहीं होती है !
  • जिस तरह का परिवर्तन समय चाहता है , उस चुनौती पूर्ण दौर से गुज़रने के लिए व परिवर्तन अपनाने की क्षमता उनके पास नहीं थी !
  • जब उनकी आंतरिक हदें टूट जाती हैं और वे अपने आपमें असमर्थ महसूस करने लगते हैं , अपने को शक्त्तिहीन समझने लगते हैं तब ऐसे समय में भगवान , जिसको बुद्धिवानों की बुद्धि कहा गया है|
  • वे आ करके हमें एक सर्वोत्तम बुद्धि प्रदान करते हैं जिससे कैसी भी समस्याओं का हल प्राप्त करने के लिए एक विवेक शक्त्ति हमारे अन्दर जागृत हो जाती है और उसी के आधार से हम उसको पार कर सकते हैं !