जो बिलकुल हमारे साथ जो कुछ भी होता है वो हमारे किये हुए कर्म अनुसार ही होता है।
इसलिए परमात्मा ना तो किसी के गलत कर्म करने पर उसे दुःख देते हैं और ना ही किसी के अच्छा करने पर उसे शाबाशी देते है । परमात्मा सर्वशक्तिमान है आल माइटी अथॉरिटी है। वो चाहे तो क्या नहीं कर सकता। वो सबके कर्मो को देख सकता है लेकिन उसे हमारे कर्मो को देखने की जरूरत ही नहीं है और अगर वो देखता भी है तो साक्षी रहता है वो न तो अच्छे कर्म करने वालो की वाहवाही करता है और न बुरे कर्म करने वालो की निंदा। वो त्रिकाल दर्शी है…
त्रिकालदर्शी का अर्थ है
तीनो कालों को जान्ने वाला ।
यानि भुत वर्तमान और भविष्य को जानते हुए सब कुछ साक्षी हो कर देखने वाला । और वो केवल परमात्मा ही हैं इसलिए परमात्मा कभी दुखी या खुश नही होते । जबकि हम आत्माए प्राप्ति पर खुश और नुकसान पर दुखी होते रहते हैं और उसके लिए फिर भगवान को दोष देते हैं इसलिए कौन अच्छा कर्म करता है कौन बुरा |
परमात्मा के उसे देखने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योकि दुःख और सुख तो हमारे ही कार्मिक खातो के अनुसार हमे मिलता है। जो हम बोते हैं वही हमे काटना पड़ता हैं।
भगवान तो केवल सुखी होने का रास्ता बताते हैं उनकी मत पर जो चलते हैं वो सुखी रहते हैं और जो अपनी मत पर चलते हैं वो गलत कर्म करते रहते हैं और दुखी रहते हैं ।
इसलिए कुछ लोग कहतें है कि जब कोई इंसान दूसरे इंसान का मर्डर कर देता है तो उस समय अगर भगवान है तो उसकी मदद क्यों नही करता।
लेकिन क्योकि भगवान उसके पिछले जन्मों के कर्मो को जानता है इसलिए वो साक्षी रहता है क्योकि हो सकता है किसी जन्म में उस आत्मा ने उसके साथ इससे भी बुरा किया हो तो अगर भगवान आज उसकी मदद करेगा तो दूसरे के साथ अन्याय होगा।
यही भगवान हमे समझाना चाहते हैं कि हर बात को साक्षी हो कर देखो। इसलिए बजाय ये सोचने के क़ि वो हम सबके हर कर्म को देख रहा है या नहीं देख रहा हमे हमे कर्मो को सुधरने पर बल देना है क्योकि उसके देखने या ना देखने से हम उस कर्म के फल से बच नहीं सकते।
दूसरी बात सब कुछ प्रभु की इच्छा से नहीं होता। आप खुद सोचो कि अगर सब कुछ परमात्मा की मर्जी से होता तो जो आज दुनिया की जो हालत है वो कभी भी नही होती। क्योकि ये तो आप भी मानते हो कि परमात्मा हमारे माता पिता हैं तो क्या कोई माता पिता ये चाहेंगे कि उनके बच्चे दुखी हो।
या ये चाहेंगे कि उनका कोई बच्चा तो दुखी रहे और कोई सुखी रहे। इस दुनिया में आज जो कुछ भी हो रहा है उसके जिम्मेवार हम स्वयं है। हमारे द्वारा ही किये हुए अच्छे और बुरे कर्म हैं।और उन्ही कर्मो का अच्छा और बुरा फल हमे सुख और दुःख के रूप में भोगना पड़ रहा है । हमारे साथ घटने वाली हर एक घटना हमारे ही पास्ट के कर्म सम्बन्धो पर आधारित होती है।कर्मो की गति बहुत ही गुह्य है।
भगवान कहते हैं कि अगर हमारे मन में किसी के प्रति कोई गलत संकल्प भी आता है तो वो भी हमारा पाप का खाता बना देता है। ये बात भी बिलकुल सच है कि आज अगर हम दुखी है और दूसरा सुखी है तो अपने ही पास्ट कर्मो के कारण।
एक बच्चा इस दुनिया में जन्म लेते ही कई बीमारियो से पीड़ित है जबकि उसने तो अभी आ कर कोई कर्म किया ही नही। तो इसका मतलब साफ है कि जरूर ये उसके पिछले जन्मों का कोई कर्म भोग है।
कई बार हमारे मन में ये प्रश्न उठता है कि आज जो लोग गलत कर्म कर रहे हैं वो बहुत सुखी हैं लेकिन आज अगर वो सुखी हैं तो ये उनके ही पास्ट के किसी पूण्य कर्म का फल है दूसरी और वो व्यक्ति जो आज बहुत अच्छे कर्म कर रहें हैं लेकिन दुखी है तो उनके दुःख का कारण भी उनके द्वारा ही किया हुआ कोई पास्ट का कर्म है।
एक बात और clear होनी चाहिए कि भगवान को माने या ना माने इस बात से उसके जीवन में घटित होने वाली घटना टलेगी नही क्योकि हमारे सुख दुःख हमारे द्वारा किये हुए कर्मो पर आधारित हैं । जो हमने बोया है उसका फल हमे ही काटना है
दूसरे आपको जानना चाहिए कि गॉड को याद करने से क्या फायदा है ….
भगवान की याद से हमे उन्हें भोगने की शक्ति मिलती है जिससे हम अपने कर्म भोग आसानी से चुक्तू कर लेते है और दूसरी बात भगवान की मत पर जब हम चलते हैं तो पाप कर्मो और आगे आने वाले उनके दुःख के परिणाम से बच जाते हैं ।
बाकि भगवान को मानने से हमारे द्वारा किये हुए कर्मो के अच्छे या बुरे फल से हम कभी नही बच सकते।
परमात्मा का धयान हमे इसलिए करना है ताकि अब कोई बुरे कर्म न हो और कर्म भी तो तभी अच्छे होंगे जब हमे ये ज्ञान होगा कि कौन से कर्म अच्छे हैं और कौन से नहीं और वो ज्ञान सिवाय परमात्मा के और कोई नहीं दे सकताअगर दे सकता तो आज सब इतने दुखी क्यों होते जबकि भारत में तो लोग इतने कर्म कांड, भक्ति सब करते हैं |
किसी को मारना, चोरी करना हम तो केवल इन्हें ही बुरे कर्म समझते आये लेकिन परमात्मा ने आ कर बताया कि किसी के प्रति गलत संकल्प चलना भी बुरा कर्म है जो हमारे दुःख का कारण बनता है |
इसके अलावा आत्मा ने अब तक जो भी बुरे कर्म किये हैं वो परमात्मा की याद से ही नष्ट होंगे और जब हम परमात्मा की याद में रहेंगे परमात्मा के साथ योग लगायेगे तो योग का बल जैसे जैसे आत्मा में जमा होने लगेगा आत्मा शक्तिशाली बनती जायेगी और किसिस भी परिस्थिति में विचलित नहीं होगी।
यहाँ परमात्मा या भगवान् से अर्थ उस निराकार ज्योतिर्स्वरूप सभी आत्माओ का पिता परमात्मा है। न की ईसा कृष्ण राम बौद्ध।
यहाँ भक्ति की बात नहीं हुई ज्ञान की बात हुई है। क्योकि भक्ति तो हम करते ही आये है किन्तु संसार में दुःख कम न होकर और ही बढ़ गया है।
इसलिए स्वयं को आत्मा समझ उस परमपिता को याद चलते फिरते भी याद करने से पाप कर्म भस्म हो जायँगे और पूण्य कर्मो का खाता शुरू।