गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (अठारहवाँ अध्याय )
“जीवन जीने की सम्पूर्ण विधि “
The Great Geeta Episode No• 061
धर्म और ज्ञान
जैसे आजकल की दुनिया के अन्दर हम ये बात बार-बार सुनते हैं कि कोई व्यक्त्ति कहता है कि मैं गुस्सा करना चाहता नहीं हूँ लेकिन आ जाता है, तो ये बात क्या सिद्ध करती है कि गुस्सा करना चाहता नहीं हूँ , लेकिन क्रोध आ जाता है अर्थात् वो प्रकृति, वो संस्कार उसको मजबूर कर रहा है गुस्सा करने के लिए ! तो इस प्रकार कमज़ोरी के संस्कार हमें अपनी तरफ खीचेंगे और मजबूर करेंगे ! जो कमज़ोरी के संस्कारों के वश जीवन जीता है, उसकी गति क्या हो सकती है ? वह नष्ट हो जायेगा ! वो परमात्म कृपा को अनुभव नहीं कर पाता है !
अर्जुन को भारत क्यों कहा गया ?
इसलिए हे भारत ! यहाँ अर्जुन को भारत क्यों कहा गया ? क्योंकि एक अर्जुन की बात नहीं है, सारे भारतवासी अर्जुन हैं ! इसलिए हे भारत, सभी भारतवासी सम्पूर्ण भाव से उस ईश्वर की शरण ग्रहण करो, उसकी कृपा से परम शान्ति को प्राप्त करो और इस प्रकार अपनी कमज़ोरी के जो संस्कार हैं, स्वभाव हैं, उनको खत्म कर दो, ताकि वो हमें मजबूर न करें प्रवृत्त होने के लिए ! उसी के साथ भगवान कहते हैं इस प्रकार ये गुह्य गोपनीय ज्ञान मैंने तेरे लिए कहा है ! इसलिए मैं तेरे हित के लिए कहूँगा !
तू मेरा मित्र है
भगवान यहाँ दोस्ती के भाव व्यक्त्त करता है और कहते हैं – तू मेरा मित्र है, अति प्रिय है इसलिए मैं तुम्हें हित की ही बात कहूँगा ! इस पर पूर्ण विचार करने के पश्चात् तेरी जैसी इच्छा हो वैसा करना ! इतना कहकर भगवान भी न्यारा हो जाता है ! इतनी अच्छी ज्ञान की बात सुनाने के बाद भी हमारे ऊपर वह थोपने का प्रयास नहीं करता है कि तुम्हें मेरी बात को मानना ही चाहिए नहीं ! कितनी निर्माणता व्यक्त्त करते हैं ! वे हमें सिखाने का प्रयत्न करते हैं ! ये गुह्य गोपनीय ज्ञान मैने तेरे के लिए ही कहा है, क्योंकि तू मेरा अति प्रिय है ! इसलिए मैं तुम्हें हित की बात ही कहूँगा ! परन्तु फिर भी इस पर पूर्ण विचार करने के पश्चात् ही जैसी तेरी इच्छा हो, वैसे करना ! इतना न्यारा, निराला है परमात्मा !
फिर भगवान कहते हैं कि मेरा चिंतन करने से, मेरा अनन्य भक्त्त बनने से तुम निशिचत रूप से मेरे पास आओगे, ये मेरा वचन है ! भगवान भी वचनबद्ध हो जाता है ! कितना सुन्दर ये एक आश्वासन मिलता है कि अगर हम ईश्वर का चिंतन करेंगे , उसके अनन्य भक्त्त बन जायेंगे , तो निशिचत ही ईश्वर के पास चले जायेंगे ! ये भगवान का वचन है हमारे लिए ! इसलिए हे अर्जुन, सर्व धर्मों का परित्याग अर्थात् जो अनेक हद के धर्म में आ गये हैं कि ये मेरा धर्म है, ये तेरा धर्म है, या इस प्रकार की भावनाओं में हम जो आ गये हैं, तो सर्व धर्म का परित्याग करके, तुम मेरी शरण में आ जाओ ! इससे श्रेष्ठ धर्म और कोई नहीं है !
धर्म
धर्म माना जो हमें श्रेष्ठ आचरण करना सिखाए , धर्म माना जो जीवन में श्रेष्ठ धारणा करना सिखाए, ये हे सच्चा धर्म ! बाकी धर्म के नाम पर लड़ाई-झगड़े को बढ़ावा देना ये कोई धर्म नहीं है ! इसलिए भगवान कहते हैं तुम सर्व धर्म का परित्याग करके मेरी शरण में आ जाओ, तो मैं तुम्हें सर्व पापों से मुक्त्त कर दूंगा ! ये भी भगवान का वचन हम आत्माओं के प्रति है ! सब दैहिक धर्म को छोड़कर एक ही धर्म हमारा है कि मैं आत्मा परमात्मा की सन्तान हूँ और परमात्मा की सन्तान होने के नाते मेरे कर्म कैसे होने चाहिए, मेरी विचारधारा कैसी होनी चाहिए ? मेरी जीवन की धारणायें कैसी होनी चाहिए ? यह स्पष्ट हो जाता है !
जिस प्रकार आज एक राजा का बेटा राजकुमार है ! उस राजकुमार को सिखाना नहीं पड़ता है कि तू राजा का बेटा है इसलिए तुम्हें कैसे चलना चाहिए ? कैसे बोलना चाहिए ? कैसे खाना चाहिए ? कैसे व्यवहार करना चाहिए ? सिखाया नहीं जाता है और यह सीखाने वाली बात नहीं है ! लेकिन जैसे ही यह स्मृति अन्दर में रहती है कि मैं राजा का बेटा राजकुमार हूँ तो अपने आप वो संस्कार राजसी आने लगते हैं ! अपने आप उसके बोल-चाल , व्यवहार , कर्म में वो राजसी भाव झलकने लगता है !
ठीक इसी प्रकार अगर हम भी ये स्मृति में रखें कि मैं परमात्मा की सन्तान हूँ, इससे बड़ा धर्म और क्या हो सकता है ! मैं आत्मा परमात्मा की सन्तान हूँ और इस स्मृति को जागृत रखें तो हमारा बोल-चाल, व्यवहार, कर्म कैसा होगा ? क्या परमात्मा के बच्चे कहलाने जैसा में हूँ ? स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि इससे बड़ा आईना और कोई नहीं है कि मैं परमात्मा की सन्तान, तो मेरी विचारधारा कैसी होनी चाहिए ! मेरे विचारों में किसी के प्रति द्वेष की भावना नहीं होनी चाहिए !
अगर हम भगवान के बच्चे, दुनिया की सुप्रीम अथॉरिटी, ब्रह्याण्ड के, तीनों लोको के ब्रह्याण्ड के जो मालिक हैं, उसके हम बच्चे हैं तो हमारा उठना, बैठना, चलना, फिरना , बोलना, व्यवहार करना सब कैसे होना चाहिए ? इससे बड़ा और धर्म और क्या हो सकता है ! इसलिए भगवान ने कितना स्पष्ट शब्दों में कहा कि हे अर्जुन , सर्व धर्मों का परित्याग करके मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें सर्व पापों से मुक्त्त कर दूंगा ! उसके लिए सहज भाव यही है कि उस स्मृति को हम जागृत करें !
गोपनीय ज्ञान
आगे भगवान ने कहा यह गुह्य गोपनीय ज्ञान ऐसे पुरूष को कभी नहीं कहना जो आत्म-संयमी न हो, जो एक निष्ठ ( devotee) न हो, जो भक्त्त न हो, और जो भगवान से द्वेष करता हो ! उनको यह गुह्य ज्ञान समझ में आने वाला नहीं है ! यह भक्त्त माना प्रभु प्रिय ! परन्तु जो पुरूष मुझसे प्रेम करके इस ज्ञान का उपदेश मेरे भक्त्तों को बताता है वह शुद्ध स्थिति को प्राप्त कर मेरे पास आएगा ! इस संसार में उससे बढ़कर कोई अन्य सेवक न तो मुझे अधिक प्रिय और कोई होगा भी नहीं ! यह भगवान ने स्पष्ट कह दिया है !
पवित्र ज्ञान
जो इस पवित्र ज्ञान का अध्ययन करता है और श्रद्धा से सुनता और सुनाता है, वह सारे पाप कर्मों से मुक्त्त हो जाता है ! वह उस लोक को प्राप्त कर लेते हैं ! जहाँ पुण्य आत्मायें निवास करती हैं ! कितनी श्रेष्ठ गति को प्राप्त कर लेते हैं ! लेकिन उसके लिए भगवान ने कहा कि प्रतिदिन ज्ञान अध्ययन करने की आवश्यकता है ! जहाँ अध्ययन करने की बात आती है, तो लोग क्या कहते हैं ? हम सब यह चाहते तो हैं लेकिन क्या करें टाइम ही नहीं मिलता है ! आज के युग में लोग सोचते हैं कि इतना फास्ट हम जीवन जीते हैं, इस फास्ट लाइफ के अन्दर टाइम निकालना ज्ञान सुनने के लिए प्रतिदिन, वो भी अध्ययन करने का टाइम निकलना, ये तो बड़ा कठिन लगता है ! यहाँ इस सब के लिए बहुत सुन्दर उदाहरण दिया गया है!
एक बार एक प्रोफेसर अपने बच्चों को कुछ सिखाना चाहते थे ! तो बड़ा कांच का जार लेकर के आये और गोल्फ के बॉल लेकर आए ! बच्चों को कहा ये बॉल हैं, इन्हें जार में भर दो ! सभी ने जार को बॉल से भर दिया तो प्रोफेसर ने कहा कि अभी और जायेगा ! तो बच्चों ने कहा नहीं सर, यह तो भर गया है, अभी और कुछ नहीं जायेगा ! प्रोफेसर ने छोटे-छोटे पत्थर निकाले और कहा डालो उसके अन्दर , जायेगा ! जो गैप थी उसके भीतर से, सारे छोटे-छोटे पत्थर भीतर चले गए ! तो पूछा प्रोफेसर ने कि और कुछ जायेगा तो बच्चों ने कहा कि अब और कुछ भी नहीं जायेगा ये तो फुल हो गया ! प्रोफेसर ने बालू निकाली और कहा कि ये डालकर देखो कि ये जायेगा, वो भी चली गयी ! छोटे-छोटे गैप्स में बालू भी चली गई ! फिर पूछा अभी और कुछ जायेगा ! तो बच्चों ने कहा सर, अब तो बिल्कुल कुछ अन्दर नहीं जा सकता ! प्रोफेसर पानी लेकर आये और कहा डालो, वो भी चला गया !
ठीक इसी प्रकार हमने भी अपनी दिनचर्या को बड़े-बड़े गोल्फ बॉल से भर दिया और कहा कि टाइम कहाँ है हमारे पास ! लेकिन इतना टाइम है कि वो छोटे-छोटे पत्थर भी जा सकते हैं, बालू भी जा सकता है, पानी भी जा सकता है, सब जा सकता है उसमें !
हार्ट अटैक
अब मान लो कि किसी को हार्ट अटैक आ जाए, डॉक्टर उसको कहे कि देख भाई अगर तुझे जीना है तो हर रोज़ सुबह आधा घण्टा पैदल चलना पड़ेगा ! अगर उसने डॉक्टर को कहा कि मुझे तो सुबह समय नहीं मिलेगा , मेरा सारा कारोबार सुबह में ही आरम्भ होता है ! सारे फोन कॉल सुबह में ही शुरू होते हैं और शाम को देखूंगा अगर समय मिला तो पैदल चलूंगा ! तो डॉक्टर क्या कहेगा- तो तुम्हार कुछ नहीं हो सकता और कोई ऑलटरनेट ही नहीं है तुम्हें बचाने का ! तुम्हें अगर बचना है तो तुम अपना समय खुद निकालो और अब यदि उस व्यक्त्ति को अब जीना है तो वह अपनी दिनचर्या को फिर से व्यवस्थित करेगा !
आध्यात्मिक उन्नति
ठीक इसी प्रकार आध्यात्मिक उन्नति के लिए समय निकालना चाहिए ! आजकल डॉक्टर लोग भी कहने लगे हैं कि सत्तर प्रतिशत बीमारी का कारण टेंशन है ! तो टेंशन से फ्री होने के लिए व मुक्त्त होने के लिए, स्वयं को सशक्त्त करने की आवश्यकता है ! मानसिक मनोबल को बढ़ाने की ज़रूरत है ! जब तक मानसिक मनोबल बढ़ेगा नहीं तब तक तनाव से दूर नहीं होंगे और कोई-न कोई रोग बिमारी के शिकार अवश्य होंगे ! इसलिए आत्मा का मनोबल को बढ़ाने के लिए परमात्मा के साथ ध्यान कम-से- कम आधा घण्टा लगाना शुरू करेंगे , तो आत्मा शक्त्तिशाली बनने से शरीर भी ठीक रहेगा जिससे कार्यक्षमता भी बढ़ेगी और हमारे पापकर्म भी विनाश होंगे ! परन्तु याद करने के लिए परमात्मा का याथार्थ ज्ञान का होना अवश्य है !