E.50 संस्कार

गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (तेरहवाँ, चौधवाँ एवं पंद्रहवाँ अध्याय )

“धर्मक्षेत्र और कुरूक्षेत्र का भाव”

The Great Geeta Episode No• 050

संस्कार

✦ संस्कार:- यह आत्मा के किये हुए कर्मो का प्रभाव है जो आत्मा अपने साथ अगले जन्म में ले जाती है इसके आधार पर ही फिर मन में संकल्प उत्पन्न होते है।

✦ संस्कार के बारे में  उदाहरण

दो Identical twins के संस्कार भी same नही है। उन्हें गर्भ में भी एक जैसा ही वातावरण मिलता है। उनका nutrition भी same placenta से होता है। घर में भी उन्हें एक जैसा ही पालना होती है। फिर भी उनका संस्कार अलग क्यों होता है ?
क्योंकि वो पिछले जन्म के अपने संस्कार साथ लेके आते है।

HD Geeta Bodh Aatma Sakshatkaar Hindi 13

✦ संस्कार मुख्यतः पांच प्रकार है।

1. अनादि संस्कार: आत्मा के ओरिजिनल संस्कार पवित्रता प्रेम शांति सुख आनंद ज्ञान व शक्ति
2. आदि संस्कार : दैवी गुण युक्त
3. पूर्व जन्म के संस्कार
4. खानदानी संस्कार (Genetical)
5. संग व वातावरण द्वारा दृढ़ता के संस्कार (Will power )

1. अनादि संस्कार: आत्मा के ओरिजिनल

🌀सबसे प्रथम प्रकार के संस्कार हैं ओरिजनल संस्कार ! ओरिजनल संस्कार अर्थात् सतोगुण के संस्कार !

जब आत्मा अव्यक्त्त से व्यक्त्त रूप में इस संसार के क्षेत्र में आती है अर्थात् परमधाम से पहली बार इस साकारी दुनिया में आती है , तो उस समय उसको सतोगुणी संस्कार होते हैं,

जो आत्मा के सात गुण ( ज्ञान , प्रेम , पवित्रता , सुख , शान्ति , आनन्द और शक्त्ति ) हैं !

ये सातों गुणों से भरपूर अर्थात् दूसरे शब्द में कहें कि उनकी बैट्री (आत्मा ) पूर्ण रूप से चार्ज होती है ! ये उसके ओरिजनल संस्कार हैं !

लेकिन इस संसार में आने के बाद धीरे-धीरे वो अपनी वास्तविकता से दूर हटने लगती है और इस संसार के अन्दर से कई प्रकार विषयों के वशीभूत होने लगती है !

जो सात गुणों से भरपूर संस्कार थे , वे धीरे-धीरे लुप्त होकर के इस दुनिया के बुराईयों के आधार पर संस्कार बनते हैं !

विशोषकर अज्ञानता और अहंकार से युक्त्त उसके कर्म होने लगते हैं ! उस कारण से उसके अन्दर वो संस्कार विशेष रूप से विकसित होने लगते हैं !

2. आदि संस्कार : दैवी गुण युक्त

दूसरे प्रकार के संस्कार है आदि संस्कार अर्थात दैवी गुण युक्त !

36 दैवी गुण :

  1. यर्थातता/ Accuracy
  2. पवित्रता / Purity
  3. गुण ग्राहकता / Appreciation
  4. परोपकार / Benevolence
  5. साहस / Courage
  6. निश्चितता / Carefree
  7. संतुष्टि / Contentment
  8. उदारता / Generosity
  9. न्यारापन / Detachment
  10. दृढ़ निश्चय / Determination
  11. अहंकारहीनता / Egoless
  12. स्वछता / Orderliness
  13. अनुशासन / Discipline
  14. दूरदर्शिता / Frightened
  15. स्फूर्ति / Energetically
  16. सरलता/ Easiness
  17. शुभकामनाए / Good wishes
  18. विनम्रता / Humility
  19. ईमानदारी / Honesty
  20. अंतर्मुखता / Introspection
  21. हल्कापन / Lightness
  22. गंभीर / Maturity
  23. विनम्रता / Politeness
  24. रहम / Mercifulness
  25. आज्ञाकारिता / Obedience
  26. नियमितता / Regularity
  27. धैर्य /Patience
  28. मधुरता / Sweetness
  29. अथक / Tirelessness
  30. शान्ति / Serenity
  31. सहनशीलता / Tolerance
  32. राजसी गौरव / Royalty
  33. मधुरता / Sweetness
  34. आत्मविश्वास / Self Confident
  35. सादगी / Simplicity
  36. निर्भयता / Fearlessness
अव्यक्त से व्यक्त होने के बाद कुछ और संस्कार मर्ज हो जाते है जिनका मूल आधार आत्मा के अनादि संस्कार ही होता है ये संस्कार आत्मा की आठ शक्तियां और 16 कला है !

यह 16 कला इस प्रकार है:

  1. शिक्षा एवं विद्या देने की कला
  2. लेखन कला
  3. प्रशासन करने की कला
  4. हास्य कला
  5. स्वस्थ रहने की कला
  6. व्यवहार की कला
  7. बातचीत की कला
  8. परिवर्तन की कला
  1. व्यर्थ को श्रेष्ठ बनाने की कला
  2. दूसरों को अपना बनाने की कला
  3. सीखने की कला
  4. नेतृत्व कला
  5. आगे बढ़ने की कला
  6. समाने की कला
  7. पालना करने की कला
  8. तनावमुक्त जीवन जीने की कला
8 Powers of Soul Rajyoga

और आत्मा की आठ शक्तियां इस प्रकार है:

  1. विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति – संकीर्ण करने की शक्ति अर्थात्‍ एक कदम पीछे हटते हुए अपने आपको आस-पास के विश्व से अलग कर लेना।
  2. समेटने की शक्ति – यह ऐसी शक्ति है जिससे हम चीजों को समाप्ति की ओर ले जाते हैं और उसके बारे में व्यर्थ विचारों को खत्म कर देते हैं।
  3. समाने की शक्ति – यह दूसरों के विचार और इच्छाओं को स्वीकार कर उन्हें विस्‍मृत करने की शक्ति है।
  4. परखने की शक्ति – यह एक ऐसी क्षमता है जिसमें हम सूक्ष्म रूप से परखते हुए सही-गलत की पहचान कर लेते हैं।
  5. निर्णय करने की शक्ति – यह अनेक विकल्पों में से एक को चुनने की क्षमता है जिसमें आप अपने लिए और औरों के लिए निर्णय लेते हुए उसको अमल में लाते हैं।
  6. सामना करने की शक्ति – यह ऐसी शक्ति है जिससे हम बाह्य और आन्तरिक बाधायें और परीक्षायें, चुनौतियों को हल करते हैं।
  7. सहयोग की शक्ति – सहयोग की शक्ति से हम दूसरों की सेवा अर्थ अपना समय, ध्यान, अनुभव और ज्ञान के साथ उनके साथ खड़े रहते हैं।
  8. सहन करने की शक्ति –  यह ऐसी शक्ति है जिससे हम अपनी बाह्य और आन्तरिक घटनाओं को उनसे प्रभावित हुए बिना सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया देते हैं।

3. पूर्व जन्म के संस्कार

HD Geeta Bodh Aatma Sakshatkaar Hindi 25

🌀 तीसरे प्रकार के संस्कार हैं- पुर्नजन्म के संस्कार !

कोई आत्मा कहाँ से आई, कोई आत्मा कहाँ से आई तो उस जन्म के संस्कार को भी साथ ले आती है जो कई बार दिखाई भी देते हैं ! कोई तीन साल का बच्चा है और कम्प्यूटर चलाने लग गया ! पाँच साल का बच्चा है शास्त्र के श्लोक बोलने लग गया तो कहते हैं कि उसके पुर्नजन्म के संस्कार उदय हो गये ! अब क्या उसी में हुए बाकी सब में नहीं हुए ?

उदय हरेक में होते हैं ! लेकिन इंटेनसिटी ( Intensity ) में फर्क पड़ता है ! किसी में बहुत तीव्र इंटेनसिटी से वो बाहर प्रगट होते हैं ! जिसका प्रभाव स्पष्ट रूप में दिखाई देता हैं ! लेकिन किसी-किसी में स्लो इंटेनसिटी से बाहर प्रगट होते हैं ! तब वो दिखाई नहीं पड़ते, लेकिन वो बीच-बीच में वर्तमान कर्म के साथ इंटरफियर ( Interfere) अवश्य करता है ! कभी-कभी इंसान खुद भी समझ नहीं पाता है कि मैं ऐसे क्यूँ कर रहा हूँ ?

👉 कैसे पुर्नजन्म के संस्कार बीच-बीच में इंटरफियर करते हैं इसको एक रीयल कहानी के रूप में आगे वर्णन करेगें !

कहानी

📈 एक बार एक माता अपने छोटे से बच्चे को पढ़ा रही थी ! बच्चा वैसे कोई बहुत इंटेलीजेंट नहीं था ! के • जी में पढ़ता था ! माता को उस बच्चे से बहुत अपेक्षायें थीं कि मेरा बच्चा हर बात में फ़र्स्ट आना चाहिए और इसलिए उसके प्रति विशेष ध्यान भी देती थी, लेकिन उस बच्चे के मन की एकाग्रता थोड़ी कम थी ! इसलिए पढ़ाते समय स्पेलिंग उसको देती थी वन , टू , थ्री लिखने के लिए ! वो बच्चा जब भी 40 लिखने जाता था तो गलती करता था फोरटी लिखना उसको नहीं आता था, बाकी तो सारी स्पेलिंग ठीक लिख देता था लेकिन फोरटी में उसकी गड़बड़ जरूर होती थी ! अब माँ पीछे पड़ गयी कि फोरटी क्यों नहीं आता !

🍅 एक दिन माँ बाज़ार गई कुछ सब्जी खरीदने के लिए , जब वापस आती है तो देखती है कि बच्चा बाहर खेल रहा है ! तो उसको बहुत गुस्सा आया कि कल तेरा इम्तहान है , तेरे को फोरटी लिखना अभी तक आता नहीं है और तू बाहर खेल रहा है ? तुरन्तु उसने बच्चे को बुलाया ! स्वयं सब्जी काटने बैठी और बच्चे को सामने बिठाया कि चलो स्पेलिंग लिखो ! बच्चे ने लिखना शुरू किया और लिखते-लिखते जब फोरटी पर आया तो फिर उससे गलती हो गयी ! जैसे ही गलती हुई उस माँ को इतना गुस्सा आया कि जो हाथ में चाकू था वही उसको मार दिया ! अब बच्चा तो मर गया ! बाद में इतना रोई , इतना पश्चात्ताप करे कि मैं तो उसको सिखाना चाहती थी ! पता नहीं ये मेरे से कैसे हो गया ? चाकू कैसे चल गया ?

👪अब ये तो हरेक जानता है कि जहाँ माँ का बच्चे के साथ इतना लगाव है , तो वो जान बूझकर तो ऐसा कार्य नहीं करेगी ! लेकिन इसको क्या कहेंगे ? यही कहा जाता है कि वैसे तो उसका रेशनल एक्सप्लेशन अर्थात् तर्कसंगत व्याख्या कोई नहीं है ! लेकिन इतना ही कहा जाता है कि कोई जन्म का इन दोनों आत्माओं के बीच का कर्मों का हिसाब-किताब था ! वो इस जन्म में माँ और बेेटे के रूप में आकर चुक्त्तु हुआ !

👥अब वो पूर्व जन्मों का हिसाब-किताब इस जन्म में भी पच्चीस साल के बाद उभरता है और इतना तीव्र गति से वह पूर्व जन्म का संस्कार क्रियान्वित ( Implemented ) हो जाता है कि वो माँ की बुद्धि या विवेक कार्य नहीं कर पाया कि वो क्या कर रही है ? उसकी इन्द्रियाँ इस प्रकार चल गई , जो उसको पता भी नहीं चला !

ठीक इसी प्रकार काफी सालों तक वो सुषुप्त अर्थात् निष्क्रिय रह सकता है लेकिन जब उसका उदय होने का समय आता है तो कभी-कभी वो पूर्व जन्म का संस्कार इतना तीव्र वेग से चलता है कि समझदार से समझदार व्यक्त्ति भी समझ नहीं पाता कि उससे कैसे ये कार्य हो गया ?

कई बार समझदार व्यक्त्ति कोई गलती कर देेते हैं और उनको पूछो कि ये कार्य कैसे किया ? आप तो इतने समझदार हैं तो क्या कहते हैं ? पता ही नहीं चला कैसे हो गया ? अर्थात् उस वक्त्त पूर्व जन्म के संस्कार ने विवेक के ऊपर अपना कब्जा जमा लिया कि वो किस प्रकार का कर्म करने जा रहा है उसकी सुध-बुध भी उसको नहीं रही ! इस तरह से पूर्व जन्म का संस्कार क्रियान्वित होता है और बीच-बीच में इस जन्म के कर्म के साथ वह इंटरिफअर भी करता है ! जब वो इंटरफिअर करता है तब व्यक्ति की बुद्धि और विवेक काम करना बंद कर देता है और वो कर्म प्रत्यक्ष में हो जाता है ! ये दूसरे प्रकार के संस्कार हैं !

4. खानदानी संस्कार (Genetical)

चौथे प्रकार के संस्कार हैं- खानदानी संस्कार !मात-पिता द्वारा प्राप्त संस्कार !

कोई माँ जैसा है , कोई बच्चा पिता जैसा है और कोई बच्चा दादा जैसा भी हो जाता है ! यानी यू खून के संस्कार हैं !

कहानी

एक बार एक छोटा बच्चा , दस-बारह साल का होगा ! बहुत झूठ बोलता था, बात-बात में झूठ बोलता था ! कई बार झूठ बोलते हुए देखा तो पूछा गया एक बार उससे पूछ गया कि बेटा आप झूठ क्यों बोलते हो , तुम्हें झूठ बोलने से क्या मिलता है ?

वो हँसने लगा और बोला बस ऐसे ही बोलता हूँ ! जब उसका बताया गया कि आप झूठ बोल कर अपना व्यक्त्तित्व कैसे बना रहे हो ? तुम्हारा भविष्य कैसे बनेगा ? उसे कई कहानियाँ सुनाई गई , कई उदाहरण झूठ बोलने के नुकसान पर बताये गये !

वो बच्चा समझदार था , बात को समझ गया ! और बोला कि मैं आज के बाद झूठ नहीं बोलूँगा ! बच्चा जैसे ही बोला कि मैं प्रॉमिस करता हूँ कि कभी झूठ नहीं बोलूँगा , तो पास बैठे बुज़र्ग व्यक्त्ति को हँसी आ गई ! जब उनसे पूछा गया कि आप क्यों हँसे ? तो बुज़र्ग कहने लगा कि इसने ये जो प्रॉमिस किया है , यह भी झूठ है !

जब उससे पूछा कि कैसे कह सकते हैं कि ये झूठ बोल रहा है ? तो बोला इसका दोष नहीं है उसका बाप भी ऐसे ही है ! बिना मतलब उसको झूठ बोलना ही है ! जब तक ये झूठ नहीं बोलते हैं ना तब तक इनकी रोटी हजम नहीं होती है ! इसके दादा को भी मैने देखा था वो भी ऐसा ही था ! ये खानदानी संस्कार है !

कहने लगा आज ये बच्चे ने भले महसूस भी किया लेकिन वो खून थोड़े ही बदली हो गया ! इसलिए पुनः ये झूठ बोलेगा ! उस बात के लिए तो उसको स्वयं पर बहुत मेहनत करनी पड़ेगी ! तब वो संस्कार परिवर्तन कर सकता है !

कहने का भावार्थ यह है कि ये तीसरे प्रकार के संस्कार हैं !

5. संग व वातावरण द्वारा दृढ़ता के संस्कार (Will power )

HD 13. karmeshu kaushalam copy Geeta Ka Bhgwan

पाँचवें प्रकार के संस्कार जो हम इस जन्म में नये बनाते हैं , वे संग के प्रभाव में आ करके , वातावरण के प्रभाव में आ करके बनते हैं !

कई बार हम देखते हैं कि कई बार अच्छे घर के बच्चे होते हैं , परन्तु कहीं बुरी संगत में लग जाते हैं , होस्टल में पढ़ने जाते हैं या बोर्डिंग होती है ! वहाँ जब पढ़ने जाते हैं तब बुरी संगत में लग जाते हैं ! किस प्रकार वो संग के प्रभाव में आकर के ऐसे कर्म करने लगते हैं कि जिस कर्म के कारण उनके संस्कार ऐसे हो जाते हैं !

माँ-बाप को जब पता चलता है और वे उस बच्चे को सावधान करने का प्रयत्न करते हैं कि बेटा ये कर्म ठीक नहीं है हमारे लिए ! तो वह माँ-बाप को छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन वो संग को छोड़ना नहीं चाहता है ! इतना परवश है , इतना पराधीन है उस संग के , उस वातावरण के ! उस आधार पर उसके नये संस्कार बनते हैं ! इन्हीं संस्कारों के आधार पर उसका एक व्यक्त्तित्व बनता है ! इंसान का व्यक्त्तित्व जो है वो एक बर्फ की शिला जैसा है !

जैसे बर्फ की शिला ऊपर से सिर्फ दस प्रतिशत दिखाई देती है , नीचे 90 प्रतिशत भाग उसका दिखाई नहीं देता है ! ठीक इस तरह इंसान का जो व्यक्त्तित्व है , जो हमें दिखाई देता है वह सिर्फ 10 प्रतिशत है ! हम किसी व्यक्त्ति को केवल 10 प्रतिशत जानते हैं , बाकि 90 प्रतिशत उसके व्यक्त्तित्व को शायद वो खुद भी नहीं जानता है ! इतना वो सुषुप्त अर्थात् निष्क्रिय है अन्दर से , जो वो खुद भी नहीं जान पाता है और उसके व्यक्त्तित्व को कंट्रोल करने वाले ये संस्कार जो हैं वह ड्राइविंग फोर्स बन जाते हैं !

अंडर करेंट के रूप में यह उसके व्यक्त्तित्व को कंट्रोल करते रहते हैं ! अब उस संस्कार को अगर खत्म करना हो और अपने व्यक्त्तित्व को परिवर्तन करना हो तो कैसे करें ? उसके लिए जैसे कहा जाता है कि लोहे से लोहा कटता है ! हीरे से हीरा कटता है ! ठीक इसी प्रकार संस्कार से संस्कार को काटा जा सकता है ! अर्थात् इन चारों प्रकार को काटने के लिए पाँचवें प्रकार के दृढ़ता अर्थात् विल पॉवर के संस्कार को जागृत करना होता है ! जिसका वर्णन अगले भाग में होगा !
पाँचवें प्रकार के संस्कार है-दृढ़ता के संस्कार , विल-पावर ( Will Power ) के संस्कार ! 

व्यक्त्ति एक बार अपने मन के अन्दर कोई बात को ठान लेता है , तो उसको कोई रोक नहीं सकता है ! वह इस प्रकार से आगे बढ़ने लगता है कि ये चारों प्रकार के संस्कार निष्क्रिय हो जाते हैं ! इसलिए दृढ़ता की शक्त्ति को जागृत करना होगा ! लेकिन दृढ़ता की शक्त्ति को जागृत कैसे करें ? तो उसके लिए चाहिए पॉजिटव एनर्जी !

किसी भी शक्त्ति को जागृत करने के लिए एनर्जी चाहिए ! सकारात्मक चिंतन की एनर्जी होती है ! क्योंकि विचारों में इतनी शक्त्ति है कि इंसान जो चाहे कर सकता है , बन सकता है- ये विचारों की शक्त्ति है ! इस प्रकार से जितना सकारात्मक विचारों का निर्माण मनुष्य करता है उतनी उसकी दृढ़ता की शक्त्ति जागृत होगी और दृढ़ता की शक्त्ति को जगाने के बाद वो आत्मा पर ही सीधा फोकस होती है !

आत्मा पर फोकस होने से आत्मा के भीतर की क्षमता को बाहर ले आती है ! जब वो क्षमता बाहर आती है उसके बाद आध्यात्मिक ज्ञान उसे दिशा प्रदान करता है ! दृढ़ता की शक्त्ति से आत्मा की शक्त्ति को उजागर तो कर लिया लेकिन उसके बाद आध्यात्मिक ज्ञान, यह उसे दिशा प्रदान करती है कि कहाँ उसको चैनलाईज़ करना है ! जब उसको आध्यात्मिकता के द्वारा दिशा प्राप्त होती है , तब वो व्यक्त्ति महानता के शिखर पर पहुँचता है !
जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द सामान्य बालक नरेंद्र थे ! लेकिन जब उनकी दृढ़ता की शक्त्ति को जागृत किया गया और आध्यात्मिकता के माध्यम से उनको दिशा मिली , तो नरेंद्र स्वामी विवेकानन्द बन गए ! इस तरह से उनका सम्पूर्ण व्यक्त्तित्व परिवर्तन हो गया !

आधिक जाने के लिए YOUTUBE विडियो देखें….

निष्कर्ष

व्यक्त्तित्व के परिवर्तन से जितनी ऊँचाइयों का प्राप्त करना चाहें कर सकते हैं ! लेकिन अगर आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है , तो क्या होता है ? व्यक्त्ति की दृढ़ता तो जागृत होती है और कई बार कई लोगों के अन्दर जिद्द आ जाती है ! उस जिद्द के कारण वो अपनी शक्त्तियों को उजागर तो कर लेते हैं ! लेकिन अगर आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा दिशा नहीं है तो वही व्यक्त्ति हिटलर या आतंकवादी भी बन जाता है !

मरने-मारने की दृढ़ता उसके अन्दर है, लेकिन वो शक्त्ति गलत दिशा में चैनेलाईज़ हो गयी है ! तो आज की दुनिया के अन्दर यही बात देख रह हैं कि जिस तरह समाज के अन्दर या विश्व के अन्दर परिवर्तन नजर आने लगा है यह परिवर्तन नकारात्मक शक्त्तियों को उजागर करता है ! उनको भी उजागर करने के लिए निगेटिव विचारधारा बार-बार दी जाती है ! जिससे उसका मानसिक स्वरूप जो है, वही बन जाता है !

वही मानसिकता उसकी विकसित हो जाती है , दिशा न होने के कारण वह अपनी शक्त्ति को गलत दिशा में चैनेलाईज़ करके , मरने मारने के लिए तैयार हो जाता है, ये पाँच प्रकार के संस्कार हर आत्मा में होने के कारण एक आत्मा न मिले दूसरे से ! क्योंकि जैसे , जिसके संस्कार होते हैं वैसा ही उसका स्वरूप स्वभाव होता है ! जैसा जिसका नेचर होता है वैसे ही उसके फीचर्स होते हैं !

आज दुनिया के अन्दर करोड़ों मनुष्य हैं, लेकिन एक के फीचर्स न मिलें दूसरे से , एक का नेचर न मिले दूसरे से , एक के संस्कार न मिले दूसरे से , एक का कर्म न मिले दूसरे से, एक की विचारधारा न मिले दूसरे से-इसलिए हर इंसान भिन्न है ! हर आत्मा अजर , अमर , अविनाशी है पर अपने शाश्वत् स्वरूप में हर आत्मा भिन्न है !

B K Swarna
B K Swarnahttps://hapur.bk.ooo/
Sister B K Swarna is a Rajyoga Meditation Teacher, an orator. At the age of 15 she began her life's as a path of spirituality. In 1997 She fully dedicated her life in Brahmakumaris for spiritual service for humanity. Especially services for women empowering, stress & self management, development of Inner Values.

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