गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पाँचवां और छठाा अध्याय )
“परमात्म-अवतरण एवं कर्मयोग”
The Great Geeta Episode No• 034
आत्मा का स्थान
भगवान अर्जुन को ध्यान की प्रक्रिया बताते हैं कि हे अर्जुन !
बाहर के विषयों , दृश्यों का चिंतन नहीं करो !
अपने अंतर्चक्षु को भृक्रुटी के बीच स्थित करो !
क्योंकि यही आत्मा का अनादि स्थान है !
इसलिए मनुष्य मन्दिर में जाता है , तो आत्मस्वरूप का भाव प्रगट करने के लिए वो तिलक लगाता है !
भारत में प्रथा है कि मन्दिर में जब जाते हैं तो चमड़े की चीज़ को बाहर उतारते हैं , फिर अन्दर जाकर के तिलक लगाते हैं ! यहाँ ही क्यों लगाया ?
क्योंकि वहीं आत्मा का निवास स्थान है ! उसके बाद भगवान की मूर्ति के आगे हाथ जोड़कर के नमन करते हैं !
ये प्रथा चलती आई है ! परन्तु उसके पीछे का भाव कभी किसी ने नहीं समझा की चमड़ें की ही चीज़ को बाहर क्यों उतारा ! वो चमड़ा तो उतार दिया लेकिन वास्तव जो देह अभिमान रूपी चमड़ा को बाहर उतारने की बात है ! फिर अन्दर आकर के तिलक लगाया माना स्वयं को देह नहीं आत्मा समझा !
मैं एक शुद्ध पवित्र आत्मा हूँ इस भाव को विकसित करो ! फिर भगवान की मूर्ति के आगे जाकर के हे प्रभु !
मैं फलाना आपको नमन नहीं कर रहा हूँ , लेकिन मैं आत्मा आपकी सन्तान आपको अपनी भावनायें अर्पित कर रहा हूँ !
कितना सुन्दर भाव है ये ! लेकिन क्या कभी हम इस भाव के साथ में गए ? नहीं , तो आज के बाद हमें इस भाव को विकसित करना चाहिए !
भगवान ने इसलिए इस भाव को विकसित करने के लिए अर्जुन को कहा कि बाहर के दृश्यों और विषयों का चिंतन नहीं करो !
जब भी मेडिटेशन में बैठो , ध्यान में बैठो , परमात्मा के सम्मुख बैठो तो उस समय बाहर के विषयों और दृश्यों का चिंतन नहीं करो !
लेकिन अपने अंतर्चक्षु को फालना व्यक्त्ति , फालना कारोबार , फालना काम रह गया , ये सोचने के बजाय जब वहाँ पर बैठ हो तो सब चिंतनों को बंद करके स्वयं के अंतर्चक्षु को भृक्रुटी के बीच में स्थित करो अर्थात् स्वयं को आत्मा निश्चय करो , मन को शान्त करो और परमात्मा के ध्यान में बुद्धि को एकाग्र करो तथा सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति कल्याण की कामना को प्रवाहित कर , सांसारिक दुःखों से छुटकारा दिलाकर परमशन्ति को प्राप्त कर लो !
ये ध्यान की सही विधि है ! हम जितनी अच्छी भावनाओं को प्रवाहित करेंगे , संसार में उतनी ही ये भावनायें वापिस आयेंगी ! जैसे ही आप भावनाओं को फैलाते हैं , वहीं भावनायें पुनः आपके पास लौट कर आयेंगी , क्योंकि ये अनादि कर्मों का सिद्धांत है !
इसका एक बहुत सुन्दर उदाहरण को अगले अध्याय में वर्णन करेंगे !
जैसे भावनाओं को या तरगों को आप अन्दर छोड़ते हैं , तो वो तरंग फिर वाइब्रेट होकर आपके पास आ जाती है !
ऐसे अगर हम निगेटिव तरगों को छोड़गे तो वही तरंगे हमारे पास वापिस आयेंगी , जो हमारी मानसिक शान्ति को भगं कर देंगी !
इसलिए जितना हो सके उतने शुद्ध तरंगों को फैलाओ ! एक बहुत ही सुन्दर कहानी है कि किस तरह वो तरंगें हमारे पास वापिस आती हैं !
मन की तरंगे- एक कहानी
एक राजा था !
उसका एक मित्र था , जो लकड़ी का व्यापारी था !
दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी !
एक दिन वो लकड़ी का व्यापारी अपने गोदाम में गया !
सारा स्टाँक देखते-देखते चंदन की लकड़ी के पास आया और देखा इतना सारा चंदन की लकड़ी पड़ी हैं !
उसका बिज़नेस माइंड चलने लगा कि कितने पैसे मेरे इसमें रूके हुए हैं !
अब ये पैसे निकलेंगे कैसे ? इतनी लकड़ी कौन खरीदेगा ? बिना मतलब का इतना चंदन की लकड़ी को क्यों खरीद लिया ? ऐसे विचार चलने लगे !
फिर उसके मन में विचार आया कि अगर कोई मरता है तो … क्योंकि मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति ये है कि मन में पहले निगेटिव विचार आता है !
उसके मन में विचार आया कि साधारण व्यक्ति मरेगा तो इतनी सारी चंदन की लकड़ी जलाने के लिए लेकर नहीं जायेगा ! कोई बड़ा व्यक्त्ति मरेगा तो उसको जलाने के लिए तो चंदन की ही लकड़ी लगायेंगे !
बड़ा व्यक्त्ति कौन है ?
राजा के सिवाय तो कोई और बड़ा व्यक्त्ति है नहीं ! राजा उसका दोस्त था, मित्र था फिर भी लोभ लालच जहाँ आयी वहाँ मित्र को भी नहीं देखते !
फिर उसके मन में विचार आया कि राजा की तो अभी उम्र ही नहीं है मरने की ! तो कैसे वह मरेगा ?
अगर कोई आस-पास के प्रदेश वाले चढ़ाई करें , तब तो राजा मर सकता है !
लेकिन फिर विचार आया कि आस-पास के सभी प्रदेश वालों के साथ राजा की अच्छी दोस्ती है !
तो कोई उसके ऊपर चढ़ाई करने वाला भी नहीं है ! विचार आया कि यदि कोई उसको खत्म कर दें , तब तो वो मर सकता है !
लेकिन खत्म कौन करेगा , सभी प्रजा उससे इतनी सन्तुष्ट है , इतनी खुश है कि कोई उसके खत्म क्यों करेगा ?
फिर उसके मन में विचार आया कि मैं ही उसको खत्म कर दूं ! तो उसको जलाने के लिए चंदन की लकड़ी यूज़ होंगी !
मैने यदि अगर राजमहल में कहीं उसको मारा तब तो मुझे पकड़ लेंगे और मुझे सजा हो जायेगी !
हाँ, जब मैं राजमहल में राजा के साथ जाता हूँ या कहीं बाहर भी जाता हूँ तो किसी को मेरे ऊपर शक होगा ही नहीं , क्योंकि सभी जानते हैं कि हमारी दोस्ती अच्छी है !
विचार कीजिए,
व्यक्ति के विचार एक के बाद एक उसको कहाँ तक पहुंचा देते हैं ! लेकिन राजा को मारने की हिमम्त उसमें थी नहीं ! जब हिमम्त ही नहीं थी , तो वह क्या करेगा ?
विचार चलते रहे कि राजा मरे तो कैसे मरे ! राजा मरे तो कैसे मरे …….ताकि मेरे चंदन की लकड़ी खत्म हो जायें !
अब ये विचारों की तरंग, वहाँ राजा तक पहुंचती है ! वहाँ राजा सोचता है कि ये जो मेरा मित्र लकड़ी का व्यापारी है, इतना पैसे वाला है, लेकिन ये किसके लिए कमाता होगा ?
उसके आगे-पीछे कोई है तो नहीं , तो ये कमाई किसके लिए करता है ! तब राजा के मन में विचार आया कि ऐसा भाई जिसके आगे-पीछे कोई है ही नहीं वो अगर मर जाये तो उसकी प्रापर्टी राज्यकोष में आ जाये !
अब दोनों की इतनी गहरी दोस्ती , लेकिन अब दोनों जब एक-दूसरे के सामने आते हैं तो कौन सी भावना से आते हैं ! वो दोस्ती का भाव वो प्रेम का भाव समाप्त हो जाता है !
दोनों के मन में एक ही विचार आता है , वो सोचता है कि ये मरे तो कैसे मरे , और दूसरा सोचता है कि ये मरे तो कैसे मरे ?
वायब्रेशन में जैसी तरंगें हम छोड़ते है वैसी ही तरंगें हमारे पास आती हैं !
आखिर जब दोनों का मन बड़ा परेशान हो गया , तो रात-दिन दोनों को नींद नहीं आती है !
तब वो व्यापारी इतना परेशान होकर राजा के पास गया और राजा से हाथ जोड़कर के कहने लगा है राजा ! मैं माफी मांगने आया हूँ !
राजा ने कहा माफी किस बात की तुमने कौन सा गुनाह किया है ? व्यापारी ने कहा कि मैने कोई गुनाह किया नहीं है , लेकिन मेरे मन में एक कुविचार आ गया है !
जो निकलता ही नहीं है ! मैं इतना परेशान हो गया हूँ जो पता नहीं कि मैं क्या करूं ? रात-दिन भर मुझे नींद नहीं आती है ! उसने अपने मन के विचार राजा के सामने रखे !
राजा ने सोचा कि जब ये माफी माँग रहा है तो मुझे भी माँगनी चाहिए ! क्योंकि मेरे मन में भी कुविचार आया है, राजा ने भी उससे माफी माँगी !
दोनों एक-दूसरे से माफी माँगने के बाद इस सोच में बैठे कि ये चंदन की लकड़ीयां ने सारा खेल किया है ! जब तक ये चंदन की लकड़ीयां को खत्म नहीं करेंगे तब तक ये विचार पीछा नहीं छोड़ेगा नहीं !
तो क्या किया जाए ? चंदन की लकड़ी को कहीं अच्छे कार्य में लगायें ! तो राजा ने कहा कि मेरे महल में तो सब कुछ है , किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है !
लेकिन ऐसा करते हैं कि महल के बाहर जो बगीचा है वहाँ एक मन्दिर बनाते हैं ! उस मन्दिर में चंदन की लकड़ी की शानदार कुटिया बनाते हैं जिससे खुशबू फैलती रहेगी और जो भी वहाँ आयेगा भजन-कीर्तन करता रहेगा !
वातावरण कितना सुन्दर बन जायेगा ! खुशबू वाला वातावरण हो जायेगा ! शुभ विचार आया मन्दिर बनाने का और वहाँ सारे चंदन की लकड़ी लगाने का !
राजा ने राजकोष से पैसे निकालकर उसको देना चाहा कि इसी पैसे की लालच में तेरे मन में कुविचार शुरू हुआ था ना ! ये लो पैसा , तब वो व्यापारी कहता है , ये पैसा मुझे नहीं चाहिए !
ऐसा करो ये पैसा राजकोष में ही जमा रहे ! गरीबों के कल्याण के लिए उसको यूज़ किया जाए !
भावार्थ ये है कि
जब दोनों के मन में शुभ विचार आया तब दोनों का मन शान्त हुआ, परेशानी खत्म हुई और वे दोनों शान्ति से सो सके ! जीवन में जब भी हमारा मन परेशान हो उठता है या रात-दिन भर नींद नहीं आती है तो उसका कारण कहीं जड़ में कोई न कोई निगेटिव विचार पनप रहा होता है !
उसको उसी वक्त्त क्लीयर कर दो , उसको वृद्धि को प्राप्त होने नहीं दो , नहीं तो ये सारी आंतरिक ( Inner power ) को क्षीण कर देगा ! जीवन में इतनी परेशानी और टेंशन बढ़ा देगा कि जीवन जीना मुशिकल हो जायेगा !
इसलिए परमात्मा ने अर्जुन को कहा कि तुम अपने आप को भी आत्मा रूप में देखो ! अपने ध्यान को बाह्य सभी बातों से समेट लो ! नित्य शुभ भावनायें इस संसार की आत्माओं के प्रति भी प्रवाहित करो ! यही ध्यान का पहला कदम है !