गीता ज्ञान का आध्यात्मिक रहस्य (पहला और दूसरा अध्याय)
“गीता-ज्ञान, एक मनोयुद्ध या हिंसक युद्ध”
The Great Geeta Episode No• 011
वास्तव में यह अर्जुन और भगवान के बीच का एक संवाद है !
- जैसे हम सभी ने देखा कि हम सभी कौन हैं ? अर्जुन हैं ! जो अर्जन करने के भाव लिये हुए है !
- यह हमारा और परमात्मा के साथ संवाद है कि कैसे हमने इस संसार को अत्यधिक दूषित और जटिल बना दिया है !
- हम इसे रहने लायक एक बेहतर विश्व भी बना सकते हैं ! बशर्ते कि हर व्यक्ति अपने लिए यह निश्चित कर ले कि वह कहाँ जाना चाहता है ?
- अपने लक्षित बिन्दु तक कैसे पहुंचना चाहता है ? इस तरह से पहले अध्याय में कुरूक्षेत्र के मैदान , युद्ध के मैदान का दृश्य है उसके मुख्य दो पात्र हैं भगवान और अर्जुन !
- इनके साक्षी हैं युद्ध में भाग लेने वाले अक्षौणी सैनिक ! दौनों सेनाओं के योद्धा के नाम की घोषणा के पशचात् अर्जुन का ह्रदय निराशा में डूब जाता है !
- सोचने की बात है कि अर्जुन जैसा एक महावीर जिसने अनेकों युद्ध अकेले ही कई बार जीते थे !
- ऐसा भी नहीं है कि वह भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य का पहली बार सामना करने जा रहा था , नहीं !
- अज्ञातवास में भी जब उनकी भनक दुर्योधन को लगी थी !
- उस समय वो पूरी सेना लेकर के युद्ध के लिए गया था !
- तब अकेले अर्जुन ने भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य तथा अन्य महारथियों का सामना किया था !
- उस समय उसका ह्रदय विदीर्ण नहीं हुआ था , निराशा में नहीं डूबा था और आज महाभारत के समय ऐसी मनोदशा क्यों ? क्यों इतना निराशावादी होने लगा ! क्यों इतना निरूत्साही हो गया , क्या कहेंगे क्या उसको अपनी शक्त्ति पर भरोसा नहीं रहा या उसको भगवान के साथ पर संदेह होने लगा !
- ये भी नहीं था कि उसे भगवान के साथ पर संदेह था ! ये भी नहीं था कि उसे अपनी शक्त्ति पर भरोसा नहीं था , फिर भी ऐसी मनोदशा थी , जो उसके हाथ-पैर काँपने लगे , उसका गाण्डीव हाथ से छूटने लगा ! वो बार-बार हाथ जोड़कर विनती करने लगा कि मुझे ये नहीं करना है उसका कारण क्या था ?