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E.58 तीन प्रकार की बुद्धि, त्याग, सुख, धारणा, कर्म

तीन प्रकार की बुद्धि (सतो , रजो, तमो) तीन प्रकार का त्याग ( यज्ञ, दान और तप ) तीन प्रकार के सुख (सतो , रजो, तमो) तीन प्रकार की धारणा की शक्त्ति तीन प्रकार के कर्म (सतो , रजो, तमो)

E.57 ओम् ततसत्: जीवन जीने की कला

ओम् माना अहम् और अहम् माना मैं वो आत्मा, तत्व माना समस्त तत्व, सत् माना स्वभाव अर्थात् सत्य भाव, श्रेष्ठ भाव सत्य में दृढ़ता होती है !

E.56 कर्मो की गुह्य गति: भगवद गीता

देवतायें तो बेहोश होने लगे हैं ! उस समय कहा जाता है कि शिवजी आते हैं और आकर सारा विष पी लेते हैं ! सारा विष ग्रहण करने के बाद पुनः सागर मंथन आरम्भ होता है ! धीरे-धीरे एक-एक चीज़ निकलती जाती है !

E.55 सत्रहवें अध्याय: तीन प्रकार की पूजा, भोजन, तपस्या व दान

देवतायें तो बेहोश होने लगे हैं ! उस समय कहा जाता है कि शिवजी आते हैं और आकर सारा विष पी लेते हैं ! सारा विष ग्रहण करने के बाद पुनः सागर मंथन आरम्भ होता है ! धीरे-धीरे एक-एक चीज़ निकलती जाती है !

E.54 अध्याय सोलहवाँ: दैवी और आसुरी स्वभाव का प्रभाव

देवतायें तो बेहोश होने लगे हैं ! उस समय कहा जाता है कि शिवजी आते हैं और आकर सारा विष पी लेते हैं ! सारा विष ग्रहण करने के बाद पुनः सागर मंथन आरम्भ होता है ! धीरे-धीरे एक-एक चीज़ निकलती जाती है !

E.53 परम पुरूष

देवतायें तो बेहोश होने लगे हैं ! उस समय कहा जाता है कि शिवजी आते हैं और आकर सारा विष पी लेते हैं ! सारा विष ग्रहण करने के बाद पुनः सागर मंथन आरम्भ होता है ! धीरे-धीरे एक-एक चीज़ निकलती जाती है !

E.52 संसार एक वृक्ष है

देवतायें तो बेहोश होने लगे हैं ! उस समय कहा जाता है कि शिवजी आते हैं और आकर सारा विष पी लेते हैं ! सारा विष ग्रहण करने के बाद पुनः सागर मंथन आरम्भ होता है ! धीरे-धीरे एक-एक चीज़ निकलती जाती है !

E.51 आत्मानुभूति, स्रष्टि चक्र व भगवन द्वारा स्वयं का यथार्थ् ज्ञान

देवतायें तो बेहोश होने लगे हैं ! उस समय कहा जाता है कि शिवजी आते हैं और आकर सारा विष पी लेते हैं ! सारा विष ग्रहण करने के बाद पुनः सागर मंथन आरम्भ होता है ! धीरे-धीरे एक-एक चीज़ निकलती जाती है !
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