Home Kahani Suno Spiritual Story मूर्ति पूजा- TrueGyan Tree

मूर्ति पूजा- TrueGyan Tree

किसी धर्म सभा में एक बार एक कुटिल और दुष्ट व्यक्ति, मूर्ति पूजा का उपहास कर रहा था, “मूर्ख लोग मूर्ति पूजा करते हैं। एक पत्थर को पूजते हैं।

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किसी धर्म सभा में एक बार एक कुटिल और दुष्ट व्यक्ति, मूर्ति पूजा का उपहास कर रहा था, “मूर्ख लोग मूर्ति पूजा करते हैं। एक पत्थर को पूजते हैं। पत्थर तो निर्जीव है। जैसे कोई भी पत्थर। हम तो पत्थरों पर पैर रख कर चलते हैं। सिर्फ मुखड़ा बना कर पता नही क्या हो जाता है उस निर्जीव पत्थर पर, जो पूजा करते हैं?”

पूरी सभा उसकी हाँ में हाँ मिला रही थी। स्वामी विवेकानन्द भी उस सभा में थे। कुछ टिप्पड़ी नहीं की। बस सभा ख़त्म होने के समय इतना कहा कि अगर आप के पास आप के पिताजी की फोटो हो तो कल सभा में लाइयेगा।

Moorti Pooja

दूसरे दिन वह व्यक्ति अपने पिता की फ्रेम की हुयी बड़ी तस्वीर ले आया। उचित समय पाकर, स्वामी जी ने उससे तस्वीर ली, ज़मीन पर रखा और उस व्यक्ति से कहा,” इस तस्वीर पर थूकिये”। आदमी भौचक्का रह गया। गुस्साने लगा।बोला, ये मेरे पिता की तस्वीर है, इस पर कैसे थूक सकता हूँ”स्वामी जी ने कहा,’ तो पैर से छूइए” वह व्यक्ति आगबबूला हो गया” कैसे आप यह कहने की धृष्टता कर सकते हैं कि मैं अपने पिता की तस्वीर का अपमान करूं?”

“लेकिन यह तो निर्जीव कागज़ का टुकड़ा है” स्वामी जी ने कहा “तमाम कागज़ के तुकडे हम पैरों तले रौंदते हैं”लेकिन यह तो मेरे पिता जी तस्वीर है। कागज़ का टुकड़ा नहीं। इन्हें मैं पिता ही देखता हूँ” उस व्यक्ति ने जोर देते हुए कहा”इनका अपमान मै बर्दाश्त नहीं कर सकता “हंसते हुए स्वामीजी बोले,” हम हिन्दू भी मूर्तियों में अपने भगवान् देखते हैं, इसीलिए पूजते हैं।पूरी सभा मंत्रमुग्ध होकर स्वामीजी कि तरफ ताकने लगी।समझाने का इससे सरल और अच्छा तरीका क्या हो सकता है?

मूर्ति पूजा, द्वैतवाद के सिद्धांत पर आधारित है। ब्रह्म की उपासना सरल नहीं होती क्योंकि उसे देख नहीं सकते। ऋषि मुनि ध्यान करते थे। उन्हें मूर्तियों की ज़रुरत नहीं पड़ती थी। आँखे बंद करके समाधि में बैठते थे। वह दूसरा ही समय था। अब उस तरह के व्यक्ति नहीं रहे जो निराकार ब्रह्म की उपासना कर सकें, ध्यान लगा सकें इसलिए साकार आकृति सामने रख कर ध्यान केन्द्रित करते हैं।

भावों में ब्रह्म को अनेक देवी देवताओं के रूप में देखते हैं। भक्ति में तल्लीन होते हैं तो क्या अच्छा नहीं करते?
माता-पिता की अनुपस्थिति में हम जब उन्हें प्रणाम करते हैं तो उनके चेहरे को ध्यान में ही तो लाकर प्रणाम करते हैं। चेहरा साकार होता है और हमारी भावनाओं को देवताओं-देवियों के भक्ति में ओत-प्रोत कर देता है। मूर्ति पूजा इसीलिए करते हैं कि हमारी भावनाएं पवित्र रहें।

Ashish
Hello, I'm Ashish Bansal, , an innovative individual with a unique blend of interests and talents. As a spiritual soul with a deep connection to inner peace and wisdom, I find joy in exploring the profound questions of life. My inquisitive nature drives me to constantly seek knowledge, whether through philosophy, meditation, or the teachings of spirituality. In the professional realm, I wear many hats. I'm a content writer, philosopher, YouTuber, and creator, dedicated to crafting meaningful and engaging content that resonates with audiences. My work spans across website development, social media management, and video production, where I help brands and individuals boost their digital presence. But my journey doesn't end there. I'm also a passionate bike rider, finding freedom and inspiration on the open road. As a meditator and teacher, I guide others on their spiritual paths, sharing the insights I've gained through my own experiences. Above all, I'm a Godly student, continually learning and growing in my faith and understanding of the divine. Whether I'm building a brand's online portfolio or exploring the depths of human consciousness, my goal is always the same: to create, inspire, and make a positive impact on the world.