प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
अर्थः पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी मां कुष्मांडा, पांचवी स्कंदमाता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवी महागौरी और नौवी सिद्धिदात्री, ये नौ देवियां नवदुर्गा के नाम से प्रसिद्ध हैं।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।
जानिए, नवरात्रि की नौ देवियां हमें क्या सिखाती ।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
हिंदू धर्म में 9 दिन की नवरात्रि का बड़ा महत्व है। इन 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है। ये नवरात्रि साल में 4 बार आती हैं। इनमें से 2 गुप्त नवरात्रि और 2 प्रत्यक्ष नवरात्रि होती हैं।
चैत्र महीने की नवरात्रि प्रत्यक्ष नवरात्रि होती हैं। इसके अलावा अश्विन मास की नवरात्रि भी प्रत्यक्ष नवरात्रि होती हैं, इन्हें शारदीय नवरात्रि कहते हैं। चैत्र नवरात्रि से ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है।
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो यह नवरात्रि का त्योहार नारी का स्वरूप ही माना जाता है। नारी का हर स्वरूप सम्मननीय और पूजनीय है। कहा भी जाता है की-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः
जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का निवास होता है। नौ रूप जो होते है देवीयो के ये वास्तव में नारी के जीवन चक्र को दर्शाते है और नारी के जीवन चक्र की हर अवस्था पूजनीय है।
माँ शैलपुत्री
तो नारी की प्रथम अवस्था शैलपुत्री के रूप में मानी जाती है। कहा जाता है की….
माँ शैलपुत्री :हिमालय का एक नाम शैलेंद्र या शैल भी है। शैल मतलब पहाड़, चट्टान। देवी दुर्गा ने पार्वती के रुप में हिमालय के घर जन्म लिया। उनकी मां का नाम था मैना।
इसी कारण देवी का पहला नाम पड़ा शैलपुत्री यानी हिमालय की बेटी। मां शैलपुत्री की पूजा, धन, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए की जाती है। शैलपुत्री सिखाती है कि जीवन में सफलता के लिए सबसे पहले इरादों में चट्टान की तरह मजबूती और अडिगता होनी चाहिए।
आध्यात्मिक रहस्य-: शैलपुत्री अर्थात् एक छोटी कन्या। कन्या को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है नारी का ही प्रथम स्वरूप कन्या के रूप मे होता है जिसमें वह पवित्र ओर निर्दोष होती है जब कन्या का जन्म होता है पवित्रता की शक्ति उसके साथ आती है इसलिए शैलपुत्री देवी के हाथ में त्रिशूल ओर कमल पुष्प दिखाया है त्रिशूल अर्थ तीनो स्वरूप माँ दुर्गा ,लक्ष्मी ,सरस्वती कमल अर्थात् कमल पुष्प समान पवित्र।
इसलिए जब भी घर में कन्या का जन्म हो हमे शोक नही करना है । हमे उस कन्या का स्वागत करना है। भावार्थ है की माँ शैलपुत्री के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है की मात स्वरूप पुत्री की भ्रूण हत्या कभी नही करनी चाहिए। क्योंकि उसका पाप सबसे ज़्यादा लगता है कहा भी जाता है की कन्या का भ्रूण हत्या कर जो पाप किया ओर देवियों की उपासना की तो वह कभी स्वीकार नही मानी जाएगी घर मे आने वाली देवी की हत्या करके फिर मंदिरो में देवी पूजना तो फल क्या ही मिलेगा?
यह कन्या भी शिव शक्ति है इसे सम्मान दें । तो नवरात्रि का पहला स्वरूप शैलपुत्री का अर्थात् उस आने वाली कन्या का स्वागत करो उस कन्या को सम्मान दो।
माँ ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी: -ब्रह्म का अर्थ है तपस्या, कठोर तपस्या का आचरण करने वाली देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने वर्षों तक कठोर तप किया था। इसलिए माता को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया।
आध्यात्मिक — माँ ब्रह्मचारिणी नारी के किशोरी अवस्था का स्वरूप है। जिस प्रकार प्रथम रूप माँ शैलपुत्री कन्या का स्वरूप मानी गई है उसी प्रकार दूसरा स्वरूप किशोरी अवस्था का माना गया है। देवी का दूसरा स्वरूप माँ पार्वती का माना गया है इसलिए यह अवस्था तपस्या की बताई गई है एवं एकाग्रता की।
अर्थात् किशोरी स्वरूप में जब नारी ज्ञान अर्चन करती है तो मन को एकाग्र करना है नारी को किशोरी अवस्था में मन को एकाग्र करना है कठोर तपस्या कर अपने आप को साक्षर करना है मन के भटकाव से बचना है ।
इसलिए इस अवस्था में उसकी पढ़ाई करने की अपने आप को परिपूर्ण करने की आयु होती है जिसमें वह ब्रम्हचर्य में होती है ऐसी अवस्था में कभी भी उसका बाल-विवहा नही करना चाहिए। बाल – विवहा अपराध माना गया है। इस उम्र में उसे साक्षर करे। हर क्षेत्र में उस ब्रह्मचारिणी स्वरूपा कन्या को आगे बड़ाने में सहयोग करेंगे।
माँ चंद्रघंटा
चंद्रघंटा ::-ये देवी का तीसरा रूप है, जिसके माथे पर घंटे के आकार का चंद्रमा है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा है। ये देवी संतुष्टि की देवी मानी जाती है। जीवन में सफलता के साथ शांति का अनुभव तब तक नहीं हो सकता है, जब तक कि मन में संतुष्टि का भाव ना हो। आत्म कल्याण और शांति की तलाश जिसे हो, उसे मां चंद्रघंटा की आराधना करनी चाहिए।
आध्यात्मिक— ::माँ चंद्रघंटा नारी की तीसरी अवस्था है जब नारी सुशिक्षित हो जाती है एवं अपनी योवन अवस्था में आ जाती है । तब वह चंद्रामाँ के समान शीतलता प्रदान करने वाली तथा हर परिस्तिथि में संतुष्ट रहने वाली साथ ही नारी की यह योवन अवस्था होती है जिसमें वह अपने वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने हेतु तैयार होती है इसलिए माँ चंद्रा घंटा को दस भुजाये दर्शायी गई है हर भुजा मे अस्त्र – शस्त्र दर्शाए गये है । नारी भी दो भुजायो से विवहा उपरान्त।
दस भुजायो के समान कार्य करती है ।विवहा के बाद वह जीवन संगिनी कहलाती है। वह जिस परिवार में विवाहित हो कर जाती है कहते है नारी दो कुलों को तारने वाली होती है ।इसलिए उस पर कभी अत्याचार नही करना चाहिए बहु-बेटियों जैसा फ़र्क़ नही रखना चाहिए यदि उसका शोषण किया गया उसको तिरस्कृत किया गया उस पर अत्याचार किया गया ।
तो माँ चंद्रघंटा उस पर कभी प्रसन्न नही होती। इसलिए जब एक नारी विवाह करके एक बहु बनके घर में प्रवेश करती है तो आपके घर को चाँद के समान रोशन कर देती है। एवं घंटा के स्वरों के समान घर में चहचहक ले आती है। सभी त्योहार उसके बिना अधूरे माने जाते है। तो नारी के इस स्वरूप का हमे सम्मान करना है जो की माँ चंद्रघंटा का स्वरूप माना गया है।
माँ कुष्मांडा
कुष्मांडा देवी का चौथा स्वरूप है। ग्रंथों के अनुसार इन्हीं देवी की मंद मुस्कार से अंड यानी ब्रह्मांड की रचना हुई थी। इसी कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। ये देवी भय दूर करती हैं। भय यानी डर ही सफलता की राह में सबसे बड़ी मुश्किल होती है। जिसे जीवन में सभी तरह के भय से मुक्त होकर सुख से जीवन बिताना हो,उसे देवीकुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए
आध्यात्मिक :— कुष यानी गर्माहट एवं अंडा अर्थात् जिसमें ब्रह्मांड को रचने की शक्ति है इसलिए जो ब्रम्हाण्ड को रच सकती है ,वह बहुत महान शक्ति है ।
नारी का यह स्वरूप जब वह वैवाहिक जीवन में आगे की ओर बड़ती है तब वह गर्भ धारण करती है एवं तब उसमें एक रचनात्मक एवं सृजनात्मक शक्ति उसमें आ जाती है माँ कुष्मांडा ब्रम्हाण्ड को रचती है लेकिन घर की नारी अपने परिवार को अपनी दुनिया को रचती है एवं वृद्धि की ओर ले जाती है यह शक्ति परमात्मा के बाद एक नारी में ही है परमात्मा को भी सृष्टि का रचयिता कहा जाता है
वह भी एक नारी अर्थात् माँ कुष्मांडा में के बिना असम्भव है इसलिए नारी का यह चौथा स्वरूप होता है जिसमें वह अपने परिवार को रचने एवं अपने वंश को चलाने का कार्य करती है अर्थात् गर्भ धारण करती है जो कार्य कोई ओर नही कर सकती है वह अपने अंदर एक जीव का सृजन करती है। तब वह स्वयं माँ कुष्मांडा का स्वरूप होती है।
इसलिए नारी की इस अवस्था मे उसे सहयोग प्रदान करें उसका साथ दें एवं वह जो भी परिवार को दे उसे ख़ुशी से स्वीकार करे उसका तृस्कृत ना करें जो भी वह देती है वह ईश्वर एवं भाग्य की नियति है उसे ख़ुशी से स्वीकार करें।
माँ स्कंदमाता
माँ स्कंदमाता—::भगवान शिव और पार्वती के पहले पुत्र हैं कार्तिकेय, उनका ही एक नाम है स्कंद। कार्तिकेय यानी स्कंद की माता होने के कारण देवी के पांचवें रुप का नाम स्कंद माता है। उसके अलावा ये शक्ति की भी दाता हैं। सफलता के लिए शक्ति का संचय और सृजन की क्षमता दोनों का होना जरूरी है। माता का ये रूप यही सिखाता है और प्रदान भी करता है।
आध्यात्मिक —स्कंद माता जिनकी गोद में बालक स्कंद दिखाया गया है ।जिनकी माँ पालना करती है इसलिए उन्हें स्कंद माता कहा गया है।
नारी का यह स्वरूप जब वह गर्भ के बाद एक बालक को जन्म देरी है ।एवं बालक को अपनी गोद में बैठा कर उसकी पूर्ण पालना करती है तब तक की बालक अपने कार्य के प्रति स्वयं सक्षम ना हो जाए।
नारी का यह बालक की पालना का स्वरूप स्वयं माँ स्कंद माता का रूप होता है जिसमें बालक के जन्म के साथ एक नारी का भी जन्म होता है नारी मे पूर्ण परिवर्तन आ जाता है ममता व वात्सल्य जाग उठता है एवं स्नेह की शक्ति से अपने बच्चों को संस्कार देती है नारी माँ के रूप में परिवर्तित हो जाती है ।
अर्थात् वह स्कंद माता का रूप होती है।किंतु देखा जा रहा की की व्यस्तता की एवं नौकरी की भाग-दौड़ में वर्तमान नारी अपने बच्चों को समय नही दे पा रही जिससे बच्चों में संस्करो की कमी आती जा जाती है ।
तो पाँचवा स्वरूप हमे यही सिखा रहा है की हमे अपनी ज़िम्मेदारीको निभाना है बच्चों मे संस्कृत करना है उन्हें संस्कारों से सिंचित करना है ।अपनी ज़िम्मेदारी को पूर्णता निभानी है।नारी का यह स्वरूप भी पूजनीय है हमे उनका सम्मान करना चाहिए।
माँ कात्यायनी
माँ कात्यायनी—:: कात्यायिनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। कात्यायन ऋषि ने देवी दुर्गा की बहुत तपस्या की थी और जब दुर्गा प्रसन्न हुई तो ऋषि ने वरदान में मांग लिया कि देवी दुर्गा उनके घर पुत्री के रुप में जन्म लें।
कात्यायन की बेटी होने के कारण ही नाम पड़ा कात्यायिनी। ये स्वास्थ्य की देवी हैं। रोग और कमजोर शरीर के साथ कभी सफलता हासिल नहीं की जा सकती। मंजिल पाने के लिए शरीर का निरोगी रहना जरूरी है।
जिन्हें भी रोग, शोक, संताप से मुक्ति चाहिए उन्हें देवी कात्यायिनी को मनाना चाहिए।
आध्यात्मिक —: वास्तव में कात्यायनी नारी का परिपक्व स्वरूप है जब नारी ने जबपरिपक्व हो जाती है तब जीवन में सारे अनुभवो को हासिल कर लेती है तब वह अपने परिवार की हर बुराइयों से सुरक्षा करती है
एवं दृढ़ता के साथ आगे बढ़ती है माँ कात्यायनी को सर्व अलंकारो से सज्जित बताया गया है अर्थात् पाप आत्मायो से परिवार की रक्षा करती है माँ जब सृजन करती है, पालना करती है तो तीसरा रूप में संहार भी करती है अपने परिवार को विपत्तियों से बचाती है परिवार को निराशा से बचाती है ।
निश्चित्ता प्रदान करती है की कुछ भी हो जाए माँ बैठी है। इसलिए कहा गया है कि एक सफ़ल पुरुष के पीछे एक नारी का साथ होता है।चाहे वह माँ हो पत्नी हो बहन हो बेटी हो ।
लेकिन अधिकतर माँ या पत्नी ही परिवार के पात्र को निराशा आने पर उन्हें प्रेरित करती है उमंग उत्साह भरती है अपने वचनो से शक्ति को निर्मित कर देती है जिससे परिवार के पात्र को सफलता महसूस होने लगती है ।
जो नारी का माँ कात्यायनी का रूप ही होता है हमे माँ के इस रूप का भी सम्मान करना चाहिए ।
माँ कालरात्रि
कालरात्रि -:काल यानी समय और रात्रि मतलब रात। जो सिद्धियां रात के समय साधना से मिलती हैं उन सब सिद्धियों को देने वाली माता कालरात्रि हैं। आलौकिक शक्तियों, तंत्र सिद्धि, मंत्र सिद्धि के लिए इन देवी की उपासना की जाती है।
ये रूप सिखाता है कि सफलता के लिए दिन-रात के भेद को भूला दीजिए। जो बिना रुके और थके, लगातार आगे बढ़ना चाहता है वो ही सफलता के शिखर पर पहुंच सकता है।
आध्यात्मिक—:कालरात्रि अर्थात् माँ काली का ही दूसरा स्वरूप है जो हर प्रकार के असुरों को समाप्त करती है ।
वर्तमान में नारी का यह स्वरूप वही है जब जब आसुरी शक्तियों का प्रकोप उसकी बर्दाश्त से बहार हो जाये तो वह अपनो एवं अपने आप को आसुरी प्रवत्तियो के लोगों से बचाने के लिए काली का रूप धारण कर लेती है नारी मे माँ काली की तरह निर्भयता एवं साहस जाता है वह हर आसुरी शक्ति को भस्म कर देती है ।
ना वह अपना ख्याल करती है ना अपने आराम का वह रौद्र रूप धारण कर लेती है और हर मुसीबत का सामना करने को खड़ी हो जाती है।
भारत में ऐसी कई वीरांगना है जिन्होंने अपने देश को या अपनी प्रजा को बचाने के लिए काली का रूप लिया जो तलवार ले कर युद्ध के लिए खड़ी हो गई । युद्ध करने की शक्ति भी नारी में है नारी हिम्मत नही हारती टुटती नही ।वह काली बन कर हर मुसीबत का सामना करती है । क्यूँकि ये नारी सब पर भारी ।
नारी सबल है ।अबला नही है। नारी के इस रूप से हर कोई भयभीत हो जाता है इसलिए नारी के इस रूप का भी सम्मान करें।
माँ महागौरी
देवी का आठवा स्वरूप है महागौरी। गौरी यानी पार्वती, महागौरी यानी पार्वती का सबसे उत्कृष्ट स्वरूप। अपने पाप कर्मों के काले आवरण से मुक्ति पाने और आत्मा को फिर से पवित्र और स्वच्छ बनाने के लिए महागौरी की पूजा और तप किया जाता है।
ये चरित्र की पवित्रता की प्रतीक देवी हैं, सफलता अगर कलंकित चरित्र के साथ मिलती है तो वो किसी काम की नहीं, चरित्र उज्जवल हो तो ही सफलता का सुख मिलता है।
आध्यात्मिक—: महागौरी के लिए कथा है कि उनने महातपस्या की जिससे उनका शरीर श्याम हो गया ।तब परमात्मा ने ने उनमें शक्ति भरी ।
नारी का यह स्वरूप जिसने जब अनेक प्रकार के संघर्षों से लडते हुए नारी के जीवन में उमंग उत्साह की कमी आ जाती है ।नारी का यह स्वरूप शांति व संतोष का रूप है जिसमें नारी सिर्फ़ देने का कार्य करती है लेना नही जानती उसमें लेने की भावना नही होती।
हर अपनी चीज को उसे अपने परिवार में दे कर ही संतुष्टि मिलती है।और उसने बहुत सहन शक्ति आ जाती है उसने जीवन में जो कुछ अनुभव प्राप्त किए है वह अपने परिवार में बाटती है ।
परिवार को अनुभवी बनाती है ।इस अवस्था में उसे सिर्फ़ देकर ही संतुष्टि मिलती है एवं वह न्यारी और प्यारी हो जाती है अर्थात् दुनिया दारी से नारी परे हो जाती है परिवार को ज़िम्मेदारी सौंप कर शिव भक्ति में लीन हो जाती है।
नारी का यह महागौरी का ही स्वरूप माना गया है।अत:उनकी दी हुई सलाह जीवन में काम आती है माँ के रूप में जो सीख को पाया है यही उनका अनमोल उपहार है। नारी के के इस रूप का सदैव सम्मान करें।
माँ सिद्धीदात्री
सिद्धीदात्री —ये देवी सारी सिद्धियों का मूल (Origin) हैं। देवी पुराण कहता है भगवान शिव ने देवी के इसी स्वरूप से कई सिद्धियां प्राप्त की। शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में जो आधी देवी हैं वो ये सिद्धिदात्री माता ही हैं।
हर तरह की सफलता के लिए इन देवी की आराधना की जाती है। सिद्धि के अर्थ है कुशलता, कार्य में कुशलता और सलीका हो तो सफलता आसान हो जाती है।
आध्यात्मिक— सिद्धदात्री से स्पष्ट है की सर्व सिध्दी प्रदान करने वाली दात्री है ।आज हर इंसान जीवन में सिद्धी चाहता है सिद्धी यानी सफलता चाहता है उसी के लिए माँ सिद्धदात्री की पूजा की जाती है ।
नारी का यह स्वरूप अर्थात् जैसे -जैसे नारी बुढ़ापे की और आगे बड़ती है तो अपने परिवार को सर्व कार्य सिद्धी का का आशीर्वाद देती है ।
सफलता का वरदान देती है ।नारी का यह स्वरूप हमारे घर में बुजुर्ग माँ का स्वरूप होता है ।जो यह याद दिलाता है की हमे हमे बुजुर्ग माँ का तृस्कृत नही करना है उनका अपमान नही करना है लोग घर की का अपमान करते है और मंदिर की माँ को पूजते है जो की परमात्मा भी सहन नही करते है ।
उनका सम्मान तो दूर बल्कि उन्हें वृद्ध आश्रम में छोड़ आते है ।जिस माँ ने जन्म दिया घर दिया परिवार दिया उसी परिवार से उसे उसी घर से निकाल दिया जाता हैं ।
तो जो हमारे घर की सिद्धीदात्री है उसे घर लाओ उनकी सेवा करो ,पूजा करो क्योंकि हर सिद्धी के लिए वह वरदानी है वह बुजुर्ग रूप में हर गलती की क्षमा देती है आशीर्वाद देती है उनका आशीर्वाद जो लेता है वह कभी नर्क का मुँह नही देखता सीधे स्वर में जाता है ।तो अंतिम देवी माँ सिध्ध्दी दात्री अर्थात् अपने घर की सिध्द्धि दात्री का आशीर्वाद बनाए रखना है तभी हम देवी को प्रसन्न कर सकते है ।
तो इस प्रकार हमने देखा की किस तरह देवी के नव रूप एक नारी के जीवन चक्र को दर्शाते है वास्तव में ये देवियाँ हमारे घर की नारी ही है इन्ही में मात शक्ति समाहित मानी गई है ।हमे देवी माँ और नारी के हर रूप का सम्मान एवं पूजन करना है।