राम आयेंगे
भारत में ‘राम’ और ‘राम राज्य’ का बहुत गायन है। यहाँ शायद कोई नगर होगा जहाँ राम का कोई मंदिर न हो और शायद ही कोई मनुष्य होगा जिसने ‘राम कथा’ को न सुना हो।
परंतु आज जो राम कथा मिलती है उसे सुनकर कोई तो कहता है कि कथा में बिल्कुल सत्य एतिहासिक वृतांत का वर्णन है और अन्य काई विचारक कहते हैं कि जन्म खेत में हल चलाते समय एक लकीर (furrow) से हुआ बताया गया है, न तो वैसे किसी मानवी का जन्म हो सकता है और जैसे रावण के दस सिर बताए गये हैं, न ही वैसे किसी व्यक्ति के दस सिर हो सकते हैं और न ही ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपना सिर नव या दस बार काट-काटकर ब्रह्माजी पर बलि चढ़ा दे और उस कारण से उसको दस सिर मिल जाएँ, जैसे की रावण के बारे में कथा में बताया जाता है।
इसलिए, इस विचारधारा के लोग तो कहते हैं की ‘राम कथा’ देखेंगे की भारत में ‘आध्यात्मिक रामायण’ नाम से एक ग्रंथ प्रसिद्ध भी है।
महात्मा गांधी जी,
जो की स्वयं एक राम भक्त थे और जिनके जीवन के अन्तिम क्षणों में भी ‘हे राम’, ‘हे राम’, ये शब्द निकले, वह भी रामायण को एक एतिहासिक ग्रंथ न मानकर धार्मिक अथवा आध्यात्मिक ग्रंथ ही मानते थे, यद्यपि वे राजा राम को मानते थे।
अन्य काई लोगो राम कथा को एक ऐतिहासिक घटना तो मानते हैं परंतु रामायण में वर्णित कुछेक पत्रों के बारे में उनके अपने अलग ही मंतव्य हैं। उदाहरण के तौर पर वे कहते हैं कि रावण के दस सिर नहीं थे बल्कि रावण के दस सिर उसके चार वेदों और छः शास्त्रों के पांडित्य के प्रतीक हैं।
वानर
इसी प्रकार, वे कहते हैं की राम की बानर सेना कोई बंदरों की सेना न थी बल्कि ‘वानर’ मनुष्यों की ही जाती का नाम था जैसे की आजकल काई गोत्रों के नाम ‘कुकरेजा’ इत्यादि हैं।
इन अनेक मत-मतान्तरों के कारण मनुष्य के मन में यह प्रश्न उठता है की वास्तव में राम कौन थे और सीता कौन थी और असल में राम कहानी क्या है?
इस विषय में कल्याणकारी परमपिता परमात्मा ने ज्ञान अमृत की वृष्टि हम अकिंचनों पर की है, उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि राम-कथा आध्यात्मिक भी है और एतिहासिक भी और कुछ इसमें कवि के अपने विचार हैं। अब इस बात को हम अधिक स्पष्ट करेंगे।
‘राम’ दो हैं
वास्तव में 'राम' दो हैं - एक तो यहाँ 'दशरत-पुत्र राम' हुए हैं जो कि एक महान और पावन राजा थे और जिनके राज्य में प्रजा को अपार सुख था।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ भी कहा जा सकता है। दूसरे ‘राम’ वह हैं जो कि सभी आत्माओं के परमपिता हैं, परम पुरुष हैं, परम पावन हैं, देवों के भी देव हैं तथा ‘राम’ के भी ईश्वर हैं और, इस कारण, उन्हें ‘रामेश्वर’ भी कहा जाता है, जैसे कि दक्षिण भारत में ‘रामेश्वर’ नाम के मंदिर से संकेत मिलता है। परंतु ‘राम-कथा’ में निराकार राम (शिव) के चरित्रों को राजा राम के जीवन के साथ जोड़ दिया गया है, इसलिए ही उलझन पैदा हो गयी है।
अतः
अब यह जानने की आवश्यकता है कि निराकार राम के साथ संबंधित वृत्तांत कौन-से कौन-से हैं और राजा राम के साथ संबंधित वृत्तांत कौन-से हैं।
‘राम’ परमात्मा से संबंधित वृत्तांत
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से निराकार परमात्मा को इसलिए ‘राम’ कहा गया है की वह रमणीक अथवा रंजनकारी हैं, वह आत्माओं को आनंदित करने वाले हैं।
ज्ञानवान और योगयुक्त आत्मा ही ‘सीता‘ है क्योंकि वह निराकार राम को वरणा चाहती है. सीता के बारे में यह जो कथा प्रसिद्ध है कि वह ‘अयोनिज’ थी अर्थात किसी के गर्भ से पैदा नहीं थी बल्कि खेत में हल की लकीर से पैदा थी, यह भी इसी बात को . . है कि ‘सीता‘ शब्द ज्ञानवान आत्मा ही का वाचक है क्योंकि गीता में अथवा ज्ञान की भाषा में शरीर को ‘क्षेत्र’ और आत्मा को ‘क्षेत्रज्ञ‘ के बुद्धि रूपी क्षेत्र में ज्ञान का हल चलाया जाता है तब उन लकीरों से अर्थात ज्ञान की पक्की धरना से सीता (ज्ञानवान आत्मा) का जन्म होता है। यह जन्म किसी माता के गर्भ से नहीं होता क्योंकि यह तो स्वयं ‘आत्मा का जन्म’ (जागरण अथवा पुनरुद्धार) है। इस जन्म को ‘मरजीवा जन्म‘ भी कहा जाता है।
राम कहानी
पहले जो ‘राम’ हुए हैं, वह एक प्रसिद्ध राजा थे। उनका जीवन बहुत ही उज्जवल, दिव्य और पवित्र था। वह ‘राम’ परमात्मा नहीं थे बल्कि एक जीवनमुक्त देवता थे। उन्हें किसी भी प्रकार का कोई कष्ट न था।
उनकी तो जितनी महिमा करें थोड़ी है, परंतु उनकी प्रजा भी सतोगुणी, दिव्य स्वभाव वाली मर्यादानुसार चलने वाली अहिंसक और सुख-शांति संपन्न थी।
न किसी को देह का कोई दुख था, न प्रकृति के कोई प्रकोप होते थे, न ही कोई आपदाएँ थीं, न ही लोगो के मन में किसी प्रकार की कोई अशांति थी। इसलिए ही रामराज्य का गायन है।
इस ‘राम राज्य’ की स्थापना ‘निराकार राम’ अर्थात परमपिता परमात्मा शिव ने की थी।
कलियुग के अंत में धर्म-ग्लानि के समय अवतरित होकर परमपिता परमात्मा शिव ने मनुष्यात्माओं को जो ईश्वरीय ज्ञान और योग सिखाया था, उन्हें धारण करके पावन बनने वाली मनुष्यात्माओं ने ही अगले कल्प में त्रेतायुग में श्री सीता, श्री राम तथा उनकी प्रजा के रूप में जन्म लिया था और जीवनमुक्ति का अथवा देवपद का अथवा राज्य-भाग्य का सुख पाया था।
राम द्वारा ‘शिव धनुष’ तोड़ने का वास्तव में यही अर्थ है क्योंकि ‘धनुष‘ वास्तव में पुरुषार्थ का प्रतीक है अथवा वीरता का प्रतीक है।
शिव धनुष को तोड़ने का अर्थ है, परमात्मा शिव द्वारा सिखाए हुए पुरुषार्थ को अच्छी तरह करना।
जैसे आजकल यदि कोई व्यक्ति किसी विद्या में अद्वितीय सफलता प्राप्त करता है तो कहा जाता है क़ी – “इसने तो रिकॉर्ड तोड़ दिया है।” इसी प्रकार ऋषि–मुनि तथा अन्य याज्ञिक–योद्धा जिस माया पर विजय प्राप्त न कर सके थे, राम ने ज्ञान-बाणों से उसका वध किया था। इसलिए ही कहा जाता है क़ी उसने ‘शिव–धनुष‘ तोड़ा था। राम को ‘धनुषधारी‘ के रूप में भी इसलिए ही चित्रित किया जाता है कि वह चिरकाल तक आसुरी प्रवृत्तियों से युद्ध करते रहे।
अतः
पूर्व जन्म में यह पुरुषार्थ करने के फलस्वरूप ही राम को राज्य-भाग्य प्राप्त हुआ था। प्रसिद्ध भी है की राम ने (वास्तव में पूर्व जन्म में) परमपिता परमात्मा शिव से ईश्वरीय ज्ञान लिया था।
अतः
मालूम रहे की वास्तव में श्री रामचंद्र की सीता नहीं चुराई गयी थी, न ही उन्हें वनवास मिला था क्योंकि पत्नी का चुराया जाना, वनवास मिलना, हिंसक युद्ध का होना इत्यादि घटनाएँ तो उस व्यक्ति के जीवन में घटित हो सकती हैं जिसका कोई कर्म-भोग, कोई हिसाब-किताब अन्य जीवों से रहा हुआ अथवा जो अपूर्ण आत्मा हो।
परंतु श्री राम तो 14 कला संपूर्ण पवित्र आत्मा थे और वह सभी कर्म-बंधनों से मुक्त थे। उनके जीवन में शत्रु हिंसक व्यक्ति इत्यादि थे ही नहीं।
उनके राज्य में भला किसकी मजाल थी की उनका धर्म-पत्नी श्री सीता जी को कोई बुरी दृष्टि से भी देख सके? उस काल में तो बुरे संकल्प वाले मनुष्य होते ही न थे बल्कि “यथा राजा रानी तथा प्रजा” सभी सतोगुणी और पवित्र थे।
रामायण के पात्र
कैकेयी अथवा शूर्पनखा या रावण
अतः
श्री राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम‘ कहने का यह अर्थ नहीं है की उनके भाई-बांधवं ने अथवा प्रजा या शत्रुओं ने कोई प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न कर दी जैसे की कैकेयी अथवा शूर्पनखा या रावण ने कर दी और राम ने मर्यादा को नहीं छोड़ा।
बल्कि, उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम‘ इस भाव से कहा जाता है कि उन्होने पूर्व जन्म में परमपिता परमात्मा शिव से ईश्वरीय गयन प्राप्त करके अपने जीवन में दिव्य मर्यादा के संस्कार भरे और फिर ‘श्री राम’ नाम से प्रसिद्ध जीवन में पूर्ण मर्यादा से रहे, यहाँ तक कि उनके जीवन में अमर्यादा की परिस्थिति उत्पन्न करने वाला था ही नहीं।
उनके भाई-बांधव सभी पावन और दिव्य गुणों वाले थे। राम का कोई शत्रु, कोई निंदक था ही नहीं। उनके राज्य में सभी मर्यादा का पालन करने वाले थे और वह उन सभी से उत्तम थे, इसलिए ही उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहा गया है। उनके राज्य में ‘सब जग सिया राम-मय था।”
त्रेतायुग
सतयुग के प्रथम महाराजकुमार श्री कृष्ण होते है और श्री कृष्ण के सतयुग में 8 जन्म होते हैं इसीलिए हम कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं और नवा जन्म त्रेतायुग में श्रीराम का होता है इसलिए हम रामनवमी मनाते हैं| उन्होंने श्री राम के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिस प्रकार श्रीराम ने मर्यादाओं को जीवन में बनाए रखा ,श्री सीता जी ने भी मर्यादाओं को अपने जीवन का आधार बनाया उसी प्रकार हमें भी श्री सीताराम जैसी मर्यादाओं को अपने जीवन में धारण करना है ताकि हम भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तरह बन सके।
लक्ष्मण
का अर्थ बताते हुए कहा की लक्ष्मण अर्थात जिसका ध्यान अपने लक्ष्य की ओर हो ,हनुमान अर्थात जिसने अपने मान -शान का हनन किया हो अर्थात नम्र और निर्माण। वर्तमान में परमात्मा द्वारा रामराज्य की ,अथवा आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना का कार्य चल रहा है और निकटतम भविष्य में राम राज्य की स्थापना, राम का राज्य आरंभ होने वाला है।
जब राम धरा पर आते हैं तो हम बानर सेना द्वारा रावण राज्य पर जीत प्राप्त कराते हैं, जिस कारण रामनवमी पर महावीर का झंडा फहराया जाता है चुकी राम निराकार है इस लिए हम बच्चे उसमे भी ब्रह्मा बाबा के तन का आधार लेकर ब्राह्मण रच कर मै और मेरा दोनों को परिवर्तन कर रावण के राज्य को आग लगाते हैं, इसी लिए महावीर का झंडा फहराया जाता है रामनवमी पर।
राम कथा से जीवन के लिए उपयोगी शिक्षा
अतः
अब रामनवमी के अवसर पर अर्थात त्रेतायुगी राजा राम के शुभ जन्मोत्सव पर हमें यह व्रत लेना चाहिए की हम भी परमपिता परमात्मा शिव के ईश्वरीय ग्यान को धारण करके अपने जीवन को भी सर्वगुणसंपन्न, संपूर्ण निर्विकारी और पूर्ण अहिंसक बनाएंगे ताकि भारत में फिर से अहि अर्थ में ‘राम-राज्य‘ स्थापन हो जिसकी इच्छा बापू गांधी जी भी किया करते और जिसकी स्थापना अब निराकार राम (परमपिता शिव), ब्रह्मा (रचनाकार) द्वारा कर रहे है।
राम नवमी का आध्यात्मिक रहस्य
राम नवमी का पर्व, हिन्दू धर्म में एक प्रमुख त्यौहार है जो चैत्र की नवमी को मनाया जाता है। कहते हैं इस दिन त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ के घर, उनके सबसे बड़े पुत्र और भावी राज श्री राम का जन्म हुआ था।
परमात्मा शिव ने पुरुषोत्तम संगम युग में इस रहस्य का उद्घाटन करते हुए बताया कि यह सृष्टि चक्र 5000 वर्ष का है,
जिसमें 4 युग हैं – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग। चारों ही युगों की आयु 1250 वर्ष है।
सतयुग, त्रेतायुग में भारत स्वर्ग था, जिसकी स्थापना कलयुग के छोटे से युग संगम युग में स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा शिव ने ब्रह्मा के द्वारा ब्राह्मण धर्म की स्थापना द्वारा की थी। ब्रह्मा के द्वारा उन्होंने गीता ज्ञान दिया था जिसके द्वारा ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई।
इसका मुख्य उद्देश्य, नर्क को स्वर्ग अथवा नर से नारायण और नारी से श्री लक्ष्मी बनाना है। इस राजयोग के ज्ञान द्वारा ही विश्व में सतधर्म की स्थापना हुई, जो अब फिर हो रही है। सतयुग और त्रेतायुग में भारत स्वर्ग था, सूर्यवंशी और चंद्रवंशी घराना था और श्री लक्ष्मी-श्री नारायण और श्री राम-श्री सीता का राज्य था। सतयुग में 8 जन्म थे तो त्रेता में 12 जन्म।
इस प्रकार श्री लक्ष्मी-श्री नारायण की 8 गद्दियाँ चलीं, फिर श्री राम का जन्म हुआ। इसलिए श्री राम का जन्म श्री नारायण के 8 जन्मों के बाद हुआ यही कारण है कि श्री राम का जन्मदिन रामनवमी कहलाता है।
इसके अलावा श्रीराम को धनुष बाण दिखाने का अर्थ है कि चंद्रवंशी राज्य में 14 कलाएँ थीं, अर्थात वह सूर्य वंशी श्रीलक्ष्मी-श्रीनारायण समान कलाओं, गुणों आदि में संपन्न नहीं थे। यही कारण है कि स्वयंवर से पूर्व श्रीलक्ष्मी-श्री नारायण जो कि श्री राधा-श्री कृष्ण थे, जितनी महिमा इन दोनों की है उतनी महिमा श्रीराम श्री सीता की नहीं है। इसके साथ-2 केवल श्रीकृष्ण को ही झूले में झुलाया जाता है, लेकिन श्री राम को नहीं।
वर्तमान समय में परमपिता परमात्मा शिव मनुष्य से देवता बनने की पढाई अर्थात सहज राजयोग सिखा रहे हैं, गायन भी है मनुष्य से देवता किये करत न लागे वार, अर्थात मनुष्य से देवता बनना कोई मुश्किल काम नहीं है। तो इस ईश्वरीय पढाई का ऐम ऑब्जेक्ट स्वयं को ईश्वरीय याद व ईश्वरीय ज्ञान द्वारा श्रीलक्ष्मी-श्रीनारायण जैसा बनाना है।
जिनकी महिमा में गाते हैं – सर्वगुण संपन्न, 16 कल सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरषोत्तम। जो कि परमपिता परमात्मा शिव की श्रीमत का सम्पूर्ण पालन करने के द्वारा ही संभव है। परन्तु उससे पहले श्रीराम जैसा बनना है, अर्थात गोल्डन ऐज से पहले स्वयं को सिल्वर ऐज वाला बनाना है।
जिसकी निशानी स्वयं परमपिता परमात्मा शिव के अनुसार यह है कि ऐसी आत्मा में कर्मेन्द्रियों की चंचलता समाप्त हो जाएगी। हालांकि पुरुषार्थ सूर्यवंशी में उंच पद पाने का करना है जो कि ईश्वरीय ज्ञान, योग (याद की यात्रा), दैवी गुणों की धारणा और ईश्वरीय सेवा द्वारा ही संभव है, लेकिन त्रेतायुगी राम राज्य की ही कल्पना बापू गांधी ने भी की थी, तो आइये उस राम राज्य और उससे भी श्रेष्ठ श्री लक्ष्मी-श्री नारायण के राज्य में चलने का पुरुषार्थ करें।
आत्माओं के राम को याद करें, उनके ज्ञान को धारण करके, श्रीलक्ष्मी-श्रीनारायण और श्रीराम-श्रीसीता के राज्य की स्थापना में परमपिता परमात्मा शिव के सहयोगी बनें। आप सभी को श्रीराम नवमी की हार्दिक बधाई।