पाक रमज़ान उल-मुबारक जब होता मुकम्मल
ईद उल फितर का तेहवार बनाता समा अफ़ज़ल
भाईचारे, एकता कायम करने का देता पैगाम
नापाक दुनिया को जन्नत बनाना है खुदाई इनाम
चैनो-अमन और बरकत की माँगते दुआ
खुदा की दिली इबादत होती क़ुबूल बेइंतेहा
बेहद पाक रोज़े होते मुकम्मल, बदस्तूर
क़ुबूल हो इबादत, कायम हो अमन ज़रूर
क़ुरान की तिलावत से रूह को करते पाक
खुदा की पाक याद से ऐबों को करें ख़ाक
हर जगह होता जश्न मीठी लज़ीज़ सेंवईयों के साथ
चाँद से पहले गरीबों को देना फ़ित्रा है ख़ास बात
क़यामत के दौर में खुदा रूहों को कब्र से जगाते
जिस्मानी गुरूर से लबरेज़ हमें दोजख से छुड़ाते
पाक रूह समझने से अंदरूनी शैतान होगा ख़त्म
खुदा ही कायम करते जन्नत, देकर रूहानी इल्म
क़यामत के वक्त, खुदा लेता आदम के जिस्म में पनाह
वो है रूहानी नूर, नॉलेजफुल, मोहब्बत करता बेपनाह
अपने रूहानी इल्म से वो हमें पाक इंसान बनाता
रूहानी सिफ़तों से भरकर दोजख को जन्नत बनाता
जहां मुल्क होता एक, होती जन्नत/ गार्डन, ऑफ़ अल्लाह
सच्चा बेहद पाक त्यौहार ईद कितना खुशनुमा है वल्लाह
Very interested,
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