मेरे अनुभव माँ नर्मदा के संग
नर्मदा नदी से मेरा क्या रिश्ता है मैं नही जानती, लेकिन उसने एक आकर्षण सा महसूस होता है, ऐसे लगता है जैसे उनके जीवन से मेरे अनुभव जुड़े हुए है। जब भी कही उनसे सम्बंधित पौराणिक कथा सुनने या पढ़ने को मिलती है तो खुद को रोक नही पाती। बचपन से ही मुझे माँ नर्मदा से एक गहरा लगाव है यूँ लगता है की मै भाग्यशाली हूँ जो मेरा जन्म भारत देश में हुआ पर मै सौभाग्यशाली अनुभव करती हूँ जो मेरा जन्म माँ रेवा की शीतलता छलकाने वाली अचला यानी मध्य-प्रदेश में हुआ।
जो मुझे अपने आप में गर्वित होने की अनुभूति देता है। और मुझे बड़ी ही अधीरता से माँ नर्मदा जयंती की प्रतीक्षा रहती है जिसे मै बड़े की उत्सुकता से मानती हूँ। एवं मौन की एक भाषा में उनसे ये विनती करती हूँ की जल्दी ही मुझे भी नर्मदा परिक्रमा करने का सौभाग्य अवश्य प्रदान करना। और अब उम्र के साथ-साथ ये लगाव भी बड़ता गया। लोकगाथा के रूप में माँ नर्मदा की कथा बार-बार अलग-अलग रूपों सामने आती है। और मैं हर बार खुद को माँ नर्मदा के क़रीब पाती हूँ।
जब भी मुझे नर्मदा किनारे जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है मैं उनके किनारे बैठ कुछ समय अंतराल के लिए अपने आप में शांति और शीतलता का अनुभव करती हूँ
यूँ लगता है है जैसे माँ नर्मदा अपनी गोद में अपने स्नेह से एक हिम्मत, साहस, अपने निजी जीवन की पीड़ाओं, वेदना को सहने की शक्ति भर रही है। और मैं दुनिया से अबोध हो सिर्फ़ उनको ही निहारती रहती हूँ एवं ह्रदय की गहराइयों तक शीतलता का अनुभव करती हूँ।
तत्पश्चात् उनसे अपनी एक पारस्परिक निस्तब्धता को ज़ाहिर कर देती हूँ। दुनिया के कोलाहल से दूर माँ नर्मदा से मेरा तन्मय मुझे सहसा ह्रदय-विदारक अधीरता से दूर ले जाता है। आज का इंसान सुकून की टोह में भटक रहा है वो मुझे इनके किनारे की शीतलता में अनुभव होने लगता है।
साथ ही सोचती हूँ की परमात्मा से मिला ये लघु गात जिसको इस सृष्टि रूपी रंगमंच पर अनेकानेक किरदार का अभिनय करना होता है जिसमें सम्भ्रांत, प्रेम ,स्नेह ,ख्याति, विभूति , यश, ऐश्वर्य, उन्नति, प्रगति, आदर्श,कीर्ति, विकास सुख, समृद्धि, वैभव, स्वास्थ्य, प्रसिद्धि, उल्लास आदि तो होता है किंतु फिर ये विवेचना कर स्तब्ध रह जाती हूँ, एवं अचरज भी होता है की साथ ही इस किरदार में जेखिम, व्याकुलता, तौहीन, विकलता, व्यवधान, शारीरिक कष्ट, यातना, अभाव, जर्जरता, वितृष्णा, वेदना, तड़प, विरह, संताप, तिरस्कार, छल-कपट -द्वेष -राग वैर दुख-कष्ट पीड़ा, दर्द, प्रताड़ना जैसे तथ्यों का भी सामना करना होता है।
इन शब्दों के अनुभव से भले ही जीवन जैसे जीर्ण-शीर्ण सा हो गया ।किंतु जब स्मृत होता है कि विरह एवं अवमानना जैसे शब्दों की सत्यता माँ मेकलसुता से बड़कर कौन समझ सकता है। तो इस निश्चेष्ट विचारो में जैसे एक चेतना भर जाती है।और ये व्याकुल मन जैसे भयानक उष्णता एवं आतप से दूर हटकर माँ रेवा की की शीतलता के प्रतीर होने का अनुभूति पाता है।
माँ रेवा की त्याग एवं तपस्या हमे एक अनूठा संदेश देती है की जीवन कभी किसी के बिना रुकता नही। जानिए की वेद-पुराण माँ नर्मदा के बारे में क्या कहते है। और नर्मदा माँ के जीवन की घटित शैली हमे क्या सीख देती है।
आइए जानते है इनकी जीवन शैली क्या प्रेरणा देती है।
कहते है माँ नर्मदा की उत्पत्ति स्वयं शिव जी से हुई । इनके जीवन की एक मर्म घाती घटना ये थीं की इन्हें प्रेम में धोखा मिला था। फिर क्या किया माँ रेवा ने ?
वेदों और पुराणो के अनुसार-:
नमामि देवी नर्मदे॥
संसार में जितनी भी नदियाँ है उसमे नर्मदा जी के अतिरिक्त किसी भी नदी के प्रदिक्षणा करने का प्रमाण नही है। नर्मदा जी के अलावा किसी भी नदी पर पुराण की रचना नहीं हुई है। केवल नर्मदा जी के नाम से “नर्मदा पुराण” है।
नर्मदा जी के महत्त्व के बारे में कहा गया है कि जो पुण्य गंगा नदी में नहाने से मिलता है, वही पुण्य माँ नर्मदा को देखने मात्रा (दर्शन से ) मिल जाता है ।
त्रिभि: सारस्वतं तोयं सप्ताहेन तू यमुनाम। सद्य: पुनाती गांगेयं, दर्शनादेव नार्मदम॥
स्कन्द पुराण में कहा गया है कि, सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुना का जल 7 दिनों में या सात बार स्नान करने पर, श्री गंगा का जल 1 बार स्नान करने में पवित्र करता है किन्तु श्री नर्मदा जी का जल केवल दर्शन मात्र से ही पवित्र कर देता है ।
नर्मदा सेवते नित्यं स्वयं देवो महेश्वर:। तेन पुण्य नदी जेया ब्रह्महत्या: पहारिणी।
–मार्कण्डेय पुराण के अध्याय 190 का श्लोक 25
साक्षात् महेश्वर देव नर्मदा नदी (जल) का नित्य सेवन करते है, इसलिए इस पवित्र नदी को ब्रह्महत्यारूपी पाप का निवारण करने वाली जानना चाहिए ।
नर्मदा जी कि उत्पत्ति के सम्बन्धः में लिखा है कि भगवन शिव और शक्ति स्वरूपा माता पार्वती जी के बीच हास परिहास से उत्पन्न पसीनो कि बूंदो से माता नर्मदा का जन्म हुआ। भगवन शिव कि “इला” नामक कला ही नर्मदा जी है। महर्षि वशिष्ठ ने कहा है कि माघ शुक्ल सप्तमी आश्विन को इनका अवतरण हुआ।
माघै च सप्तम्यां दास्त्रा में च रविदिने। मध्ह्यानः समये राम भास्करेण कृमागते॥
माँ नर्मदा का अवतरण
नक्षत्र रविवार, मकर राशिगत सूर्य के रहते मध्ह्यानः काल के अभिजीत मुहूर्त में नर्मदा जी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। नर्मदा जी एक 12 वर्ष कि कन्या के रूप में प्रकट हुई। इसीलिए इस दिन को माँ नर्मदा का अवतरण दिवस माना जाता है। यह स्वर्ग लोक कि नदी है जिसे चंद्र वंश की चक्रवर्ती राजा परुआ की तपस्या से संतुष्ट हो कर शंकर जी ने वरदान स्वरुप उतरा था।
अन्य नदियाँ प्रायः पश्चिम से पूर्व की और बहती है किन्तु नर्मदा पूर्व से पश्चिम की और यानि प्रकृति के नियमो के विरूद्ध निचे (अमरकंटक कुंड) से ऊपर की और भरुच भ्रर्ण कच्छ के निचे खम्भात की खाड़ी में रत्ना सागर में गिरती है। नर्मदा जी को भगवन शंकर ने वर दिया कि जैसे उत्तर में गंगा स्वर्ग से आकर प्रसिद्द हुई है उसी प्रकार से नर्मदा जी “दक्षिण गंगा” भी कहलाएगी। नर्मदा जी कि गणना पवित्र सप्त गंगा से कि जाती है।
नर्मदा जी के दोनो तटों पर अमरकंटक से लेकर भरुच तक साढ़े 3 करोड़ तीर्थ है। नर्मदा जी कि कुल लम्बाई में से 1112 किलोमीटर का क्षेत्र मध्य प्रदेश में है। नर्मदा जी कि 1780 मील कि परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह 13 दिन में संत रूप में नर्मदे हर का पूर्ण स्मरण करते हुए पैदल चल कर प्रतिदिन 5 गृहस्थों से भिक्षा वृत्ति कर पूर्ण कि जाती है।
शिव पुराण कोटिरुद्र संहिता अध्याय दो से चार के अनुसार
वैशाख शुक्ल सप्तमी को गंगा मैया स्वयं साल में एक बार काली गाय के रूप में आकर नर्मदा स्नान करती है तथा पापियों को पापमुक्त करने से संचित सभी पापो से मुक्त होकर धवल (सफ़ेद) गाय के रूप में लौट जाती है।
वायु पुराण के अनुसार
नर्मदा का जल त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्वरुप है, इसे पृथ्वी पर शिव की ‘दिव्य द्रव्य शक्ति’ माना गया है। शिव जी ने नर्मदा जी को “अजर अमर हो” का वरदान दिया है, इसलिए प्रलय काल तक माँ नर्मदा इस धरती पर रहेगी। इसलिए इसका नाम
” प्रलयेषु न मृता सा नर्मदा “
‘नर्मदा’ प्रसिद्द हुआ। सबको आनंद (नर्म) देने (दा) से भी इसका नाम नर्मदा हुआ। नर्मदा जी र और व् (कल कल निनाद ) करती हुई प्रवाह मान होने से “रेवा” भी कहलाती है।
मेकल पर्वता से मेकलसुता नाम पड़ा: नर्मदा की जब उत्पत्ति हुई तब मां नर्मदा का आवेग इतना था कि कोई पर्वत उनके आवेग को नहीं झेल रहा था। तब विंध्यपुत्र मेकल ने आवेग को अपने ऊपर धारण किया। इसलिए नर्मदा का नाम मेकलसुता भी है।
भगवन विष्णु ने नर्मदा जी को आशीर्वाद दिया कि
” नर्मदे त्वे माह्भागा सर्व पाप हरी भव”। त्वदत्सु या: शिला: सर्वा शिव कल्पा भवन्तु वा:॥
अर्थात तुम सभी पापो का हरण करने वाली होगी तथा तुम्हारे जल के पत्थर शिव तुल्य पूजे जायेंगे। केवल नर्मदा से ही शिव लिंग प्राप्त होते है, जिन्हे समस्त शिव मंदिरो में स्थापित किया जाता है। ये स्वयं प्रतिष्ठित होते है। अतः इनकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है। इसीलिए माँ नर्मदा का कंकर कंकर शंकर है।
ऐसी मान्यता है कि प्रतिवर्ष एक बार समस्त तीर्थ नर्मदा जी से मिलने आते है। गंगा आदि समस्त नदियाँ स्वयं नर्मदा जी से मिलने आती है। इसलिए नर्मदा तट पर किये गए दाह संस्कार के बाद गंगा जी जाने की जरूरत नहीं होती है।
नर्मदा जी के किनारे “मणि नागेश्वर सर्प” रहते है । नर्मदा का उच्चारण करने से सांपो का भय नहीं रहता है। विषधर का जहर निम्न मंत्र के जाप से उतर जाता है।
नर्मदायै नम: प्रात: नर्मदायै नमो निशि। नमोस्तु नर्मदे तुभ्यं ग्राहिमाम विष सर्प तने॥
नर्मदा जी के तट पर सिद्धि प्राप्त होती है। देव, ऋषि, मुनि, मानव, सन्यासी आदि सिद्धि प्राप्त करने के लिए नर्मदा जी के तट पर ही आते है और अपने प्राण भी यही त्यागते है ।
नर्मदा पुराण के अनुसार
माँ नर्मदा को 13 नामों से जाना जाता है. जिनमे शोण , महानदी, मंदाकनी, महापुण्य प्रदा त्रिकुटा, चित्रोपला, विपाशा, बालवाहिनी, महार्णव विपाषा, रेवा, करभा, रुद्रभावा और एक नर्मदा जो हम सभी जानते हैं |इसके अलावा ये पावन सलीला मेकलसुता भी है तो जगदानंदी भी है
स्कंदपुराण के तीर्थ महात्म्य में बताया है कि-
गंगा में एक बार के, यमुना में तीन बार के, सरस्वती में 7 बार के स्नान से जो पुण्य मिलता है, वह केवल नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है। नर्मदा के दर्शन से मानसिक सन्ताप तुरन्त मिट जाते हैं।
भारत में चार नदियों को चार वेदों के रूप में माना गया है
गंगा को ऋग्वेद, यमुना को यजुर्वेद, सरस्वती को अथर्ववेद और नर्मदा को सामदेव। सामदेव कलाओं का प्रतीक है। नर्मदा को माना गया है।
लोग ऐसा मानते हैं कि साल में एक बार गंगा स्वयं एक काली गाय के रूप में आकर इसमें स्नान करती है और अपने पापों से मुक्त हो श्वेत होकर लौटती है।
कहते है की..अमरकंटक से 3 नदियां निकलती हैं, नर्मदा,सोन और जुहिला। ऐसी कथा है कि नर्मदा और सोन का विवाह तय हुआ था पर सोन को जुहिला से प्रेम हो गया इसलिये नर्मदा और सोन ये दोनों अलग रास्ते निकल लिए।
नर्मदा नदी के जन्म की कहानी भी बेहद दिलचस्प हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
भगवान शिव के पसीने से मां नर्मदा का जन्म हुआ था। जिसको लेकर एक कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि भगवान शिव मैखल पर्वत पर तपस्या में लीन थे। तब उनके पसीने की जो बूंदे गिरी थी उससे ही मां नर्मदा का जन्म हुआ था, इसलिए प्रचलित मान्यता के हिसाब से मां नर्मदा को भगवान शंकर की पुत्री भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव के आदेश से ही मां नर्मदा धरती पर आई थी, जिन्हें अविनाशी होने का वरदान भी शिव जी ने ही दिया था।
भगवान शिव ने दिया था वरदान
मान्यता है कि भगवान शंकर ने ही मां नर्मदा को धरती पर भेजकर उन्हें वरदान दिया था कि जो तुम्हारे दर्शन करेगा उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे, इसलिए आज भी नर्मदा नदी के तटों पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इसके अलावा माना जाता है कि मैखल पर्वत शिखर से उतन्न होने के चलते मां नर्मदा को मैखल राज की पुत्री भी कहा जाता है। एक और दूसरी कथा के अनुसार मैखल पर्वत पर प्रकट होने के चलते देवताओं ने मां नर्मदा नाम रखा था। जिसके चलते उन्हें वरदान मिला था कि उनके तट पर सभी देवी देवताओं का हर समय निवास होगा. यहां पूजा करने से सभी देवी देवताओं की पूजा का लाभ मिलेगा।
यहां कहा जाता है बड़ी मां..
नर्मदा नदीं तीन राज्यों से होकर बहती हैं, जिसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात शामिल हैं। ऐसे में जगह-जगह पर नर्मदा से जुड़ी अलग-अलग प्रथा हैं। गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी अंचलों के लोग मां नर्मदा को मोठी माई यानी बड़ी मां भी कहते हैं। यहां पर मां नर्मदा को लेकर कई गीत भी प्रचलित हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि मां नर्मदा का क्षेत्र जितना विशाल है, उनसे जुड़ी उतनी ही कहानियां भी प्रचलित हैं।
मान्यता है कि जो लाभ लोगों को गंगा स्नान से मिलता है उतना पुण्य लाभ मां नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है। इसलिए नर्मदा नदी आज भी लोगों की आस्था का केंद्र मानी जाती है। मध्य प्रदेश के लोगों का तो जीवन ही मां नर्मदा पर निर्भर है।
नर्मदा और सोनभद्र का विवाह तय हुआ
मान्यता है कि नर्मदा नदी राजा मैखल की पुत्री थीं. जब नर्मदा विवाह योग्य हुईं तो पिता मैखल ने राज्य में उनके विवाह की घोषणा की। साथ ही यह भी कहा कि जो भी व्यक्ति ‘गुलबकावली’ का फुल लेकर आएगा राजकुमारी का विवाह उसी के साथ होगा। इसके बाद कई राजकुमार आए लेकिन कोई भी गुलबकावली लाने की शर्त पूरी नहीं कर सका। मगर राजकुमार सोनभद्र ने गुलबकावली का फुल लाने की पूरी कर दी। इसके बाद नर्मदा और सोनभद्र का विवाह तय हो गया।और माँ नर्मदा को मन ही मन सोनभद्र से एक प्रेम ओर लगाव जैसी अनुभूति होने लगी।
इसलिए कुंवारी रहीं नर्मदा_____
राजा मैखल ने जब राजकुमारी नर्मदा और राजकुमार सोनभद्र का विवाह तय किया तो राजकुमारी की इच्छा हुई कि वह एक बार सोनभद्र को देख लें। इसके लिए उन्होंने अपनी सहेली जुहिला को राजकुमार के पास अपने संदेश देकर भेजा। लेकिन काफी समय बीतने के बाद सहेली जुहिला वापस नहीं आई। इसके बाद राजकुमारी को चिंता होने लगी और वह उसकी खोज में निकल गईं।
खोज करते हुए वह सोनभद्र के पास पहुंची और वहां जुहिला को उनके साथ देखा। यह देखकर उन्हें अत्यंत गुस्सा आया। कहा जाता है की इसके बाद ही उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण ले लिया और उल्टी दिशा (पूर्व से पश्चिम) में चल पड़ीं। कहा जाता है कि तभी से नर्मदा अरब सागर में जाकर मिल गईं। जबकि देश की अन्य सभी नदियां बंगाल की किसी भी नदी के प्रदिक्षणा करने का प्रमाण नही है।
नर्मदा के प्रेम की और कथा मिलती है कि सोनभद्र और नर्मदा अमरकंटक की पहाड़ियों में साथ पले बढ़े। किशोरावस्था में दोनों के बीच प्रेम का बीज पनपा। तभी सोनभद्र के जीवन में जुहिला का आगमन हुआ और दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। इसके बाद जब नर्मदा को यह बात पता चली तो उन्होंने सोनभद्र को काफी समझाया-बुझाया।
लेकिन वह नहीं माने। इसके बाद नर्मदा क्रोधित होकर उलटी दिशा में चल पड़ीं और आजीवन कुंवारी रहने की कसम खाई। तब सोनभद्र और जूहिला ने नर्मदा को जाते देखा तब सोनभद्र को दुःख हुआ की बचपन की सखी जा रही है उन्होंने उन्हें रोका न..र …म …दा… रुक जाओ लौट आओ नर्मदा।
कुछ किताबों में
ये भी कहा गया है की
नर्मदा ने सोनभद्र को कभी देखा नहीं था लिहाजा उन्हें देखने की इच्छा से नर्मदा ने अपनी दासी जुहिला के हाथों उन्हें एक पत्र भेजा। जुहिला ने जाने से पहले नर्मदा से उनके कपड़े और आभूषण मांगे वही कपड़े और गहने वह पहनकर सोनभद्र से मिलने चली गई। सोनभद्र ने जुहिला को ही राजकुमारी समझ लिया और उसके सामने प्रेम प्रस्ताव रख दिया। जुहिला की भी नियत डगमगा गई और उसने सोनभद्र का प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया। काफी दिन तक जुहिला के न लौटने पर नर्मदा चिंतित हो गईं और खुद ही सोनभद्र से मिलने चली गईं। वहां जाकर उन्होंने जुहिला और सोनभद्र को एक साथ पाया। इस छल से क्रोधित होकर उल्टी दिशा में चलने लगीं।
उल्टा चलते-चलते वे बंगाल की खाड़ी के बजाय अरब सागर में जाकर विलीन हो गई
इस कथा का भौगोलिक सत्य देखिए-
जैसिंहनगर के ग्राम बरह क़े निकट जोहिला (इस नदी को दूषित नदी माना जाता है। पवित्रा नदी में इसे शामिल नही किया गया है। सोनभद्र नद से वाम-पार्श्व में दशरथ घाट का संगम होता है और कथा में रूठी नर्मदा एक बिंदु से सोनभद्र से अलग दिखाई पड़ती है। दो प्रमुख नदियाँ गंगा और गोदावरी से विपरीत दिशा में बहती है। यानी पूर्व से पश्चिम की ओर।
नर्मदा जी ने हमेशा कुँवारी रहने का प्रण किया युवावस्था में सन्यासी बन गई । श्वेत वस्रों से पहचानी जाने वाली को मकरवाहिनी भी कहा जाता है।क्यूँकि इनका वाहन मगर होता है ।एवं हाथ में कमल पुष्प लिए सुशोभित होती है। संन्यासिनी देवी निकल गई विपरीत दिशा की ओर रास्ते मे घनघोर पहाड़ियाँ आईं ,हरे-भरे जंगल आये पर वह रास्ता बनाती चली गई ।
कल-कल – छल-छल सी नाद चहकहती मंडला के आदिम जनो क़े इलाक़े में पहुँची ।कहते है आज भी नर्मदा परिक्रमा में कही-कही नर्मदा का करुण विलाप सुनाई पड़ता है।
कहानी की सत्यता जो भी हो लेकिन भावार्थ यही है की उन्होंने प्रेम में धोखा पाया था।
न जाने स्त्री जाति का वह कौन सा अव्यक्त दर्द था जो हर कथा के साथ मुझमें बहता चला गया ।
नर्मदा नदी की तड़प ,वेदना,अपमान की पीड़ा और अपने स्वत्व स्त्रीत्व की क्रोधाग्नि ,हर मनोभाव को कई गहरे तक अनुभव किया।
पावन सलिला के किनारे बैठ में इन सभी शब्द -शैली का अनुभव करती हूँ ।
जब भी अपने अतीत से गुजरती हूँ तो नम आँखो में मुझे इनका पावन जल प्रतीत होता है जो की इनके समान हिम्मत ,साहस और अपने जीवन में गतिमान होने की प्रेरणा देता है एक ऊर्जा भर देता है ।ये शैली हमे सिखाती है की..
वर्तमान समय ये प्रेम की ट्रायंगल की कहानी बहुत ही ज़्यादा देखने और सुनने को मिलती है ।जिनमे कही कोई सोनभद्र होता है ,कोई नर्मदा ,तो कोई जूहिला।., है ना?? अर्थात् वर्तमान समय आज की युवा की भी यही स्तिथि होती जा रही है ,इस मार्मिक घटना से कई युवक-युवती तो आत्मा घात भी कर लेते है। जिस व्यक्ति ने आपको अपना नही समझा उसी के लिए हम अपनो से ही जीवन रूपी मुँह मोड़ लेते है अर्थ की आत्महत्या कर लेते है लेकिन ये नही समझते की इससे क्या होगा?
- किसी को कोई फर्क नही होगा सिर्फ़ आपके माता-पिता के अलावा ओर एक समय के बाद वो भी ज़िंदगी को जीते ही है ।..तो हमे नर्मदा से ये सीखना है की जीवन रुकता नही जो हमे अपमानित करे उससे दिशा ही बदल लेना चाहिए ओर आगे बडना है रास्ते में घनघोर एवं विकराल पहाड़िया, जंगल ,पहाड़ रूपी तकलीफ़ें ज़रूर आएगी पर हमे सबका सामना करना है।रास्ते में कुछ दूषित काला जल भी मिलता है जिसमें से होकर नर्मदा को गुजरना पड़ता है जिससे उसका जल भी कुछ समय के लिए काला मैला दिखाई पड़ता है किंतु इस बात से बेफ़िकर वो अपने मार्ग की और चलती जाती है
क्यूँकि की उनको पता है की उनका स्वभाव निर्मलता ही है आगे इस कलंकित आरोप से प्रतीत होते दूषित जल को वो सहसा पार कर ही लेती है ।और अपने स्व स्वभाव जो की कंचन नीर के समान निर्मलता है; में विराजमान हो जाती है
अर्थात् लोगों की दूषित जल रूपी कड़वी काली और आपको कलंकित करने वाली बातें भी आपको निज जीवन में सुनने को मिलेगी जिससे कुछ समय के लिए आप खुद को उन बातों में गुम हो जाने जैसे अनुभव करते है ।किंतु आपका किरदार अगर नर्मदा के समान निर्मल है तो उन्ही के समान इन बातों से बेफ़िक्री में रह आगे चलते जाए ।आपकी निर्मलता स्वयं आपको सही राह की तरफ़ ले जाएगी।
और एक बात सत्य है ना ..की जो आपकी क़िस्मत में है वो आपको ना मिलते हुए भी मिल जाएगा ओर जो नही है वो मिलकर भी प्राप्त ना हो पाएगा ।विधि का लेख कभी मिटता नही।विधना के लेख समझ नही आते। विधाता भी विधि के लेख में बांधे हुए है।बस जो होगा होकर ही रहता है। इसलिए जो बीत गया उस पर बिंदी लगा क़र अपने जीवन में आगे की और गतिमान हो जाओ ओर जन कल्याण करो।जैसे माँ नर्मदा अपने जीवन में आगे बड़ी कितनो का उद्धार किया स्वयं शिव से इनकी उत्पत्ति हुई ओर एक पवित्र नदी मानी गई तो वही जूहिला ओर सोनभद्र का इतना गायन नही है ।
क्यूँकि जो त्याग ,तपस्या और संघर्ष करता है वो निश्चित ही जीवन में कुछ करता है।जिसने आपको त्याग दिया ,तुम भी उसे त्याग दो हाँ ..स्वभाविक सी बात है बहुत तकलीफ़ होगी विरह रूपी कष्ट होगा , जैसे आज भी माँ नर्मदा की कल-कल ,छल-छल निनाद में आज भी करुण विलाप सुनाई पड़ता है परंतु उसी का एक रूप वह भी है जहाँ शीतलता ,शांति का अनुभव भी प्राप्त होता है क्यूँकि की परिवर्तन संसार का नियम है। यहाँ कुछ भी स्थिर नही है ना समय न प्रेम ना घृणा ओर ना ही संबंध। अत:माँ नर्मदा जी आज की युवा जन को बहुत बड़ी सीख मिलती है।और मुझे भी इनके जीवन कथनी से प्रेरणा मिलती है।
नर्मदा की कथा कई रूपों में जन मानस में प्रचलित है लेकिन चिरकुँवरि नर्मदा का सात्विक सौंदर्य,चरित्रिक तेज और भावनात्मक उफान नर्मदा परिक्रमा के दौरान हर संवेदनशील मन महसूस करता है।कहने को वो नदी रूप में है लेकिन मुझ जैसे चाहे-अनचाहे भावुक लोग उनका मानवीयकरण कर ही लेते है ।पौराणिक कथा और यथार्थ के भौगोलिक सत्य का सुंदर सम्मिलन उनकी भावना को बल ,साहस, संवेदना प्रदान करता है।और हम कह ही उठते है।
नमामि – देवी – नर्मदे