- कर्म पुण्य कब होता है ???
- और पाप कब और जिसने हमारे साथ गलत किया,
- क्या ये जरुरी हो सकता है कि पहले भी हमने उनके साथ ऐसा किया या उन्होंने अभी कार्मिक अकॉउंट Create किया ❓❓
जो भी हमारे साथ होता है वो हमारे ही कर्मो का फल होता है चाहे हमने इस जन्म में कोई गलत कार्य न किया हो लेकिन हमारे जन्म- जन्म के कर्मो का हिसाब है वो हमे चुक्तु करना ही होता।
कर्म के प्रकार
✦ इस सृष्टि रंग मंच पर चार प्रकार के कर्म होते है…
1. साधारण कर्म
2. अकर्म
3. विकर्म
4. सुकर्म
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✦ जब हम आत्मा इस सृष्टिरंग मंच पर परमधाम से आते है उस समय हम आत्माए सच्चा सोना होती है अर्थात सम्पूर्ण सतोप्रधान होती है। उस समय सृष्टि भी गोल्डन ऐज होती है।सतयुग में हमारे कर्म अकर्म होते है यानि हमारे द्वारा किये गए कर्म का न तो पाप बनता है और न ही पुण्य होता है। न तो ख़र्च होता है और न ही जमा !
✦ हम देह-अभिमान में रहकर कर्म करते है, तो हमारे द्वारा किए हर कर्म विकर्म बनते है।
✦ हर मनुष्यात्मा के साथ उसका पास्ट व भविष्य जुड़ा रहता है। पास्ट में न जाने हमने किस-किस से कर्मबंधन जोड़े हैं, वे सब अब हमारे सामने आते हैं। जिनसे अनबन रहती है, जरूर उनको हमने कष्ट दिया है, उनके अन्तर्मन में हमारे लिए नफरत या बदले की भावना रहती है- यही कारण है। यह जरुरी नहीं कि जीवन में हमेशा प्रिय क्षण ही आएं आपके अनुकूल व्यवहार ही हमें प्राप्त हो। अपमान, वियोग, आदि तमाम स्थितियां आती रहती हैं और जाती भी रहती है। दुनिया का कोई भी शरीरधारी जीव इन विविधताओं से बच नहीं पाता।
✦ जो भी दुःख देते है या बुरा कर रहे है या जितनी भी समस्या सामने आ रही है। उसके दो कारण होते है
पहला – संस्कार
दूसरा – कार्मिक अकाउंट
✦ आपके वर्तमान में जो समस्या कही भी आ रही है कोई बुरा कर रहा है।जैसे भी आपको दुःख दे रहा है तो आप ये मत समझे ये पिछले जन्म का है। कई बार व्यक्ति के संस्कार बीच में आते है। जिसकी वज़ह से समस्याये बढ़ती जा रही है। जिसे संस्कारों का टकराव कहते है। यदि संस्कार है तो सभी के साथ एक जैसा व्यवहार होगा।
✦ यदि किसी आत्मा के साथ बहुत प्रयत्न के बाद भी दुःख ही दे रहा है आपके साथ अनबन रहती है तो वहाँ कार्मिक अकाउंट बीच में आ रहा है।
कर्म क्या है
✦ कर्म क्या है हम कहेगें यह यूनिवर्सल ट्रुथ है।
जो जैसा कर्म करेगा ऐसा फल मिलेगा
जो बोया है वो ही काटेंगे
जिसे हम कार्मिक अकाउंट कहते है।
Low Of Karma क्या है।
जो हम बाहर भेजते है वो ही वापिस होकर मेरे पास वापिस आना है।अब इसमें हमारे उस कर्म के पीछे की इंटेंशन क्या होती है इसका ज्यादा इफ़ेक्ट होता है।तो जो कर्म हम जिस संकल्प के साथ करते है वो चाहे जाने में हुआ या अनजाने में उसको आपको चुक्तू करना ही पड़ेगा। इसलिए कर्मो की गति अति गुह्य है।
कर्म का अनादि सत्य सिद्धांत है। प्रत्येक कर्म इस जगत में प्रतिध्वनित हो जाता हैं। कर्मेंद्रियों के तल पर इस जगत में कर्म के बिना कोई भी व्यक्ति रह नहीं सकता हैं।
विचार
✦ कर्म का सूक्ष्मत्तर रूप हैं विचार। विचार करने का अर्थ है मानसिक तस्वीरों, शब्दों, भावनाओं व मनुष्य की अवस्थाओं का सृजन l जब ये कर्म के रूप में आते हैं चाहे अच्छे फल वाले या बुरे फल वाले, तब हमारा कार्मिक अकांउट बनता हैं।
✦ "कर्म पुण्य कब होता है और पाप कब" कर्म का आविर्भाव दो तरह से होता है l एक अज्ञान से निकला हुआ कर्म l दूसरा ज्ञान से निकला हुआ कर्म।
पुण्य कर्म
✦ कर्म पुण्य, तब होता हैं, जब हम आत्मिक स्थिति में रहकर श्रेस्ठ भावना से कोई कार्य करते है।
शांति, पवित्रता, प्रेम, सुख, आनंद, ज्ञान व शक्तियों के आधार पर किये गए कर्म पुण्य कर्म हैं।
✦ जब हमारे कर्मों से दूसरों को ख़ुशी मिले, उनके मुख से हमारे प्रति कृतज्ञ का भाव व्यक्त हो।चाहे वो कर्म मनसा, वाचा, कर्मणा या गुप्त धन द्वारा।
✦ ये सभी प्रकार के कर्म, हमारे पुण्य के खाते में जमा होते हैं,और हमारे साथ सृस्टि चक्र के अंत तक हमारे पाप कर्मों के अकाउंट को घटाने के लिए भी सहायक बनते हैं।
✦ ज्ञान से निकले कर्म में (मैं पन) नहीं होता हैं जिसे प्राय: हम कहते हैं l हम तो निम्मित हैं l ज्ञान युक्त कर्म निरहंकारिता से जुड़े रहते हैं l ये कर्म बाँधते नहीं हैं। इनके करने से निश्चिंतता, प्रसंन्नता, खुशी, सुख आदि की अनुभूति होती हैं l इन्हें ही पुण्य कर्म कहा जाता है क्योंकि इनसे हमें सर्व की दुआयें प्राप्त होती हैं।
पाप कर्म
✦ जब हम कोई भी कर्म देह-अभिमान में रहकर विकारों के वश हो करते है।
जो कर्म काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, आलस्य आदि के वश होकर किये जाते हैं, वे पाप कर्म हैं।
✦ जब हमारे कर्म, दूसरों के दु:ख का कारण बनते हैं फिर चाहे वो अनजाने में ही और Indirectly ही क्यों न हुआ हो।वो हमारे पाप कर्म के अकाउंट में ऐड होता हैं।
✦ इसलिए, हमें जीवन में हर कदम में अटेंशन देना जरूरी हैं।
✦ अज्ञान से प्रवाहित कर्म में कर्ता अर्थात् करने वाला और अहंकार दोनों साथ-साथ होते हैं l जिसे प्राय: हम कहते हैं मैने किया l इसमें मनुष्य की सोच, भाव, बोल और कर्म नकारात्मक होते हैं एकदम तामसी प्रवृति के l इससे दु:ख, बंधन, आघात व अशांति पहुँचती हैं l ऐसे कर्मो को पाप कर्म कहते हैं।
कर्म का प्रभाव
पुण्य खत्म होने बाद समर्थ सम्राट को भी भीख मांगनी पड़ती है।
✦ जो आत्मा अभी हमारे साथ गलत कर रही है तो ये तो Clear है पास्ट में हमने ही कुछ बुरा किया होगा।
✦ जीवन का कटु सत्य है……
“कर्म” एक ऐसा रेस्टॉरेंट है जहाँ ऑर्डर देने की जरुरत नहीं है,
हमें वही मिलता है जो हमने पकाया है….!
✦ कर्म की लगाम रखें हाथ में
मनुष्य कर्म करते -करते उसके प्रभाव में आ जाता है। जैसे हम घोड़े पर चढ़ते हैं लगाम अपने हाथ में रहे तो ठीक। नहीं तो घोड़ा हमें जहां चाहे वहां खींच ले जाता है। इसी प्रकार कर्म भी एक प्रकार का घोड़ा है। हम कर्म रूपी घोड़े के मालिक है परन्तु फिर भी वह हमें खींच ले जाता है।
✦ इसलिए सदा याद रखो कि बुरे कर्म तो त्यागने ही है, साथ ही साथ सत्कर्म की लगाम भी अपने हाथ में रहनी चाहिए।नहीं तो उसके कारण अहंकार आने की संभावना है। यह भी सदा याद रहे कि केवल प्रायश्चित करने से कर्म बंधन नहीं छूटता।इसलिए अगर एक बार कोई विकर्म होता भी है तो यह दृढ़ संकल्प हो कि ऐसा बुरा कर्म हमसे फिर कभी ना हो।
✦ जो बुरा हुआ उसके बदले सौ गुणा अच्छा कर्म करना है। यदि बुरे कर्म का बुरा परिणाम निकले तो भी उसे शांत रह कर सहन करना है । यदि कर्म भोग को साक्षी होकर सहन कर लिया तो कर्म आगे और फल नहीं देगा।भविष्य में फिर नहीं बांधेगा । नहीं तो कर्म फल मे आसक्ति होने से वह पुनः बंधन में आएगा और यह चक्र चलता रहेगा।
✦ हम देखते हैं कि समाज में ऐसे कई लोग हैं जो महफिल लगाकर शौक से शराब पीते है। किंतु दूसरा व्यक्ति एक कड़वी दवा को डॉक्टर की राय से पीता है दोनों के पीने में अंतर है एक पीने में आसक्त है।बार-बार पीना चाहता है दूसरा रोग निवारण की मजबूरी से अनासक्ति से पीता है ।
✦ इसी प्रकार समझदार व्यक्ति कर्म फल को आवश्यक औषधि की तरह ग्रहण करता है। वह सुख-दु:ख को भोगता नहीं बल्कि उसमे एक समान रहता है। वह साक्षी होकर अपने भार को हल्का कर लेता है ।
✦ कर्म बंधन के चक्र से बाहर आने का मार्ग भी यही है….
कर्मो की गुह्य गति
✦ आत्मा को अपने कर्म का फल स्वत: मिलता है। परमात्मा कर्म की गुह्य गति का पूर्ण ज्ञाता है। परमात्मा ही आकर कर्म की गुह्य गति का ज्ञान आत्माओं को देते है और श्रेष्ठ कर्मों का रास्ता बताता है, जिस पर चलकर आत्मा सुख-शान्ति पाती है। परमात्मा का फल को देने में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। फल तो विश्व-नाटक के विधि-विधान अनुसार स्वत: मिलता ही है।
✦ किसी के द्वारा किये गये पाप कर्म को अच्छा समझकर स्वीकार करने वाले या ऐसे कर्म के कर्ता की महिमा करने वाले पर भी उस पाप कर्म का प्रभाव पड़ता है और उसको भी उसका फल मिलता है।
✦ दु:खी, अशान्त होना भी एक विकर्म है क्योंकि इससे देह- अभिमान और दु:ख के वायब्रेशन प्रवाहित होते हैं, जो उस अनुरूप वातावरण का निर्माण करते हैं, जो अन्य आत्माओं को भी उस अनुरूप प्रभावित करता है अर्थात दु:ख-अशान्ति की अनुभूति कराता हैं अर्थात दु:खी- अशान्त बनाता है। इसलिए उस आत्मा की दु:ख-अशान्ति और बढ़ती जाती है।
✦ उस आत्मा के साथ जो भी हमारा कार्मिक अकाउंट हो उसे हम आपने सहन शक्ति से चुक्ता करे और उससे इमर्ज कर अपने कर्मों की माफी मांग ले और उसके बुरे कर्मों के लिये उसे माफ कर दे। बढी ही समझदारी से आपने अकाउंट को सेटल करने का प्रयास करना हैं।
✦ कर्म के विधि-विधान अनुसार पाप कर्म और गलत कर्म करने वाले की सुरक्षा करना या उसके दण्ड से बचाने का प्रयत्न करने वाला भी उस पाप कर्म में भागी होता है। इसी तरह से श्रेष्ठ कर्म करने और श्रेष्ठ कर्म की प्रेरणा देने वाले को भी उस श्रेष्ठ कर्म के फल में हिस्सा मिलता है।
✦ पाप कर्म करने वाले को साधन-सम्पत्ति या राय-सलाह के द्वारा पाप कर्म करने में सहयोग करने वाले पर भी पाप-कर्म का बोझ चढ़ता है, वह भी उसमें भागीदार बनता है।
✦ ये विश्व-नाटक एक कर्मक्षेत्र है, यहाँ कोई भी आत्मा स्थूल या सूक्ष्म कर्म अर्थात पार्ट के बिना रह नहीं सकती और कोई भी कर्म फलहीन नहीं होता। जो आत्मा जैसा कर्म करती, उस अनुरूप उसका फल अवश्य भोगती है।
गायन है –
इसीलिए तुलसीदास जी ने कहा है –
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस कीन्ह तासु फल चाखा।
✦ हर आत्मा के अपने कर्म ही उसके सुख-दु:ख का मूल कारण हैं, दूसरे व्यक्ति तो ड्रामा अनुसार केवल निमित्त कारण बनते हैं।
इसीलिए लौकिक गीता में भी कहा है –
जीवात्मा अपना स्वयं ही मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु है।
कार्मिक अकाउंट सेटल कैसे करें।
✦ हमारे हर _संकल्प_ में क्रिएट करने की एनर्जी होती है। क्योंकि हम _मनसा, वाचा, कर्मणा,_ आदि जो भी कर्म करते हैं उसका पहले संकल्प हम में क्रिएट होता है जिसके आधार से _कर्म_ बनता है। तो जो भी _कार्मिक अकाउंटस (खाते)_ बनते हैं वो हमारे ही किये हुए कर्मों से बनते है।
✦ जैसे अगर किसी ने हमारे साथ बिना वजह कुछ बुरा किया है तो इसका मतलब है कि हमने भी ज़रूर पहले कुछ बुरा किया होगा। इस स्थिति में हमें चाहिए कि हम बिना _रियेक्ट_ किये उस स्थिति को सह जाए ताकि हमारा जो कार्मिक अकॉउंट उस आत्मा के साथ बना हुआ है वो चुक्तू हो जाए।
✦ तो इससे हम समझ सकते हैं कि जिस आत्मा ने बुरा व्यवहार किया उसने अकाउंट क्रिएट किया, जिसने रियेक्ट किया उसने उस अकाउंट को कैरी फॉरवर्ड कर दिया और जिसने सह लिया उसने उन एकाउंट्स को क्लियर कर दिया। और इसी तरह कार्मिक एकाउंट्स बनते और खत्म होते हैं।
✦ कार्मिक एकाउंट्स सिर्फ नेगेटिव या पाप के ही नही होते लेकिन पॉजिटिव यानि पुण्य के खाते भी होते हैं।
✦ जैसे अगर हम किसी को मनसा, वाचा, कर्मणा से संपर्क सम्बन्ध में जितना सुख देते हैं, तो वो हमारे पॉजिटिव अकाउंट्स यानि पुण्य का खाता बनता है। और अगर हम किसी को मनसा, वाचा, कर्मणा से संपर्क सम्बन्ध में जितना दु:ख देते हैं, तो वो हमारे नेगेटिव अकाउंट्स यानि पाप का खाता बनता है।
✦ इसी तरह अगर हम किसी को धन की हानि पहुँचाते हैं तो हमें भी धन के रूप में हानि होती है, किसी के मन को क्षति पहुंचाते हैं तो हमें भी मन के रूप में दुःख मिलता है।
✦ ऐसे ही अगर हम किसी रिश्ते को ठीक से नहीं निभाते तो भविष्य में हमें उस रिश्ते का अभाव मिलता है।
तो हम देख सकते हैं कि जैसी एनर्जी हम क्रिएट करते हैं उसी रूप में वो हमारे सामने आती है।
आज अगर कोई आत्मा हमारे साथ गलत व्यवहार कर रही है या दुःख दे रही है तो निश्चित है कि हमने पहले उससे गलत किया हुआ है। हम अगर सह जाए तो हमारे उसके साथ बनाये पाप के खाते का अंत होता है और उसका खाता बनने लगता है। तो ये कर्मों की गुह्य गति है जो रिसायकल हो हमारे सम्मुख आती ही है।
इसीलिए कहा भी जाता है कि जैसा कर्म होगा, वैसा फल पाएंगे।
✦ आपको यदि लगता है तो उन आत्माओं से मन ही मन क्षमा याचना करना। पिछले जन्म में अज्ञानवश या किसी भी रीति से मैंने कुछ ऐसा किया उसकी मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ।
और मैंने भी यदि किसी से बुरा किया तो उन आत्माओ को मैं क्षमा करता हूँ। इससे आप खुद हल्का फील करेंगे।
✦ शुभ भावना और शुभ कामना के संकल्प करना।
परमात्मा उन आत्माओ को सुख दो, शांति दो, प्यार दो, उनका जीवन में सुख शांति समृद्वि रहे, आपको क्या चाहिए जीवन में सुख शांति आनंद ये ही चाहिए। यह आपको भी उनके द्वारा मिलेगा।
हमारा कार्मिक अकांउट तब चुक्तु होता है जब :
A- ईश्वर के समक्ष समर्पण कर देने से, दान करने से, न्यायसंगत कर्म करने से कर्म का खाता समाप्त होता हैं।
B- कर्म के प्रभाव को समाप्त करने का सबसे शक्तिशाली साधन है राजयोग l
जिसके माध्यम से चित्त के गन्दे पात्र को स्वच्छ किया जा सकता हैं l यह सबसे त्वरित विधि हैं l क्योंकि योग से शक्ति प्राप्त होती है जिससे मानसिक बंधन ढीले होते जाते हैं l भावनात्मक परिपक्वता विकसित होती हैं l साथ ही सकारात्मक चिन्तन का पोषण होता हैं l
✦ जिस किसी ने भी शरीर का आधार किया है उसे कर्म तो करना ही पड़ेगा अब इन बातों का ध्यान रखें हिसाब किताब चुक्तू हो जाये और नया खाता भी ना खुले।
1- योग युक्त होकर कर्म करना।
2- ट्रस्टी बनकर कर्म करना।
3- श्रीमत के अनुसार कर्म करना।
✦ भगवान की याद से हमें कर्मों को भोगने की शक्ति मिलती है जिससे हम अपने कर्म भोग आसानी से चुक्तू कर लेते है और भगवान की मत पर जब हम चलते हैं तो पाप कर्मो और आगे आने वाले उनके दुःख के परिणाम से बच जाते हैं।
✦ अगर आप समझते है कि मेरा कार्मिक अकाउंट सेटल हुआ। तो आपको हल्कापन फील होगा। पर बुरा करना किसी का ये कार्मिक अकाउंट सेटल करना है ही नही। अगर आप जानबूझ कर दुःख दर्द देगें तो ये भी कोई कार्मिक अकाउंट सेटल करना नही है।
✦ जिसने हमारे साथ गलत किया यह हो सकता है की पहले भी हमने उनके साथ ऐसा किया या उन्होंने अभी कार्मिक अकॉउंट क्रिएट किया।
जिसने हमारे साथ आज गलत किया, ये जरूरी नहीं है कि पूर्व में हम उनके साथ ऐसा कर चुके हैं l हो सकता है उन्होंने अपना नया कार्मिक अकॉउंट बनाया।
मान लो कि हमने किसी के पैसे उधार लिया और फिर वापिस नही किया ओर उससे पहले शरीर छोड़ दिया ! जिस बजह से उस इन्सान जिसके हमने पैसे लिया वह नेक्स्ट जन्म मे हमारे घर मे बच्चा बन कर जन्म लिया पर वह बचपन से बीमार ही जन्म हुआ। हमने उस पर बहुत पैसे खर्च की लेकिन वो बच्चा बचा भी नही यानि यह वही बच्चा था जिसका हमने पिछले जन्म में पैसे लिए थे, अब उसने अपना हिसाब चुक्तु कर लिया।
एक दृष्टान्त:-
भीष्म पितामह रणभूमि में शरशैया पर पड़े थे। हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते। ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्रीकृष्ण भी दर्शनार्थ आये। उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा आइये जगन्नाथ, आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला?
श्रीकृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते।
भीष्म: देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ? मैंने सब देख लिया …अभी तक 100जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण और पीड़ा लेकर आता है।
श्रीकृष्ण: पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।
भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।
एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला “राजन! मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।”
भीष्म ने कहा ” एक काम करो। उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।”
सैनिक ने वैसा ही किया। उस सांप को एक लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दिया।
दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी। सांप उनमें फंस गया। जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता। कांटे उसकी देह में गड गए। खून रिसने लगा। धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा। 5-6 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।
भीष्म: हे त्रिलोकी नाथ। आप जानते हैं कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था। तब ये परिणाम क्यों?
श्रीकृष्ण: तात श्री! हम जान बूझ कर किया करें या अनजाने में किन्तु किया तो हुई न।उसके प्राण तो गए ना।
ये विधि का विधान है कि जो क्रिया हम करते हैं उसका फल भोगना ही पड़ता है। आपका पुण्य इतना प्रबल था कि 101 भव उस पाप फल को उदित होने में लग गए। किन्तु अंततः वह हुआ।
✦ जिस जीव को लोग जानबूझ कर मार रहे हैं उसने जितनी पीड़ा सहन की वह उस जीव (आत्मा) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में अवश्य भोगनी होगी।
✦ जैसे हम बीमार आदि होते है या को लम्बी बिमारी का शिकार होते है या फिर हमे अचानक कारोबार मे लॉस हो जाता है यानि हमारे पर विकर्मो का बोझा ज्यादा है इससे चुकतु होता है।
✦ किसी आत्मा द्वारा मन्सा, वाचा व कर्मणा द्वारा किया गया विकर्म पाप माना जाता है ।सबसे ज्यादा पाप काम – कटारी चलाना माना जाता है।
✦ जब हम परमात्मा की याद में रहेंगे परमात्मा के साथ योग लगायेगे तो योग का बल जैसे- जैसे आत्मा में जमा होने लगेगा आत्मा शक्तिशाली बनती जायेगी और किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होगी।
राजयोग के द्वारा हम बिना कोई कष्ट के विकर्मो का विनाश कर सकते है।